पाप का समाधान - उद्धार - 24
पिछले लेख में हमने देखा था
कि मानवजाति के पाप के समाधान और निवारण के लिए एक सिद्ध मनुष्य में जो गुण
उपलब्ध होने चाहिएं, वे सभी प्रभु यीशु मसीह में विद्यमान थे;
और वे मनुष्य के पाप के प्रभावों से छुटकारा देने के लिए सर्वथा
उपयुक्त व्यक्ति थे। आज हम देखेंगे कि प्रभु यीशु ने सारे संसार के सभी
मनुष्यों के लिए यह उद्धार का कार्य कैसे संपन्न किया? प्रभु यीशु पूर्णतः
मनुष्य होने के साथ, पूर्णतः परमेश्वर भी हैं। अपने पृथ्वी
के समय पर वे ये दोनों बातें अपने जीवन, कार्यों, शिक्षाओं और आश्चर्यकर्मों के द्वारा - जिनमें मृतकों को फिर से जिला
उठाना भी सम्मिलित है, दिखा चुके थे, प्रमाणित
कर चुके थे; और उनके विरोधी भी स्वीकार करते थे कि वे अलौकिक
हैं। यह एक सामान्य समझ की बात है कि परमेश्वर की पवित्रता किसी भी रीति से
मलिन नहीं हो सकते है, उसमें अपवित्रता नहीं आ सकती है;
और न ही उसकी सिद्धता किसी भी रीति से कम हो सकती है। यदि परमेश्वर
की पवित्रता और सिद्धता में किसी भी प्रकार से कोई भी घटी आ सकती, तो फिर न तो वह पवित्रता और सिद्धता, और न ही उस
पवित्रता और सिद्धता को रखने वाला परमेश्वर पूर्णतः पवित्र और सिद्ध एवं
सर्वशक्तिमान माना जा सकता है। फिर तो वह जो परमेश्वर की सिद्धता और पवित्रता को
घटा सकता है परमेश्वर से अधिक शक्तिशाली होगा, और परमेश्वर फिर
परमेश्वर नहीं रह जाएगा। तात्पर्य यह है कि पवित्र और सिद्ध परमेश्वर की पवित्रता और
सिद्धता की तुलना में कितना भी जघन्य, कितना भी बड़ा, संख्या में कितने भी
अधिक पाप क्यों न हों, वे उस पवित्रता और सिद्धता को कम नहीं
कर सकते हैं। प्रभु यीशु ने यह बात अपने जीवन भर निष्पाप, निष्कलंक,
निर्दोष रहकर दिखा दी, कि पापियों की संगति के
कारण उनकी पवित्रता और सिद्धता पर कोई आंच नहीं आई, वह कभी
किसी भी रीति से कम नहीं हुई; यहाँ तक कि शैतान द्वारा चालीस
दिन तक परखे जाने पर भी नहीं!
अपनी पवित्रता
और सिद्धता को भली-भांति दिखाने और प्रमाणित करने के बाद, अपने बलिदान देने के समय पर प्रभु यीशु मसीह ने सारे संसार के सभी लोगों -
जो जीवन जी चुके थे, जो तब वर्तमान थे, और जो आने वाले थे, उन सभी के सारे पापों को अपने
ऊपर ले लिया। यहाँ यह ध्यान रखने की आवश्यकता है कि समय
का बंधन और सीमाएं, भूत-वर्तमान-भविष्य काल हम मनुष्यों और
सृजे गए जगत के लिए हैं; परमेश्वर के लिए नहीं, इस संदर्भ में कुछ बाइबल के कुछ पद देखिए: “क्योंकि हजार वर्ष तेरी दृष्टि में ऐसे हैं, जैसा कल का दिन जो बीत गया, वा रात का एक पहर” (भजन 90:4); “यीशु मसीह कल और आज और युगानुयुग एक सा है” (इब्रानियों 13:8); “हे प्रियों, यह एक बात तुम से छिपी न रहे, कि प्रभु के यहां एक दिन हजार वर्ष के बराबर है, और हजार वर्ष एक दिन के बराबर हैं” (2 पतरस 3:8)। परमेश्वर समय की सीमा से बंधा हुआ नहीं है, इसलिए
उसके लिए सृष्टि के समस्त इतिहास के सभी मनुष्यों के पापों को अपने ऊपर ले लेना,
समय द्वारा प्रभावित अथवा बाधित होने
वाले बात नहीं है। प्रभु यीशु द्वारा सभी मनुष्यों को
पापों को अपने ऊपर लेने को ऐसे समझिए - फर्श पर फैले हुए मैले पानी को जिस प्रकार
से स्पंज या पोंछे का कपड़ा, अपनी क्षमता के अनुसार सोख लेता है, फर्श पर से अपने अंदर ले लेता है,
