जब मैं युवा था, तो अपनी बात मनवाने के लिए
मैं बहुधा दलील दिया दिया करता था, “परन्तु और सब भी तो कर रहे हैं,” और मुझे लगता
था कि इस तर्क के सहारे मैं अपनी बात मनवा लूँगा। परन्तु मेरे माता-पिता मेरी बात
मानने के लिए कभी इस तर्क के आगे नहीं झुके, यदि उन्हें लगा कि जो मैं कह अथवा चाह
रहा हूँ वह असुरक्षित, अनुचित या मूर्खतापूर्ण है, मैं उस बात के लिए चाहे जितना
अधीर और जोर देने वाला रहा हूँ, उन्होंने उसे कभी स्वीकार नहीं किया।
जैसे जैसे हम बड़े होते जाते हैं, अपनी बात
मनवाने या अपनी इच्छा पूरी करने के लिए हम अपने तर्कों और बहानों के खजाने में और नए
तर्क तथा बहाने जोड़ते चले जाते हैं: “इससे किसी को कोई हानि नहीं होगी”, “यह
गैरकानूनी नहीं है”, “पहले उसने मेरे साथ ऐसा किया”, “उसे पता नहीं चलेगा” आदि
कितने ही ऐसे बहाने और तर्क हैं जिनके सहारे हम अपनी बात को ऊपर रखना चाहते हैं,
पूरा होता हुआ देखना चाहते हैं। इन सभी और ऐसे ही अन्य सभी तर्कों के पीछे भावना
होती है कि जो मैं चाहता हूँ, वही सबसे महत्वपूर्ण तथा सबसे अधिक आवश्यक है।
अंततः यही त्रुटिपूर्ण सोच, परमेश्वर के संबंध
में हमारे विचारों और विश्वास का आधार भी बन जाती है। एक झूठ जिसे हम बहुधा मानना
चुन लेते हैं, है – सृष्टि का केन्द्र परमेश्वर नहीं वरन हम हैं। हमें लगने लगता
है कि जब हम सँसार को अपनी इच्छाओं और पसन्द के अनुसार पुनःव्यवस्थित कर लेंगे तब
हम प्रसन्न और निश्चिन्त हो जाएँगे। यह झूठ हमें युक्तिसंगत प्रतीत होता है
क्योंकि यह हमें वह अपनी लालसाओं को पा लेने का शीघ्र और सरल उपाय लगता है। इस
तर्क का आधार यह विचार है: “परमेश्वर प्रेम है; वह मुझे प्रसन्न देखना चाहता है;
इसलिए जिस बात से मुझे प्रसन्नता मिलती है, वह उचित तथा परमेश्वर को स्वीकार भी होगी।”
किंतु इस विचार के आधीन होकर कार्य करना अंततः प्रसन्नता और संतोष नहीं, दुःख ही
लाता है।
प्रभु यीशु ने उन लोगों से, जिन्होंने उस पर विश्वास करने का दावा किया,
कहा कि वह सत्य ही है जो उन्हें वास्तव में स्वतंत्र करेगा (यूहन्ना 8:31-32)।
परन्तु प्रभु ने सचेत भी किया: “मैं तुम से सच सच कहता हूं कि जो कोई पाप करता
है,
वह पाप का दास है” (पद 34)। सबसे उत्तम
प्रसन्नता उस स्वतंत्रता से मिलती है जिसे हम इस सत्य ग्रहण कर लेने पर पाते हैं
कि परिपूर्ण और संतोषजनक जीवन का आधार तथा मार्ग प्रभु यीशु मसीह ही है। - जूली
ऐकैरमैन लिंक
सच्चे सुख और प्रसन्नता के लिए कोई
छोटा मार्ग नहीं है।
तुम मुझ में बने रहो,
और मैं तुम में: जैसे डाली यदि दाखलता में बनी न रहे, तो अपने आप से नहीं फल सकती, वैसे ही तुम भी यदि मुझ
में बने न रहो तो नहीं फल सकते। मैं दाखलता हूं: तुम डालियां हो; जो मुझ में बना रहता है, और मैं उस में, वह बहुत फल फलता है, क्योंकि मुझ से अलग हो कर तुम
कुछ भी नहीं कर सकते। - यूहन्ना 15:4-5
बाइबल पाठ: यूहन्ना 8:31-38
John 8:31 तब यीशु ने उन यहूदियों
से जिन्हों ने उन की प्रतीति की थी, कहा, यदि तुम मेरे वचन में बने रहोगे, तो सचमुच मेरे चेले
ठहरोगे।
John 8:32 और सत्य को जानोगे,
और सत्य तुम्हें स्वतंत्र करेगा।
John 8:33 उन्होंने उसको उत्तर
दिया; कि हम तो इब्राहीम के वंश से हैं और कभी किसी के दास
नहीं हुए; फिर तू क्योंकर कहता है, कि
तुम स्वतंत्र हो जाओगे?
John 8:34 यीशु ने उन को उत्तर
दिया; मैं तुम से सच सच कहता हूं कि जो कोई पाप करता है,
वह पाप का दास है।
John 8:35 और दास सदा घर में नहीं
रहता; पुत्र सदा रहता है।
John 8:36 सो यदि पुत्र तुम्हें
स्वतंत्र करेगा, तो सचमुच तुम स्वतंत्र हो जाओगे।
John 8:37 मैं जानता हूं कि तुम
इब्राहीम के वंश से हो; तौभी मेरा वचन तुम्हारे हृदय में जगह
नहीं पाता, इसलिये तुम मुझे मार डालना चाहते हो।
John 8:38 मैं वही कहता हूं,
जो अपने पिता के यहां देखा है; और तुम वही
करते रहते हो जो तुमने अपने पिता से सुना है।
एक साल में बाइबल:
- उत्पत्ति 20-22
- मत्ती 6:19-34