4. लेखों के विषयों तथा सामग्री में अनुपम
बाइबल की पुस्तकों में कई भिन्न प्रकार की
साहित्यिक लेखन शैलियाँ हैं, जैसे कि:
नियम और व्यवस्था
ऐतिहासिक वृतांत
स्मृतियाँ
दृष्टांत
नीतिवचन
भजन, कविता,
और स्तुति गीत
प्रेम-प्रसंग
व्यंग्य
पत्र
जीवनियाँ
आत्म-कथाएं
वंशावलियाँ
शिक्षाएं
भविष्यवाणियाँ
आदि।
बाइबल के लेखकों ने सैकड़ों
विभिन्न विषयों के बारे में लिखा, तथा बाइबल के लेखों में अनेकों विषयों को संबोधित
किया गया है, जिनमें से कई विषय विवादात्मक भी हैं, जिनकी चर्चा या वार्तालाप में प्रतिस्पर्धी
विचार उत्पन्न होना सामान्य बात है, जैसे कि विवाह, वैवाहिक संबंध तथा दायित्व, तलाक,
पुनः विवाह, समलैंगिक संबंध, व्यभिचार, अधिकारियों की अधीनता, सत्य-वादिता, असत्य-वादिता,
चरित्र तथा चरित्र का विकास, बच्चों का पालन-पोषण और शिक्षण, प्रकृति, स्वर्गदूत, परमेश्वर,
स्वर्ग, नरक, उद्धार, पाप, पाप-क्षमा, पाप का दंड, परमेश्वर की अनाज्ञाकारिता और आज्ञाकारिता
के परिणाम और प्रतिफल, जीवन, मरण, परमेश्वर के प्रति मनुष्यों के उत्तरदायित्व, अनन्तकाल,
आदि।
इतने भिन्न और असंबंधित प्रतीत
होने वाले विषयों और लेखन शैलियों, तथा लेखकों में परस्पर इतनी असमानताएं होने के बावजूद,
बाइबल की पहली पुस्तक – उत्पत्ति के आरंभ से लेकर अंतिम पुस्तक – प्रकाशितवाक्य के
अंत तक, इन सभी लेखकों ने इन सभी विषयों को एक अद्भुत सामंजस्य और तालमेल के साथ संबोधित
किया है। एक ही विषय पर अलग-अलग लेखों और लेखकों में कोई विरोधाभास या दृष्टिकोण की
भिन्नता नहीं है; यदि भिन्न लेखों में से उस एक विषय की बातों को संकलित किया जाए,
तो वे एक दूसरे के पूरक, एक दूसरे को समझने में सहायक, एक दूसरे से पूर्णतः मेल खाने
वाले होते हैं, कभी अलग-अलग बात कहने वाले नहीं। और न ही कोई एक विषय कभी किसी अन्य
संबंधित विषय से कोई विवाद उत्पन्न करता है अथवा उसकी बात को काटता या नकारता है। आरंभ
से लेकर अंत तक, हर बात, हर विषय, हर लेखक, हर शैली, हमेशा पूरे तालमेल के साथ, एक
दूसरे के पूरक और सहायक होकर साथ ही खड़े मिलेंगे, कभी भी एक दूसरे के विरोध में या
भिन्न दृष्टिकोण के साथ नहीं।
इतनी विभिन्नता होते हुए
भी सम्पूर्ण बाइबल की हर पुस्तक, हर विषय, हर दृष्टिकोण, हर लेखक, एक ही मुख्य विषय,
और एक ही मुख्य पात्र को लेकर वृतांत को विकसित करता जा रहा है, वृतांत और वर्णन को
निखारता जा रहा है। बाइबल का मुख्य विषय है पाप में गिरे और फँसे हुए मनुष्यों से परमेश्वर
का प्रेम, और उन्हें पाप के दासत्व से छुड़ाने का परमेश्वर का प्रयोजन एवं कार्य; तथा
बाइबल का मुख्य पात्र है परमेश्वर के इस प्रयोजन को कार्यान्वित करके सफल बनाने और
सभी के लिए उपलब्ध करवाने वाला परमेश्वर का पुत्र – प्रभु यीशु मसीह। जिस प्रकार एक
देह में अनेकों भिन्न अंग होते हैं, किन्तु वे सभी साथ मिलकर ही देह को बनाते और चलाते
हैं, उसी प्रकार सम्पूर्ण बाइबल की हर पुस्तक, हर विषय, हर वर्णन प्रभु यीशु मसीह की
इसी एक गाथा के विभिन्न अंग और आयाम हैं। पाप और पाप के दासत्व तथा अनन्तकालीन दुष्प्रभावों
