परमेश्वर के वचन में, 1 यूहन्ना 4:2-3 में
लिखा है, “परमेश्वर का आत्मा तुम
इसी रीति से पहचान सकते हो, कि जो कोई आत्मा मान लेती है, कि यीशु मसीह शरीर में हो
कर आया है वह परमेश्वर की ओर से है। और जो कोई आत्मा यीशु को नहीं मानती, वह परमेश्वर की ओर से नहीं; और वही तो मसीह के विरोधी
की आत्मा है; जिस की चर्चा तुम सुन चुके हो, कि वह आने वाला है: और अब
भी जगत में है।” यहाँ पर मूल यूनानी
भाषा के जिस शब्द का अनुवाद “मान लेना” किया गया है, वह सामान्य मसीही संदर्भ में प्रयोग
होने वाले “अंगीकार” शब्द से भिन्न है। मसीही सन्दर्भ में “अंगीकार” शब्द का अर्थ
होता है “पश्चातापी मन के साथ पापों को मान लेना, बुराई के लिए पछताना।” किन्तु
यहाँ पर यूनानी शब्द ‘होमोलोजियो’ का
अनुवाद “मान लेना” किया गया है; और इस शब्द का अर्थ होता है ‘स्वीकृति देना, या सहमत होना, या मान्यता देना।’ इसीलिए कुछ अंग्रेज़ी
अनुवादों जैसे कि NIV ने यहाँ पर ‘acknowledge – मान्यता देना’ प्रयोग किया है।
दुष्टात्माओं के लिए पापों की कोई क्षमा और
छुटकारा नहीं है, और
न ही उन में पापों के लिए दुखी होने या पश्चाताप करने की कोई भावना है। इसलिए, उनके द्वारा किसी भी
बात के लिए प्रभु यीशु से क्षमा और छुटकारे की कोई आशा रखते हुए “अंगीकार” या
पश्चाताप करने का भी कोई अर्थ नहीं है। वरन, वे तो परमेश्वर के, यीशु मसीह के, और
पापियों के उद्धार के विरोधी हैं, और
इसीलिए उन्हें ‘मसीह के विरोधी की आत्मा’ कहा
गया है।
दुष्टात्माओं का कार्य और उद्देश्य लोगों
को प्रभु यीशु मसीह से दूर ले जाना है,
उन्हें सुसमाचार को जानने और मानने से रोकना है, प्रभु यीशु मसीह में ही पापों की क्षमा और उद्धार है की
जानकारी और समझ से वंचित रखना है (2 कुरिन्थियों 4:4)। अपने इसी उद्देश्य को पूरा
करने के लिए वे जो कुछ भी कर सकते हैं,
उसे करते हैं। उनके इस प्रयास में झूठ बोलना और फैलाना, परमेश्वर और उसके वचन के बारे में गलत जानकारियाँ, धोखे
की बातें, गलत व्याख्याएँ फैलाना, और बाइबल का दुरुपयोग
करना सम्मिलित हैं, जिससे उनकी किसी भी युक्ति के द्वारा लोग प्रभु यीशु मसीह पर
विश्वास न करें और उद्धार पाने से वंचित रह जाएँ।
उनकी इन दुष्ट युक्तियों में से एक है, विभिन्न प्रकार के तर्कों
के साथ इस धोखे का प्रचार और प्रसार करना कि प्रभु यीशु मानव देह में होकर, मनुष्य
बनकर नहीं आया था। यदि प्रभु यीशु मानवीय देह में आया ही नहीं है तो फिर वह
मनुष्यों द्वारा अपनी देह में किए गए पापों को कैसे अपने ऊपर ले सकता है और उनके
लिए अपनी देह को मरने के लिए देकर अपने आप को बलिदान कैसे कर सकता है? इस तर्क और मिथ्या
स्थिति को उत्पन्न करने के द्वारा वे प्रभु यीशु के उद्धार के कार्य को नकारने का
प्रयास करते हैं। यदि लोगों को यह दिखाया जाए कि सुसमाचार मिथ्या है, तो फिर वे उसकी ओर
आकर्षित भी नहीं होंगे, उस
पर विश्वास भी नहीं करना चाहेंगे, और
प्रभु यीशु के पास पापों की क्षमा और उद्धार के लिए आना भी नहीं चाहेंगे। और यही
उनका उद्देश्य है,
जिसकी पूर्ति हो जाएगी।
इसीलिए दुष्टात्माएं इस बात से सहमत नहीं
होती हैं, इसे नहीं मानती हैं कि यीशु मसीह मानवीय देह में मनुष्य रूप में आया था।
यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु, मैं अपने पापों के लिए पश्चातापी हूँ, उनके लिए आप से क्षमा माँगता हूँ। मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मुझे और मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
