मनुष्यों की ठग विद्या और चतुराई से प्रभावित
प्रत्येक मसीही विश्वासी, केवल नया जन्म
लेने - शारीरिक से आत्मिक जीवन में जन्म लेने के द्वारा ही प्रभु यीशु का विश्वासी
जन, उसका शिष्य बन सकता है। मसीही विश्वास में आने से पूर्व
वह चाहे किसी भी पृष्ठभूमि, परिवार, धर्म,
मान्यता, आदि में से मसीह में आया हो, चाहे वह और उसका परिवार ईसाई धर्म का ही पालन क्यों न करते रहे हों,
सभी के लिए, ईसाई धर्म के मानने वालों के लिए
भी, नया जन्म लेना वैकल्पिक नहीं, अनिवार्य
है। बिना यह नया जन्म प्राप्त किए, कोई भी न तो परमेश्वर के राज्य को देख सकता है, और न उस में प्रवेश कर सकता है; क्योंकि शरीर से
जन्मा मनुष्य नश्वर शरीर ही है, और आत्मा से जन्मा मनुष्य ही
आत्मा के समान अविनाशी बन सकता है (यूहन्ना 3:1-7)। यह नया
जन्म पाना, व्यक्ति के द्वारा किसी भी धर्म के धार्मिक
रीति-रिवाज़ों, अनुष्ठानों, परंपराओं,
विधि-विधानों, और प्रथाओं की पूर्ति के द्वारा
नहीं होता है। नया जन्म पाने के लिए हर व्यक्ति को स्वेच्छा से अपने स्वयं के
पापों के लिए पश्चाताप करना, और प्रभु यीशु मसीह में विश्वास
लाकर, उससे अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, अपना जीवन उसे समर्पित करना होता है, और प्रभु यीशु
की आज्ञाकारिता में बने रहने का निर्णय लेना होता है (प्रेरितों 17:30-31; यूहन्ना 1:12-13; रोमियों 10:9-10)।
यह नया जन्म पाते ही वह व्यक्ति आत्मिक
शिशु-अवस्था में आत्मिक जन्म ले लेता है, जिसमें उसके पोषण और बढ़ोतरी के लिए उसे अपने पुराने स्वभाव
और बातों को छोड़कर, निर्मल आत्मिक दूध, अर्थात परमेश्वर के वचन को आत्मिक आहार के समान निरंतर लेते, यानि कि पढ़ते और पालन करते रहना (1 पतरस 2:1-2),
तथा मसीही जीवन के स्तंभ - प्रेरितों 2:42 की
चारों बातों में लौलीन रहना होता है। इस आत्मिक भरण-पोषण के द्वारा व्यक्ति आत्मिक
शिशु अवस्था से निकल कर आत्मिक बालक-अवस्था में आ जाता है, जहाँ
से आगे बढ़ने के लिए उसे परमेश्वर के साथ अपने संबंधों और प्रभु परमेश्वर के प्रति
अपने विश्वास को व्यावहारिक जीवन में जी कर दिखाने के विषय स्वेच्छा से कुछ निर्णय
लेने होते हैं। यह व्यक्ति के आत्मिक जीवन में आगे बढ़ पाने, या
फिर उसी स्तर पर रुके रह जाने के निर्णय के लिए परीक्षा की घड़ी होती है, और अधिकांश मसीही विश्वासी यहाँ आकर फेल हो जाते हैं, अटक जाते हैं, क्योंकि वे मसीह यीशु और परमेश्वर में
विश्वास के अपने सभी दावों के बावजूद, मत्ती 6:25-34 में प्रभु यीशु द्वारा दिए गए परमेश्वर की देखभाल और पूर्ति की वायदों पर
पूरा भरोसा नहीं रखने पाते हैं। वे अपने ही परिश्रम और प्रयासों पर अधिक भरोसा रखते हैं, और इस परिश्रम
तथा प्रयासों के जीवन को जीते हुए, धीरे-धीरे समय के अभाव के कारण मसीही
संगति, वचन
के अध्ययन, प्रार्थना में समय बिताने, और
प्रभु भोज में भाग लेते रहने में पिछड़ जाते हैं, आत्मिक जीवन
में कमजोर हो जाते हैं। समझ और विश्वास में इस प्रकार बालक बने रहना परमेश्वर के
वचन के विरुद्ध है, “हे भाइयो, तुम
समझ में बालक न बनो: तौभी बुराई में तो बालक रहो, परन्तु समझ
में सयाने बनो” (1 कुरिन्थियों 14:20)। उनकी इस अपरिपक्वता तथा मसीही बालक-अवस्था में अटके रह जाने के कारणों को और उनके जीवनों
में दिखने वाले इस अपरिपक्वता के लक्षण हम पिछले दो लेखों में इफिसियों 4:14 से देख चुके हैं।
मसीही विश्वास और जीवन में अपरिपक्वता के
कारण बालक-अवस्था में अटके रह जाने के अतिरिक्त, इफिसियों 4:14 अपरिपक्वता के अन्य दुष्प्रभाव
