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शुक्रवार, 4 जनवरी 2013

प्रेमी


   १२वीं शताब्दी में जन्मे एक विलक्षण और दया भाव से भरे व्यक्ति, असिसी के सन्त फ्रांसिस, की जीवनी को लेखक जी. के. चेस्टरटन ने उनके हृदय की एक झलक के साथ आरंभ किया। चेस्टरटन लिखते हैं: "जैसे सन्त फ्रांसिस ने मानवता से नहीं वरन मनुष्यों से प्रेम किया, वैसे ही उन्होंने मसीहियत से नहीं मसीह यीशु से प्रेम किया...पाठकों को उनकी जीवन की कहानी अविश्वसनीय प्रतीत हो सकती है, और वे उनके जीवन का अर्थ समझना भी आरंभ नहीं कर सकते जब तक वे यह ना समझ लें कि इस महान आध्यात्मिक सन्त के लिए उसका धर्म किसी सिद्धांत का पालन करना नहीं वरन एक प्रेम संबंध निभाना था।"

   जब एक आलोचक ने प्रभु यीशु से पूछा कि व्यवस्था की सबसे बड़ी आज्ञा क्या है तो: "उसने उस से कहा, तू परमेश्वर अपने प्रभु से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख। बड़ी और मुख्य आज्ञा तो यही है" (मत्ती २२:३७-३८)। प्रश्नकर्ता अपने प्रश्न के द्वारा प्रभु यीशु को परखना और फंसाना चाहता था, परन्तु प्रभु यीशु ने उसे परमेश्वर को प्रसन्न करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण बात समझाई - परमेश्वर से हमारा संबंध प्रेम का संबंध है और हमारे हृदय की बात है, किसी विधि-विधान को पूरा करने की नहीं।

   यदि हम परमेश्वर को अपनी आज्ञाएं मनवाने के लिए तत्पर एक कठोर व्यक्तित्व के रूप में देखते हैं और उसकी आज्ञाकारिता में रहना हमें एक बोझ या मजबूरी लगती है, तो हमने उसके प्रेम को समझा ही नहीं है और उससे हमारा संबंध उथला है, महज़ औपचारिकता है जिसे जैसे तैसे निभाते रहना हम अपना कर्तव्य मात्र समझते हैं और प्रयास करते रहते हैं। ऐसे में हमारी गिनती भी उन लोगों में है जिनके लिए प्रभु ने कहा, "पर मुझे तेरे विरुद्ध यह कहना है कि तू ने अपना पहिला सा प्रेम छोड़ दिया है" (प्रकाशितवाक्य २:४)।

   परमेश्वर से हमारा संबंध प्रभु यीशु मसीह में होकर एक प्रगाढ़ प्रेम का संबंध है और प्रेम का भरपूर आनन्द पाने के लिए हमें उससे अपने सारे हृदय, प्राण और बुद्धि से प्रेम करना होगा, क्योंकि एक प्रेमी ही प्रेम के मूल्य और आनन्द को जान सकता है। - डेविड मैक्कैसलैंड


प्रभु यीशु को जीवन में प्रथम स्थान दीजिए और आप अन्त तक बने रहने वाला आनन्द पाएंगे।

उसने उस से कहा, तू परमेश्वर अपने प्रभु से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख। - मत्ती २२:३७

बाइबल पाठ: मत्ती २२:३४-४०
Matt 22:34  जब फरीसियों ने सुना, कि उसने सदूकियों का मुंह बन्‍द कर दिया; तो वे इकट्ठे हुए।
Matt 22:35  और उन में से एक व्यवस्थापक ने परखने के लिये, उस से पूछा।
Matt 22:36  हे गुरू; व्यवस्था में कौन सी आज्ञा बड़ी है?
Matt 22:37  उसने उस से कहा, तू परमेश्वर अपने प्रभु से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख।
Matt 22:38  बड़ी और मुख्य आज्ञा तो यही है।
Matt 22:39  और उसी के समान यह दूसरी भी है, कि तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख।
Matt 22:40  ये ही दो आज्ञाएं सारी व्यवस्था और भविष्यद्वक्ताओं का आधार है।

एक साल में बाइबल: 
  • उत्पत्ति १०-१२ 
  • मत्ती ४