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शुक्रवार, 13 अगस्त 2021

परमेश्वर का वचन – बाइबल – और विज्ञान – 1

 

            एक आम धारणा है कि बाइबल और विज्ञान परस्पर सहमत नहीं हैं, और बाइबल की बातें विज्ञान के समक्ष ठहर नहीं पाती हैं, क्योंकि वे सभी काल्पनिक किस्से-कहानियाँ हैं; निराधार बातें हैं। यदि थोड़ा थम कर सोचा जाए, कि विज्ञान क्या  है, तो एक भिन्न ही चित्र हमारे सामने उभर कर आता है। विज्ञान हमारे संसार और सृष्टि की रचना और संचालन, सृष्टि के सभी कार्यों तथा कार्यविधियों का अध्ययन है। जैसे-जैसे नई बातें सामने आती जाती हैं, उन नई बातों के संदर्भ में पुरानी बातों और धारणाओं की समीक्षा, विश्लेषण, और पुनः अवलोकन भी होता रहता है। इस कारण विज्ञान सदा परिवर्तनशील रहता है। आज जो सत्य है, कल किसी अन्य बात की खोज या किसी अन्य तथ्य के सामने आने के कारण वही असत्य भी हो सकता है, बदला भी जा सकता है। विज्ञान के कितने ही सिद्धांत जो पहले तथ्य के रूप में बताए और सिखाए जाते थे, वे बदले जा चुके हैं।

            परन्तु  एक अन्य, सत्य किन्तु काम ही जानी तथा मानी जाने वाली बात यह भी है कि विज्ञान की बातों की आधार पर तर्क देने वाले सभी जन अब यथार्थ और सत्यवादी नहीं रह हैं। अब सामान्य धारणा जैसे भी हो सके परमेश्वर के अस्तित्व का इनकार करने और बाइबल को गलत प्रमाणित करने की है। इसलिए विज्ञान के बहुत से तथ्य, खोज, जानकारियाँ, जो प्रचलित धारणाओं के विरुद्ध हैं, उन्हें दबा दिया जाता है, उनकी चर्चा नहीं की जाती है, उन्हें प्रमुखता प्रदान नहीं की जाती है, और उनकी उपेक्षा की जाती है। उदाहरण के लिए “Evolution Hoaxes” अर्थात, क्रमिक विकसवाद में छल को लेकर इंटरनेट पर ढूंढ लीजिए, और आप विस्मित रह जाएँगे कि कितनी बातें छिपाई गई हैं कितने तथ्य दबाए गए हैं, और किस प्रकार से सही को दबा कर गलत को प्रमुख करने के द्वारा इस अस्वीकार्य धारणा को स्वीकार्य बनाने के प्रयास किए जाते रहे हैं, और अभी भी हो रहे हैं।

            कुछ दशक पहले अणु को पदार्थ का सबसे सूक्ष्म कण समझा जाता था; कुछ ही समय में अणु के स्थान पर परमाणु को सबसे सूक्ष्म कण कहा जाने लगा; फिर पता चला कि परमाणु तीन अति-सूक्ष्म कणों से मिलकर बना है; और अब परमाणु की रचना करने वाले सूक्ष्म कणों की संख्या और अधिक हो गई है। साथ ही यह भी समझा जा रहा है कि ये कण अपने आप में कोई ठोस पदार्थ नहीं हैं वरन ऊर्जा का एक स्वरूप हैं। अब यह दिमाग को चकरा देने वाली बात है कि हम और हमारे चारों के ओर के सभी पदार्थ, चाहे वे ठोस हों, या द्रव्य हों, अथवा गैस हों, किसी ठोस पदार्थ से नहीं वरन ऊर्जा के विशिष्ट रीति से एकत्रित होकर एक विशेष रीति से व्यवहार और कार्य करने के द्वारा अस्तित्व में आए हैं। कैसे, वह जो पदार्थ नहीं है, उसने पदार्थ का स्वरूप और गुण प्राप्त कर लिया और सृष्टि की हर वस्तु, बात, और रूप में आ गया? और वह भी स्वतः ही, क्योंकि विज्ञान तो परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं रखता है! क्योंकि यह बात विज्ञान और वैज्ञानिक कहते हैं, इसलिए संसार के लोग इसे स्वीकार करते हैं, मानते हैं, और इसमें कोई त्रुटि होने की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। किन्तु यही असंभव प्रतीत होने वाले बात यदि बाइबल में लिखी होती, तो इसका उपहास होता, आलोचना होती, और इसपर विश्वास करने में लोगों को बहुत समस्या होती। अब क्या विज्ञान भी व्यक्तिगत विश्वास की बात नहीं है?