भी बताता है। अपरिपक्व मसीही विश्वासियों में देखे जाने वाले ये दुष्प्रभाव हैं कि
ये लोग, मनुष्यों की ठग-विद्या और चतुराई में बारंबार फँसते या फिर फंसे हुए ही रहते हैं; लोगों
की भ्रम की युक्तियों का शिकार होते रहते हैं, उनसे
धोखा खाते रहते हैं; और मनुष्यों के भ्रामक उपदेश से
बड़ी सरलता से उछाले, और इधर-उधर घुमाए जाते हैं, अर्थात वचन और विश्वास की बातों में स्थिर और
दृढ़ बने रहने की बजाए, इन्हें सरलता से कभी एक बात मानने और
कभी कोई अन्य बात मानने के लिए इधर से उधर बहकाया भटकाया जा सकता है।
ध्यान कीजिए, अदन की वाटिका में आदम
और हव्वा से पहला पाप करवाने के लिए सर्प रूपी शैतान ने इसी ठग-विद्या और
चतुराई का प्रयोग किया था। उसने हव्वा के मन में उनके प्रति परमेश्वर के प्रेम,
और उनके लिए परमेश्वर की योजनाओं के भले होने के विषय संदेह उत्पन्न
किया, हव्वा को परमेश्वर की अनाज्ञाकारिता
के लिए उकसाया, और हव्वा ने शैतान की ठग-विद्या और चतुराई
में फंस कर परमेश्वर की अनाज्ञाकारिता कर दी, पाप में गिर और
फंस गई। इसीलिए पवित्र आत्मा ने प्रेरित पौलुस द्वारा लिखवाया है “परन्तु मैं डरता हूं कि जैसे सांप ने अपनी चतुराई से हव्वा को बहकाया,
वैसे ही तुम्हारे मन उस सिधाई और पवित्रता से जो मसीह के साथ होनी
चाहिए कहीं भ्रष्ट न किए जाएं” जैसा कि झूठी प्रेरित
करते हैं (2 कुरिन्थियों 11:3, 13-15)।
प्रभु यीशु ने भी अंत के दिनों के चिह्नों में से एक यही बताया था कि बहुत से
भरमाने वाले आएंगे (मत्ती 24:5, 11)। पौलुस ने अपनी सेवकाई
के विषय में, उसके द्वारा प्रचार किए जाने वाले वचन में उसके खराई से बने रहने का स्मरण दिलाया (2 कुरिन्थियों 2:17;
4:2; 1 थिस्सलुनीकियों 2:3-5)। साथ ही पौलुस
ने यह भी चिताया कि ये भरमाने और भटकाने वाले लोग मण्डलियों के अंदर से, वर्तमान सदस्यों में से भी निकलकर आ सकते हैं, और
आएंगे (प्रेरितों 20:30)।
वचन में ऐसे लोगों को ताड़ लेने और उन से
दूर रहने के लिए कहा गया है, “अब हे भाइयो, मैं तुम से बिनती
करता हूं, कि जो लोग उस शिक्षा के विपरीत जो तुम ने पाई है,
फूट पड़ने, और ठोकर खाने के कारण होते हैं,
उन्हें ताड़ लिया करो; और उन से दूर रहो।
क्योंकि ऐसे लोग हमारे प्रभु मसीह की नहीं, परन्तु अपने पेट
की सेवा करते है; और चिकनी चुपड़ी बातों से सीधे सादे मन के
लोगों को बहका देते हैं” (रोमियों 16:17-18)। प्रेरित यूहन्ना ने भी अपने पाठकों को सचेत किया कि “हे प्रियो, हर एक आत्मा की प्रतीति न करो: वरन
आत्माओं को परखो, कि वे परमेश्वर की ओर से हैं कि नहीं;
क्योंकि बहुत से झूठे भविष्यद्वक्ता जगत में निकल खड़े हुए हैं”
(1 यूहन्ना 4:1), और इससे आगे के पदों में वह बताता है कि सही और गलत आत्माओं को
कैसे पहचाना जा सकता है। यह पहचान करना इसलिए अनिवार्य है क्योंकि ये लोग अपनी ठग
विद्या और चतुराई की बातों से प्रभु यीशु मसीह के सुसमाचार को बिगाड़ कर प्रस्तुत
करते हैं, उसमें
मिलावट करके उसे भ्रष्ट और अप्रभावी कर देते हैं, इसलिए
पौलुस प्रेरित में होकर परमेश्वर पवित्र आत्मा ऐसा करने वालों को “श्रापित” कहता है, “मुझे
आश्चर्य होता है, कि जिसने तुम्हें मसीह के अनुग्रह से
बुलाया उस से तुम इतनी जल्दी फिर कर और ही प्रकार के सुसमाचार की ओर झुकने लगे।
परन्तु वह दूसरा सुसमाचार है ही नहीं: पर बात यह है, कि
कितने ऐसे हैं, जो तुम्हें घबरा देते, और
मसीह के सुसमाचार को बिगाड़ना चाहते हैं। परन्तु यदि हम या स्वर्ग से कोई दूत भी
