पाप का समाधान -
उद्धार - 28 - कुछ संबंधित प्रश्न और उनके उत्तर (2)
पिछले लेख में हमने उद्धार से संबंधित कुछ सामान्यतः
पूछे जाने वाले प्रश्नों को देखा था। आज भी हम प्रश्नों की इसी शृंखला को ज़ारी
रखेंगे, और एक
अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न को देखेंगे।
प्रश्न: क्या उद्धार खोया जा सकता है? क्या
व्यक्ति का उद्धार उससे वापस लिया जा सकता है?
उत्तर: जैसा हम उद्धार से संबंधित पिछले लेखों
में बारंबार देखते चले आ रहे हैं, परमेश्वर ने अपने अनुग्रह में होकर हमें उद्धार एक उपहार
के समान मुफ़्त में दिया है। उसका दिया गया यह उद्धार अनन्तकालीन है; कभी समाप्त नहीं होगा; कभी वापस नहीं लिया जाएगा;
कोई व्यक्ति किसी भी रीति से अपने उद्धार को खो नहीं सकता है।
इस प्रश्न के उत्तर को समझने के लिए, पहले परमेश्वर के कुछ गुणों का एक संक्षिप्त अवलोकन आवश्यक है; और फिर उन गुणों के आधार पर हम उत्तर को बेहतर समझने पाएंगे।
परमेश्वर के गुण: संक्षेप में परमेश्वर के कुछ गुण और चरित्र हैं:
- वह
ईमानदार है, कभी झूठ नहीं
बोलता है और कभी धोखा नहीं देता है (तीतुस 1:2)।
- वह न
तो कभी गलती करता है, और न कभी बदलता है (इब्रानियों 6:17-18; याकूब 1:17)।
- वह
जो कहता है, वही करता है
(गिनती 23:19; भजन 89:34), और जो
वह कहता है, वह हो कर रहता है, कोई
उसे रोक नहीं सकता है।
- वह
सर्वशक्तिमान परमेश्वर है (उत्पत्ति 17:1;
प्रकाशितवाक्य 21:22)। कोई भी, किसी भी रीति से, किसी भी शक्ति, बुद्धि, या युक्ति से, उस
पर या उसकी योजनाओं और इच्छाओं पर प्रबल नहीं हो सकता है, उन्हें बदल नहीं सकता है, मिटा नहीं सकता है।
- वह
हर बात के बारे में सब कुछ जानता है – सर्वज्ञानी है – आरंभ से ही अन्त को भी
जानता है (यशायाह 46:10)।
- उसका
वचन मनुष्य के अंदर के सबसे गहरे स्थान तक भी छेदता और उसे खोलता है, और हर बात को स्पष्ट एवं प्रकट
कर देता है (इब्रानियों 4:12)।
- वह
मनुष्य के विचारों के पीछे की मनसा तक को भी भली-भांति जानता है (1 इतिहास 28:9)।
- वह समय द्वारा सीमित नहीं है – उसके लिए समय का कोई अस्तित्व नहीं है (भजन 90:4; 2 पतरस 3:8) – वह कभी नहीं बदलता, कल आज और युगानुयुग तक एक समान है (मलाकी 3:6; इब्रानियों 13:8)।
इसलिए परमेश्वर या परमेश्वर से संबंधित कोई भी धारणा या विचार यदि उसके उपरोक्त तथा बाइबल में वर्णित अन्य गुणों के अनुरूप नहीं है, तो वह धारणा या विचार अपूर्ण है, गलत है, परमेश्वर को अस्वीकार्य है। चाहे वह धारणा या विचार रखने वाला व्यक्ति परमेश्वर के प्रति कितने भी श्रद्धा या भक्ति-भाव रखने वाला क्यों न हो, किन्तु उसके वचन से असंगत किसी का भी कोई भी विचार परमेश्वर को कदापि स्वीकार्य नहीं है। इस अति-महत्वपूर्ण बात को ध्यान में रखते हुए बाइबल के परमेश्वर ने उद्धार के विषय जो कहा है, उसमें से कुछ बातें, और उनसे संबंधित अभिप्रायों को देखते हैं:
उद्धार के विषय परमेश्वर के कुछ कथन:
- उसका
उद्धार अनन्तकाल का है (2 तिमुथियुस 2:10; इब्रानियों 5:9) – ऐसी कोई भी शिक्षा जो इसे अस्वीकार, या इसका इनकार
करती है, तो ऐसा करने से वह शिक्षा यह अभिप्राय देती है
