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रविवार, 27 अगस्त 2023

Blessed and Successful Life / आशीषित एवं सफल जीवन – 2 – Introduction / प्रस्तावना – 2

प्रस्तावना – 2

 

    पिछले लेख में हमने देखा था कि दाऊद के बाद इस्राएल का राजा होने के लिए सुलैमान को परमेश्वर ने चुना था। लेकिन इस से उसे यह निश्चितता नहीं थी कि उसका जीवन सहज होगा, और वह बातों को यूँ ही हलके में ले सकता है। बल्कि उसे अपने आप को तैयार करना था कि वह समस्याओं का सामना कर सके और परमेश्वर की सहायता एवं मार्गदर्शन द्वारा उन बातों पर जयवंत हो सके। यही बात प्रत्येक मसीही विश्वासी के लिए भी लागू होती है; प्रत्येक मसीही विश्वासी को उस पर शैतान द्वारा लाई जा रही समस्याओं का सामना करना ही होगा। किन्तु यदि वह प्रभु के प्रति समर्पित और आज्ञाकारी बना रहे, तो न केवल वह उन से छूटने पाएगा वरन उनके कारण आशीषित भी होगा (2 कुरिन्थियों 4:17; 1 पतरस 3:14)।


    युवावस्था से ही दाऊद बहुत साहसी पुरुष था (1 शमूएल 17:34-37), और बाद में एक सुप्रसिद्ध शूरवीर योद्धा भी बना गया था (1 शमूएल 16:18; 18:7; 2 शमूएल 17:8)। आस-पास के राजाओं और राज्यों में यह साहस नहीं था कि जब तक वह गद्दी पर था, इस्राएल पर राज कर रहा था, उसके साथ किसी भी प्रकार की कोई छेड़खानी करें। लेकिन उसका उत्तराधिकारी सुलैमान जब राजा बना, तब वह लड़का ही था, और युद्ध तथा शासन कला में अनुभवहीन था (1 राजाओं 3:7)। इसलिए दाऊद तथा इस्राएल के शत्रुओं को यह प्रलोभन हो सकता था कि दाऊद के देहांत के बाद अपना बदला लें; और सुलैमान के साथ वह करें, जो वे दाऊद के साथ नहीं करने पाए थे। इसीलिए दाऊद सुलैमान को ये निर्देश देता है कि इस्राएल का आशीषित एवं सफल राजा होने के लिए उसे सदा ही परमेश्वर पर भरोसा रखने वाला, उसी पर निर्भर होना होगा, और परमेश्वर को ही अपना सहायक और अपनी सुरक्षा बनाना होगा।


    यहाँ पर यह बहुत ध्यान देने योग्य बात है कि यद्यपि दाऊद ने अपने जीवन में बहुत से युद्ध लड़े थे, और एक शूरवीर योद्धा होने की ख्याति प्राप्त की थी (1 शमूएल 18:7), और एक राजा होने पर एक बहुत विशाल सेना भी खड़ी कर ली थी (1 इतिहास 21:5-6), लेकिन फिर भी वह सुलैमान से सुरक्षा तथा बचाव के लिए उस सेना में भरोसा रखने, जिसे वह विरासत में प्राप्त कर रहा है, या उस सेना को और बढ़ाने के लिए नहीं कहता है। दाऊद अपने जीवन और अनुभवों से जानता था कि सुलैमान के सुरक्षित रहने और समृद्ध होने का एकमात्र तरीका किन्हीं सांसारिक बातों से नहीं है; बल्कि केवल परमेश्वर की सहायता, मार्गदर्शन, बुद्धिमत्ता, और सामर्थ्य के द्वारा है।


