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शुक्रवार, 11 मार्च 2022

कलीसिया में अपरिपक्वता के दुष्प्रभाव (27)


भ्रामक शिक्षाओं के स्वरूप - सुसमाचार संबंधित गलत शिक्षाएं (8) - सही सुसमाचार के 7 प्रभाव (2)  

हम पिछले लेखों से देखते आ रहे हैं कि बालकों के समान अपरिपक्व मसीही विश्वासियों की एक पहचान यह भी है कि वे बहुत सरलता से भ्रामक शिक्षाओं द्वारा बहकाए तथा गलत बातों में भटकाए जाते हैं (इफिसियों 4:14)। इन भ्रामक शिक्षाओं को शैतान और उस के दूत झूठे प्रेरित, धर्म के सेवक, और ज्योतिर्मय स्‍वर्गदूतों का रूप धारण कर के बताते और सिखाते हैं (2 कुरिन्थियों 11:13-15)। ये लोग, और उनकी शिक्षाएं, दोनों ही बहुत आकर्षक, रोचक, और ज्ञानवान, यहाँ तक कि भक्तिपूर्ण और श्रद्धापूर्ण भी प्रतीत हो सकती हैं, किन्तु साथ ही उनमें अवश्य ही बाइबल की बातों के अतिरिक्त भी बातें डली हुई होती हैं। जैसा परमेश्वर पवित्र आत्मा ने प्रेरित पौलुस के द्वारा 2 कुरिन्थियों 11:4 में लिखवाया है, “यदि कोई तुम्हारे पास आकर, किसी दूसरे यीशु को प्रचार करे, जिस का प्रचार हम ने नहीं किया: या कोई और आत्मा तुम्हें मिले; जो पहिले न मिला था; या और कोई सुसमाचार जिसे तुम ने पहिले न माना था, तो तुम्हारा सहना ठीक होता”, इन भ्रामक शिक्षाओं और गलत उपदेशों के, मुख्यतः तीन विषय, होते हैं - प्रभु यीशु मसीह, पवित्र आत्मा, और सुसमाचार। साथ ही इस पद में सच्चाई को पहचानने और शैतान के झूठ से बचने के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण बात भी दी गई है, कि इन तीनों विषयों के बारे में जो यथार्थ और सत्य हैं, वे सब वचन में पहले से ही बता और लिखवा दिए गए हैं। इसलिए बाइबल से देखने, जाँचने, तथा वचन के आधार पर शिक्षाओं को परखने के द्वारा सही और गलत की पहचान करना कठिन नहीं है। 

पिछले लेखों में हमने इन गलत शिक्षा देने वाले लोगों के द्वारा, पहले तो प्रभु यीशु से संबंधित सिखाई जाने वाली गलत शिक्षाओं को देखा; फिर उसके बाद, परमेश्वर पवित्र आत्मा से संबंधित सामान्यतः बताई और सिखाई जाने वाली गलत शिक्षाओं की वास्तविकता को वचन की बातों से देखा; और अब पिछले कुछ लेखों से हमने सुसमाचार से संबंधित शिक्षाओं के बारे में देखना आरंभ किया है, जिससे कि हम सही सुसमाचार क्या है देख और समझ सकें और गलत या भ्रष्ट को पहचान सकें, ताकि स्वयं भी गलत से बच कर रह सकें तथा औरों को भी बचा सकें। इस संदर्भ में पिछले लेखों में हमने सुसमाचार के विषय भ्रम और गलत शिक्षाएं को पहचानने के आधार को देखा था, फिर हमने सच्चे और उद्धार देने वाले सुसमाचार के शैतान द्वारा बिगाड़े जाने, भ्रष्ट किए जाने, और विभिन्न रीतियों से अप्रभावी किए जाने वाली आम युक्तियों के बारे में देखा; फिर हमने गलातीयों 1 अध्याय से वास्तविक सुसमाचार के 7 गुणों या स्वभाव को देखा है, जिससे असली और नकली के मध्य पहचान कर सकें; और उसके बाद गलातीयों 1 और 2 अध्याय से असली सुसमाचार के मानने से व्यक्ति के जीवन में होने वाले 7 प्रभावों को देखना आरंभ किया। पिछले लेख में हमने अध्याय 1 में से इनमें से पहले दो प्रभाव देखे हैं। शेष पाँच प्रभाव अध्याय 2 में हैं, जिन्हें हम आज के लेख में देखेंगे।