और फिर वह मैला पानी फर्श पर नहीं रह जाता है वरन उस स्पंज या कपड़े
में आ जाता है, और तब मैला फर्श नहीं वरन वह स्पंज या कपड़ा
हो जाता है। उस स्पंज या कपड़े ने वह सारा मैला पानी कोमलता से अपने अंदर ले लिया
और फर्श को स्वच्छ और सूखा बना दिया; किन्तु उस कपड़े या सपंज
को अब उसमें विद्यमान उस मैले पानी के कारण निचोड़ा और फटका जाता है - फर्श को
कोमलता से स्वच्छ करने वाले को अब उस गंदगी के लिए यातना सहनी पड़ती है। उसी प्रकार
से प्रभु यीशु मसीह ने क्रूस पर समस्त मानवजाति के संपूर्ण पापों को अपने ऊपर ले
लिया; उसके लिए लिखा है, “जो पाप से
अज्ञात था, उसी को उसने हमारे लिये पाप ठहराया, कि हम उस में हो कर परमेश्वर की धामिर्कता बन जाएं” (2 कुरिन्थियों 5:21) - वह जिसमें पाप की परछाईं भी
नहीं थी, वही हमारे लिए स्वयं पाप बन गया, उसने समस्त मानवजाति के सभी पापों को अपने अंदर सोख लिया और मनुष्यों को तो कोमलता से पाप से स्वच्छ कर दिया किन्तु स्वयं पाप से
भर गया, मलिन हो गया, और उन पापों की यातना,
पाप का दंड और ताड़ना स्वयं सह ली। सभी मनुष्यों के सभी पापों का बोझ,
जैसा कि उसके लिए भविष्यवाणी की गई थी “हम
तो सब के सब भेड़ों के समान भटक गए थे; हम में से हर एक ने
अपना अपना मार्ग लिया; और यहोवा ने हम सभों के अधर्म का
बोझ उसी पर लाद दिया” (यशायाह 53:6); “वह अपने प्राणों का दु:ख उठा कर उसे देखेगा और तृप्त होगा; अपने ज्ञान के द्वारा मेरा धर्मी दास बहुतेरों को धर्मी ठहराएगा;
और उनके अधर्म के कामों का बोझ आप उठा लेगा” (यशायाह 53:11); उसी पर लाद दिया गया, और उसने उस बोझ को वहन कर लिया।
परमेश्वर ने अदन की वाटिका में ही चेतावनी दी थी कि, पाप, अर्थात वर्जित फल खा लेने की अनाज्ञाकारिता का परिणाम मृत्यु होगा,
“पर भले या बुरे के ज्ञान का जो वृक्ष है, उसका
फल तू कभी न खाना: क्योंकि जिस दिन तू उसका फल खाए उसी दिन अवश्य मर जाएगा”
(उत्पत्ति 2:17)। इसीलिए नए नियम में लिखा है,
“क्योंकि पाप की मजदूरी तो मृत्यु है, परन्तु
परमेश्वर का वरदान हमारे प्रभु मसीह यीशु में अनन्त जीवन है” (रोमियों 6:23)। हम देख चुके हैं कि यह मृत्यु दो
स्वरूप में है - शारीरिक, अर्थात शरीर का मर जाना; और आत्मिक, अर्थात परमेश्वर से दूरी हो जाना। क्रूस पर प्रभु यीशु ने
मृत्यु के इन दोनों ही स्वरूपों को सह लिया; सब कुछ
पूरा हो जाने के बाद उन्होंने स्वेच्छा से अपने प्राण त्याग दिए, उनकी शारीरिक मृत्यु हो गई “जब यीशु ने वह सिरका
लिया, तो कहा पूरा हुआ और सिर झुका कर प्राण त्याग दिए”
(यूहन्ना 19:30)। जब वे हम सभी के पापों को
अपने ऊपर लिए हुए हमारे लिए “पाप बन गए”, तो परमेश्वर पिता ने, जो पाप के साथ समझौता और संगति
नहीं कर सकता है, उसने भी परमेश्वर पुत्र, अर्थात प्रभु यीशु से अपना मुँह मोड़ लिया, समस्त
मानवजाति के लिए पाप बन जाने के कारण परमेश्वर पुत्र को परमेश्वर पिता से पृथक
होने की अवर्णनीय और असहनीय वेदना में से होकर निकलना पड़ा “तीसरे पहर यीशु ने बड़े शब्द से पुकार कर कहा, इलोई,
इलोई, लमा शबक्तनी जिस का अर्थ यह है; हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर, तू ने मुझे क्यों छोड़ दिया?” (मरकुस 15:34)
