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गुरुवार, 21 अक्टूबर 2021

मसीही विश्वास एवं शिष्यता - 21

     

मसीही विश्वासी के प्रयोजन (5) - जाने को तैयार

 मसीही विश्वास एवं शिष्यता के अंतर्गत हम मरकुस 3:14-15 से प्रभु द्वारा अपने शिष्यों के लिए रखे गए प्रयोजनों पर मनन कर रहे हैं। पिछली बार हमने प्रभु के दूसरे प्रयोजनवह उन्हें भेजे, कि प्रचार करेंके पहले भाग को, कि प्रभु के शिष्य जब और जहाँ प्रभु कहे तब और वहाँ जाने के लिए तैयार हों को देखा था। आज हम इस दूसरे प्रयोजन के दूसरे भाग जबवह उन्हेंभेजे तब ही जाएं को देखेंगे। प्रभु की आज्ञाकारिता में होकर कार्य करना बहुत आवश्यक है, अन्यथा शैतान हमें बहका कर गिरा देगा या किसी हानि अथवा बुराई में फंसा देगा और हमारी सेवकाई को व्यर्थ कर देगा। प्रभु की आज्ञाकारिता ही हमारी सुरक्षा है। हम आते समय और परिस्थितियों को नहीं जानते हैं, किन्तु प्रभु जानता है; इसीलिए वह हमें तब ही कहीं आगे बढ़ने के लिए कहता है जब वह निश्चिंत होता है कि अब आगे बढ़ने में कोई खतरा नहीं है। इसका एक उदाहरण और स्वरूप हम इस्राएलियों की मिस्र से कनान की यात्रा में देखते हैं। गिनती 9:18-23 में लिखा है कि जब तक यहोवा की उपस्थिति का बादल उन पर छाया रहता था, इस्राएली छावनी डाले रहते थे। वे तब ही कूच करते थे जब यहोवा की उपस्थिति का बादल उन पर से ऊपर उठता था; चाहे वह रात भर तक ही छाया रहे, अथवा कुछ दिन, या महीने, या वर्ष भर तक। उनकी यात्रा परमेश्वर के कहने पर ही होती थी, और कब कहाँ छावनी डालनी है, वह स्थान भी यहोवा ही निर्धारित करता था (व्यवस्थाविवरण 1:32-33)

गिनती 13 और 14 अध्याय में हम देखते हैं कि कनान के किनारे पर पहुँच कर, यह जानते हुए भी कि परमेश्वर उनको एक उत्तम देश दे रहा है, मनुष्यों की बातों में आकर पहले तो इस्राएलियों ने कनान में प्रवेश करने से मना किया। फिर जब यहोवा उनके इस अविश्वास से क्रोधित हुआ, तो फिर से उसकी इच्छा और आज्ञा के विरुद्ध, उन्होंने अपने ही निर्णय के अनुसार कनान में प्रवेश करना चाहा; और दोनों ही परिस्थितियों में उन्हें भारी हानि उठानी पड़ी - उनकी कुछ दिन की यात्रा 40 वर्ष की यात्रा बन गई, जिसमें बलवा करनी वाली सारी पीढ़ी के लोग मारे गए, उन बलवाइयों में से एक भी कनान में प्रवेश नहीं करने पाया। कनान में प्रवेश करने के बाद यहोशू ने परमेश्वर की आज्ञाकारिता में असंभव प्रतीत होने वाली विधि से, यरीहो पर एक महान विजय प्राप्त की। इसके तुरंत बाद हम यहोशू 6 और 7 अध्याय में देखते हैं कि एक छोटे से स्थान ऐ पर जब यहोशू ने अपनी बुद्धि और लोगों की सलाह के अनुसार चढ़ाई की, तो मुँह की खाई, उसे भारी पराजय मिली; अंततः उन्हें ऐ पर विजय परमेश्वर के निर्देशों के अनुसार करने से ही मिली। नए नियम में भी पौलुस की सुसमाचार प्रचार सेवकाई में हम ऐसे ही उदाहरण देखते हैं। पौलुस, परमेश्वर की ओर से अन्यजातियों में सुसमाचार प्रचार के लिए नियुक्त किया गया था (गलातीयों 2:7-9)। हम प्रेरितों 16:6-10 से देखते हैं कि अपनी इसी सेवकाई को करने के प्रयास में दो बार पवित्र आत्मा ने उसे उसके गंतव्य में जाने से रोका; और फिर अंततः उसे मकिदुनिया जा कर प्रचार करने का दर्शन दिया, और तब पौलुस वहाँ इस निश्चय के साथ गया परमेश्वर ने उसे वहाँ भेजा है। 