            यह भी माना जाता था कि रौश्नी की गति एक ही रहती है, बदलती नहीं है; और यह भी  माना जाता था कि अंतरिक्ष वैक्यूम या शून्य है जिसमें रौश्नी निर्बाद्ध जाती है। किन्तु अब यह पता चल चुका है कि रौश्नी की गति हर स्थिति में एक ही नहीं रहती है, बदल सकती है; और अंतरिक्ष वैक्यूम या शून्य नहीं है, वरन अति-सूक्ष्म कण विद्यमान हैं जो रौश्नी की गति को प्रभावित कर सकते हैं। तो फिर अब उन धारणाओं और सिद्धांतों का क्या जो इस आधार पर बनाए गए थे कि रौश्नी की गति अपरिवर्तनीय है तथा अंतरिक्ष वैक्यूम या शून्य है, जिसके आधार पर सितारों और नक्षत्रों की पृथ्वी से दूरी और उनकी गति आदि का आँकलन किया गया है ?

            चिकित्सा विज्ञान में आए दिन परिवर्तन होते रहते हैं, और जो कभी इलाज के स्थापित तरीके माने जाते थे, उनमें कितने ही परिवर्तन आ चुके हैं, और उन पुराने इलाजों को अब कोई स्वीकार नहीं करता है। इसी प्रकार जीव-विज्ञान, भौतिक शास्त्र और रसायन शास्त्र आदि में भी बहुत सी बातों में परिवर्तन आए हैं। इसलिए यह मान लेना कि विज्ञान की बातें सदा ही दृढ़ और स्थिर तथा अपरिवर्तनीय रहती हैं, सदा सत्य ही होती हैं, सत्य नहीं है। विज्ञान की बातें भी बदलती रहती हैं। केवल एक ही सदा स्थिर, दृढ़ और अपरिवर्तनीय है - परमेश्वर और उसका शाश्वत वचन।

            बाइबल के अनुसार, यह समस्त सृष्टि, जिसे अभी तक वैज्ञानिक ठीक से देख और समझ नहीं पाए हैं, और जिसकी जटिलता तथा बारीकियों को लेकर आए दिन अचरज में पड़ते रहते हैं, परमेश्वर द्वारा बनाई गई है। अब यह कैसे संभव है कि परमेश्वर की रची गई सृष्टि उसके ही विरुद्ध गवाही देगी? सृष्टि का अध्ययन सृष्टिकर्ता परमेश्वर के अस्तित्व को ही नकार देगा? वरन, इसके विपरीत, सृष्टि तो अपने सृष्टिकर्ता के पक्ष में बताएगी; उसकी अद्भुत बुद्धिमता और कारीगरी की पुष्टि करेगी – यदि उसे ठीक से देखा, परखा, पहचान, और समझा जाए तो। यह बात बाइबल के साथ भी पूर्णतः लागू होती है। बाइबल अवैज्ञानिक नहीं है; और न ही सभी वैज्ञानिक बाइबल को गलत समझते हैं। तथ्य तो ये है कि संसार के महानतमवैज्ञानिकों में से अधिकांश, जैसे के न्यूटन, फैराडे, रॉबर्ट बॉयल, जेम्स मैक्सवेल,बाइबल पर विश्वास करते थे; वर्तमान सदी के भी अनेकों वैज्ञानिक मसीही हैं विज्ञान की बातें बाइबल की बातों को गलत नहीं प्रमाणित करती हैं। परमेश्वर ने अपने वचन बाइबल में हजारों और सैकड़ों वर्ष पहले अनेकों बातें लिखवा दी थीं, जिन्हें विज्ञान ने बहुत बाद में, या कुछ समय पहले ही पहचाना है।