असली सुसमाचार के 7 प्रभाव:

पिछले लेख में हम गलातीयों 1 अध्याय से असली या सही सुसमाचार के द्वारा प्रभु यीशु के सच्चे विश्वासी जन और उसकी वास्तविक कलीसिया में आने वाले पहले दो प्रभावों को देख चुके हैं। इनमें से पहला प्रभाव है कि सही या वास्तविक सुसमाचार व्यक्ति को मनुष्यों के नहीं परमेश्वर के भय और आज्ञाकारिता में चलने, हर परिस्थिति और हर कीमत पर केवल परमेश्वर ही को प्रसन्न करने की मनसा में बने रहने की सामर्थ्य और मार्गदर्शन देता है, और मनुष्यों के एहसान, नियंत्रण, तथा अधीनता में रहने के स्वभाव से मुक्त करता है। और दूसरा प्रभाव है कि सही या असली सुसमाचार परमेश्वर के लोगों के मध्य परस्पर प्रेम, मेल-मिलाप, सहभागिता, सहिष्णुता को बढ़ावा देता है, एक दूसरे के लिए परमेश्वर की महिमा करने को प्रेरित करता है, न कि विभाजन, बैर, अलगाव और विरोध तथा एक-दूसरे से ऊँचा-नीचा होने की भावनाओं को। आज हम यहाँ से आगे, सही या असली सुसमाचार के शेष पाँच प्रभाव, गलातीयों 2 अध्याय से देखेंगे:

3. गलातीयों 2:1-2 - सही सुसमाचार का तीसरा प्रभाव हम पौलुस की सेवकाई के उदाहरण में देखते हैं। पौलुस को परमेश्वर ने अन्य-जातियों में सुसमाचार सुनाने के लिए ठहराया था (प्रेरितों 9:15)। परमेश्वर की अगुवाई में चौदह वर्ष तक अन्य-जातियों में सेवकाई के बाद परमेश्वर ने उसे यरूशलेम जाने के लिए कहा, और वह बरनबास तथा तीतुस के साथ यरूशलेम को गया। तीसरा प्रभाव है कि सही सुसमाचार के पालन और सेवकाई से परमेश्वर की सहायता, उस का मार्गदर्शन मिलता है, और परमेश्वर का जन औरों के साथ मिलकर, औरों को भी आदर और अवसर देते हुए अपनी इस ज़िम्मेदारी को निभाता है
 
4. चौथा प्रभाव भी हम गलातीयों 2:1-2 में ही देखते हैं। यहाँ दो पद बताता है कि ईश्वरीय प्रकाशन के अनुसार पौलुस यरूशलेम को गया, इस उद्देश्य से कि उन्हें अपनी सेवकाई और प्रचार के बारे में बताए - उन्हें सिखाने या उन्हें प्रभावित करने के लिए नहीं, वरन यरूशलेम में कलीसिया में बड़े समझे जाने वाले लोगों के द्वारा जाँचे जाने के लिए कि कहीं उसका परिश्रम व्यर्थ तो नहीं है (पद 2 का अंतिम वाक्य देखिए)। सही सुसमाचार का चौथा प्रभाव है कि उसके अनुसार चलने वाला व्यक्ति विनम्र और इस सेवकाई में लगे अन्य वरिष्ठ लोगों द्वारा जाँचे तथा सुधारे जाने के लिए तैयार रहता है; उसमें घमण्ड और अपनी सेवकाई में सिद्ध होने की भावना नहीं होती है
 
