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गुरुवार, 9 अप्रैल 2015

महत्वकांक्षा


   क्या महत्वकांक्षी होना गलत है? क्या सर्वोत्त्म बनने की चाहत रखना और उसके लिए सतत प्रयासरत रहना सही नहीं है? सही या गलत होने का उत्तर निर्भर करता है कि महत्वकांक्षी होने और प्रयास करने के पीछे हमारा लक्ष्य और उद्देश्य क्या है - परमेश्वर की या स्वयं अपनी महिमा करना और करवाना।

   परमेश्वर के वचन बाइबल में थिस्सुलुनीके की मसीही विश्वासी मण्डली को लिखी अपनी पहली पत्री में प्रेरित पौलुस ने उन्हें लिखा कि वे परमेश्वर को भावते हुए जीवन व्यतीत करने वाले बनें (1 थिस्सलुनीकियों 4:1)। कुछ मसीही विश्वासियों के लिए ऐसा करने का निर्णय मसीही विश्वास में आते ही तात्कालिक होता है, तो कुछ अन्य के लिए यह धीरे धीरे समय के साथ आता है तो कुछ और इसे मसीही विश्वास में आने के बाद भी संसार के प्रति अपने लगाव के कारण संसार से ठोकरें खाने और अपने विश्वास में कमज़ोर गिरते-पड़ते कदम रखकर चलने के द्वारा ही सीखते हैं। यह निर्णय जैसे भी आए, लेकिन प्रत्येक मसीही विश्वासी का यह कर्तव्य है कि वह परमेश्वर द्वारा उसके लिए निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने का प्रयास करे ना कि स्वयं अपने द्वारा निर्धारित लक्ष्यों का (इफिसीयों 2:10)।

   इसलिए अपने कार्य के संबंध में हम मसीही विश्वासियों को प्रश्न करना चाहिए, "क्या मेरे द्वारा यह कार्य लेने से दूसरों और परमेश्वर की सेवा और भली भांति होने पाएगी?" जो भी महत्वकांक्षा परमेश्वर की ओर केंद्रित होगी वह अपने से बाहर और दूसरों की भलाई के प्रति होगी, तथा सदा यह देखेगी कि परमेश्वर ने जो गुण और वरदान हमें प्रदान किए हैं क्या हम उनका प्रयोग उसकी इच्छानुसार कर रहे हैं अथवा नहीं। पौलुस ने कहा कि हम "...मन की सीधाई और परमेश्वर के भय से" (कुलुस्सियों 3:22) प्रत्येक कार्य को करें। हम चाहे जो भी कार्य करें, उसे मनुष्यों को दिखाने या प्रसन्न करने के लिए नहीं वरन परमेश्वर को प्रसन्न करने के लिए करें (पद 23-24)।

   हम परमेश्वर में सबसे अधिक आनन्दित और परमेश्वर को सबसे अधिक महिमान्वित तब ही करने पाते हैं जब हम पूरे उत्साह और उत्कर्षता के साथ उसकी इच्छा को पूरी करते हैं ना कि अपनी; उसकी और उसके लोगों की सेवकाई के लिए कार्य करते हैं ना कि अपनी। हमारी महत्वकांक्षाओं और प्रयत्नों की उत्तमता के प्रयासों का सर्वोत्तम और सर्वाधिक योग्य परमेश्वर ही है। - रैन्डी किलगोर


महान बनने के प्रयासों में हम छोटे ही बनते जाते हैं। - ई. स्टैनली जोन्स

निदान, हे भाइयों, हम तुम से बिनती करते हैं, और तुम्हें प्रभु यीशु में समझाते हैं, कि जैसे तुम ने हम से योग्य चाल चलना, और परमेश्वर को प्रसन्न करना सीखा है, और जैसा तुम चलते भी हो, वैसे ही और भी बढ़ते जाओ। - 1 थिस्सलुनीकियों 4:1 

बाइबल पाठ: कुलुस्सियों 3:22-25
Colossians 3:22 हे सेवकों, जो शरीर के अनुसार तुम्हारे स्‍वामी हैं, सब बातों में उन की आज्ञा का पालन करो, मनुष्यों को प्रसन्न करने वालों की नाईं दिखाने के लिये नहीं, परन्तु मन की सीधाई और परमेश्वर के भय से। 
Colossians 3:23 और जो कुछ तुम करते हो, तन मन से करो, यह समझ कर कि मनुष्यों के लिये नहीं परन्तु प्रभु के लिये करते हो। 
Colossians 3:24 क्योंकि तुम जानते हो कि तुम्हें इस के बदले प्रभु से मीरास मिलेगी: तुम प्रभु मसीह की सेवा करते हो। 
Colossians 3:25 क्योंकि जो बुरा करता है, वह अपनी बुराई का फल पाएगा; वहां किसी का पक्षपात नहीं।

एक साल में बाइबल: 
  • 1 शमूएल 13-14
  • लूका 10:1-24