हमारा घर घने वृक्षों से घिरा हुआ है, इसलिए ग्रीष्म ऋतु में भी हमें धूप दिन भर में थोड़े से समय के लिए ही मिल पाती है। हमें ताज़े टमाटर भी बहुत पसन्द हैं, इसलिए मैं ने सोचा कि हम टमाटर गमलों में उगाएंगे और उन गमलों को उन स्थानों पर रख देंगे जहाँ धूप पड़ती है। हमने ऐसा ही किया और टमाटर के पौधे तेज़ी से बढ़ने लगे। मैं उनकी यह तीव्र बढ़ोतरी देख कर बहुत प्रसन्न थी, लेकिन मेरी यह प्रसन्नता थोड़े ही समय की थी, क्योंकि मुझे मालुम पड़ा के टमाटर के वे पौधे अधिक से अधिक धूप पाने के लिए तेज़ी से लंबे तो होते जा रहे हैं, लेकिन उन पौधों के तनों मे उन्हें और उनके वज़न को संभाल पाने की ताकत नहीं है इस कारण वे एक लता के समान टेढ़े मेढ़े होकर ज़मीन पर भी बिछते जा रहे हैं। मैंने कुछ सीधी डंडीयाँ लीं और उन लता रूपी तनों को सहारा देने के लिए उनके साथ लगाया और उन्हें आपस में बांध कर सीधा करने का प्रयास करने लगी, जिससे पौधे खड़े रहें और अच्छा फल ला सकें। मैंने प्रयास किया कि मैं पौधों को सीधा करने में हाथ हलका ही रखूँ, लेकिन फिर भी एक पौधे का तना टूट ही गया, और अन्य सभी पौधों के तने भी पूरी तरह से सीधे नहीं हो पाए, वे तने टेढ़े ही रहे।
इस अनुभव से मैंने एक महत्वपूर्ण आत्मिक शिक्षा भी पाई - चरित्र के टेढ़े-मेढ़े होने से पहले ही अनुशासन रखना आवश्यक है, अन्यथा एक बार चरित्र में स्थाई विकृति और इधर-उधर का झुकाव आ गया तो फिर उसे वापस सीधा कर पाना बहुत कठिन हो जाएगा।
परमेश्वर के वचन बाइबल में एली नामक एक याजक (पुरोहित) का वृतांत है। एली के दो पुत्र थे, दोनों ही पथ-भ्रष्ट हो गए और एली ने उन्हें समय रहते अनुशासित नहीं किया। जब उन दोनों पुत्रों की दुष्टता इतनी बढ़ गई कि एली उनके दुषकर्मों की और उपेक्षा नहीं कर सका, तो एली ने केवल हलकी सी डाँट लगाकर ही काम चलाना चाहा (1 शमूएल 2:24-25), लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी, वे नहीं सुधरे और अन्ततः परमेश्वर ने उनके विषय में अपना निर्णय सुना दिया: "क्योंकि मैं तो उसको यह कहकर जता चुका हूं, कि मैं उस अधर्म का दण्ड जिसे वह जानता है सदा के लिये उसके घर का न्याय करूंगा, क्योंकि उसके पुत्र आप शापित हुए हैं, और उसने उन्हें नहीं रोका। इस कारण मैं ने एली के घराने के विषय यह शपथ खाई, कि एली के घराने के अधर्म का प्रायश्चित न तो मेलबलि से कभी होगा, और न अन्नबलि से" (1 शमूएल 3:13-14)।
टेढ़े को सीधा करना पीड़ादायक और कठिन होता है, लेकिन टेढ़ा बने रहना ना केवल अपने लिए वरन दूसरों के लिए भी पीड़ादायक होता है और साथ ही विनाशकारी भी होता है। भला है कि अनुशासन के द्वारा आरंभ से ही चरित्र और चाल-चलन सुधार कर रखा जाए, अन्यथा परिणाम बहुत दुखदायी होंगे। - जूली ऐकैरमैन लिंक
परमेश्वर का प्रेम सामना भी करता है और सुधारता भी है।
और वर्तमान में हर प्रकार की ताड़ना आनन्द की नहीं, पर शोक ही की बात दिखाई पड़ती है, तौभी जो उसको सहते सहते पक्के हो गए हैं, पीछे उन्हें चैन के साथ धर्म का प्रतिफल मिलता है। - इब्रानियों 12:11
बाइबल पाठ: इब्रानियों 12:5-15
Hebrews 12:5 और तुम उस उपदेश को जो तुम को पुत्रों की नाईं दिया जाता है, भूल गए हो, कि हे मेरे पुत्र, प्रभु की ताड़ना को हलकी बात न जान, और जब वह तुझे घुड़के तो हियाव न छोड़।
Hebrews 12:6 क्योंकि प्रभु, जिस से प्रेम करता है, उस की ताड़ना भी करता है; और जिसे पुत्र बना लेता है, उसको कोड़े भी लगाता है।
Hebrews 12:7 तुम दुख को ताड़ना समझकर सह लो: परमेश्वर तुम्हें पुत्र जान कर तुम्हारे साथ बर्ताव करता है, वह कौन सा पुत्र है, जिस की ताड़ना पिता नहीं करता?
Hebrews 12:8 यदि वह ताड़ना जिस के भागी सब होते हैं, तुम्हारी नहीं हुई, तो तुम पुत्र नहीं, पर व्यभिचार की सन्तान ठहरे!
Hebrews 12:9 फिर जब कि हमारे शारीरिक पिता भी हमारी ताड़ना किया करते थे, तो क्या आत्माओं के पिता के और भी आधीन न रहें जिस से जीवित रहें?
Hebrews 12:10 वे तो अपनी अपनी समझ के अनुसार थोड़े दिनों के लिये ताड़ना करते थे, पर यह तो हमारे लाभ के लिये करता है, कि हम भी उस की पवित्रता के भागी हो जाएं।
Hebrews 12:11 और वर्तमान में हर प्रकार की ताड़ना आनन्द की नहीं, पर शोक ही की बात दिखाई पड़ती है, तौभी जो उसको सहते सहते पक्के हो गए हैं, पीछे उन्हें चैन के साथ धर्म का प्रतिफल मिलता है।
Hebrews 12:12 इसलिये ढीले हाथों और निर्बल घुटनों को सीधे करो।
Hebrews 12:13 और अपने पांवों के लिये सीधे मार्ग बनाओ, कि लंगड़ा भटक न जाए, पर भला चंगा हो जाए।
Hebrews 12:14 सब से मेल मिलाप रखने, और उस पवित्रता के खोजी हो जिस के बिना कोई प्रभु को कदापि न देखेगा।
Hebrews 12:15 और ध्यान से देखते रहो, ऐसा न हो, कि कोई परमेश्वर के अनुग्रह से वंचित रह जाए, या कोई कड़वी जड़ फूट कर कष्ट दे, और उसके द्वारा बहुत से लोग अशुद्ध हो जाएं।
एक साल में बाइबल:
- भजन 123-125
- 1 कुरिन्थियों 10:1-18