हमारे आंगन में सब शांत था। मैं आंगन में रखी मेज़ पर बैठी काम कर रही थी, मेरा पालतू कुत्ता मेरे निकट घास में लेट हुआ था। अचानक सूखे पत्तों में हुई सरसराहट की आवाज़ ने सब कुछ बदल डाला। कुत्ता लपक कर आवाज़ की ओर दौड़ा और शीघ्र ही एक पेड़ के चारों ओर चक्कर लगाने लगा जहां एक छोटा जीव अपनी जान बचाने के लिए थोड़ी ऊंचाई पर पेड़ से चिपका हुआ था। मैंने कुत्ते को पुकारा और वह मेरे पास आ तो गया, लेकिन उसकी आंखें उस पेड़ ही की ओर लगी हुई थीं। मेरे भरसक प्रयत्न के बावजूद वह मेरी ओर नहीं देख रहा था, उस पेड़ पर चिपके उस छोटे से जीव ने मेरे कुत्ते का पूरा ध्यान अपनी ओर खींच रखा था, और अब उसका सारा ध्यान मेरी ओर नहीं वरन उस जीव को पकड़ लेने पर ही था। शारीरिक रूप से वह मेरे निकट था परन्तु वास्तव में वह मुझ से दूर था क्योंकि उसका मन और चाह उस पेड़ पर चिपके जीव के साथ थीं, मेरे साथ नहीं।
इस घटना ने मेरे विचार मेरे उद्धारकर्ता प्रभु यीशु के साथ मेरे संबंधों की ओर मोड़े; कितनी सरलता से मैं अन्य बातों में उलझकर अपना ध्यान अपने प्रभु से हटा लेती हूँ। चाहे वे प्रलोभन हों या ज़िम्मेदारियां, या फिर किसी चीज़ को पाने की लालसा हो या किसी आनन्द का मोह - ये सब उससे, जो मुझ से प्रेम करता है और सदा मेरा भला तथा मेरे लिए सर्वोत्तम ही चाहता है, मेरा ध्यान हटा सकने में सक्षम हैं। अपनी प्राथमिकताओं को सही और अपने ध्यान को अपने प्रभ यीशु की ओर लगाए रखने के लिए मुझे सदैव प्रयत्नशील रहना पड़ता है।
एक ऐसे ही बंटे हुए ध्यान के रोग से प्रभु यीशु के समय के धार्मिक अगुवे भी ग्रसित थे (मत्ती १५:८-९)। वे परमेश्वर के मन्दिर में बने रहते थे, वहां सेवकाई करते थे और लोगों को परमेश्वर और उसके वचन की शिक्षाएं देते थे, उन्हें परमेश्वर के प्रति उनकी ज़िम्मेदारियां सिखाते थे, किंतु स्वयं उनके मन परमेश्वर से कोसों दूर थे।
यही दशा आज हम मसीही विश्वासियों की भी हो सकती है। हम भी चर्च जाने, लोगों को सिखाने, परमेश्वर के नाम से कई कार्यों में अपने आप को लगाए रखने वाले तो हो सकते हैं, और यह मानते हुए चल सकते हैं कि हम परमेश्वर के निकट हैं; किंतु हमारे मनों की अशांति और जीवन में रहने वाली बेचैनी दिखाती है कि वास्तव में हम उससे दूर हैं। यदि हमारा ध्यान हमारे उद्धारकर्ता प्रभु यीशु पर लगातार बना हुआ नहीं है तो यह सब हमारे लिए व्यर्थ कार्य हैं जिनसे ना हमें और ना दूसरों को कोई शांति या लाभ मिलेगा। जब हम अपने ध्यान व्यर्थ बातों और लालसाओं से हटा कर अपने प्रभु की ओर देखना आरंभ करेंगे और उस ही पर केंद्रित करेंगे, तब ही प्रभु यीशु हमारे मनों को एक नए उत्साह से भर कर परमेश्वर से हूई हमारी दूरी को वास्तविक निकटता में बदल सकेगा।
यदि आज आप परमेश्वर के निकट होने के अपने प्रयासों के बावजूद भी परमेश्वर से दूर हैं, तो प्रभु यीशु की ओर देखना आरंभ कीजिए। इस दूरी को पाटने का वो ही एकमात्र रास्ता है। - जूली ऐकैरमैन लिंक
जब प्रभु यीशु हमारे जीवनों का केंद्र बिंदु होता है, अन्य सब कुछ स्वतः ही सही परिपेक्ष में आ जाता है।
मेरी आंखों को व्यर्थ वस्तुओं की ओर से फेर दे; तू अपने मार्ग में मुझे जिला। - भजन ११९:३७
बाइबल पाठ: मत्ती १५:७-२०
Mat 15:7 हे कपटियों, यशायाह ने तुम्हारे विषय में यह भविष्यद्वाणी ठीक की।
Mat 15:8 कि ये लोग होठों से तो मेरा आदर करते हैं, पर उन का मन मुझ से दूर रहता है।
Mat 15:9 और ये व्यर्थ मेरी उपासना करते हैं, क्योंकि मनुष्य की विधियों को धर्मोपदेश करके सिखाते हैं।
Mat 15:10 और उस ने लोगों को अपने पास बुलाकर उन से कहा, सुनो और समझो।
Mat 15:11 जो मुंह में जाता है, वह मनुष्य को अशुद्ध नहीं करता, पर जो मुंह से निकलता है, वही मनुष्य को अशुद्ध करता है।
Mat 15:12 तब चेलों ने आकर उस से कहा, क्या तू जानता है कि फरीसियों ने यह वचन सुनकर ठोकर खाई?
Mat 15:13 उस ने उत्तर दिया, हर पौधा जो मेरे स्वर्गीय पिता ने नहीं लगाया, उखाड़ा जाएगा।
Mat 15:14 उन को जाने दो; वे अन्धे मार्ग दिखाने वाले हैं: और अन्धा यदि अन्धे को मार्ग दिखाए, तो दोनों गड़हे में गिर पड़ेंगे।
Mat 15:15 यह सुनकर, पतरस ने उस से कहा, यह दृष्टान्त हमें समझा दे।
Mat 15:16 उस ने कहा, क्या तुम भी अब तक ना समझ हो?
Mat 15:17 क्या नहीं समझते, कि जो कुछ मुंह में जाता, वह पेट में पड़ता है, और सण्डास में निकल जाता है;
Mat 15:18 पर जो कुछ मुंह से निकलता है, वह मन से निकलता है, और वही मनुष्य को अशुद्ध करता है।
Mat 15:19 क्योंकि कुचिन्ता, हत्या, परस्त्रीगमन, व्यभिचार, चोरी, झूठी गवाही और निन्दा मन ही से निकलती है।
Mat 15:20 यही हैं जो मनुष्य को अशुद्ध करती हैं, परन्तु हाथ बिना धोए भोजन करना मनुष्य को अशुद्ध नहीं करता।
एक साल में बाइबल:
- भजन १२०-१२२
- १ कुरिन्थियों ९