वास्तविक कलीसिया प्रभु यीशु को “मसीह” स्वीकार करने वालों से है।
पिछले लेखों में
हमने परमेश्वर के वचन बाइबल में सबसे पहली बार “कलीसिया”
शब्द के प्रयोग के पद - “और मैं भी तुझ से
कहता हूं, कि तू पतरस है; और मैं इस
पत्थर पर अपनी कलीसिया बनाऊंगा: और अधोलोक के फाटक उस पर प्रबल न होंगे”
(मत्ती 16:18) के विश्लेषण से कलीसिया से
संबंधित कुछ अति महत्वपूर्ण बातों को देखा और समझा था। सबसे पहले हमने देखा था कि
बाइबल के अनुसार, कलीसिया शब्द का अर्थ कोई विशिष्ट भौतिक
भवन अथवा आराधना स्थल नहीं है, वरन बुलाए गए या एकत्रित किए
गए लोगों का समूह है। फिर हमने देखा और समझा था कि यह पद एक बहुत आम किन्तु बिलकुल
गलत धारणा, कि प्रभु ने यहाँ पर अपनी कलीसिया को पतरस पर
बनाने के लिए कहा है का कदापि समर्थन नहीं करता है। इस गलत धारणा के विषय विस्तार
से देखते हुए हमने यहाँ पर प्रभु के द्वारा कहे शब्द “इस
पत्थर” और उसके वास्तविक अर्थ को समझा था, तथा यह भी देखा था कि वचन के अन्य किसी भी भाग में इस बात का कोई संकेत भी
नहीं है कि प्रभु यीशु ने पतरस पर कलीसिया बनाने की बात कही, और न ही पतरस के मसीही व्यवहार में वह स्थिरता एवं दृढ़ता थी कि प्रभु की
कलीसिया उस पर बनाई जा सके। कलीसिया के वास्तविक अर्थ और पतरस के कलीसिया का आधार नहीं होने
के स्पष्ट हो जाने के बाद, अब हम इस पद में प्रभु द्वारा कही गई और बातों को देखेंगे
तथा समझेंगे, जिससे प्रभु द्वारा लोगों को मसीही विश्वास में
बुलाने और उनके जीवनों से प्रभु के प्रयोजन को, उसके
उद्देश्यों को हम भली-भांति समझ सकें।
मत्ती 16:18 में पतरस से संबंधित बात कहने के पश्चात, प्रभु यीशु का अगला वाक्य था,
“...और मैं इस पत्थर पर अपनी कलीसिया बनाऊंगा...”। हम पहले देख चुके हैं कि “इस पत्थर”
से प्रभु का अभिप्राय पतरस द्वारा मत्ती 16:16 में कही गई बात है कि “... तू जीवते परमेश्वर का
पुत्र मसीह है”, जिसका अनुमोदन प्रभु ने पद 17 में किया, जिसके लिए पतरस को धन्य भी कहा, और यह भी कहा कि पतरस को यह प्रभु
यीशु के विषय परमेश्वर द्वारा दिया गया स्वर्गीय दर्शन है, उसकी
अपनी समझ अथवा बुद्धि की बात नहीं है। मत्ती 16:18 में प्रभु
इसी दर्शन के अनुसार अपने द्वारा बुलाए हुए लोगों को एक समूह में एकत्रित करने,
अपनी कलीसिया बनाने की बात करता है। मत्ती 16:18 की और बातों को आगे देखने से पहले यह बात समझना और ध्यान में रखना
अनिवार्य है कि पतरस द्वारा पद 16 में कही गई बात कि
“... तू जीवते परमेश्वर का पुत्र मसीह है” क्यों परमेश्वर द्वारा पतरस को दिया गया एक स्वर्गीय दर्शन है, और क्यों यह बात इतनी महत्वपूर्ण है कि यही प्रभु द्वारा उसकी कलीसिया के
बनाए जाने का आधार ठहरेगी।
ध्यान कीजिए कि पतरस द्वारा मत्ती 16:16 में कही गई बात,
“... तू जीवते परमेश्वर का पुत्र मसीह है” में प्रभु के लिए उसका नाम “यीशु” प्रयोग नहीं किया गया है, जबकि “यीशु” ही उसका नाम था, जो
स्वर्गदूत ने यूसुफ को बताया था (मत्ती 1:20-21)। इसलिए यहाँ
पर पतरस द्वारा यह कहना कि “... तू जीवते परमेश्वर का
पुत्र यीशु है” अधिक उचित एवं सही होता। किन्तु न तो पतरस ने
यह कहा, न ही प्रभु ने उसे सुधार के उससे यह कहलवाया,
अपितु, उसकी इसी बात के लिए उसे सराहा और उसे
धन्य कहा, तथा इसी बात को पिता परमेश्वर द्वारा उसे प्रदान
किया गया स्वर्गीय दर्शन बताया। यह कलीसिया की सही समझ प्राप्त करने के लिए
अनिवार्य और अत्यावश्यक तथ्य है जिसकी अवहेलना करने के द्वारा कलीसिया के विषय अनेकों गलफहमियाँ ईसाई या मसीही
समाज में व्याप्त हो गई हैं, शैतान ने फैला दी हैं। पतरस द्वारा “यीशु”
के स्थान पर “मसीह” प्रयोग
करने का क्या अर्थ एवं महत्व है?