            बाइबल में लिखी इन बातों को पहचानने में सहायक होने के लिए एक आधारभूत बात का ध्यान रखना होगा - जिस समय और जिन परिस्थितियों में बाइबल की पुस्तकें, अपने-अपने समय में लिखी गईं थीं, तब विज्ञान इस स्वरूप में नहीं था जैसा आज है, और न ही वैज्ञानिक शब्दावली, जो वर्तमान में होती है, प्रयोग हुआ करती थी। बाइबल की बातें सामान्य, साधारण लोगों के लिए लिखी गई थीं; ऐसे लोगों के लिए, जिनमें से बहुत ही कम शिक्षित होते थे, या कुछ गूढ़ समझने की क्षमता रखते थे। बाइबल की बातें उनके दिन-प्रतिदिन के जीवन और व्यवहार के संदर्भ में लिखी गई थीं, इसलिए उन बातों को लिखने के लिए उसी प्रकार की भाषा का प्रयोग किया गया है, जो उन लोगों के लिए सहज और समझ में आने वाली हो। बाइबल वैज्ञानिक सिद्धांत बताने या समझाने के दृष्टिकोण से लिखी गई विज्ञान की पुस्तक नहीं है। किन्तु फिर भी इन सीमाओं में भी परमेश्वर ने अपने वचन में ऐसी बहुत सी बातें लिखवाई हैं, जो जनसाधारण के लिए भी उपयोगी हैं, किन्तु उन में विज्ञान के रहस्य भी सांकेतिक अथवा प्रत्यक्ष रीति से लिखे गए हैं, और जिन्हें वर्तमान समय में पहचाना गया है, तथा बाइबल के ज्ञाताओं ने दिखाया है कि ये बाइबल में पहले से लिखा था। हम अगले लेख में ऐसी ही कुछ बातों को देखेंगे।

 

बाइबल पाठ: भजन 86:11-17

भजन 86:11 हे यहोवा अपना मार्ग मुझे दिखा, तब मैं तेरे सत्य मार्ग पर चलूंगा, मुझ को एक चित्त कर कि मैं तेरे नाम का भय मानूं।

भजन 86:12 हे प्रभु हे मेरे परमेश्वर मैं अपने सम्पूर्ण मन से तेरा धन्यवाद करूंगा, और तेरे नाम की महिमा सदा करता रहूंगा।

भजन 86:13 क्योंकि तेरी करुणा मेरे ऊपर बड़ी है; और तू ने मुझ को अधोलोक की तह में जाने से बचा लिया है।।

भजन  86:14 हे परमेश्वर अभिमानी लोग तो मेरे विरुद्ध उठे हैं, और बलात्कारियों का समाज मेरे प्राण का खोजी हुआ है, और वे तेरा कुछ विचार नहीं रखते।

भजन 86:15 परन्तु प्रभु तू दयालु और अनुग्रहकारी ईश्वर है, तू विलम्ब से कोप करने वाला और अति करुणामय है।

भजन 86:16 मेरी ओर फिर कर मुझ पर अनुग्रह कर; अपने दास को तू शक्ति दे, और अपनी दासी के पुत्र का उद्धार कर।।

भजन 86:17 मुझे भलाई का कोई लक्षण दिखा, जिसे देख कर मेरे बैरी निराश हों, क्योंकि हे यहोवा तू ने आप मेरी सहायता की और मुझे शान्ति दी है।

 

एक साल में बाइबल: 

  • भजन 87-88
  • रोमियों 1