मसीही सेवकाई में पवित्र आत्मा का प्रमाण
- पाप के लिए कायल करना (यूहन्ना 16:9).
पिछले लेख में हमने देखा था कि मसीही की
सेवकाई में, परमेश्वर पवित्र आत्मा अपने कार्य और सामर्थ्य को
प्रभु यीशु के शिष्यों, अर्थात
मसीही विश्वासियों में होकर करता है, और उनमें होकर संसार के
लोगों के समक्ष उदाहरण तथा शिक्षाओं को रखता है। न केवल परमेश्वर पवित्र आत्मा
द्वारा इस प्रकार से अपना कार्य करना मसीही विश्वासी यानि कि प्रभु यीशु के शिष्य
बनने वालों के जीवनों, मनोदशा, और
विचारधारा में आए परिवर्तन का प्रत्यक्ष एवं व्यावहारिक प्रमाण होता है, वरन साथ ही यह औरों को भी प्रोत्साहित करता है कि जैसा एक मनुष्य के जीवन
में हुआ है, वैसे ही मेरे भी तथा औरों के जीवनों में भी इसी
प्रकार का परिवर्तन और परमेश्वर के लिए उपयोगिता संभव है। यूहन्ना 16:8 में पवित्र आत्मा ने तीन बातें लिखवाई हैं, जिनके
विषय वह प्रभु यीशु के शिष्यों में होकर संसार को दोषी ठहराता है। ये तीन बातें
हैं - पाप, धार्मिकता, और न्याय। और
फिर पद 9, 10, और 11 में इन तीनों के
विषय टिप्पणी दी है।
यदि हम थोड़ा सा विचार करें, तो मानव जाति और संसार
की सभी समस्याओं की जड़, संसार के लोगों, विशेषकर पदाधिकारियों द्वारा, इन्हीं तीन बातों का
अनुचित एवं अनुपयुक्त निर्वाह अथवा अवहेलना करना है। सारे संसार के विभिन्न लोगों
और धर्मों के निर्वाह, रीति-रिवाजों की पूर्ति, अनुष्ठानों के किए जाने, आदि के बावजूद, लोगों में से इन तीनों समस्याओं को मिटा पाना संभव नहीं होने पाया है, वरन इनके विषय स्थिति सुधारने की बजाए और बिगड़ती ही जा
रही है। यही अपने आप में एक जग-विदित प्रमाण है कि धर्म-कर्म-रस्म का निर्वाह इस
समस्या का समाधान नहीं है। इस बढ़ती हुई समस्या का कारण, इस पद में प्रभु के कथन में निहित है - क्योंकि संसार के लोग अपने आप को इन तीनों के
विषय दोषी नहीं समझते अथवा स्वीकारते हैं। और परमेश्वर पवित्र आत्मा, प्रभु यीशु मसीह के
शिष्यों के परिवर्तित जीवन और व्यवहार में होकर संसार के लोगों को इन बातों के विषय दोषी ठहराता
है - प्रभु
के वास्तविक और सच्चे शिष्यों के जीवनों से तुलना के द्वारा संसार के लोगों को उनकी
वास्तविक दशा दिखाता है। आज हम यूहन्ना 16:9 से इन तीनों में से पहली बात, पाप
के विषय दोषी ठहराए जाने के बारे में थोड़ा सा देखेंगे।
यूहन्ना 16:9 पाप के विषय में इसलिये कि वे
मुझ पर विश्वास नहीं करते। प्रभु यीशु ने कहा कि पवित्र
आत्मा सबसे पहले संसार के लोगों को उनके पाप के विषय दोषी ठहराएगा - क्योंकि संसार
के लोग प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास नहीं करते हैं। परमेश्वर की दृष्टि में पाप
क्या है, और बाइबल में पाप और उसके निवारण तथा समाधान के
विषय दी गई शिक्षाओं पर एक विस्तृत चर्चा पहले प्रस्तुत की जा चुकी है; इस विस्तृत चर्चा की शृंखला का आरंभ इस लेख के साथ हुआ था : http://rozkiroti.blogspot.com/2021/08/Bible-Word-Sin-1-Fellowship-Heart-Problem-Root.html
; और जिन पाठकों ने इसे
नहीं देखा है, वे इस लेख के लिंक से उसे देख सकते हैं,
