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सोमवार, 22 नवंबर 2021

मसीही सेवकाई में पवित्र आत्मा की भूमिका - पुनः अवलोकन (4)

 

मसीही सेवकाई में पवित्र आत्मा की कार्य-विधि - 1 (नवंबर 12 से 14 तक के लेखों का सारांश)

पिछले लेख में हमने देखा था कि मसीही की सेवकाई में, परमेश्वर पवित्र आत्मा प्रभु यीशु के शिष्यों, अर्थात मसीही विश्वासियों को तैयार करके, फिर उनमें होकर अपने कार्य और सामर्थ्य को प्रकट करता है; उनमें होकर संसार के लोगों के समक्ष उदाहरण तथा शिक्षाओं को रखता है। यूहन्ना 16:8 में पवित्र आत्मा ने तीन बातें लिखवाई हैं, जिनके विषय वह प्रभु यीशु के शिष्यों में होकर संसार को दोषी ठहराता है। ये तीन बातें हैं - पाप, धार्मिकता, और न्याय। सारे संसार के विभिन्न लोगों और धर्मों के निर्वाह, रीति-रिवाजों की पूर्ति, अनुष्ठानों के किए जाने, आदि के बावजूद, संसार के लोगों में से इन तीनों समस्याओं को मिटा पाना संभव नहीं होने पाया है, वरन इनके विषय स्थिति सुधारने की बजाए और बिगड़ती ही जा रही है। यही अपने आप में एक जग-विदित प्रमाण है कि धर्म-कर्म-रस्म का निर्वाह इस समस्या का समाधान नहीं है। परमेश्वर पवित्र आत्मा, प्रभु यीशु मसीह के शिष्यों के परिवर्तित जीवन और व्यवहार में होकर संसार के लोगों को इन बातों के विषय दोषी ठहराता है - प्रभु के वास्तविक और सच्चे शिष्यों के जीवनों से तुलना के द्वारा संसार के लोगों को उनकी वास्तविक दशा दिखाता है।

पाप: संक्षेप में, परमेश्वर के वचन बाइबल के अनुसार, पाप, मन-ध्यान-विचार-व्यवहार में किया गया परमेश्वर की आज्ञाओं और निर्देशों का उल्लंघन अथवा अवहेलना है (1 यूहन्ना 3:4)। हमारे आदि माता-पिता, आदम और हव्वा के द्वारा किए गए प्रथम पाप के साथ ही पाप ने सृष्टि में प्रवेश किया, और आदम की संतानों में फैल गया (रोमियों 5:12-14)। मनुष्यों में आनुवंशिक रीति से विद्यमान पाप करने की इस प्रवृत्ति का निवारण और समाधान, उस व्यक्ति द्वारा किए गए अपने पापों के अंगीकार तथा उन से पश्चाताप, प्रभु यीशु मसीह द्वारा मिली पापों की क्षमा और उद्धार, तथा उसे स्वेच्छा से अपना जीवन समर्पण करने वाले व्यक्ति में प्रभु के द्वारा किया गया मन-ध्यान-विचार और व्यवहार में आधारभूत परिवर्तन, के द्वारा होता है। पाप और उसके निवारण तथा समाधान के विषय दी गई शिक्षाओं पर एक विस्तृत चर्चा पहले प्रस्तुत की जा चुकी है; इस विस्तृत चर्चा की शृंखला का आरंभ इस लेख के साथ हुआ था: परमेश्वर का वचन, बाइबल – पाप और उद्धार - 1

धार्मिकता: मूल यूनानी भाषा के लेख में जिस शब्द का प्रयोग किया गया है, जिसे यहाँधार्मिकताअनुवाद किया गया है, उसका अर्थ होता है चरित्र एवं व्यवहार में दोष रहित होना। अर्थात, यहाँ पर धार्मिकता का अर्थ धार्मिक बातों, प्रथाओं, और रीति-रिवाजों का निर्वाह तथा धार्मिक अनुष्ठानों की पूर्ति के आधार पर व्यक्ति काधर्मीसमझा जाना नहीं है, वरन उसके मन-ध्यान-विचार-व्यवहार में परमेश्वर की दृष्टि में तथा उसके मानकों के आधार पर दोष रहित होना है। यह मन परिवर्तन मनुष्य अपने किसी धर्म के कामों से नहीं करने पाता है, नहीं तो संसार भर में इतने धर्मों और धार्मिक अनुष्ठानों, और कार्यों के द्वारा, अब तक संसार से पाप की समस्या कब की मिट चुकी होती। यह मन परिवर्तन केवल प्रभु यीशु मसीह में लाए गए विश्वास और पापों के पश्चाताप के द्वारा ही संभव है। प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास लाना, और ईसाई धर्म का निर्वाह करना, दो बिलकुल भिन्न बातें हैं; और ईसाई धर्म का निर्वाह व्यक्ति को परमेश्वर की दृष्टि में धर्मी नहीं बनाता है। व्यक्ति किसी भी धर्म को माने, किसी भी परिवार में जन्म ले, सभी के लिए, ईसाई धर्म का निर्वाह करने वालों के लिए भी, परमेश्वर की आज्ञा अपने पापों से पश्चाताप करने की है (प्रेरितों 17:30-31)। सच्चे और वास्तविक मसीही विश्वासी के जीवन जीने वालों में, और संसार के मानकों के अनुसारधर्मका जीवन जीने वालों में परमेश्वर पवित्र आत्माधार्मिकताकी यह तुलना प्रस्तुत करता है। मसीही विश्वास की धार्मिकता की तुलना में, सांसारिक की गढ़ी हुई धार्मिकता के विषय सांसारिक लोगों को दोषी ठहराता है।