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In God’s Word, it says in 1 John 4:2-3 “By this you know the Spirit of God: Every spirit that confesses that Jesus Christ has come in the flesh is of God, and every spirit that does not confess that Jesus Christ has come in the flesh is not of God. And this is the spirit of the Antichrist, which you have heard was coming, and is now already in the world.” The word “confess” that has been used here is not in the general Christian sense like for “confession of sins”, i.e., acceptance with remorse for doing the wrong and having a penitent attitude for it. Rather, the word that has here been translated into English as “confess”, in the original Greek language, is “homolgeo”, which means to give assent to, or to agree with, or to acknowledge something. Therefore, some translations, e.g., the NIV, use “acknowledge” instead of confess in these verses.
There is no forgiveness of
sins and redemption for the demons, and there is no sense of remorse and
penitence for sins in them. So, it makes no sense for them to “confess”
anything that can be redemptive or forgiving for them, from the Lord Jesus.
Rather, they are against God, against Christ Jesus, and against salvation of
the sinners; hence they are called “the spirit of Antichrist.”
The aim and work of demons
is to draw people away from the Lord Jesus, to prevent the people from coming
to know and learn the gospel, to have and accept the saving knowledge of Christ
Jesus (2 Corinthians 4:4). To accomplish this, they do whatever they can, including
spreading lies, misinformation, deceptions, misinterpretations and misuse of
God’s Word, etc., so that somehow people would not believe in the Lord Jesus
and be saved.
One of their lies is to use various kinds of arguments to preach and spread
the deception that the Lord Jesus did not come in the flesh as a human being,
therefore, He could not have taken the sins of mankind upon Himself and
suffered for them, paid for them in His flesh. Thereby they attempt to negate
the gospel. If the gospel is shown as false to people, then they will also be
drawn away from it into thinking that there is no point believing it or
accepting it, and will not come to the Lord Jesus for salvation. And this will
accomplish their purpose.
That is why demons do
not confess, i.e., assent or acknowledge, that Jesus Christ came in the flesh
as a man.
If you have not yet accepted the discipleship of the Lord, make your
decision in favor of the Lord Jesus now to ensure your eternal life and
heavenly blessings. Where there is obedience to the Lord, where there is
respect and obedience to His Word, there is also the blessing and protection of
the Lord. Repenting of your sins, and asking the Lord Jesus for forgiveness of
your sins, voluntarily and sincerely, surrendering yourself to Him - is the
only way to salvation and heavenly life. You only have to say a short but
sincere prayer to the Lord Jesus Christ willingly and with a penitent heart,
and at the same time completely commit and submit your life to Him. You can
also make this prayer and submission in words something like, “Lord Jesus, I am
sorry for my sins and repent of them. I thank you for taking my sins upon
yourself, paying for them through your life.
Because of them you died on the cross in my place, were buried, and you
rose again from the grave on the third day for my salvation, and today you are
the living Lord God and have freely provided to me the forgiveness, and
redemption from my sins, through faith in you. Please forgive my sins, take me
under your care, and make me your disciple. I submit my life into your
hands." Your one prayer from a sincere and committed heart will make your
present and future life, in this world and in the hereafter, heavenly and
blessed for eternity.