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शनिवार, 25 सितंबर 2021

परमेश्वर का वचन, बाइबल – पाप और उद्धार - 31


पाप का समाधान - उद्धार - 27 - कुछ संबंधित प्रश्न और उनके उत्तर

प्रभु यीशु मसीह द्वारा समस्त मानवजाति के लिए किए गए इस महान उद्धार तथा पापों के समाधान एवं निवारण के कार्य को लेकर लोगों के मनों में कई प्रश्न भी रहते हैं। सामान्यतः पूछे जाने वाले कुछ प्रश्न और उनके उत्तर हैं:

प्रश्न: जब पाप का दण्डात्मक दुष्प्रभाव वंशागत हो सकता है, तो उद्धार का आशीषपूर्ण रक्षक प्रभाव वंशागत क्यों नहीं हो सकता है? क्यों प्रत्येक को अपने ही पापों के क्षमा मिलती है; वह क्षमा उसकी संतानों पर क्यों नहीं जाती है? 

उत्तर: यह तो ज्ञात एवं स्पष्ट है कि मनुष्यों की पार्थिव देह मरनहार है, पाप के दोष के साथ है, और पाप के दोष और उसके प्रभाव - मृत्यु को, एक से दूसरी पीढ़ी में दे देती है, और इसीलिए प्रत्येक पार्थिव देह को मरना भी होगा। जब प्रभु यीशु मसीह ने अपनी पाप के दोष से रहित देह पर सारे संसार के सभी लोगों का पाप ले लिया, तो उनकी उस देह को भी मृत्यु से होकर निकलना पड़ा। वर्तमान में, प्रभु यीशु के दूसरे आगमन तक, मसीही विश्वासियों की पार्थिव देह भी वह अविनाशी, उद्धार पाई हुई अलौकिक देह नहीं है जो प्रभु के पुनरुत्थान के बाद उनकी हो गई थी; और जो प्रभु यीशु के दूसरे आगमन पर उसके शिष्यों, मसीही विश्वासियों को प्रभु यीशु के समान मृत्यु से पार होने के बाद मिलेगी। पुनरुत्थान के पश्चात प्रभु यीशु केवल आत्मा नहीं थे, उन्होंने यह कहा और प्रमाणित किया था कि वे आत्मा नहीं देह में शिष्यों के समक्ष हैंमेरे हाथ और मेरे पांव को देखो, कि मैं वहीं हूं; मुझे छूकर देखो; क्योंकि आत्मा के हड्डी मांस नहीं होता जैसा मुझ में देखते हो” (लूका 24:39; देखिए लूका 24:36-43)। इसी प्रकार से प्रभु यीशु मसीह के शिष्य, मसीही विश्वासी भी प्रभु यीशु मसीह के दूसरे आगमन पर, जो मर गए हैं वे एक नई अलौकिक देह में जी उठेंगे, और जो उस समय जीवित होंगे वे उस नई देह में परिवर्तित हो जाएंगेऔर यह क्षण भर में, पलक मारते ही पिछली तुरही फूंकते ही होगा: क्योंकि तुरही फूंकी जाएगी और मुर्दे अविनाशी दशा में उठाए जाएंगे, और हम बदल जाएंगे। क्योंकि अवश्य है, कि यह नाशमान देह अविनाश को पहिन ले, और यह मरनहार देह अमरता को पहिन ले” (1 कुरिन्थियों 15:52-53); वह नई देह पाप के दोष और प्रभाव - मृत्यु, से मुक्त होगी। क्योंकि वर्तमान में मसीही विश्वासियों की देह में वे अलौकिक उद्धार पाई हुई अविनाशी देह के गुण विद्यमान नहीं हैं, इसीलिए मसीही विश्वासी अपनी देह से उत्पन्न हुई अपनी संतानों को भी वे अलौकिक गुण नहीं दे सकते हैं; केवल पाप के दोष वाली देह के गुण, जो वर्तमान में उनमें विद्यमान हैं, वे ही दे सकते हैं, और देते हैंअशुद्ध वस्तु से शुद्ध वस्तु को कौन निकाल सकता है? कोई नहीं” (अय्यूब 14:4)

प्रश्न: उद्धार पाने के पश्चात भी लोग पाप क्यों करते हैं, पवित्र और सिद्ध क्यों नहीं हो जाते हैं?

