मसीही विश्वासी के गुण - पश्चाताप (2)
पिछले लेख में हमने देखा था कि पतरस
द्वारा पिन्तेकुस्त के दिन संसार भर से धार्मिक पर्व मनाने और व्यवस्था की विधि को
पूरा करने के लिए आए हुए “भक्त यहूदियों के हृदय छिद गए, और
उन्हें इस बात का बोध हुआ कि उनकी यह धर्म-कर्म-रस्म की धार्मिकता उन्हें उद्धार
या नया जन्म देने और परमेश्वर को स्वीकार्य बनाने के लिए पर्याप्त नहीं है। तब
उन्होंने पतरस और अन्य प्रेरितों से इसके समाधान के विषय प्रश्न पूछा, और पतरस ने उद्धार या नया जन्म प्राप्त करने के लिए उन्हें जो प्रभु यीशु
के शिष्यता का मार्ग बताया, उसका पहला कदम था अपने-अपने
पापों से पश्चाताप करना और प्रभु का शिष्य हो जाने पर अपने पुराने जीवन की पापमय
प्रवृत्तियों और व्यवहार से मन फिरा लेना। मन फिराव की इस बात के महत्व को हम और
अधिक स्पष्टता से परमेश्वर के वचन में से इससे संबंधित पदों के उदाहरणों से समझ
सकते हैं, जो मुख्यतः बाइबल के नए नियम में खण्ड में दिए गए
हैं। बाइबल में दिए गए निम्न-लिखित कुछ उदाहरणों से हम देखते हैं कि उद्धार पाने
और प्रभु यीशु का शिष्य या अनुयायी होने के लिए पापों से पश्चाताप और मन फिराव
करने का विषय:
- यूहन्ना
बपतिस्मा देने वाले के प्रचार का आरंभ था “उन दिनों में यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला आकर
यहूदिया के जंगल में यह प्रचार करने लगा कि मन फिराओ; क्योंकि
स्वर्ग का राज्य निकट आ गया है” (मत्ती 3:1-2)।
- प्रभु
यीशु मसीह द्वारा पृथ्वी पर अपनी सेवकाई के आरंभ का प्रचार था “यूहन्ना के पकड़वाए जाने के
बाद यीशु ने गलील में आकर परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार प्रचार किया। और कहा,
समय पूरा हुआ है, और परमेश्वर का राज्य
निकट आ गया है; मन फिराओ और सुसमाचार पर विश्वास करो”
(मरकुस 1:14-15)।
- प्रभु
यीशु मसीह द्वारा अपने शिष्यों को पहले प्रचार पर भेजे जाने के समय उनके
प्रचार का विषय था “और उन्होंने जा कर प्रचार किया, कि मन फिराओ”(मरकुस 6:12).
- प्रभु
यीशु द्वारा स्वर्गारोहण से ठीक पहले शिष्यों को संसार भर में प्रचार करने के
लिए दिया गया विषय “और यरूशलेम से ले कर सब जातियों में मन फिराव का और पापों की क्षमा
का प्रचार, उसी के नाम से किया जाएगा” (लूका 24:47)।
- पवित्र
आत्मा प्राप्त करने के बाद शिष्यों द्वारा संसार भर से यरूशलेम आए भक्त
यहूदियों के समक्ष किए गए पहले सुसमाचार प्रचार का विषय “पतरस ने उन से कहा, मन फिराओ, और तुम में से हर एक अपने अपने पापों
की क्षमा के लिये यीशु मसीह के नाम से बपतिस्मा ले; तो
तुम पवित्र आत्मा का दान पाओगे” (प्रेरितों 2:38)।
- पतरस
द्वारा यरूशलेम के इस्राएलियों के सामने किए गए प्रचार का विषय “इसलिये, मन फिराओ और लौट आओ कि तुम्हारे पाप मिटाए जाएं, जिस से प्रभु के सम्मुख से विश्रान्ति के दिन आएं” (प्रेरितों 3:19)।
- परमेश्वर
द्वारा सारे संसार के सभी लोगों के लिए दी गई आज्ञा का विषय “इसलिये परमेश्वर अज्ञानता के
समयों में आनाकानी कर के, अब हर जगह सब मनुष्यों को मन
फिराने की आज्ञा देता है” (प्रेरितों 17:30)।
- पौलुस
द्वारा यहूदियों और अन्य जातियों में किए जाने वाले प्रचार एवं सेवकाई का
विषय “वरन
यहूदियों और यूनानियों के सामने गवाही देता रहा, कि
परमेश्वर की ओर मन फिराना, और हमारे प्रभु यीशु मसीह पर
विश्वास करना चाहिए” (प्रेरितों 20:21); “परन्तु पहिले दमिश्क के, फिर यरूशलेम के रहने
वालों को, तब यहूदिया के सारे देश में और अन्यजातियों