कि परमेश्वर और उसका वचन झूठा है, अविश्वासयोग्य है, उनमें
त्रुटियाँ तथा झूठे आश्वासन हैं।
- चाहे
हम अविश्वासी भी हों, तो भी वह हमारे प्रति विश्वासी बना रहेगा (2 तिमुथियुस
2:13 – यहाँ पद 12 उनके लिए है जो
उद्धार के लिए प्रभु की पुकार को अस्वीकार करते रहते हैं; फिर मृत्योपरांत प्रभु भी उन्हें अस्वीकार कर देगा; 13 पद उद्धार पा लेने वालों, विश्वास करने वालों,
के प्रति परमेश्वर का रवैया है); और वह
हमें कभी नहीं छोड़ेगा न त्यागेगा (इब्रानियों 13:5)।
- इसी
प्रभु परमेश्वर ने यूहन्ना 10:27-29
में अपने लोगों/भेड़ों के लिए कहा है कि:
- वह अपनी भेड़ों को जानता है
- वह उन्हें अनन्त जीवन देता है
- वे कभी नाश न होंगी
- कोई उन्हें उसके हाथों से नहीं छीन सकता है
अभिप्राय यह कि प्रभु के उपरोक्त दावों के होते हुए भी यह धारणा रखने और मानने/सिखाने कि उद्धार जा सकता है, का अर्थ यह कहना और सिखाना है कि:
- परमेश्वर
झूठा तथा अविश्वासयोग्य है – उसके कहने और करने में फर्क है। उसके दावों के
बावजूद न तो वह अपनी भेड़ों को जानता है, न उन्हें अनन्त जीवन देता है, और न ही यह
सुनिश्चित कर सकता है कि वे कभी नाश नहीं होंगी। अर्थात, इसलिए यह भी संभव है कि अपने दावे के बावजूद वह अपने विश्वासी के
प्रति विश्वासयोग्य बना न रहे और किसी समय पर उसे त्याग दे या छोड़ दे।
- परमेश्वर
सर्वशक्तिमान नहीं है – वरन सृजा गया प्रधान स्वर्गदूत लूसिफर, जो परमेश्वर के विरुद्ध की गई
बगावत के कारण शैतान बन गया, सृष्टिकर्ता परमेश्वर से
अधिक शक्तिशाली है – वह परमेश्वर के हाथों में से उसके उद्धार पाए हुए लोगों
को अपनी किसी युक्ति अथवा शक्ति द्वारा छीन के ले जा सकता है (मत्ती 12:29;
मरकुस 3:27 के साथ मिलाकर देखिए),
और परमेश्वर कुछ नहीं करने पाता।
- परमेश्वर
गलती कर सकता है – वह सर्वज्ञानी नहीं है; अर्थात, आदि से अन्त को नहीं
जानता है, मनुष्य के विचारों और मनसा, उसके हृदय की गहराइयों
को नहीं जानता है। तात्पर्य यह कि जब उसने उद्धार को अनन्तकाल का कहा,
तब उसे पता नहीं था कि लोग उसके अनुग्रह का दुरुपयोग करेंगे और
उद्धार पा लेने को निश्चिंत होकर पाप करते रहने का आधार बना लेंगे। उसने गलती
से एक बात तो कह दी, किन्तु अब उसे निभा पाने में
असमर्थ है, इसलिए अब चुपचाप से लोगों से उनके उद्धार को
वापस ले लेता है।
- उद्धार पा लेने के बाद मनुष्य अपने कर्मों और व्यवहार से इतना धर्मी बना रह सकता है कि परमेश्वर को उसे स्वर्ग में स्वीकार करना ही पड़ेगा (यशायाह 64:6; अय्यूब 14:4; 15:4; 25:4-6; इफिसियों 2:1-9 से तुलना करें)। यदि यह संभव होता, तो मनुष्य फिर उद्धार से पहले भी यह कर सकता था; तो फिर प्रभु यीशु मसीह को संसार में आने, अपमानित होने, एक घृणित मृत्यु सहने की क्या आवश्यकता थी? वह तो स्वर्ग से ही मनुष्यों को प्रोत्साहित कर सकता था, उनका मार्गदर्शन कर सकता था, कि अपने कर्मों के द्वारा उद्धार प्राप्त कर लें।
उपरोक्त अभिप्रायों से प्रकट है कि उद्धार के खोए जा
सकने का विचार परमेश्वर के गुणों और चरित्र के विरुद्ध कितना गलत और निन्दनीय है; इसलिए पूर्णतः