- प्रभु यीशु ने हमारे लिए वह आत्मिक मृत्यु भी स्वीकार कर ली,
और वहन कर ली। क्योंकि वह हम सब के लिए मर गया, इसलिए उसकी अपेक्षा है कि उस पर और उसके इस बलिदान पर विश्वास के कारण हम
उसे अपने जीवनों में प्राथमिक स्थान दें, उसके लिए जीएं “और वह इस निमित्त सब के लिये मरा, कि जो
जीवित हैं, वे आगे को अपने लिये न जीएं परन्तु उसके लिये जो
उन के लिये मरा और फिर जी उठा” (2 कुरिन्थियों 5:15)।
संपूर्ण
मानवजाति के पापों के समाधान और निवारण के लिए आवश्यक बलिदान और प्रायश्चित का
कार्य तो इस प्रकार प्रभु ने पूरा कर दिया। अब पाप के कारण आई मृत्यु को मिटा देना
और शारीरिक और आत्मिक मृत्यु से मनुष्यों को स्वतंत्र कर देना शेष था। प्रभु यीशु
में विश्वास लाने, उसे अपना उद्धारकर्ता स्वीकार कर लेने के द्वारा
हमारा मेल-मिलाप परमेश्वर पिता से हो जाता है “क्योंकि
बैरी होने की दशा में तो उसके पुत्र की मृत्यु के द्वारा हमारा मेल परमेश्वर के
साथ हुआ फिर मेल हो जाने पर उसके जीवन के कारण हम उद्धार क्यों न पाएंगे?”
(रोमियों 5:10 ); हम परमेश्वर की संतान बन
जाते हैं “परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण किया,
उसने उन्हें परमेश्वर के सन्तान होने का अधिकार दिया, अर्थात उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास रखते हैं। वे न तो लहू से, न शरीर की इच्छा से, न मनुष्य की इच्छा से, परन्तु परमेश्वर से उत्पन्न हुए हैं” (यूहन्ना 1:12-13);
प्रभु यीशु मसीह के साथ स्वर्गीय बातों के वारिस बन जाते हैं
“और यदि सन्तान हैं, तो वारिस भी, वरन परमेश्वर के वारिस और मसीह के संगी वारिस हैं, जब कि हम उसके साथ दुख उठाएं कि उसके साथ महिमा भी पाएं” (रोमियों 8:17 ); अर्थात हमारी आत्मिक मृत्यु की दशा,
परमेश्वर से दूरी का निवारण हो जाता है।
इसी प्रकार से
प्रभु यीशु हमें शारीरिक मृत्यु की दशा से भी निकालता है। जब प्रभु यीशु की देह पर
समस्त मानवजाति के पापों का दोष लाद दिया गया, तो उसे भी शारीरिक
मृत्यु से होकर निकलना पड़ा। किन्तु पुनरुत्थान के बाद जिस प्रकार प्रभु यीशु की
देह एक अलौकिक देह हो गई थी; उसका प्रत्यक्ष स्वरूप, पहले के समान ही रहा। वह उसी चेहरे, कद, और काठी में था, उसकी आवाज़ वैसी ही थी जैसे पहले थी,
शिष्यों द्वारा वैसे ही पहचाना गया जैसे वह मरने से पहले था,
उसके हाथों और पैरों में तथा पंजर में क्रूस पर चढ़ाए जाने के घाव के
निशान भी विद्यमान थे (यूहन्ना 24:27), उसने उन से लेकर भोजन
भी खाया (लूका 24:41-43)। किन्तु साथ ही प्रभु की पुनरुत्थान
हुई देह में कुछ विलक्षण भी था, वह बंद दरवाजों के बावजूद
उनके पास कमरे के अंदर आ गया (यूहन्ना 24:26), और वह उसी देह
में उनके देखते-देखते स्वर्ग पर उठा लिया गया (लूका 24:50-51)। जिस देह में पाप का प्रभाव है, उसे एक बार मरना ही
होगा; हम पहले भी देख चुके हैं कि प्रत्येक मनुष्य पाप के
दोष और प्रवृत्ति के साथ जन्म लेता है। इसलिए प्रत्येक मानव देह को एक बार शारीरिक
मृत्यु से होकर निकलना पड़ता है, और प्रत्येक मसीही विश्वासी
के लिए भी यह अनिवार्य है। किन्तु मसीही विश्वासियों के लिए यह आश्वासन है कि
प्रभु यीशु के दूसरे आगमन पर उसके लोग सदेह, अपने पृथ्वी के समय के समान दिखने वाले स्वरूप में जिलाए जाएंगे, “क्योंकि
