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शनिवार, 16 जनवरी 2010

पाप का दूसरा नाम

बाइबल पाठ: उतपत्ति ३९:९
मैं ऐसी बड़ी दुष्टता करके परमेश्वर का अपराधी क्योंकर बनूं? - उत्पत्ति ३९:९

एक दिन यूसुफ ने अपने आपको एक कठिन परिस्थित्ति में पाया, जब उसके मलिक की पत्नी ने उसे अपनी वासना का शिकार बनाना चाहा। जवान युसुफ के लिये उस औरत का प्रलोभन कितना बड़ा होगा। युसुफ ने यह भी एहसास किया होगा कि अगर वह मालकिन के प्रलोभनों के आधीन नहीं हुआ, तो फिर उसे उसके भयंकर क्रोध का शिकार होना पड़ेगा।

तो भी यूसुफ ने मालकिन से साफ इन्कार किया। उसके नैतिक सिद्धाँत का स्त्रोत था पाप के विषय में उसकी स्पष्ट समझ और परमेश्वर के प्रति उसकी श्रद्धा। यूसुफ ने उस मालकिन से कहा "मैं ऐसी बड़ी दुष्टता करके परमेश्वर का अपराधी क्योंकर बनूं?" ( उत्पत्ति ३९:९)

आज पाप को अधिक स्वीकारयोग्य नामों से बुलाने की परंपरा सी बन गई है। परन्तु परमेश्वर के विरुद्ध किये गये अपराधों को पाप ना कहकर, अन्य कोई नाम देने से पाप के प्रति हमारी प्रतिरोध शक्ति को कमज़ोर करेगा और पाप के दुष्परिणामों की गंभीरता से हमारी नज़र हटायेगा।

युसुफ के लिये पाप केवल "निर्णय की गलती" नहीं था, न ही वह "जीभ का फिसलना", या "कम्ज़ोरी के क्षणों में की गई मूर्खता" थी। यूसुफ ने पाप को उसकी वास्तविकता में देखा-परमेश्वर के विरुद्ध किया गया गंभीर अपराध और उसने अपराध की गंभीरता को कभी कम नहीं करना चाहा।

परमेश्वर के नैतिक स्तर अटल हैं। जब हम पाप को परमेश्वर के लिये घृणित बात मानेंगे हैं, तभी हम सही नैतिक निर्णय ले सकेंगे। पाप को एक हलका नाम देने से न तो उसके प्रति परमेश्वर की घृणा मिटेगी और न ही उससे होने वाले हमारे नुक्सान की कीमत घटेगी। - सी. पी. हीया


पाप को नज़रंदाज़ करना एक भारी बेवकूफी है।

एक साल में बाइबल:
  • उत्पत्ति ३९,४०
  • मत्ति ११