ई-मेल संपर्क / E-Mail Contact

इन संदेशों को ई-मेल से प्राप्त करने के लिए अपना ई-मेल पता इस ई-मेल पर भेजें / To Receive these messages by e-mail, please send your e-mail id to: rozkiroti@gmail.com

सोमवार, 13 अक्टूबर 2014

फलवन्त बीज


   मिशेल कॉर्न महल की दीवारें हर साल सुन्दर दृश्यों से सजाई जाती हैं। वहाँ प्रदर्शित दृश्यों में उड़ती हुए पक्षी, घोड़ा गाड़ियों का काफिला, अमेरिका के मूल निवासियों के तंबू तथा गाँव के जीवन के अन्य दृश्य सम्मिलित होते हैं। प्रति वर्ष बदलते रहने वाले इन सभी दृश्यों में एक ही बात समान्य तथा अनोखी होती है - ये सभी दृश्य मक्की, तथा अन्य बीज एवं घास से बनाए जाते हैं। इन्हें हर साल बदलने की आवश्यकता इसलिए पड़ती है क्योंकि पक्षी इन बीजों को अपने स्थान में रहने नहीं देते, उन्हें वहाँ से निकालकर खा लेते हैं और चित्र खराब हो जाते हैं!

   प्रभु यीशु ने बीजों से संबंधित एक दृश्टांत सुनाया जिसके अर्थ में पक्षियों की भी भूमिका है। प्रभु यीशु ने कहा, "सुनो: देखो, एक बोनेवाला, बीज बोने के लिये निकला! और बोते समय कुछ तो मार्ग के किनारे गिरा और पक्षियों ने आकर उसे चुग लिया" (मरकुस 4:3-4); प्रभु ने फिर आगे बताया कि कुछ बीज पथरीली भूमि पर गिरा और कुछ झाड़ियों में गिरा, इसलिए उगा तो लेकिन फल नहीं ला सका (पद 5-7)। लेकिन कुछ अच्छी भूमि पर गिरा और बहुतायत से फल लाया (पद 8)।

   प्रभु यीशु ने इस दृश्टांत का अर्थ बताते हुए कहा: "जो मार्ग के किनारे के हैं जहां वचन बोया जाता है, ये वे हैं, कि जब उन्होंने सुना, तो शैतान तुरन्त आकर वचन को जो उन में बोया गया था, उठा ले जाता है" (मरकुस 4:15)। जो बीज गहराई में अन्दर नहीं जाता वह पक्षियों द्वारा उठा लिया जाता है, अर्थात कार्यकारी होने के लिए वचन को मन की गहराई में जाना और जड़ पकड़ना अनिवार्य है, तब ही वह उगने तथा फलवन्त होने के योग्य होने पाएगा। शैतान परमेश्वर के वचन और सुसमाचार से घृणा करता है, उसका घोर विरोधी है, इसलिए वह वचन रूपी बीज को हृदय की गहराई में उतरने देने और जीवन में कार्यकारी होने में हर संभव बाधा डालता है। शैतान द्वारा डाली जाने वाली बाधाओं में से एक है लोगों को वचन के सम्बंध में निर्णय लेने में विलंब करवाना और उसे उन के मन से हटा देना।

   प्रभु यीशु में सारे संसार के लिए उपलब्ध पापों की क्षमा और उद्धार के सुसमाचार को शैतान द्वारा इस प्रकार व्यर्थ किये जाने से बचाने के लिए, और यह सुनिश्चित करने के लिए कि बोया गया वचन जड़ पकड़ सके, फलवन्त हो सके, परमेश्वर से प्रार्थना करें कि वह सुनने वाले लोगों के हृदयों को वचन ग्रहण करने के लिए तैयार करे, उन्हें सही निर्णय करने की समझ और सामर्थ दे। परन्तु जैसे उस दृष्टांत के बीज बोने वाले ने भूमि की दशा की परवाह किए बिना, अपना कार्य पूरा किया, वैसे ही हम मसीही विश्वासियों का भी कर्तव्य है कि हम परमेश्वर के वचन को सभी लोगों तक पहुँचाएं क्योंकि किसके मन की दशा कैसी है, हम यह नहीं जानते; परन्तु जब हम वफादारी से अपना काम करेंगे और बीज अर्थात परमेश्वर का वचन बोएंगे, तो परमेश्वर उसे लोगों के मन में फलवन्त भी करेगा। - डेनिस फिशर