    परमेश्वर चाहता है कि हम मसीही विश्वासी इस पाठ को भली-भांति सीख लें; विशेषकर इन अंत के दिनों में जब परमेश्वर की संतानों का विरोध और सताव बढ़ता और बिगड़ता ही जा रहा है। लेकिन हमें हमेशा ही यह ध्यान रखना होगा कि सिंहासन पर परमेश्वर ही विराजमान है। वह हम में से प्रत्येक के बारे में सब कुछ जानता है। उसे हमारी परिस्थितियों और आवश्यकताओं के बारे में, तथा उनके लिए क्या करना है, यह भली-भांति पता है। हमें उस पर भरोसा रखना और उसका आज्ञाकारी होना, तथा उसे हम में होकर और हमारे लिए उसकी इच्छा को पूरा करने देने को सीखना ही होगा, जिससे कि हम आशीषित और सफल बन सकें, तथा उसके नाम की महिमा हो। हमारी सुरक्षा और बचाव किसी “सांसारिक सेना”, या सँसार के लोगों, सांसारिक सामर्थ्य, और सांसारिक तरीकों से नहीं है, बल्कि केवल प्रभु परमेश्वर के द्वारा है, चाहे हमें कुछ समय के लिए कुछ दुःख भी क्यों न उठाने पड़ें (1 पतरस 5:10; 2 पतरस 2:9)।


    यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु, मैं अपने पापों के लिए पश्चातापी हूँ, उनके लिए आप से क्षमा माँगता हूँ। मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मुझे और मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।

 

 

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Introduction – 2

 

    In the previous article we have seen that Solomon was God’s choice to be king over Israel after David. But this did not guarantee him that he will have an easy life, and he can take things for granted. Rather, he had to prepare himself to face problems and overcome them through God’s help and guidance. The same holds true for every Christian Believer as well; every Christian Believer will face problems brought upon him by Satan, but if he remains submitted and obedient to the Lord, he will not only be delivered out of them but also be blessed because of them (2 Corinthians 4:17; 1 Peter 3:14).


    Even as a young lad David was a very courageous person (1 Samuel 17:34-37), and later on was a well-known warrior (1 Samuel 16:18; 18:7; 2 Samuel 17:8). The surrounding kings and kingdoms did not have the guts to meddle with him in any manner, while he was on the throne, ruling Israel. But his successor, Solomon, when he became king, was young, was inexperienced in war as well as statesmanship (1 Kings 3:7). Therefore, the enemies of David and Israel could easily have been tempted to take their revenge upon him after David's death; and do with Solomon what they could not do to David. Therefore, David instructs Solomon that to remain blessed and successful as King of Israel, he always has to remain totally trusting, obedient and dependent upon God, to let God be his help and security.


    It is very important to note over here that though in his lifetime David had fought many battles, gained a reputation of being valiant warrior (1 Samuel 18:7), and as king, had built up a huge army (1 Chronicles 21:5-6), but he does not instruct Solomon to trust in the army he is inheriting, nor asks him to increase it further for his safety and security. David, from his own life and experiences knew that the only way Solomon would stay safe, as well as prosper will not be through any worldly means, but will only be through the help, guidance, wisdom, and strength from God.


    God wants us Christian Believers to learn this lesson and learn this well; more so in these end-times when opposition and persecution of God’s children is spreading, and will only increase and go from bad to worse. But we need to always keep in mind that God is on the throne. He knows everything about every one of us. He well knows our situations and needs, and how to manage them for us. We have to learn to be trusting in Him, be obedient to Him, and allow Him to do His will in and through us, so that we can be blessed and successful, while His name is glorified. Our safety and security are not through or because of any “earthly army” or worldly people, powers, and means, but through the Lord God, even if we have to suffer for some time (1 Peter 5:10; 2 Peter 2:9).


    If you have not yet accepted the discipleship of the Lord, make your decision in favor of the Lord Jesus now to ensure your eternal life and heavenly blessings. Where there is obedience to the Lord, where there is respect and obedience to His Word, there is also the blessing and protection of the Lord. Repenting of your sins, and asking the Lord Jesus for forgiveness of your sins, voluntarily and sincerely, surrendering yourself to Him - is the only way to salvation and heavenly life. You only have to say a short but sincere prayer to the Lord Jesus Christ willingly and with a penitent heart, and at the same time completely commit and submit your life to Him. You can also make this prayer and submission in words something like, “Lord Jesus, I am sorry for my sins and repent of them. I thank you for taking my sins upon yourself, paying for them through your life.  Because of them you died on the cross in my place, were buried, and you rose again from the grave on the third day for my salvation, and today you are the living Lord God and have freely provided to me the forgiveness, and redemption from my sins, through faith in you. Please forgive my sins, take me under your care, and make me your disciple. I submit my life into your hands." Your one prayer from a sincere and committed heart will make your present and future life, in this world and in the hereafter, heavenly and blessed for eternity.


 

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