उस सुसमाचार को छोड़ जो हम ने तुम को सुनाया है, कोई और
सुसमाचार तुम्हें सुनाए, तो श्रापित हो” (गलतियों 1:6-8)। वचन के इन हवालों से ध्यान कीजिए कि
इन मनुष्यों की ठग विद्या और चतुराई, परमेश्वर के वचन की खराई और सच्चाई को
बिगाड़ने, उसमें मानवीय बुद्धि और ज्ञान की बातों की मिलावट
करने, के द्वारा कारगर होती है। यदि मसीही विश्वासी परमेश्वर
के वचन में स्थापित, तथा स्थिर और दृढ़ बना रहे, तो फिर न केवल वह परिपक्वता में बढ़ता जाएगा, वरन उसे
बहकाना और फंसना सहज नहीं होगा।
इसीलिए अपरिपक्वता के इस दुष्प्रभाव से
बचने तथा बाहर निकालने का उपाय भी वचन को सीखने और समझने “हर एक पवित्र शास्त्र
परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है और उपदेश, और समझाने,
और सुधारने, और धर्म की शिक्षा के लिये
लाभदायक है। ताकि परमेश्वर का जन सिद्ध बने, और हर एक भले
काम के लिये तत्पर हो जाए” (2 तीमुथियुस 3:16-17);
तथा सांसारिक बुद्धि और तत्व-ज्ञान के अनुसार नहीं अपितु वचन के
अनुसार ही जीवन जीना है, “यह मैं इसलिये कहता हूं,
कि कोई मनुष्य तुम्हें लुभाने वाली बातों से धोखा न दे। सो जैसे तुम
ने मसीह यीशु को प्रभु कर के ग्रहण कर लिया है, वैसे ही उसी
में चलते रहो। और उसी में जड़ पकड़ते और बढ़ते जाओ; और जैसे
तुम सिखाए गए वैसे ही विश्वास में दृढ़ होते जाओ, और अत्यन्त
धन्यवाद करते रहो। चौकस रहो कि कोई तुम्हें उस तत्व-ज्ञान और व्यर्थ धोखे के
द्वारा अहेर न करे ले, जो मनुष्यों के परम्पराई मत और संसार
की आदि शिक्षा के अनुसार हैं, पर मसीह के अनुसार नहीं”
(कुलुस्सियों 2:4, 6-8)।
यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, तो आपके लिए यह अनिवार्य
है कि आप परमेश्वर के वचन की सही शिक्षाओं को जानने के द्वारा एक परिपक्व विश्वासी
बनें, तथा निरंतर परिपक्वता में बढ़ते जाएं। साथ ही सभी
शिक्षाओं को वचन की कसौटी पर परखने, और बेरिया के
विश्वासियों के समान, लोगों की बातों को पहले वचन से जाँचने
और उनकी सत्यता को निश्चित करने के बाद ही उनको स्वीकार करने और मानने वाले बनें
(प्रेरितों 17:11; 1 थिस्सलुनीकियों 5:21)। अन्यथा शैतान द्वारा छोड़े हुए झूठे प्रेरित और भविष्यद्वक्ता मसीह के
सेवक बन कर (2 कुरिन्थियों 11:13-15) अपनी ठग विद्या और चतुराई से आपको अप्रभावी
कर देंगे और आप के मसीही जीवन एवं आशीषों का नाश कर देंगे।
यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक
स्वीकार नहीं किया है, तो
अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के
पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की
आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए
- उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से
प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ
ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस
प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद
करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया,
उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी
उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को
क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और
मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।”
सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा
भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
- लैव्यव्यवस्था
14
- मत्ती 26:51-75