को समझाता रहा, कि मन फिराओ और परमेश्वर की ओर फिर कर
मन फिराव के योग्य काम करो” (प्रेरितों 26:20)।
- प्रकाशितवाक्य
पुस्तक के 2 और 3 अध्याय में संबोधित कलीसियाओं को दिए गए चेतावनी के संदेशों का विषय
(प्रकाशितवाक्य 2:5, 16, 21, 22; 3:3, 19)।
- प्रकाशितवाक्य
पुस्तक में परमेश्वर के प्रकोप और दंड को सहने का कारण - पश्चाताप न करना
(प्रकाशितवाक्य 9:20, 21; 16:9, 11)।
- पुराने
नियम के भविष्यद्वक्ताओं एवं परमेश्वर के सेवकों के प्रचार का विषय भी
पश्चाताप या मन फिराव ही था, “और यद्यपि यहोवा तुम्हारे पास अपने सारे दासों अथवा भविष्यद्वक्ताओं
को भी यह कहने के लिये बड़े यत्न से भेजता आया है कि अपनी अपनी बुरी चाल और
अपने अपने बुरे कामों से फिरो: तब जो देश यहोवा ने प्राचीनकाल में तुम्हारे
पित्रों को और तुम को भी सदा के लिये दिया है उस पर बसे रहने पाओगे; परन्तु तुम ने न तो सुना और न कान लगाया है” (यिर्मयाह 25:4-5)।
प्रभु
यीशु मसीह का अनुयायी होने का अर्थ है पुरानी बातों, विचारधाराओं,
धारणाओं, व्यवहार आदि को छोड़कर, प्रभु यीशु मसीह की शिष्यता में एक पूर्णतः बदला हुआ नया जीवन जीना
“सो यदि कोई मसीह में है तो वह नई सृष्टि है: पुरानी बातें बीत
गई हैं; देखो, वे सब नई हो गईं”
(2 कुरिन्थियों 5:17); ऐसा जीवन जो किसी
धर्म-कर्म-रस्म पर आधारित नहीं है, वरन परमेश्वर के वचन की
आज्ञाकारिता पर आधारित है, जैसा कि प्रभु यीशु ने अपने
शिष्यों से, उन्हें उलाहना देते हुए, स्वयं कहा “जब तुम
मेरा कहना नहीं मानते, तो क्यों मुझे हे प्रभु, हे प्रभु, कहते हो?” (लूका
6:46)। प्रभु की शिष्यता और आज्ञाकारिता के इस जीवन में
उठाया गया पहल कदम स्वेच्छा एवं सच्चे मन से पश्चाताप करना है, पुराने सांसारिक जीवन
से नए आत्मिक जीवन की ओर मुड़ जाना है। बिना सच्चे पश्चाताप के प्रभु का शिष्य न तो
बना जा सकता है, और न उस शिष्यता को निभाया जा सकता है।
मसीही विश्वासी या प्रभु यीशु के अनुयायी होने के लिए किसी धर्म परिवर्तन की नहीं,
वरन पापमय प्रवृत्तियों से मन परिवर्तन की, और
परिवर्तित जीवन का निर्वाह करने की आवश्यकता है। इसलिए यदि आपने अभी तक अपने आप को
प्रभु यीशु मसीह की शिष्यता में समर्पित नहीं किया है, और आप
अभी भी अपने एक परिवार विशेष में जन्म अथवा उस परिवार और अपने जन्म से संबंधित
धर्म तथा उसकी रीतियों के पालन के आधार पर अपने आप को प्रभु का जन समझ रहे हैं,
तो आपको भी अपनी इस गलतफहमी से बाहर निकलकर परमेश्वर के वचन बाइबल
की सच्चाई (प्रेरितों 17:30) को स्वीकार करने और उसका पालन
करने की आवश्यकता है।
आज और अभी आपके पास अपनी अनन्तकाल की
स्थिति को सुधारने का अवसर है; प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए
- उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से
प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ
ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस
प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद
करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया,
उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी
उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को
क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और
मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।”
सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा
भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
एक साल में बाइबल
पढ़ें:
- यशायाह
41-42
- 1 थिस्सलुनीकियों 1