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निर्गमन 12:1-2 - प्रभु की मेज़ और नया जीवन
इस विषय के पिछले लेखों में हमने देखा था कि यद्यपि ईसाई समाज में प्रभु भोज में बड़ी श्रद्धा के साथ भाग लिया जाता है, किन्तु शैतान ने उसके वास्तविक स्वरूप और उद्देश्य को भ्रष्ट कर दिया है, तथा इसे एक व्यर्थ, निरर्थक परंपरा बना दिया है। अधिकांश लोग, क्योंकि वे परमेश्वर के वचन का अध्ययन नहीं करते हैं तथा परमेश्वर के नाम में उन्हें दी जाने वाली शिक्षाओं की जाँच-पड़ताल तथा पुष्टि करने की परवाह नहीं करते हैं, इसलिए वे प्रभु भोज, यानी कि प्रभु की मेज़ में, बाइबल में दिये गए स्वरूप के अनुसार इसमें भाग नहीं लेते हैं। वे इस गलतफहमी में बने रहते हैं कि प्रभु की मेज़ के चाहे कैसे भी स्वरूप में वे भाग लें, किन्तु इससे उन्हें एक विशेष ओहदा मिल जाता है, जो उन्हें परमेश्वर को स्वीकार्य और स्वर्ग में प्रवेश पाने के योग्य बना देता है। पिछले लेख में हमने प्रभु की मेज़ से संबंधित कुछ प्रतीकों के बारे में भी देखा था और सुसमाचारों के वृतांतों के आधार पर यह भी देखा था कि खमीर के प्रयोग से संबंधित कोई भी वस्तु फसह के पर्व के भोज में, जिससे प्रभु यीशु ने प्रभु भोज की स्थापना की थी, प्रयोग नहीं की जाती थी; और वह कटोरा जिसका प्रतीक के रूप में प्रभु ने प्रयोग किया था उसमें बिना खमीर का प्रयोग किया हुआ दाख-रस था, न कि सामान्यतः जैसा माना जाता है, “wine” था, जो कि दाख रस पर खमीर के काम करने से बनता है। इसके बाद हमने निर्गमन 12 को लिया था, जो पुराने नियम में प्रभु की मेज़ का प्रथम प्ररूप है, जहाँ पर परमेश्वर ने अपनी प्रजा, इस्राएलियों के लिये फसह के पर्व के भोज को स्थापित किया था; और हमने अंत में इस बात के साथ समाप्त किया था कि हम अपनी चर्चा के लिये इस अध्याय को तीन खण्डों में बाँट कर, जिनकी रूप-रेखा पिछले लेख में दी गई है, देखेंगे।
आज से हम अपने पहले खण्ड निर्गमन 12:1-4 से बलि के मेमने और फसह के भोज के बारे में देखना आरंभ करेंगे और उसे नए नियम की बातों के साथ मिलाकर निष्कर्ष निकालेंगे। परमेश्वर के लोग, इस्राएली, 430 वर्ष तक मिस्र की गुलामी में रहे (निर्गमन 12:40), और उनसे सताव झेलते रहे। अब उनके बंधुआई से मुक्त किये जाने और सताव से छुटकारा मिलने का दिन आ गया था; अब उनके स्वतंत्र हो जाने का समय था। जैसा कि हमने प्रतीकों से संबंधित पिछले लेख में देखा है, परमेश्वर के लोगों की मिस्र की बंधुआई, उसके लोगों की पाप और शैतान की बंधुआई का प्रतीक है; उन लोगों की, जिन्हें परमेश्वर ने जगत की उत्पत्ति से भी पहले से चुन रखा है (इफिसियों 1:4; 2 थिस्सलुनीकियों 2:13; 2 तिमुथियुस 1:9; 1 पतरस 1:2. नोट: परमेश्वर द्वारा पहले से चुना जाना एक पूर्णतः भिन्न विषय है और हम इस चर्चा में इस पर नहीं आएंगे। अभी के लिये बस इतना काफी है कि इसका यह अर्थ नहीं है कि परमेश्वर ने संसार के कुछ लोगों को पहले से स्वर्ग के लिये चुन लिया, और शेष को नरक के लिये नियुक्त कर के छोड़ दिया। ऐसी सभी धारणाएं वचन की अधूरी समझ तथा सभी तथ्यों का उचित प्रयोग नहीं करने के कारण हैं।) लेकिन ये पहले से चुने हुए लोग भी, अन्य मनुष्यों के समान ही, पाप की प्रवृत्ति के साथ जन्म लेते हैं, पाप करते हैं, और उन्हें भी पाप और शैतान के दासत्व से छुड़ाए जाने की आवश्यकता है; उनके अपने कर्मों के द्वारा नहीं वरन अन्य सभी के समान, परमेश्वर के अनुग्रह से और प्रभु यीशु द्वारा कलवारी के क्रूस पर किया गए कार्य के द्वारा (इफिसियों 2:1-8) ही संभव है।
निर्गमन 12:1-2 - इन पदों में परमेश्वर मूसा और हारून के द्वारा इस्राएलियों को निर्देश देता है, उसके द्वारा उनके लिये निर्धारित किए गए छुटकारे के दिन के बारे में उन्हें बताता है, और कहता है कि यह दिन पृथ्वी पर उनके नए जीवन के आरंभ का दिन है। इस दिन को मूसा अथवा हारून ने निर्धारित नहीं किया था, वरन परमेश्वर ने किया, और उसी ने यह भी तय किया कि यह दिन उनकी नई शुरुआत का दिन होगा, उनके नये जीवन का, और उनके नए सालाना कैलेंडर का। परमेश्वर ने इन छुड़ाए और पुनः नए किये गए लोगों के लिये फसह के भोज को स्थापित किया था। वे इस आदर को अपने ऊपर नहीं ले सकते थे, यह आदर उन्हें परमेश्वर की ओर से दिया गया था। उन इस्राएलियों के साथ एक बहुत बड़ी मिली-जुली भीड़ भी