अध्ययन कर सकते हैं। संक्षेप में, परमेश्वर के
वचन बाइबल के अनुसार, पाप, मन-ध्यान-विचार-व्यवहार में किया
गया परमेश्वर की आज्ञाओं और निर्देशों का उल्लंघन अथवा अवहेलना है (1 यूहन्ना 3:4)। हमारे आदि माता-पिता, आदम और हव्वा के द्वारा किए गए प्रथम पाप के साथ ही पाप ने सृष्टि में
प्रवेश किया, और आदम की संतानों में फैल गया (रोमियों 5:12-14)। मनुष्यों में आनुवंशिक रीति से विद्यमान पाप करने की इस प्रवृत्ति का
निवारण और समाधान, उस व्यक्ति द्वारा किए गए अपने पापों के अंगीकार तथा उन से पश्चाताप, प्रभु यीशु मसीह द्वारा
मिली पापों की क्षमा और उद्धार, तथा उसे स्वेच्छा से अपना
जीवन समर्पण करने वाले व्यक्ति में प्रभु के द्वारा किया गया मन-ध्यान-विचार और
व्यवहार में आधारभूत परिवर्तन, के द्वारा होता है।
जब इस प्रकार पापों से पश्चाताप और प्रभु
यीशु को किए गए जीवन समर्पण के द्वारा प्राप्त हुए परिवर्तित एवं आशीषित जीवन की
गवाही उद्धार पाने वाला व्यक्ति संसार के सामने रखता है, और अपने प्रतिदिन के
व्यावहारिक जीवन में उस परिवर्तन को जी कर संसार के समक्ष प्रत्यक्ष दिखाता है,
तो स्वतः ही वह संसार के लोगों के सामने, उनके
तथा उस उद्धार पाए हुए व्यक्ति के जीवन और व्यवहार में एक तुलना ले आता है,
संसार के लोगों को उनके जीवन और व्यवहार के लिए स्वतः ही दोषी ठहरा
देता है। जिन्हें अपने पापों के दोष का बोध होता है, फिर वे
अपनी समस्त ‘धार्मिकता’ के प्रयासों के
बावजूद अपने में विद्यमान पापों की समस्या का निवारण और समाधान ढूँढते हैं,
और वह समाधान प्रभु यीशु मसीह है: “तब
सुनने वालों के हृदय छिद गए, और वे पतरस और शेष प्रेरितों से
पूछने लगे, कि हे भाइयो, हम क्या करें?
पतरस ने उन से कहा, मन फिराओ, और तुम में से हर एक अपने अपने पापों की क्षमा के लिये यीशु मसीह के नाम
से बपतिस्मा ले; तो तुम पवित्र आत्मा का दान पाओगे”
(प्रेरितों के काम 2:37-38)। इसीलिए शैतान और
उसके दूत, लोगों तक सुसमाचार पहुँचने नहीं देना चाहते हैं,
क्योंकि उस सुसमाचार में जीवन बदलने की सामर्थ्य है; उन्होंने लोगों के मनों को अंधा कर रखा है कि सुसमाचार की जीवन दायक
ज्योति उन पर न चमकने पाए “और उन अविश्वासियों के लिये,
जिन की बुद्धि को इस संसार के ईश्वर ने अन्धी कर दी है, ताकि मसीह जो परमेश्वर का प्रतिरूप है, उसके तेजोमय
सुसमाचार का प्रकाश उन पर न चमके” (2 कुरिन्थियों 4:4)। प्रभु यीशु मसीह ने धर्म के अगुवों और पवित्र शास्त्र के विद्वानों से
कहा “तुम पवित्र शास्त्र में ढूंढ़ते हो, क्योंकि समझते हो कि उस में अनन्त जीवन तुम्हें मिलता है, और यह वही है, जो मेरी गवाही देता है। फिर भी तुम
जीवन पाने के लिये मेरे पास आना नहीं चाहते” (यूहन्ना 5:39-40)।
यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, अर्थात किसी
धर्म-कर्म-रस्म के निर्वाह के अंतर्गत नहीं, वरन आप ने अपने
पापों के लिए पश्चाताप करके, उनके लिए प्रभु यीशु से क्षमा
याचना करके, और स्वेच्छा तथा सच्चे मन से अपना जीवन प्रभु यीशु को
समर्पित किया है, तो क्या आपके जीवन में प्रभु की ओर,