प्रभु यीशु मसीह ने भी अपने पुनरुत्थान के बाद शिष्यों से कहा कि वे यरूशलेम में प्रतीक्षा करें और जब पवित्र आत्मा की सामर्थ्य प्राप्त कर लें, तब ही सुसमाचार प्रचार की सेवकाई पर निकलें (प्रेरितों 1:4, 8)। वे शिष्य इससे पहले भी प्रभु के कहे के अनुसार इसी सेवकाई के लिए जा चुके थे और सेवकाई के दौरान उन्होंने बहुत से आश्चर्यकर्म भी किए थे (मरकुस 6:7-13; लूका 10:1-17)। किन्तु अब, प्रभु ने उन्हें प्रतीक्षा करने और निर्धारित सामर्थ्य प्राप्त करने के बाद ही सेवकाई पर निकलने के लिए कहा। प्रभु के कहे के अनुसार, वे शिष्य उस प्रतीक्षा में रहे और अपना समय प्रार्थना में और परमेश्वर की स्तुति करने में बिताते रहे (लूका 24:50-53; प्रेरितों 1:12-14)। जो लोग चाहे प्रभु के नाम से, किन्तु अपनी ही इच्छा के अनुसार प्रचार और कार्य करते हैं, प्रभु उसेकुकर्मकहता है, और उन लोगों को ग्रहण नहीं करता हैजो मुझ से, हे प्रभु, हे प्रभु कहता है, उन में से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा, परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है। उस दिन बहुतेरे मुझ से कहेंगे; हे प्रभु, हे प्रभु, क्या हम ने तेरे नाम से भविष्यवाणी नहीं की, और तेरे नाम से दुष्टात्माओं को नहीं निकाला, और तेरे नाम से बहुत अचम्भे के काम नहीं किए? तब मैं उन से खुलकर कह दूंगा कि मैं ने तुम को कभी नहीं जाना, हे कुकर्म करने वालों, मेरे पास से चले जाओ” (मत्ती 7:21-23) 

प्रभु हमें अपने लिए प्रयोग करना चाहता है; उसने अपने प्रत्येक शिष्य के लिए पहले से ही कार्य निर्धारित कर के रखे हैं (इफिसियों 2:10); किन्तु साथ ही वह यह भी चाहता है कि हम उन कार्यों को उसके कहे के अनुसार करें। प्रभु के शिष्यों को न केवल प्रभु के लिए जाने के लिए तैयार रहना चाहिए, वरन जब और जहाँ प्रभु कहे जाने, तब और वहाँ जाने वाला होना चाहिए। शिष्यों के प्रार्थना और वचन के अध्ययन में बने रहने के द्वारा प्रभु अपनी सेवकाई के लिए मार्गदर्शन करता है। हमें हर निर्णय प्रभु के कहे के अनुसार लेने वाली मनसा रखनी चाहिए।

यदि आप प्रभु के शिष्य हैं, तो क्या आप ने अपने आप को प्रभु को उपलब्ध करवाया है कि वह आपको अपनी सेवकाई में प्रयोग करे और आशीषित करे? यदि आप प्रभु के लिए उपयोगी, और उससे आशीषित होना चाहते हैं, तो क्या आप प्रभु के प्रयोजनों के अनुसार निर्णय तथा कार्य कर रहे हैं, या अपनी ही इच्छा अथवा किसी अन्य मनुष्य के कहे अथवा निर्देशों के अनुसार कर रहे हैं? प्रभु को स्वीकार्य कार्य वही है जो प्रभु के कहे पर, उसकी इच्छा के अनुसार किया जाए; अन्यथा प्रभु के नाम से किन्तु उसकी इच्छा और निर्देश के बाहर किया गया हर कार्य व्यर्थ औरकुकर्महै।

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी उसके पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।  


एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • यशायाह 62-64     
  • 1 तिमुथियुस 1