न्याय: मूल यूनानी भाषा के जिस शब्द का अनुवाद यहाँन्यायकिया गया है, उसका अर्थ होता है सही पहचान करनायानिर्णय लेना। इस शब्द का प्रयोग और अर्थ सही पहचान करने, परिस्थितियों का सही विश्लेषण करने, या व्यक्तियों का सही आँकलन करने और उनके विषय सही निर्णय करने, आदि के लिए भी किया जाता है, केवल सामान्य अभिप्राय, वैधानिक या कानूनी न्याय करना, यानि कि उनके अपराधों के लिए लोगों को दोषी ठहराना और दण्ड देना ही नहीं। यूहन्ना 16:11 में पवित्र आत्मा द्वारा करवाए गएन्यायऔरसंसार का सरदारअर्थात शैतान केन्यायके मध्य एक तुलना (contrast) रखी गई है। अर्थात, दोनों केन्यायकरने, यानि कि सही निर्णय देने, या सही पहचान, अथवा आँकलन करने में भिन्नता है। और परमेश्वर पवित्र आत्मा, मसीही विश्वासियों में होकर बिलकुल सटीक, सही, और पक्षपात रहित न्याय, उचित व्यवहार, या निर्णय करवाने के द्वारा, ऐसे उदाहरण प्रस्तुत करेगा जो संसार के लोगों द्वारा सांसारिक विचार और व्यवहार के अनुसार, “संसार के सरदारके प्रभाव में होकर किए जाने वाले अनुचित एवं अपूर्ण न्याय, या निर्णय के बारे में उनको दोषी ठहराएंगे। एकमात्र सच्चे और जीवते प्रभु परमेश्वर का न्याय सदा सच्चा, खरा, और पक्षपात रहित होता है। निष्कर्ष यह कि मसीही विश्वास में आने के द्वारा व्यक्ति के मन, जीवन, विचार, और व्यवहार में जो परिवर्तन आता है, वह उसे परमेश्वर पवित्र आत्मा की अधीनता में खरा और सच्चा न्याय करने, या जाँच-परख करने, या सही आँकलन करके पक्षपात रहित निर्णय करने वाला बना देता है। उसका यह बदला हुआ व्यवहार, उसमें परमेश्वर पवित्र आत्मा की उपस्थिति का प्रमाण है। साथ ही उसका इस प्रकार का जीवन, पाप और पापमय प्रवृत्तियों तथा विचारधाराओं में रहने वाले, “संसार के सरदारके प्रभाव में होकर कार्य करने वाले लोगों के समक्ष एक तुलना (contrast) रखता है, और उन्हें उनके अनुचित न्याय, व्यवहार, और विचार के लिए दोषी ठहराता है।

परमेश्वर पवित्र आत्मा मसीही विश्वासियों में आडंबर, नाटकीय व्यवहार, करिश्माई दावे करने, और शारीरिक एवं सांसारिक लाभ देने के लिए आकर निवास नहीं करता है। वरन उसका उद्देश्य मसीही विश्वासियों में होकर प्रभु यीशु में पापों की क्षमा और उद्धार की गवाही देना, तथा संसार के लोगों को उनके दोषों के विषय कायल करना है। यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, तो यूहन्ना 16:8-11 के समक्ष आपका जीवन कैसा है? यदि आप अभी इन पदों के समक्ष अपने आप को दोषी पाते हैं, तो फिर आपको 2 कुरिन्थियों 13:5 के अनुसार अपने आप को और अपने मसीही विश्वास में होने के दावे का पुनः अवलोकन करने, अपने मसीही विश्वासी होने की समीक्षा करने की आवश्यकता है। मसीही विश्वासी होने के नाते, आप में विद्यमान परमेश्वर पवित्र आत्मा आपको पाप करने या पाप में बने नहीं रहने देगा; आपको मनुष्य और संसार के लोगों के अनुसार नहीं वरन परमेश्वर की दृष्टि में और उसके मानकों के आधार पर धार्मिकता का जीवन जीने के लिए प्रेरित करेगा; तथा संसार के लोगों के समान अनुचित न्याय अथवा लोगों और परिस्थितियों का आँकलन नहीं करने देगा। आप जब भी ऐसा करेंगे, वह आपके जीवन में खलबली उत्पन्न करेगा, आपके जीवन में तब तक बेचैनी रहेगी जब तक आप अपने इस गलत व्यवहार को सही नहीं कर लेंगे। और यदि आप फिर भी ढिठाई में ऐसे व्यवहार में बने रहेंगे, जो एक मसीही विश्वासी के लिए सही नहीं है, तो आपको ताड़ना में से भी होकर निकलना पड़ेगा, जिससे आप सुधारे जा सकें (इब्रानियों 12:5-11)

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी उसके पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।



एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • यहेजकेल 18-19 
  • याकूब 4