उसके वचन और आज्ञाकारिता की ओर परिवर्तन आया है? क्या परमेश्वर का वचन और उसकी आज्ञाकारिता आपके जीवन में प्राथमिक स्थान
पाते हैं (यूहन्ना 14:15, 21, 23)? क्या पवित्र आत्मा के
फलों (गलातीयों 5:22-23) से आपका जीवन सुसज्जित है? आपका परिवर्तित जीवन, परमेश्वर के वचन बाइबल के
नियमित एवं गंभीर अध्ययन के प्रति आपकी लालसा, जीवन में
पवित्र आत्मा के फलों की उपस्थिति, और लगन तथा गंभीरता से
प्रेरितों 2:42 का पालन करते रहने की लालसा ही प्रमाणित
करेगी कि आप में परमेश्वर पवित्र आत्मा की उपस्थिति है। और यदि आपका जीवन पवित्र
आत्मा की अगुवाई और आज्ञाकारिता में जिया जाएगा (गलातीयों 5:18, 25), तो फिर आपके जीवन के द्वारा संसार के लोग, यूहन्ना 16:9
के अनुसार, प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास न करने
के कारण दोषी भी ठहराए जाएंगे, कायल
किए जाएंगे, उनमें उनके पापों के प्रति संवेदनशीलता तथा बोध
उत्पन्न होगा, और फिर वे भी आपके परिवर्तित जीवन से आकर्षित
होकर प्रभु की ओर आकर्षित होंगे, आप से उद्धार का मार्ग
जानने के लिए लालायित होंगे। ध्यान रखिए, परमेश्वर पवित्र
आत्मा मसीही विश्वासियों में, आप में, होकर
ही कार्य करता है।
यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक
स्वीकार नहीं किया है, तो
थोड़ा थम कर विचार कीजिए, क्या मसीही विश्वास के अतिरिक्त
आपको कहीं और यह अद्भुत और विलक्षण आशीषों से भरा सौभाग्य प्राप्त होगा, कि स्वयं परमेश्वर आप में आ कर सर्वदा के लिए निवास करे; आपको अपना वचन सिखाए; और आपको शैतान की युक्तियों और
हमलों से सुरक्षित रखने के सभी प्रयोजन करके दे? और फिर,
आप में होकर अपने आप को औरों पर प्रकट करे, तथा
पाप में भटके लोगों को उद्धार और अनन्त जीवन प्रदान करने के अपने अद्भुत कार्य करे,
जिससे अंततः आपको ही अपनी ईश्वरीय आशीषों से भर सके? इसलिए अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी
प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है,
उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ
प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। स्वेच्छा और सच्चे मन से अपने पापों के लिए
पश्चाताप करके, उनके लिए प्रभु से क्षमा माँगकर, अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन
का यही एकमात्र मार्ग है। आप अपने पापों के अंगीकार और पश्चाताप करके, प्रभु यीशु से समर्पण की प्रार्थना कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं,
“प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा
और समाधान के लिए मेरे सभी पापों को अपने ऊपर लिया, उनके
कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और
आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें।
मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” प्रभु की
शिष्यता तथा मन परिवर्तन के लिए सच्चे पश्चाताप और समर्पित मन से की गई आपकी एक
प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक
के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
एक साल में बाइबल पढ़ें:
- यिर्मयाह
51-52
- इब्रानियों 9