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शनिवार, 12 सितंबर 2015

सामर्थ


   मुक्केबाज़ी, कुश्ती आदि खेल-स्पर्धाएं ऐसी स्पर्धाएं हैं जिनमें खिलाड़ी व्यक्तिगत रीति से अपनी सामर्थ को दूसरे की सामर्थ से बढ़कर प्रदर्शित करने का प्रयास करते हैं; उस खेल और स्पर्धा में अपने आप को सबसे बढ़कर सामर्थी दिखाना चाहते हैं।

   परमेश्वर की महिमा का एक पहलू है उसकी सामर्थ। किंतु वह अपनी सामर्थ प्रदर्शित कैसे करता है? वह ऐसा करने के लिए हमारी आँखों के सामने तारगणों और नक्षत्र-समूहों को पुनःव्यवस्थित नहीं करता, और ना ही अपनी इच्छानुसार चाहे जब सूर्य का रंग बदल देता है; वह आकाश में कौंधती हुई बिजली को वहीं अपने स्थान पर जमा देने के द्वारा भी अपनी सामर्थ प्रगट नहीं करता है, जबकि इनमें से कोई भी कार्य उसके लिए असंभव या कठिन नहीं है, वह जब भी चाहे ऐसा बड़ी सरलता से कर सकता है। लेकिन परमेश्वर का वचन बाइबल हमें बताती है कि वह अपनी सामर्थ हम मनुष्यों के सामने कैसे प्रगट करता है - हमारे जैसे ज़रूरतमन्द लोगों के प्रति सेंत-मेंत अपने प्रेम और अनुग्रह को प्रकट करने के द्वारा। परमेश्वर अपने प्रेम करने वालों के पक्ष में अपनी सामर्थ दिखाने के अवसर ढूँढ़ता रहता है, "देख, यहोवा की दृष्टि सारी पृथ्वी पर इसलिये फिरती रहती है कि जिनका मन उसकी ओर निष्कपट रहता है, उनकी सहायता में वह अपना सामर्थ दिखाए..." (2 इतिहास 16:9)।

   परमेश्वर की कार्यविधि का यह नमूना उसके वचन में आरंभ से अन्त तक दिखाई देता है। इस्त्राएलियों को मिस्त्र की गुलामी से निकालकर लाते समय लाल-समुद्र को दो भाग करने, उन्हें बियाबान में भी मन्ना द्वारा भोजन प्रदान करके, प्रभु यीशु के कुँवारी से जन्म लेने और उनके मृतकों में से पुनरुत्थान आदि बातों के द्वारा परमेश्वर की सामर्थ सदा ही लोगों की सहायता, सुरक्षा और आशीष के कार्यों में होकर प्रदर्शित हुई है।

   इस बात में आश्वस्त रहें कि परमेश्वर हमारे जीवन में आने वाली चुनौतियों में होकर अपने आप को हमारे प्रति सामर्थी दिखाने में आनन्दित होता है; लेकिन जब परमेश्वर अपनी सामर्थ हमारे जीवनों में प्रदर्शित करे, तो उसे धन्यवाद देने और उसकी महिमा करने में पीछे ना रहें। - जो स्टोवैल


परमेश्वर की प्रत्येक प्रतिज्ञा उसकी बुद्धिमता, प्रेम और सामर्थ पर आधारित है।

तू बड़ी युक्ति करने वाला और सामर्थ के काम करने वाला है; तेरी दृष्टि मनुष्यों के सारे चालचलन पर लगी रहती है, और तू हर एक को उसके चालचलन और कर्म का फल भुगताता है। - यिर्मयाह 32:19 

बाइबल पाठ: 2 इतिहास 16:6-13
2 Chronicles 16:6 तब राजा आसा ने पूरे यहूदा देश को साथ लिया और रामा के पत्थरों और लकड़ी को, जिन से बासा काम करता था, उठा ले गया, और उन से उसने गेवा, और मिस्पा को दृढ़ किया। 
2 Chronicles 16:7 उस समय हनानी दर्शी यहूदा के राजा आसा के पास जा कर कहने लगा, तू ने जो अपने परमेश्वर यहोवा पर भरोसा नहीं रखा वरन अराम के राजा ही पर भरोसा रखा है, इस कारण अराम के राजा की सेना तेरे हाथ से बच गई है। 
2 Chronicles 16:8 क्या कूशियों और लूबियों की सेना बड़ी न थी, और क्या उस में बहुत ही रथ, और सवार न थे? तौभी तू ने यहोवा पर भरोसा रखा था, इस कारण उसने उन को तेरे हाथ में कर दिया। 
2 Chronicles 16:9 देख, यहोवा की दृष्टि सारी पृथ्वी पर इसलिये फिरती रहती है कि जिनका मन उसकी ओर निष्कपट रहता है, उनकी सहायता में वह अपना सामर्थ दिखाए। तूने यह काम मूर्खता से किया है, इसलिये अब से तू लड़ाइयों में फंसा रहेगा। 
2 Chronicles 16:10 तब आसा दशीं पर क्रोधित हुआ और उसे काठ में ठोंकवा दिया, क्योंकि वह उसकी ऐसी बात के कारण उस पर क्रोधित था। और उसी समय से आसा प्रजा के कुछ लोगों को पीसने भी लगा। 
2 Chronicles 16:11 आदि से ले कर अन्त तक आसा के काम यहूदा और इस्राएल के राजाओं के वृत्तान्त में लिखे हैं। 
2 Chronicles 16:12 अपने राज्य के उनतीसवें वर्ष में आसा को पांव का रोग हुआ, और वह रोग अत्यन्त बढ़ गया, तौभी उसने रोगी हो कर यहोवा की नहीं वैद्यों ही की शरण ली। 
2 Chronicles 16:13 निदान आसा अपने राज्य के एकतालीसवें वर्ष में मर के अपने पुरखाओं के साथ सो गया।

एक साल में बाइबल: 
  • नीतिवचन 13-15
  • 2 कुरिन्थियों 5