मिस्रियों के दासत्व से निकलकर आ गई थी (निर्गमन 12:38), लेकिन उस भीड़ को इस फसह के भोज का आदर नहीं दिया गया था। पवित्र आत्मा की अगुवाई में प्रेरित पौलुस ने लिखा है कि उद्धार पाया हुआ व्यक्ति एक बिल्कुल नई सृष्टि है; उसके लिये यह एक पूर्णतः नई शुरुआत है। उसके जीवन की सभी पुरानी बातें अब जाती रहीं हैं, उसके लिये परमेश्वर ने सभी कुछ नया कर दिया है। अब से उसे परमेश्वर का जन बनकर, परमेश्वर के लिये जीवन जीना है (2 कुरिन्थियों 5:15, 17), और बुराई तथा दुष्टता के पुराने खमीर को त्याग कर, एक अखमीरी रोटी के समान प्रभु के लिये उपयोगी होना है (1 कुरिन्थियों 5:8)। नए नियम में, पृथ्वी की अपनी सेवकाई के अन्तिम समय में आकर प्रभु यीशु ने अपने शिष्यों के लिये फसह के भोज में से ही प्रभु भोज या, प्रभु की मेज़ की स्थापना की। पुराने और नए नियम की इन बातों को साथ मिलाकर देखने और उनसे निष्कर्ष निकालने से यह प्रकट है कि प्रभु भोज में भाग लेना हर किसी के लिये नहीं है; यह केवल उन्हीं के लिये है जो प्रभु परमेश्वर के अनुग्रह से वास्तव में अपने पापों से छुड़ाए गए हैं, जिन्होंने अपने पुराने मनुष्यत्व को उतार फेंका है, जिनके नए जीवन का आरंभ हो गया है तथा जिनका जीवन पूर्णतः परिवर्तित हो गया है, और जो अब परमेश्वर को समर्पित, और उसकी आज्ञाकारिता का जीवन जी रहे हैं।
अगले लेख में हम निर्गमन में से यहीं से आगे देखेंगे। यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, और प्रभु की मेज़ में भाग लेते रहे हैं, तो कृपया अपने जीवन को जाँच कर देख लें कि आप वास्तव में पापों से छुड़ाए गए हैं तथा प्रभु में एक नई सृष्टि बन गए हैं। आपके लिए यह अनिवार्य है कि आप परमेश्वर के वचन की सही शिक्षाओं को जानने के द्वारा एक परिपक्व विश्वासी बनें, तथा निरंतर परिपक्वता में बढ़ते जाएं। साथ ही सभी शिक्षाओं को वचन की कसौटी पर परखने, और बेरिया के विश्वासियों के समान, लोगों की बातों को पहले वचन से जाँचने और उनकी सत्यता को निश्चित करने के बाद ही उनको स्वीकार करने और मानने वाले बनें (प्रेरितों 17:11; 1 थिस्सलुनीकियों 5:21)। अन्यथा शैतान द्वारा छोड़े हुए झूठे प्रेरित और भविष्यद्वक्ता मसीह के सेवक बन कर (2 कुरिन्थियों 11:13-15) अपनी ठग विद्या और चतुराई से आपको प्रभु के लिए अप्रभावी कर देंगे और आप के मसीही जीवन एवं आशीषों का नाश कर देंगे।
यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
एक साल में बाइबल पढ़ें:
यहेजकेल 42-44
1 यूहन्ना 1
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Exodus 12:1-2 - Lord’s Table & A New Life
In the preceding articles on this topic, we have seen that although the Holy Communion is observed very reverentially in Christendom, but its actual form and purpose has been corrupted by Satan, and he has turned it into a vain, meaningless ritual. Most people, because they do not care to study God’s Word themselves and do not bother to cross-check and verify the teachings given to them in God’s name, are caught up in observing the Holy Communion, i.e., participating in the Lord’s Table in a manner not according to the Bible. They erroneously believe that their partaking of the Lord’s table in whatever manner bestows upon them a special status that makes them acceptable to God and worthy of entry into heaven. In the previous article we considered some symbolisms related to the Lord’s Table, and saw from the Gospel accounts in God’s Word that nothing with any leaven was part of the Passover meal, from which the Lord Jesus instituted the Holy Communion; and the cup that the Lord Jesus used as a symbol of His blood shed sacrificially, contained the unfermented grape-juice, and not it’s fermented product “wine”, as is commonly believed. We then turned to Exodus 12, the first Old Testament antecedent of the Lord’s Table, where the Passover meal was first prescribed by God for His people, the Israelites, and we concluded by saying that will be looking at this chapter in three sections, outlined in the last article.