उत्तर: जैसा इससे पहले के प्रश्न में समझाया गया है, यद्यपि उद्धार पाए हुए मसीही विश्वासी अभी भी शारीरिक रीति से पाप के दोष और प्रभाव वाली देह में जीवित हैं। इसलिए उनका पाप करने का पुराना स्वभाव, उनके प्रभु यीशु का अनुसरण करने के नए स्वभाव के साथ संघर्ष करता रहता है, उन्हें वापस पाप में फँसाने और गिराने का प्रयास करता रहता हैक्योंकि शरीर आत्मा के विरोध में, और आत्मा शरीर के विरोध में लालसा करती है, और ये एक दूसरे के विरोधी हैं; इसलिये कि जो तुम करना चाहते हो वह न करने पाओ” (गलातियों 5:17)। जब कभी शरीर की लालसाएँ आत्मा पर हावी हो जाती हैं, मनुष्य पाप में गिर जाता है। किन्तु मसीही विश्वासी पाप में बना नहीं रह सकता हैजो कोई परमेश्वर से जन्मा है वह पाप नहीं करता; क्योंकि उसका बीज उस में बना रहता है: और वह पाप कर ही नहीं सकता [मूल भाषा में लिखे वाक्य का अभिप्राय हैवह पाप में बना नहीं रह सकता है], क्योंकि परमेश्वर से जन्मा है” (1 यूहन्ना 3:9)। उसमें विद्यमान परमेश्वर का आत्मा उसे उसके इस पाप में गिर जाने, पाप में होने की दशा के लिए कायल करता है, पश्चाताप के लिए उभारता है, और जब वह अपने पाप को मान लेता है, उसके लिए पश्चाताप करके परमेश्वर से क्षमा माँगता है, तो परमेश्वर का वायदा है कियदि हम अपने पापों को मान लें, तो वह हमारे पापों को क्षमा करने, और हमें सब अधर्म से शुद्ध करने में विश्वासयोग्य और धर्मी है” (1 यूहन्ना 1:9) 

दूसरी बात, उद्धार पाने के बाद, परमेश्वर हमें अंश-अंश करके प्रभु यीशु की समानता में परिवर्तित करता जा रहा है...तो प्रभु के द्वारा जो आत्मा है, हम उसी तेजस्वी रूप में अंश अंश कर के बदलते जाते हैं” (2 कुरिन्थियों 3:18 )। इसलिए उद्धार पाए हुए प्रत्येक व्यक्ति में सदैव ही, जब तक वह इस शरीर और संसार में है, कुछ सांसारिक और शारीरिक तथा कुछ आत्मिक और स्वर्गीय गुण विद्यमान होंगे। मसीही विश्वास, तथा परमेश्वर के वचन और आज्ञाकारिता में परिपक्व होते जाने से उसमें से सांसारिक और शारीरिक बातें धीरे-धीरे कम होती चली जाएंगी, और स्वर्गीय तथा आत्मिक बातें बढ़ती चली जाएंगी। किन्तु पूर्ण पवित्रता और सिद्धता वह इस शरीर से निकल कर अविनाशी देह में आने के बाद ही पाएगा। इसलिए हर उद्धार पाए हुए व्यक्ति में, कोई न कोई अपूर्णता, सांसारिकता की बात, शरीर की लालसा देखी जाएगी। इसका यह अर्थ नहीं है कि वह उद्धार पाया हुआ नहीं है; वरन यह कि वह अभीनिर्माणाधीन है, उसमें चल रहा परमेश्वर का कार्य अभी पूरा नहीं हुआ है, इसलिए कुछ कमियाँ, कुछ त्रुटियाँ दिख सकती हैं, और दिखती रहती हैं। किन्तु उसका अनन्तकालीन भविष्य स्वर्गीय सिद्धता, पवित्रता, और आशीषपूर्ण है। 

प्रश्न: जब प्रभु ने सब के पापों के लिए दंड सह लिया है, उनकी पूरी-पूरी कीमत चुका दी है, तो फिर सभी स्वर्ग के वारिस क्यों नहीं हैं? फिर क्यों लोगों को प्रभु यीशु मसीह में अलग से विश्वास करने की आवश्यकता है