बीज बोना हमारा कर्तव्य है, उसे फलवन्त करना परमेश्वर का कार्य।

और प्रचारक बिना क्योंकर सुनें? और यदि भेजे न जाएं, तो क्योंकर प्रचार करें? जैसा लिखा है, कि उन के पांव क्या ही सुहावने हैं, जो अच्छी बातों का सुसमाचार सुनाते हैं। सो विश्वास सुनने से, और सुनना मसीह के वचन से होता है। - रोमियों 10:15,17   

बाइबल पाठ: मरकुस 4:1-9, 14-20
Mark 4:1 वह फिर झील के किनारे उपदेश देने लगा: और ऐसी बड़ी भीड़ उसके पास इकट्ठी हो गई, कि वह झील में एक नाव पर चढ़कर बैठ गया और सारी भीड़ भूमि पर झील के किनारे खड़ी रही। 
Mark 4:2 और वह उन्हें दृष्‍टान्‍तों में बहुत सी बातें सिखाने लगो, और अपने उपदेश में उन से कहा। 
Mark 4:3 सुनो: देखो, एक बोनेवाला, बीज बोने के लिये निकला! 
Mark 4:4 और बोते समय कुछ तो मार्ग के किनारे गिरा और पक्षियों ने आकर उसे चुग लिया। 
Mark 4:5 और कुछ पत्थरीली भूमि पर गिरा जहां उसको बहुत मिट्टी न मिली, और गहरी मिट्टी न मिलने के कारण जल्द उग आया। 
Mark 4:6 और जब सूर्य निकला, तो जल गया, और जड़ न पकड़ने के कारण सूख गया। 
Mark 4:7 और कुछ तो झाड़ियों में गिरा, और झाड़ियों ने बढ़कर उसे दबा लिया, और वह फल न लाया। 
Mark 4:8 परन्तु कुछ अच्छी भूमि पर गिरा; और वह उगा, और बढ़कर फलवन्‍त हुआ; और कोई तीस गुणा, कोई साठ गुणा और कोई सौ गुणा फल लाया। 
Mark 4:9 और उसने कहा; जिस के पास सुनने के लिये कान हों वह सुन ले।
Mark 4:14 बोने वाला वचन बोता है। 
Mark 4:15 जो मार्ग के किनारे के हैं जहां वचन बोया जाता है, ये वे हैं, कि जब उन्होंने सुना, तो शैतान तुरन्त आकर वचन को जो उन में बोया गया था, उठा ले जाता है। 
Mark 4:16 और वैसे ही जो पत्थरीली भूमि पर बोए जाते हैं, ये वे हैं, कि जो वचन को सुनकर तुरन्त आनन्द से ग्रहण कर लेते हैं। 
Mark 4:17 परन्तु अपने भीतर जड़ न रखने के कारण वे थोड़े ही दिनों के लिये रहते हैं; इस के बाद जब वचन के कारण उन पर क्‍लेश या उपद्रव होता है, तो वे तुरन्त ठोकर खाते हैं। 
Mark 4:18 और जो झाडियों में बोए गए ये वे हैं जिन्होंने वचन सुना। 
Mark 4:19 और संसार की चिन्‍ता, और धन का धोखा, और और वस्‍तुओं का लोभ उन में समाकर वचन को दबा देता है। और वह निष्‍फल रह जाता है। 
Mark 4:20 और जो अच्छी भूमि में बोए गए, ये वे हैं, जो वचन सुनकर ग्रहण करते और फल लाते हैं, कोई तीस गुणा, कोई साठ गुणा, और कोई सौ गुणा।

एक साल में बाइबल: 
  • मत्ती 1-4