Today we will start looking from our first section of Exodus 12:1-14, about the sacrificial lamb and the Passover meal, and corelate it with the New Testament to draw conclusions. The people of God, the Israelites had been under bondage to the Egyptians for 430 years (Exodus 12:40), suffering oppression from them. Now the day for their final deliverance from the oppression and bondage had come; it was time for them to be set free. As we have seen in the previous article on symbolisms, this bondage in Egypt of God’s people denotes the bondage to sin and Satan of God’s people - chosen beforehand by God before the foundation of the world (Ephesians 1:4; 2 Thessalonians 2:13; 2 Timothy 1:9; 1 Peter 1:2. NOTE: Election and being Chosen beforehand by God is a separate topic altogether, and we will not be considering it here. For now, suffice it to say that this does not mean that God has chosen some for heaven beforehand, and condemned the rest to eternal hell. Any such notions are because of a selective use and incomplete understanding of the Scriptures). But even these chosen ones are born in the world with a sin nature, commit sin, and they too have to be redeemed or delivered, i.e., to be saved from their sins, not by any works that they do, but like everyone else, by the grace of God through the sacrifice of the Lord Jesus on the Cross of Calvary (Ephesians 2:1-8).
Exodus 12:1-2 - In these verses, God speaks through Moses and Aaron to the Israelites, tells them about His ordained day of their deliverance from the bondage as a new beginning for their lifetime on earth. That day was not decided upon and set by Moses or Aaron, but God and it was God who decreed for that day to be the start of their new life and new annual calendar. It is to these released and renewed people of God that the privilege of participating in the Passover meal was given by God. They could not take this privilege upon themselves; God bestowed it upon them. A great mixed multitude also attached themselves to the Israelites, and came out of Egyptian bondage with the Israelites (Exodus 12:38), but they were not given this privilege and honor of partaking of the Passover meal. The Apostle Paul, under the guidance of the Holy Spirit writes that the saved person is an altogether new creation; it is a new beginning for him. All the previous things in his life have passed away, everything has been made new for him by God. From then on, they are to live as people of the Lord God, for the Lord (2 Corinthians 5:15, 17), be of service for the Lord as an unleavened bread, having cast away the old leaven of malice and wickedness (1 Corinthians 5:8). In the New Testament, at the terminal part of His earthly ministry, from this Passover meal, the Lord Jesus instituted the Holy Communion, and for His disciples. Corelating the OT and NT sections, it is now evident that the Holy Communion is not a ritual for everyone; but is for those who actually have been redeemed from their sins by the grace of God, have cast away their old self, have had a new beginning in their lives, have turned an altogether new leaf, and are living a life submitted and obedient to God.
We will carry on from here and see the other verses from Exodus in the coming articles. If you are a Christian Believer, and have been participating in the Lord’s Table, then please examine your life and make sure that you are actually redeemed from your sins and are a new creation for the Lord. It is also necessary for you to be spiritually mature, learn the right teachings of God’s Word. You should also always, like the Berean Believers first check and test all teachings you receive from the Word of God, and only after ascertaining the truth and veracity of the teachings brought to you by men, should you accept and obey them (Acts 17:11; 1 Thessalonians 5:21). If you do not do this, the false apostles and prophets sent by Satan as ministers of Christ (2 Corinthians 11:13-15), will by their trickery, cunningness, and craftiness render you ineffective for the Lord and cause severe damage to your Christian life and your rewards.
If you have not yet accepted the discipleship of the Lord Jesus, then to ensure your eternal life and heavenly rewards, take a decision in favor of the Lord Jesus now. Wherever there is surrender and obedience towards the Lord Jesus, the Lord’s blessings and safety are also there. If you are still not Born Again, have not obtained salvation, or have not asked the Lord Jesus for forgiveness for your sins, then you have the opportunity to do so right now. A short prayer said voluntarily with a sincere heart, with heartfelt repentance for your sins, and a fully submissive attitude, “Lord Jesus, I confess that I have disobeyed You, and have knowingly or unknowingly, in mind, in thought, in attitude, and in deeds, committed sins. I believe that you have fully borne the punishment of my sins by your sacrifice on the cross, and have paid the full price of those sins for all eternity. Please forgive my sins, change my heart and mind towards you, and make me your disciple, take me with you." God longs for your company and wants to see you blessed, but to make this possible, is your personal decision. Will you not say this prayer now, while you have the time and opportunity to do so - the decision is yours.
Through the Bible in a Year:
Ezekiel 42-44
1 John 1