मुझे पक्षियों को फुदकते-चहचहाते देखना अच्छा
लगता है। इसलिए कई वर्ष पहले मैंने अपने घर के पीछे के आँगन में पक्षियों के लिए
एक सुरक्षित स्थान बनाया, और कई महीनों तक मैं उन्हें वहाँ आकर आनन्दित होते हुए
देखता और उनके आनन्द में स्वयं भी आनन्दित होता था।परन्तु एक दिन एक बाज़ पक्षी ने
उस स्थान को देख लिया और उसके लिए वह एक निज शिकारगाह हो गया, और वह सुरक्षित
स्थान समाप्त हो गया।
यही जीवन है; जैसे ही हमें लगता है कि सब कुछ
ठीक से चल रहा है, हम निश्चिन्त होकर आराम से बैठ सकते हैं, तभी कुछ-न-कुछ हमारे
जीवनों को झकझोर देता है। हम बहुधा यही प्रश्न करते हैं कि जीवन का इतना अधिक भाग
आंसुओं के साथ क्यों होता है?
इस पुरातन प्रश्न के मैंने कई उत्तर सुने हैं,
परन्तु अब मैं केवल एक उत्तर से संतुष्ट हूँ: “सँसार का सारा अनुशासन हमें ऐसे बच्चे
बनाने के लिए है जिनसे होकर परमेश्वर प्रकट होता है” (जॉर्ज मैकडोनाल्ड, Life
Essential)। जब हम बच्चों के समान बन जाते हैं, तब हम अपने परमेश्वर पिता पर
भरोसा करना, उसके प्रेम में आश्वस्त रहना सीख जाते हैं; उसे और गहराई से जानना
चाहते हैं, उसके समान बनना चाहते हैं।
हमारे जीवनपर्यन्त चिंताए और दुःख हमारे साथ
लगे रहेंगे, परन्तु “इसलिये हम हियाव नहीं छोड़ते; यद्यपि हमारा बाहरी मनुष्यत्व नाश भी होता जाता है, तौभी हमारा भीतरी मनुष्यत्व दिन प्रतिदिन नया होता जाता है। क्योंकि
हमारा पल भर का हल्का सा क्लेश हमारे लिये बहुत ही महत्वपूर्ण और अनन्त महिमा
उत्पन्न करता जाता है। और हम तो देखी हुई वस्तुओं को नहीं परन्तु अनदेखी वस्तुओं
को देखते रहते हैं, क्योंकि देखी हुई वस्तुएं थोड़े ही दिन की
हैं, परन्तु अनदेखी वस्तुएं सदा बनी रहती हैं”
(2 कुरिन्थियों 4:16-18)।
इसलिए जब ऐसा अन्त हमारे सामने रखा हुआ है, तो
क्या हम उस अति-उत्तम अन्त का ध्यान करके, ढाढ़स के साथ आनन्दित नहीं रह सकते हैं? –
डेविड रोपर
स्वर्ग
के आनन्द पृथ्वी की कठिनाईयों से कहीं अधिक बढ़कर होंगे।
मैं
ने ये बातें तुम से इसलिये कही हैं, कि तुम्हें मुझ में
शान्ति मिले; संसार में तुम्हें क्लेश होता है, परन्तु ढाढ़स बांधो, मैं ने संसार को जीन लिया है। -
यूहन्ना 16:33
बाइबल
पाठ: 2 कुरिन्थियों 4: 8-18
2 Corinthians
4:8 हम चारों ओर से क्लेश तो भोगते हैं, पर
संकट में नहीं पड़ते; निरूपाय तो हैं, पर
निराश नहीं होते।
2
Corinthians 4:9 सताए तो जाते हैं; पर त्यागे
नहीं जाते; गिराए तो जाते हैं, पर नाश
नहीं होते।
2
Corinthians 4:10 हम यीशु की मृत्यु को अपनी देह में हर समय लिये
फिरते हैं; कि यीशु का जीवन भी हमारी देह में प्रगट हो।
2
Corinthians 4:11 क्योंकि हम जीते जी सर्वदा यीशु के कारण मृत्यु के
हाथ में सौंपे जाते हैं कि यीशु का जीवन भी हमारे मरणहार शरीर में प्रगट हो।
2
Corinthians 4:12 सो मृत्यु तो हम पर प्रभाव डालती है और जीवन तुम
पर।
2
Corinthians 4:13 और इसलिये कि हम में वही विश्वास की आत्मा है,
(जिस के विषय मे लिखा है, कि मैं ने विश्वास
किया, इसलिये मैं बोला) सो हम भी विश्वास करते हैं, इसी लिये बोलते हैं।
2
Corinthians 4:14 क्योंकि हम जानते हैं, जिसने
प्रभु यीशु को जिलाया, वही हमें भी यीशु में भागी जानकर
जिलाएगा, और तुम्हारे साथ अपने साम्हने उपस्थित करेगा।
2
Corinthians 4:15 क्योंकि सब वस्तुएं तुम्हारे लिये हैं, ताकि अनुग्रह बहुतों के द्वारा अधिक हो कर परमेश्वर की महिमा के लिये
धन्यवाद भी बढ़ाए।
2 Corinthians
4:16 इसलिये हम हियाव नहीं छोड़ते; यद्यपि
हमारा बाहरी मनुष्यत्व नाश भी होता जाता है, तौभी हमारा
भीतरी मनुष्यत्व दिन प्रतिदिन नया होता जाता है।
2
Corinthians 4:17 क्योंकि हमारा पल भर का हल्का सा क्लेश हमारे
लिये बहुत ही महत्वपूर्ण और अनन्त महिमा उत्पन्न करता जाता है।
2
Corinthians 4:18 और हम तो देखी हुई वस्तुओं को नहीं परन्तु अनदेखी
वस्तुओं को देखते रहते हैं, क्योंकि देखी हुई वस्तुएं थोड़े
ही दिन की हैं, परन्तु अनदेखी वस्तुएं सदा बनी रहती हैं।
एक
साल में बाइबल:
- 1 शमूएल 13-14
- लूका 10:1-24