उत्तर: इसका उत्तर समझने के लिए दो उदाहरण देखिए। मान लीजिए, मैं आपके लिए एक बहुत उत्तम और आपके जीवन के लिए बहुत लाभकारी उपहार लेता हूँ, और आपको उसे एक भेंट के रूप में मुफ़्त में देना चाहता हूँ। मैं आपको उसके लिए बारंबार बताता रहता हूँ कि मैंने आपके लिए एक बहुत उपयोगी उपहार ले कर रखा हुआ है, जब भी मन करे कभी भी आकर मुझ से उस उपहार को ले लें। किन्तु आप मुझ पर, मेरी मंशा पर, मेरे उस उपहार पर संदेह करते हैं, उन्हें अस्वीकार करते हैं, मेरे इस निमंत्रण को स्वीकार नहीं करते, मुझ से वह उपहार लेने के लिए नहीं आते हैं; तो क्या वह उपहार, जिसकी पूरी कीमत चुकाई जा चुकी है, जो आपको केवल मुझ से लेकर अपने लिए उपयोग भर ही करना है, आपको कोई लाभ दे सकता है? या मान लीजिए, आप उस उपहार को मुझ से ले भी लेते हैं, किन्तु उसकी गुणवत्ता पर, उसकी उपयोगिता पर, उसे आपको देने के पीछे मेरी मंशा पर, या अन्य किसी भी कारण से उस उपहार पर और मुझ पर संदेह करते हैं, उसे अपने लिए आवश्यक नहीं समझते हैं, अपने उपयोग में नहीं लाते हैं, तो क्या मेरे द्वारा उस उपहार की कीमत चुकाने और उसे आपको उपलब्ध करवा देने से आपको कोई लाभ होगा

यही बात प्रभु यीशु मसीह द्वारा उपलब्ध करवाए गए पापों की क्षमा और उद्धार के उपहार के लिए भी लागू है। यदि आप उसे अपनाएंगे ही नहीं; उसे अपने जीवन में कार्यकारी ही नहीं करेंगे तो फिर वह आपके जीवन में लाभकारी कैसे होगा? प्रभु यीशु कहते हैं किमैं तुम्हारे पाप अपने ऊपर लेता हूँ, और बदले में अपनी धार्मिकता तुम्हें देता हूँऔर आप कहें, नहीं मुझे यह स्वीकार नहीं है; मैं अपने पाप अपने पास रखूँगा, आप अपनी धार्मिकता अपने पास रखिए। मैं अपने पापों का समाधान और निवारण अपने तरीके से निकाल लूँगा और कर लूँगा, मुझे आपके समाधान और निवारण की आवश्यकता नहीं है। ऐसे में प्रभु यीशु द्वारा क्रूस पर किए गए कार्य और उनके पुनरुत्थान का आपके जीवन में क्या उपयोगिता अथवा महत्व रहा? फिर प्रभु का वह बलिदान आपके लिए कैसे कार्यकारी और लाभकारी हो सकेगा? ऐसे में तो आप वहीं रहेंगे जहाँ हैं, जैसे हैं; और सब कुछ तैयार एवं उपलब्ध होने के बावजूद, उसका कोई लाभ नहीं उठाने पाएंगे। 

एक अन्य कारण से भी प्रभु द्वारा उपलब्ध करवाया गया यह समाधान लोगों के जीवनों में कार्यकारी एवं उपयोगी नहीं होने पाता है। एक और उदाहरण से समझिए; हम सभी कंप्यूटर और मोबाइल फोन प्रयोग करते हैं। इसलिए हम यह भी जानते हैं कि हमारे कंप्यूटर अथवा फोन में डाले हुए प्रोग्राम या एप्प के बनाने वाले समय-समय पर उनके और उन्नत तथा बेहतर संस्करण, अर्थातअपडेटनिकालते रहते हैं, जिससे वह प्रोग्राम या एप्प और बेहतर कार्य कर सके। कभी-कभी कुछ अपडेट ऐसे भी आते हैं जिन्हें लागू करने के लिए पुराने संस्करण को मिटाना याअन-इंस्टालकरना होता है, और फिर उस पुराने के स्थान पर नए वाले कोइंस्टालकरना होता है। यदि आप नया संस्करण डाउनलोड भी कर लें, किन्तु पुराने कोअन-इंस्टालकरने की अनुमति न दें, पुराने कोअन-इंस्टालनहीं करें, तो वह नया फिर कैसे लागू होगा और आपके किस काम का होगा? ऐसे में उस प्रोग्राम या एप्प के बनाने वाले और उसे उपलब्ध करवाने वाले की मेहनत और प्रयास आपके लिए क्या लाभ देंगे? बहुत से लोग मसीही जीवन का लाभ तो उठाना चाहते हैं, किन्तु अपने पुराने सांसारिक जीवन और पुरानी शारीरिक बातों को छोड़ना नहीं चाहते हैं। जबकि प्रभु कहता है कि पुराने जीवन से पश्चाताप और छुटकारे के साथ ही मसीही विश्वास का नया जीवन कार्यान्वित, उपयोगी और लाभकारी हो सकता है। जब तक पुराना पापमय जीवन रहेगा तब तक नया कुछ काम नहीं कर सकेगा। लोगों को नए जीवन का पता है, वे उसे चाहते हैं, किन्तु नए को पुराने के साथ मिलाकर चलाना चाहते हैं, जो संभव नहीं है। इसलिए उनके जीवन में पापों की क्षमा और उद्धार का कार्य भी कार्यकारी नहीं रहता है।

