हमने जो पिछले लेख में देखा है उसे ध्यान में रखते हुए, प्रभु का रिस लेना या जलन के साथ काम करना और भी स्पष्ट तथा समझने में सरल हो जाता है जब हम ध्यान करते हैं कि इस सृष्टि में केवल दो ही “शक्तियाँ” हैं; पहली है परमेश्वर, जो सृष्टिकर्ता और सृष्टि का स्वामी है और उसकी बातें तथा उसके स्वर्गदूत; और दूसरी है शैतान, जो विद्रोही स्वर्गदूत है तथा उसके अनुयायी। शैतान और उसके अनुयायी अब परमेश्वर के बैरी और विरोधी हैं, अपने अनन्त विनाश के लिए नरक में डाले जाने के समय की प्रतीक्षा में हैं। इनके अतिरिक्त और कोई शक्ति अथवा शक्ति का स्त्रोत नहीं है। इसलिए प्रत्येक जन या तो परमेश्वर के साथ जुड़ा है, उससे संबंधित है; अन्यथा शैतान के साथ है और उसका अनुयायी है। प्रत्येक वह जन जो परमेश्वर द्वारा दिए गए मार्ग, उसके निर्धारित तरीके से, अर्थात प्रभु यीशु मसीह में लाए गए विश्वास के द्वारा परमेश्वर के साथ नहीं जुड़ा है, वह स्वतः ही, पूर्व-निर्धारण के द्वारा, जान बूझकर अथवा परमेश्वर के शत्रु और प्रतिद्वंदी, शैतान के साथ जुड़ा है। यह प्रत्येक व्यक्ति का अपना निर्णय है कि वह परमेश्वर के साथ होना चाहता है, या फिर शैतान के साथ ही बना रहना चाहता है।
इसलिए कोई भी, विशेषकर परमेश्वर की संतान, अर्थात मसीही विश्वासी, यदि अपने प्रेम और भावनाओं को परमेश्वर या उसकी बातों के अतिरिक्त किसी
भी अन्य के साथ बाँटना चाहता है, तो वह केवल शैतान और उसके
अनुयायियों और उनकी बातों के साथ ही यह कर सकता है। और स्वाभाविक है कि अपने जन के
लिए यह परमेश्वर को कदापि स्वीकार नहीं होगा, घिनौना लगेगा,
और वह रिस के साथ व्यवहार करेगा। यदि मसीही विश्वासी परमेश्वर की चेतावनियों
और डाँटे जाने से नहीं सुधरता है, अपने व्यवहार को ठीक नहीं
करता है, परमेश्वर की ओर नहीं लौटता है, तो फिर परमेश्वर को उपयुक्त कार्यवाही करनी पड़ेगी, उसकी ताड़ना करनी पड़ेगी
ताकि वह वापस परमेश्वर के घराने में लौटा का लाया जाए।
इसे
एक पारिवारिक स्थिति के समान समझिए, जहाँ एक परिवार का एक बच्चा माता-पिता के प्रति
अनाज्ञाकारी रहता है, अपने व्यवहार को नहीं सुधारता है,
उसे दिए गए निर्देशों का पालन नहीं करता है, और
अपने व्यवहार के द्वारा परिवार के नाम को खराब कर रहा है। यदि यह बच्चा माता-पिता
की मौखिक चेतावनियों और डाँट को नहीं सुनता और मानता है, तो
उसके प्रति अपने प्रेम में होकर, और उसे भविष्य में किसी बड़ी
हानि या बुराई से बचाने के लिए, उन्हें दृढ़ता के साथ
कार्यवाही करनी पड़ती है, उसकी ताड़ना भी करनी पड़ती है। उनकी
ताड़ना उसके प्रति उनके प्रेम और देख-भाल का प्रमाण है, उसपर
उनके अधिकार का तथा उस अधिकार को कार्यान्वित करने का प्रमाण है, और उस बच्चे को वापस परिवार की सुरक्षा तथा देख-रेख में ले लेने के लिए
है। परमेश्वर ने यही बात इब्रानियों 12:5-11 में भी कही है।
इसलिए
प्रभु का रिस या जलन के अन्तर्गत कार्य करना उस सांसारिक रिस या जलन से कार्य करना
नहीं है, जैसा कि हम सामान्यतः समझते हैं। वरन, यह उसके प्रेम
और देखभाल का चिह्न है, अपने लोगों को शैतान की युक्तियों से
सुरक्षित रखने के लिए की गई कार्यवाही है। अब हम प्रभु को “रिस
दिलाने” को समझ सकते हैं कि यह परमेश्वर द्वारा अपने असीम
प्रेम के अमूल्य पात्र की देख-भाल और सुरक्षा के लिए उकसाए जाकर उसे लौटा कर अपने
पास ले आने के लिए किया जाने वाला कार्य है। अपने बच्चे को अपने पास सुरक्षित रखने
के लिए परमेश्वर को जो कुछ भी करना होगा, वह करेगा (1
कुरिन्थियों 5:5), चाहे वर्तमान में उसकी
कार्यवाही कठोर और दुखदायी ही क्यों न हो।
यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार
नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित
करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता
है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ
प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा
से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय
जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल
एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना
है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु, मैं अपने पापों के लिए पश्चातापी हूँ, उनके
लिए आप से क्षमा माँगता हूँ। मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा
और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर
क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप
तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मुझे और
मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे
अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित
मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक
के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
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With what we have seen in the previous article in