5. गलातीयों 2:3-5 - सही सुसमाचार के अनुसार चलने और कार्य करने के द्वारा प्रभु का जन और कलीसिया, “झूठे भाइयों”, मण्डली में गलत शिक्षाओं को लाने और फैलाने वाले लोगों पहचानने पाते हैं, और उनका सामना करने, उनके आगे न झुकने की समझ और सामर्थ्य प्राप्त करते हैं। सही सुसमाचार का पाँचवां प्रभाव है सही और गलत का आँकलन करने और सही पर बने रहने तथा गलत का प्रतिरोध करने की सामर्थ्य प्राप्त करना 

6. गलातीयों 2:6-10 - हम यहाँ 6 पद के आरंभ से ही देखते हैं कि यरूशलेम में कलीसिया के अगुवों के द्वारा पौलुस को कोई भी नई बात सीखने को नहीं मिली; उसके सुसमाचार प्रचार और सेवकाई में कोई त्रुटि नहीं थी। लेकिन फिर भी प्रभु उसे यरूशलेम लेकर आया था, उसे अपनी सेवकाई को उन अगुवों के सामने रखने के लिए कहा था। लेकिन 9 पद में हम उसके आने से हुए लाभ को देखते हैं - जब यरूशलेम के अगुवों ने उसकी सेवकाई के बारे में जान और समझ लिया, तो उसे अपने साथ सम्मिलित भी कर लिया, प्रोत्साहित भी किया और अपना सहकर्मी भी स्वीकार कर लिया; और 10 पद में सेवकाई में ध्यान रखने वाली मूल बातों के विषय स्मरण करवाया। पौलुस का यरूशलेम आना हमारी शिक्षा के लिए भी था - कि हम उसके जीवन और व्यवहार से सेवकाई और सुसमाचार के प्रभावों को सीख सकें। सही सुसमाचार के पालन का छठवाँ प्रभाव है वह अन्य स्थानों तथा लोगों के मध्य लगे लोगों के प्रति भी सहभागिता और सहायता के लिए प्रोत्साहित करता है, उन्हें भी सेवकाई के लिए मार्गदर्शन करता है 

7. गलातीयों 2:11-14 - पौलुस के यरूशलेम से वापस लौट जाने के कुछ समय बाद अब पतरस उसके पास अन्‍ताकिया गया। किन्तु वहाँ पर पतरस के व्यवहार को लेकर एक परिस्थिति उत्पन्न हो गई और पतरस दोगलेपन में गिर गया। यह आज हमको सचेत करता है कि प्रभु के बड़े से बड़े सेवक भी गलती में पड़ सकते हैं, मनुष्यों को दिखाने के लिए अपना व्यवहार बदल सकते हैं, जो औरों के लिए ठोकर का कारण भी बन सकता है। इसलिए व्यक्ति की शारीरिक और आत्मिकआयुके अनुसार या कलीसिया में उसके ओहदे के अनुसार नहीं, वरन उसके व्यवहार के अनुसार, हर बात के लिए आँकलन करते रहना चाहिए। लेकिन पौलुस ने पतरस को इस दोगलेपन में बने नहीं रहने दिया, वरन तुरंत ही उसका सामना किया, और उसे सुधारा। पतरस ने भी इस बात का बुरा नहीं माना, इससे अपने अहं पर ठेस नहीं आने दी, और आगे चलकर अपनी पत्री में पौलुस को अपनाप्रिय भाईकहा और उसके दर्शन एवं सेवकाई के लिए उसकी प्रशंसा की (2 पतरस 3:15-16)। सही सुसमाचार के पालन ने पतरस को भी विनम्र और सुधार के लिए तत्पर बना दिया था। किन्तु पौलुस की प्रतिक्रिया पतरस के विनम्र होने पर आधारित नहीं थी; पौलुस की बात के लिए पतरस उसे जो भी प्रतिक्रिया देता, पौलुस उसे सुनने और सहने के लिए तैयार था; किन्तु मण्डली में किसी गलत व्यवहार और उदाहरण को सहन करने के लिए तैयार नहीं था। सही सुसमाचार का सातवाँ प्रभाव है कि वह व्यावहारिक मसीही जीवन में होने वाली गलतियों को पहचानने और उन्हें सुधारने के लिए औरों का सामना करने की हिम्मत और सामर्थ्य देता है; उनके ओहदे या स्तर के भय कारण गलतियों के प्रति आँख मूँद लेने, और प्रभु के जन को उन में बने ही रहने देने वाला नहीं होने देता है 