आम धारणा के विपरीत, “मसीह” प्रभु का नाम नहीं है; वरन यह प्रभु को उसके कार्य
के लिए दी गई उपाधि या पहचान है। “मसीह”, या अंग्रेजी का “Christ” शब्द मूल यूनानी भाषा के
“Christos” शब्द से हैं; और “Christos”
शब्द का शब्दार्थ होता है किसी विशेष कार्य के लिए अभिषिक्त या
मस्सा किया हुआ, या अंग्रेजी में “the Anointed one”;
और हिन्दी के “मस्सा किया हुआ” से ही “मसीह” शब्द आया है।
अर्थात जब पतरस ने प्रभु के प्रश्न के उत्तर में कहा कि “... तू जीवते परमेश्वर का पुत्र मसीह है”, तो वास्तव
में पिता परमेश्वर ने पतरस से प्रभु यीशु के लिए कहलवाया था कि “तू ही वह परमेश्वर का पुत्र है जो अभिषिक्त या मस्सा किया हुआ है”
- पतरस पर पिता परमेश्वर द्वारा प्रभु यीशु के परमेश्वर का पुत्र और
जगत का एकमात्र उद्धारकर्ता होने का दर्शन प्रकट किया गया, और
उसने इस दर्शन को अपने शब्दों में बोल दिया। और जब प्रभु यीशु ने पतरस द्वारा कहे
गए इस वाक्य को वह “पत्थर”, अर्थात वह
‘पेत्रा’, या वह “स्थिर,
दृढ़, और अडिग चट्टान” कहा
जिस पर वह अपनी कलीसिया, या अपने बुलाए और एकत्रित किए हुए
लोगों के समूह को स्थापित करने जा रहा था, तो प्रभु के कहने
का अभिप्राय था कि “जो भी इस विश्वास के साथ उसके पास आएगा
कि केवल वही परमेश्वर का पुत्र और पिता परमेश्वर की ओर से ठहराया हुआ, अभिषिक्त किया हुआ जगत का एकमात्र उद्धारकर्ता है, वही
और केवल वही उसके एकत्रित किए हुओं में सम्मिलित होगा, उनके लोगों का एक भाग होगा”। प्रभु की कलीसिया का
सदस्य होने के लिए इस वाक्य के महत्व पर ध्यान कीजिए, उस को
समझिए, और आज “कलीसिया” या “चर्च” से संबंधित कई गलत
धारणाओं की सच्चाई प्रकट हो जाएगी।
साथ ही अपने आप को उस समय की स्थिति में लाकर पतरस द्वारा कही गई इस बात के
झकझोर देने वाले प्रभाव पर भी विचार कीजिए। व्यवस्थाविवरण 18:15, 18 में मूसा ने इस्राएलियों से अपने समान एक परमेश्वर के नबी के आने की
बात कही थी, और
फिर परमेश्वर की ओर से भविष्यद्वक्ता उसके आने की भविष्यवाणियाँ करते चले आ रहे
थे। प्रभु यीशु की पृथ्वी की सेवकाई के दिनों में लोगों में एक उत्साह और आशा थी,
कि परमेश्वर द्वारा प्रतिज्ञा किया हुआ मसीहा आने वाला है, हालात संकेत कर रहे थे कि वह अब कभी भी आ जाएगा, जैसा
सामरी स्त्री ने कहा (यूहन्ना 4:25, 29), तथा यहूदियों में भी
एक प्रत्याशा थी (यूहन्ना 6:14; 7:41)। पतरस से उसके भाई
अंद्रियास ने आरंभ में ही यीशु के मसीहा होने की बात कह दी थी (यूहन्ना 1:41);
और सामरी स्त्री की बात सुनकर तथा प्रभु यीशु को स्वयं अनुभव कर के सामरिया
के उस गाँव के लोग भी मान गए थे कि यीशु ही मसीह है (यूहन्ना 4:39, 42)। किन्तु अभी तक प्रभु यीशु ने कभी उन लोगों के द्वारा उसका वह प्रतिज्ञा किए हुए
मसीहा होने की बात को जानने और मानने को ऐसा महत्व नहीं दिया था, जितना अब पतरस के द्वारा
यह कहने पर दिया।
पतरस तथा प्रभु के शिष्यों के लिए प्रभु
द्वारा पतरस की बात को पिता परमेश्वर द्वारा दिया गया स्वर्गीय दर्शन बताना, और इसे आधार बनाकर अपने
शिष्यों को एकत्रित करने की बात करना प्रभु यीशु द्वारा कही गई एक अभूतपूर्व बात थी। अब और यहाँ से, यह मानवीय समझ और धारणाओं से निकलकर