mind, the Lord’s acting in
jealousy becomes clearer and justifiable when we ponder and realize that there
are only two ‘powers’ in this universe; one is God, the creator and owner of
this universe and His angels; and the other is Satan, the rebellious angel, and
his followers. Satan and his followers are all now the rivals and enemies of
God, biding their time till they are finally destroyed and cast into everlasting
hell. There is no other power or source of any power, other than these two, and
everyone is either associated with God, or Satan. The one who is not associated
with God in the manner God has prescribed it, through faith in His Son the Lord
Jesus Christ, is automatically, or by default, associated with God’s enemy and
rival, Satan. It is every person’s personal decision to either be associated
and joined with God, or continue to remain with Satan as his follower.
So, if anyone,
particularly a child of God, i.e., a Christian Believer, desires to share his
love and affection, or associate with anyone other than God or anything that is
not from God, then he can only be sharing or associating it, with Satan or his
minions and their things. This quite naturally will not only be unacceptable,
but even abhorrent to God for His
possession; and He will act accordingly. If the Christian Believer does not
respond to God’s cautions and admonitions, does not mend his ways and turn back
to God whole-heartedly, then God will have to act accordingly, chastise him, to
restore him back into His fold.
Think of it as a
family-situation where a child is being disobedient to parents, is not mending
his ways, persists in living contrary to the instructions given to him and is
sullying the name of the family because of his life and behavior. If such a
child does not listen to verbal cautions and admonitions, from the parents, then
out of their love for the child and to safeguard him from future severe harm
and harsh consequences, they have to act firmly, and resort to chastising him.
Their chastisement is an act of love, is because of their possessiveness for
him, and to draw the child back into the safety and care of the family. God has
said the same in Hebrews 12:5-11.
So, the Lord’s
jealousy is not the jealousy in the worldly sense, but is an act of love and
care, to keep His people safe from the wiles of the devil. Now we can
understand that the term “provoke to jealousy” implies, to be stimulated to act
for the protection and care of someone who is God’s precious possession, and to
do whatever needs to be done to bring God’s child back into God’s fold (1
Corinthians 5:5), even if it is hurting and painful for now, but is beneficial
from the eternal perspective.
If you have not yet accepted the discipleship of the Lord, make your
decision in favor of the Lord Jesus now to ensure your eternal life and
heavenly blessings. Where there is obedience to the Lord, where there is
respect and obedience to His Word, there is also the blessing and protection of
the Lord. Repenting of your sins, and asking the Lord Jesus for forgiveness of
your sins, voluntarily and sincerely, surrendering yourself to Him - is the
only way to salvation and heavenly life. You only have to say a short but
sincere prayer to the Lord Jesus Christ willingly and with a penitent heart,
and at the same time completely commit and submit your life to Him. You can
also make this prayer and submission in words something like, “Lord Jesus, I am
sorry for my sins and repent of them. I thank you for taking my sins upon
yourself, paying for them through your life.
Because of them you died on the cross in my place, were buried, and you
rose again from the grave on the third day for my salvation, and today you are
the living Lord God and have freely provided to me the forgiveness, and
redemption from my sins, through faith in you. Please forgive my sins, take me
under your care, and make me your disciple. I submit my life into your
hands." Your one prayer from a sincere and committed heart will make your
present and future life, in this world and in the hereafter, heavenly and
blessed for eternity.