सही और असली सुसमाचार से संबंधित इन लेखों का सारांश यही है कि सही और सच्चा सुसमाचार परमेश्वर की ओर से, उसके अनुग्रह, उसकी शांति, और उसकी समझ और बुद्धि और ज्ञान और सामर्थ्य के साथ आता है। सही सुसमाचार पूर्णतः प्रभु यीशु मसीह द्वारा समस्त मानव जाति को उनके किन्हीं कर्मों के द्वारा नहीं परंतु अपनी क्षमा और अनुग्रह के द्वारा पापों से छुटकारा देने के लिए क्रूस पर दिए गए बलिदान के बारे में है; इसमें किसी भी मनुष्य के कैसे भी कोई भी योगदान या काम का कोई भी स्थान नहीं है - लेश-मात्र भी नहीं। सही सुसमाचार का निर्वाह संसार की बुराइयों से छुड़ाता है, मसीही विश्वासियों में प्रेम, एक-मनता, सहभागिता, संगति, एक-दूसरे को उभारने, उठाने और सुधारने को प्रोत्साहित करता है; विभाजन और अलगाव नहीं मेल-मिलाप लाता है। सही सुसमाचार के प्रचार और निर्वाह के द्वारा प्रभु परमेश्वर की महिमा होती है। जिस भी सुसमाचार में, सुसमाचार की सेवकाई और प्रचार में, ये स्वभाव और प्रभाव नहीं हैं, वहकोई अन्य ही सुसमाचारहै, गलत और झूठा है, उसका तिरस्कार करके सही को अपनाना अनिवार्य है। 

अभी तक हम इफिसियों 4:14 के अनुसार प्रभु की कलीसिया और उसके अपरिपक्व अनुयायियों के शैतान के द्वारा प्रभु यीशु मसीह, परमेश्वर पवित्र आत्मा, और सुसमाचार से संबंधित फैलाई और सिखाई जाने वाली गलत शिक्षाओं और उन शिक्षाओं के कारण प्रभु के लोगों केमनुष्यों की ठग-विद्या और चतुराई से उन के भ्रम की युक्तियों की, और उपदेश की, हर एक बयार से उछाले, और इधर-उधर घुमाएजाने, तथा उन्हें पहचानने और उससे बचने के वचन में दिए गए उपायों के बारे में देखते आ रहे थे। अगले लेख से हम इफिसियों 4:15-16 से कलीसिया और मसीही विश्वासी के परिपक्व होने, उस परिपक्वता में बढ़ने के बारे में देखेंगे। 

यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, तो आपके लिए यह जानना और समझना अति-आवश्यक है कि आप प्रभु परमेश्वर के सुसमाचार से संबंधित किसी गलत शिक्षाओं धारणाओं में न पड़े हों। सच्चे सुसमाचार के स्वभाव के अनुसार अपने आप को जाँचने के द्वारा यह सुनिश्चित कर लीजिए कि आपने सच्चे सुसमाचार पर सच्चा विश्वास किया है, और आप सच्चे पश्चाताप और समर्पण तथा सच्चे मन से प्रभु यीशु से पापों की क्षमा के द्वारा परमेश्वर के जन बने हैं। न खुद भरमाए जाएं, और न ही आपके द्वारा कोई और भरमाया जाए। लोगों द्वारा कही जाने वाली ही नहीं, वरन वचन में लिखी हुई बातों पर ध्यान दें, और लोगों की बातों को वचन की बातों से मिला कर जाँचें और परखें, यदि सही हों, तब ही उन्हें मानें, अन्यथा अस्वीकार कर दें। 

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।

   

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • व्यवस्थाविवरण 14-16          
  • मरकुस 12:28-44