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गुरुवार, 31 मई 2018

साहस और विश्वास



   चीनी दार्शनिक हैन फैजी ने जीवन के बारे कहा, “तथ्यों को जानना तो सरल है; उन तथ्यों के आधार पर कार्य करना कठिन होता है।”

   परमेश्वर के वचन बाइबल में एक स्थान पर हम पाते हैं कि एक धनी जवान व्यक्ति प्रभु यीशु के पास इस प्रश्न के साथ आया: “हे उत्तम गुरू, अनन्त जीवन का अधिकारी होने के लिये मैं क्या करूं?” (मरकुस 10:17)। वह मूसा द्वारा दी गई व्यवस्था को जानता था और उसका कहना था कि वह उस व्यवस्था का पालन लड़कपन से करता आया था। परन्तु प्रभु यीशु के उत्तर ने उस जवान को निराश कर दिया, क्योंकि प्रभु ने उससे कहा कि अपनी सारी संपत्ति बेचकर उस धन को कंगालों में वितृत कर दे और स्वयं प्रभु के पीछे हो ले (पद 21)। इन चंद शब्दों के द्वारा प्रभु यीशु ने उसके जीवन के उस तथ्य को उजागर कर दिया जिसे वह व्यक्ति स्वीकार करना नहीं चाहा रहा था – उसका अपनी दौलत पर भरोसा और उस दौलत से प्रेम, प्रभु पर किए गए भरोसे और प्रेम से कहीं अधिक था। प्रभु यीशु के पीछे चलने के लिए दौलत की सुरक्षा को त्यागना बहुत बड़ा जोखिम था, जिसे वह उठाना नहीं चाहता था, और वह उदास होकर खाली हाथ ही वापस चला गया (पद 22)।

   प्रभु क्या कहना चाह रहा था? प्रभु के अपने शिष्य चकित रह गए और पूछने लगे कि “फिर किसका उद्धार हो सकता है?” प्रभु का उत्तर था, “मनुष्यों से तो यह नहीं हो सकता, परन्तु परमेश्वर से हो सकता है; क्योंकि परमेश्वर से सब कुछ हो सकता है” (पद 27)। प्रभु के पीछे चलने के लिए साहस और विश्वास की आवश्यकता होती है। इसके बिना उसे प्रसन्न कर पाना असंभव है: “और विश्वास बिना उसे प्रसन्न करना अनहोना है, क्योंकि परमेश्वर के पास आने वाले को विश्वास करना चाहिए, कि वह है; और अपने खोजने वालों को प्रतिफल देता है” (इब्रानियों 11:6)। - पो फैंग चिया


उन्होंने कहा, प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास कर
तो तू और तेरा घराना उद्धार पाएगा। - प्रेरितों 16:31

कि यदि तू अपने मुंह से यीशु को प्रभु जानकर अंगीकार करे और अपने मन से विश्वास करे, कि परमेश्वर ने उसे मरे हुओं में से जिलाया, तो तू निश्चय उद्धार पाएगा। - रोमियों 10:9

बाइबल पाठ: मरकुस 10:17-27
Mark 10:17 और जब वह निकलकर मार्ग में जाता था, तो एक मनुष्य उसके पास दौड़ता हुआ आया, और उसके आगे घुटने टेककर उस से पूछा हे उत्तम गुरू, अनन्त जीवन का अधिकारी होने के लिये मैं क्या करूं?
Mark 10:18 यीशु ने उस से कहा, तू मुझे उत्तम क्यों कहता है? कोई उत्तम नहीं, केवल एक अर्थात परमेश्वर।
Mark 10:19 तू आज्ञाओं को तो जानता है; हत्या न करना, व्यभिचार न करना, चोरी न करना, झूठी गवाही न देना, छल न करना, अपने पिता और अपनी माता का आदर करना।
Mark 10:20 उसने उस से कहा, हे गुरू, इन सब को मैं लड़कपन से मानता आया हूं।
Mark 10:21 यीशु ने उस पर दृष्टि कर के उस से प्रेम किया, और उस से कहा, तुझ में एक बात की घटी है; जा, जो कुछ तेरा है, उसे बेच कर कंगालों को दे, और तुझे स्वर्ग में धन मिलेगा, और आकर मेरे पीछे हो ले।
Mark 10:22 इस बात से उसके चेहरे पर उदासी छा गई, और वह शोक करता हुआ चला गया, क्योंकि वह बहुत धनी था।
Mark 10:23 यीशु ने चारों ओर देखकर अपने चेलों से कहा, धनवानों का परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना कैसा कठिन है!
Mark 10:24 चेले उस की बातों से अचम्भित हुए, इस पर यीशु ने फिर उन को उत्तर दिया, हे बालको, जो धन पर भरोसा रखते हैं, उन के लिये परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना कैसा कठिन है!
Mark 10:25 परमेश्वर के राज्य में धनवान के प्रवेश करने से ऊंट का सूई के नाके में से निकल जाना सहज है!
Mark 10:26 वे बहुत ही चकित हो कर आपस में कहने लगे तो फिर किस का उद्धार हो सकता है?
Mark 10:27 यीशु ने उन की ओर देखकर कहा, मनुष्यों से तो यह नहीं हो सकता, परन्तु परमेश्वर से हो सकता है; क्योंकि परमेश्वर से सब कुछ हो सकता है।
                                                 

एक साल में बाइबल: 
  • 2 इतिहास 13-14
  • यूहन्ना 12:1-26