अस्वीकार्य है। ऐसा विचार रखने वाले को दीन होकर पश्चाताप करने, परमेश्वर से उसके विरुद्ध ऐसे कुविचार रखने के लिए क्षमा माँगने की
आवश्यकता है। एक अन्य इससे संबंधित प्रश्न उठाया जाता है कि यदि उद्धार कभी नहीं
जा सकता है, तब तो परमेश्वर ने मनुष्यों को पाप करने का
लाइसेंस दे दिया है - एक बार उद्धार पा लो, और फिर उसके बाद
जैसा चाहो वैसा करो, क्योंकि उद्धार तो जाएगा नहीं, स्वर्ग तो हर हाल में मिलेगा ही। यह भी शैतान द्वारा फैलाई जाने वाली एक
गलत शिक्षा, एक गलत धारणा है, और इसे
हम कल देखेंगे। अभी के लिए, आप से विनम्र निवेदन है कि यदि
आप ने अभी तक प्रभु यीशु को अपना उद्धारकर्ता स्वीकार नहीं किया है, उसके शिष्य नहीं बने हैं, तो आज और अभी, जब यह अवसर आपके पास है, तो इसे व्यर्थ न जाने दें;
प्रभु के इस आह्वान को स्वीकार कर लें, अपने
जीवन में कार्यान्वित कर लें। कल तो क्या, अगले पल को भी
किसी ने नहीं देखा है, कब क्या हो जाए, कोई नहीं जानता है; इसलिए अवसर को बहुमूल्य समझें और
सही निर्णय ले लीजिए। स्वेच्छा से, सच्चे और पूर्णतः समर्पित
मन से, अपने पापों के प्रति सच्चे पश्चाताप के साथ आपके
द्वारा की गई एक छोटी प्रार्थना, “हे प्रभु यीशु मैं मान
लेता हूँ कि मैंने जाने-अनजाने में, मन-ध्यान-विचार और
व्यवहार में आपकी अनाज्ञाकारिता की है, पाप किए हैं। मैं मान
लेता हूँ कि आपने क्रूस पर दिए गए अपने बलिदान के द्वारा मेरे पापों के दण्ड को
अपने ऊपर लेकर पूर्णतः सह लिया, उन पापों की पूरी-पूरी कीमत
सदा काल के लिए चुका दी है। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मेरे मन को अपनी ओर परिवर्तित करें, और मुझे अपना
शिष्य बना लें, अपने साथ कर लें” आपका सच्चे
मन से लिया गया मन परिवर्तन का यह निर्णय आपके इस जीवन तथा परलोक के जीवन को
आशीषित तथा स्वर्गीय जीवन बना देगा। अभी अवसर है, अभी प्रभु
का निमंत्रण आपके लिए है - उसे स्वीकार कर लीजिए।
इब्रानियों 3:7 सो जैसा पवित्र आत्मा कहता है, कि
यदि आज तुम उसका शब्द सुनो।
इब्रानियों 3:8 तो अपने मन को कठोर न करो, जैसा कि
क्रोध दिलाने के समय और परीक्षा के दिन जंगल में किया था।
इब्रानियों 3:9 जहां तुम्हारे बाप दादों ने मुझे जांच कर परखा और चालीस
वर्ष तक मेरे काम देखे।
इब्रानियों 3:10 इस कारण मैं उस समय के लोगों से रूठा रहा, और कहा, कि इन के मन सदा भटकते रहते हैं, और इन्होंने मेरे मार्गों को नहीं पहचाना।
इब्रानियों 3:11 तब मैं ने क्रोध में आकर शपथ खाई, कि वे मेरे विश्राम में प्रवेश करने न पाएंगे।
इब्रानियों 3:12 हे भाइयो, चौकस रहो, कि तुम में ऐसा बुरा और अविश्वासी मन न हो, जो जीवते
परमेश्वर से दूर हट जाए।
इब्रानियों 3:13 वरन जिस दिन तक आज का दिन कहा जाता है, हर दिन एक दूसरे को समझाते रहो, ऐसा न हो, कि तुम में से कोई जन पाप के छल में आकर कठोर हो जाए।
इब्रानियों 3:14 क्योंकि हम मसीह के भागी हुए हैं, यदि हम अपने प्रथम भरोसे पर अन्त तक दृढ़ता से स्थिर रहें।
इब्रानियों 3:15 जैसा कहा जाता है, कि यदि आज तुम
उसका शब्द सुनो, तो अपने मनों को कठोर न करो, जैसा कि क्रोध दिलाने के समय किया था।
एक साल में बाइबल:
· यशायाह 1-2
· गलातियों 5