और दुष्परिणामों से, मनुष्यों के अपने किसी कार्य अथवा धार्मिकता से नहीं, वरन परमेश्वर
के प्रेम, कृपा, दया, और अनुग्रह के द्वारा मनुष्यों की मुक्ति – मनुष्यों का उद्धार,
और उस उद्धार से होने वाला उनके जीवनों में परिवर्तन, तथा परमेश्वर के समानता में ढलते
जाना ही वह धागा है जो समस्त बाइबल की हर पुस्तक, हर लेख, हर विचार में होकर पिरोया
गया है। आरंभ से लेकर अंत तक बाइबल प्रभु यीशु मसीह पर ही केंद्रित है, उसी की सत्य-कथा
है ।
दो लेखकों, गियसलर और निक्स, ने इसे बड़े मनोहर रीति से व्यक्त किया
है: पहले पुराने नियम को देखें तो व्यवस्था और नियम मसीह के लिए नींव रखते हैं;
इतिहास की पुस्तकें मसीह के लिए तैयारी को दिखाती हैं; भजन और काव्य पुस्तकें
मसीह के लिए अभिलाषा को व्यक्त करते हैं; और भविष्यवाणियाँ मसीह की प्रत्याशा
देती हैं। फिर, नए नियम में आकर, सुसमाचारों में मसीह का प्रकट होता है; प्रेरितों
के काम में मसीह का सारे संसार में प्रसार है; पत्रियों में मसीह की शिक्षाओं
की व्याख्या है; और अंतिम पुस्तक प्रकाशितवाक्य में मसीह में सभी बातों की पूर्ति
तथा अनन्त जीवन का आरंभ है।
संसार में बाइबल के अतिरिक्त,
अन्य साहित्य और काव्यों तथा ग्रंथों की कमी नहीं है, और उनमें से अनेकों तो लेखन सामग्री
में उत्तम तथा शिक्षाप्रद भी हैं; किन्तु उनमें से कोई भी ऐसा नहीं है जिसमें यह सभी
गुण और बातें पाई जाती हों, जो बाइबल के विषय इस लेख में बताई गई हैं। सारे संसार के
इतिहास और साहित्य में बाइबल का अपना ही विशिष्ट स्थान है, जिसके निकट और कोई पुस्तक
कभी नहीं पहुँच सकी है।
बाइबल पाठ: इफिसियों 2:1-10
इफिसियों 2:1 और उसने तुम्हें भी जिलाया, जो अपने अपराधों और पापों के कारण मरे हुए थे।
इफिसियों 2:2 जिन में तुम पहिले इस संसार की रीति पर, और आकाश के अधिकार के हाकिम अर्थात उस आत्मा के अनुसार
चलते थे, जो अब भी आज्ञा न मानने वालों में कार्य करता
है।
इफिसियों 2:3 इन में हम भी सब के सब पहिले अपने शरीर की लालसाओं में दिन बिताते
थे, और शरीर, और मन की मनसाएं पूरी करते थे, और और लोगों के समान
स्वभाव ही से क्रोध की सन्तान थे।
इफिसियों 2:4 परन्तु परमेश्वर ने जो दया का धनी है; अपने उस बड़े प्रेम के कारण, जिस से उसने हम से
प्रेम किया।
इफिसियों 2:5 जब हम अपराधों के कारण मरे हुए थे, तो हमें मसीह के साथ जिलाया; (अनुग्रह ही से तुम्हारा
उद्धार हुआ है।)
इफिसियों 2:6 और मसीह यीशु में उसके साथ उठाया, और स्वर्गीय स्थानों में उसके साथ बैठाया।
इफिसियों 2:7 कि वह अपनी उस कृपा से जो मसीह यीशु में हम पर है, आने वाले समयों में अपने अनुग्रह का असीम धन दिखाए।
इफिसियों 2:8 क्योंकि विश्वास के द्वारा अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ
है, और यह तुम्हारी ओर से नहीं, वरन परमेश्वर का दान है।
इफिसियों 2:9 और न कर्मों के कारण, ऐसा न हो कि कोई घमण्ड करे।
इफिसियों 2:10 क्योंकि
हम उसके बनाए हुए हैं; और मसीह यीशु में उन भले कामों के लिये सृजे
गए जिन्हें परमेश्वर ने पहिले से हमारे करने के लिये तैयार किया।
एक साल में बाइबल:
- भजन 74 -76
- रोमियों 9:16 -33