शैतान तो सांसारिक ज्ञान, बुद्धि, समझ, धर्म, मत, विचारधारा, आदि के आधार पर मन में परमेश्वर के कार्य के प्रति संदेह उत्पन्न करता ही रहेगा; अनेकों प्रकार से प्रश्न उठाता ही रहेगा और उलझाता ही रहेगा - वह तो अदन की वाटिका के प्रथम पाप के समय से यह करता चला आ रहा है। उसके भ्रम, उसकी इस चालाकी में फँसने की बजाए, प्रभु यीशु पर, उसके जीवन, शिक्षाओं, कार्यों, और मानवजाति के लिए दिए गए बलिदान, तथा उनके मृतकों में से पुनरुत्थान की सामर्थ्य पर; वह आपको क्या देना चाहता है और आप से बदले में क्या चाहता है, आदि बातों पर ध्यान लगाइए, उन पर विचार कीजिए, तब सही बात तथा सही निर्णय आपके सामने स्वतः ही स्पष्ट एवं प्रकट हो जाएगा। फिर यीशु मसीह को अपना प्रभु और उद्धारकर्ता स्वीकार करने में आपको कोई संकोच नहीं रहेगा। स्वेच्छा से, सच्चे और पूर्णतः समर्पित मन से, अपने पापों के प्रति सच्चे पश्चाताप के साथ आपके द्वारा की गई एक छोटी प्रार्थना, “हे प्रभु यीशु मैं मान लेता हूँ कि मैंने जाने-अनजाने में, मन-ध्यान-विचार और व्यवहार में आपकी अनाज्ञाकारिता की है, पाप किए हैं। मैं मान लेता हूँ कि आपने क्रूस पर दिए गए अपने बलिदान के द्वारा मेरे पापों के दण्ड को अपने ऊपर लेकर पूर्णतः सह लिया, उन पापों की पूरी-पूरी कीमत सदा काल के लिए चुका दी है। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मेरे मन को अपनी ओर परिवर्तित करें, और मुझे अपना शिष्य बना लें, अपने साथ कर लेंआपका सच्चे मन से लिया गया मन परिवर्तन का यह निर्णय आपके इस जीवन तथा परलोक के जीवन को आशीषित तथा स्वर्गीय जीवन बना देगा। अभी अवसर है, अभी प्रभु का निमंत्रण आपके लिए है - उसे स्वीकार कर लीजिए।

बाइबल पाठ: रोमियों 10:6-13

रोमियों 10:6 परन्तु जो धामिर्कता विश्वास से है, वह यों कहती है, कि तू अपने मन में यह न कहना कि स्वर्ग पर कौन चढ़ेगा? अर्थात मसीह को उतार लाने के लिये!

रोमियों 10:7 या गहराव में कौन उतरेगा? अर्थात मसीह को मरे हुओं में से जिलाकर ऊपर लाने के लिये!

रोमियों 10:8 परन्तु वह क्या कहती है? यह, कि वचन तेरे निकट है, तेरे मुंह में और तेरे मन में है; यह वही विश्वास का वचन है, जो हम प्रचार करते हैं।

रोमियों 10:9 कि यदि तू अपने मुंह से यीशु को प्रभु जानकर अंगीकार करे और अपने मन से विश्वास करे, कि परमेश्वर ने उसे मरे हुओं में से जिलाया, तो तू निश्चय उद्धार पाएगा।

रोमियों 10:10 क्योंकि धामिर्कता के लिये मन से विश्वास किया जाता है, और उद्धार के लिये मुंह से अंगीकार किया जाता है।

रोमियों 10:11 क्योंकि पवित्र शास्त्र यह कहता है कि जो कोई उस पर विश्वास करेगा, वह लज्जित न होगा।

रोमियों 10:12 यहूदियों और यूनानियों में कुछ भेद नहीं, इसलिये कि वह सब का प्रभु है; और अपने सब नाम लेने वालों के लिये उदार है।

रोमियों 10:13 क्योंकि जो कोई प्रभु का नाम लेगा, वह उद्धार पाएगा।

 

एक साल में बाइबल:

· श्रेष्ठगीत 6-8 

· गलातियों 4