जब मनुष्य के द्वारा मृत्यु आई; तो मनुष्य ही के द्वारा मरे
हुओं का पुनरुत्थान भी आया। और जैसे आदम में सब मरते हैं, वैसे ही मसीह में सब जिलाए जाएंगे। परन्तु हर एक
अपनी अपनी बारी से; पहिला फल मसीह; फिर
मसीह के आने पर उसके लोग” (1 कुरिन्थियों 15:21-23)
उसी प्रकार हमारे देह भी मरनहार से अविनाशी, स्वर्गीय
हो जाएगी, और मृत्यु पूर्णतः पराजित हो जाएगी, मिट जाएगी “क्योंकि अवश्य है, कि यह नाशमान देह अविनाश को पहिन ले, और यह मरनहार
देह अमरता को पहिन ले। और जब यह नाशमान अविनाश को पहिन लेगा, और यह मरनहार अमरता को पहिन लेगा, तब वह वचन जो
लिखा है, पूरा हो जाएगा, कि जय ने
मृत्यु को निगल लिया” (1 कुरिन्थियों 15:53-54)।
इस
प्रकार प्रभु यीशु के हमारे स्थान पर कलवरी के क्रूस पर मारे जाने, गाड़े जाने,
और तीसरे दिन जी उठने के द्वारा हमारे लिए पापों की क्षमा, उद्धार, परमेश्वर के साथ मेल-मिलाप हो जाने, और मनुष्य के अदन की वाटिका की स्थिति में बहाल हो जाने का मार्ग बन कर
तैयार है, सभी के लिए सेंत-मेंत उपलब्ध है। अब आपके लिए यह प्रश्न है, विचार करने वाली बात है
कि जब प्रभु यीशु ने आपको पापों के प्रभाव से छुटकारा देने के लिए जो कुछ भी
आवश्यक था, वह सब कर के, मुफ़्त में
उपलब्ध करवा दिया है, और उसे आपसे आपका भौतिक एवं सांसारिक
कुछ भी नहीं चाहिए; उसे केवल आपका मन चाहिए, और वह भी इसलिए कि वह उसे शुद्ध और पवित्र बना सके, तो
फिर यीशु मसीह को अपना प्रभु और उद्धारकर्ता स्वीकार करने में आपको किस बात का
संकोच है? आप यह कदम क्यों नहीं उठाना चाहते हैं? स्वेच्छा से, सच्चे और पूर्णतः समर्पित मन से,
अपने पापों के प्रति सच्चे पश्चाताप के साथ एक छोटी प्रार्थना,
“हे प्रभु यीशु मैं मान लेता हूँ कि मैंने जाने-अनजाने में, मन-ध्यान-विचार और व्यवहार में आपकी अनाज्ञाकारिता की है, पाप किए हैं। मैं मान लेता हूँ कि आपने क्रूस पर दिए गए अपने बलिदान के
द्वारा मेरे पापों के दण्ड को अपने ऊपर लेकर पूर्णतः सह लिया, उन पापों की पूरी-पूरी कीमत सदा काल के लिए चुका दी है। कृपया मेरे पापों
को क्षमा करें, मेरे मन को अपनी ओर परिवर्तित करें, और मुझे अपना शिष्य बना लें, अपने साथ कर लें।”
आपका सच्चे मन से लिया गया मन परिवर्तन का यह निर्णय आपके इस जीवन
तथा परलोक के जीवन को स्वर्गीय जीवन बना देगा।
बाइबल पाठ: रोमियों 10 :14-18
रोमियों 10:14 फिर जिस पर
उन्होंने विश्वास नहीं किया, वे उसका नाम क्योंकर लें?
और जिस की नहीं सुनी उस पर क्योंकर विश्वास करें?
रोमियों 10:15 और प्रचारक बिना क्योंकर सुनें? और
यदि भेजे न जाएं, तो क्योंकर प्रचार करें? जैसा लिखा है, कि उन के पांव क्या ही सुहावने हैं,
जो अच्छी बातों का सुसमाचार सुनाते हैं।
रोमियों 10:16 परन्तु सब ने उस सुसमाचार पर कान न लगाया: यशायाह कहता
है, कि हे प्रभु, किस ने हमारे समाचार
की प्रतीति की है?
रोमियों 10:17 सो विश्वास सुनने से, और सुनना
मसीह के वचन से होता है।
रोमियों 10:18 परन्तु मैं कहता हूं, क्या उन्होंने नहीं सुना? सुना तो सही क्योंकि लिखा है कि उन के स्वर सारी पृथ्वी पर, और उन के वचन जगत की छोर तक पहुंच गए हैं।
एक साल में बाइबल:
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सभोपदेशक 10-12
· गलातियों 1