ईश्वरीय पुष्टि के साथ उन शिष्यों के भविष्य को निर्धारित करने वाली बात हो गई थी। प्रभु ने अभी तक के अपने
किसी भी शिष्य को इस बात के आधार पर नहीं बुलाया था। उसने पतरस को और कुछ अन्य शिष्यों को “मनुष्यों को पकड़ने वाला”
(मत्ती 4:19; लूका 5:10) बनाने के आश्वासन के साथ तो बुलाया था, किन्तु किसी
के लिए यह नहीं कहा था कि जब तक वह उसे परमेश्वर का पुत्र और जगत का परमेश्वर द्वारा निर्धारित एकमात्र उद्धारकर्ता स्वीकार नहीं कर लेते हैं, वे उसके जन नहीं हो सकते
हैं; यदि कहा होता तो संभवतः यहूदा इस्करियोती आरंभ में ही
बाहर हो गया होता! किन्तु अब प्रभु उनसे और आने वालों उसके लोगों के लिए कह रहा था
कि केवल
वही उसका बुलाया हुआ
और उसके साथ रहने के लिए एकत्रित किया हुआ होगा जो उसे परमेश्वर का पुत्र और
परमेश्वर द्वारा नियुक्त जगत का एकमात्र उद्धारकर्ता स्वीकार करेगा। प्रभु यीशु की इस बात के
कारण संभवतः उन शिष्यों के मनों में एक खलबली मच गई होगी, वे अपने आप को देखने लगे
होंगे कि क्या हम इस कसौटी पर खरे उतरते हैं कि नहीं? थोड़ा थम कर
विचार कीजिए क्या पतरस की कही इस बात की समझ आपके मन में भी यही खलबली मचा
रही है? आप अपने आप को मसीही किस आधार पर कहते
हैं? मनुष्यों के ज्ञान की बातें नहीं, परमेश्वर की बातें ही मनों को टटोलती हैं, झकझोरती
हैं, मनों की वास्तविकता को सामने लाती हैं।
यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं तो क्या आप
का मसीही होना, अपने
आप को मसीही विश्वासी कहना, पतरस द्वारा कही गई, और प्रभु
द्वारा अनुमोदित की गई इसी बात, इसी स्वर्गीय दर्शन पर आधारित है? या आप किसी डिनॉमिनेशन
अथवा मत या समुदाय की रीतियों और मान्यताओं के पालन के द्वारा अपने आप को “मसीही” समझते आ रहे हैं? 2 कुरिन्थियों 13:5 के अनुसार, अपने आप को परख कर देखें कि आप सच्चे मसीही विश्वास में हैं कि नहीं? कहीं आप किसी भ्रम में जीते आ रहे हों, और अंततः जब सच्चाई समझ में आए,
आँख खुले, तब तक बहुत देर हो चुकी हो।
यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक
स्वीकार नहीं किया है, तो
अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के
पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की
आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए
- उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से
प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ
ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस
प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद
करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया,
उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी
उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को
क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और
मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।”
सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा
भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
एक साल में बाइबल पढ़ें:
- उत्पत्ति
16-17
- मत्ती 5:27-48