ई-मेल संपर्क / E-Mail Contact

इन संदेशों को ई-मेल से प्राप्त करने के लिए अपना ई-मेल पता इस ई-मेल पर भेजें / To Receive these messages by e-mail, please send your e-mail id to: rozkiroti@gmail.com

सोमवार, 21 फ़रवरी 2022

कलीसिया में अपरिपक्वता के दुष्प्रभाव (9)

 भ्रामक शिक्षाओं के स्वरूप - पवित्र आत्मा के विषय गलत शिक्षाएं (1)

पिछले कुछ लेखों से हम इफिसियों 4:14 में दी गई बातों में से, बालकों के समान अपरिपक्व मसीही विश्वासियों और कलीसियाओं को प्रभावित करने वाले तीसरे दुष्प्रभाव, भ्रामक या गलत उपदेशों के बारे में देखते आ रहे हैं। इन गलत या भ्रामक शिक्षाओं के मुख्य स्वरूपों के बारे में परमेश्वर पवित्र आत्मा ने प्रेरित पौलुस के द्वारा 2 कुरिन्थियों 11:4 में लिखवाया है कि इन भ्रामक शिक्षाओं के, गलत उपदेशों के, मुख्यतः तीन स्वरूप होते हैं, “यदि कोई तुम्हारे पास आकर, किसी दूसरे यीशु को प्रचार करे, जिस का प्रचार हम ने नहीं किया: या कोई और आत्मा तुम्हें मिले; जो पहिले न मिला था; या और कोई सुसमाचार जिसे तुम ने पहिले न माना था, तो तुम्हारा सहना ठीक होता”, जिन्हें शैतान और उसके लोग प्रभु यीशु के झूठे प्रेरित, धर्म के सेवक, और ज्योतिर्मय स्‍वर्गदूतों का रूप धारण कर के बताते और सिखाते हैं। सच्चाई को पहचानने और शैतान के झूठ से बचने के लिए इन तीनों स्वरूपों के साथ इस पद में एक बहुत महत्वपूर्ण बात भी दी गई है। इस पद में लिखा है कि शैतान की युक्तियों के तीनों विषयों, प्रभु यीशु मसीह, पवित्र आत्मा, और सुसमाचार के बारे में जो यथार्थ और सत्य है वह वचन में पहले से ही बता दिया गया है। 

इन तीनों प्रकार की गलत शिक्षाओं में से इस पद में सबसे पहली है कि शैतान और उस के जन, प्रभु यीशु के विषय ऐसी शिक्षाएं देते हैं जो वचन में नहीं दी गई हैं, और इसके बारे में हम पिछले दो लेखों में विस्तार से देख चुके हैं। दूसरी बात जिसके बारे में भ्रामक शिक्षा और गलत बातें सिखाए, फैलाई जाती हैं, वह हैकोई और आत्मा तुम्हें मिले; जो पहिले न मिला था। गलत शिक्षा के पहले विषय के समान ही, इस दूसरी के लिए भी यहाँ यही लिखा गया है, “जो पहिले न मिला था” - अर्थात, जो भी गलत शिक्षाएं और बातें होंगी, वे उन शिक्षाओं और बातों के अतिरिक्त होंगी जो परमेश्वर के वचन में पहले से लिखवा दी गई हैं, और जिनके आधार पर उन शिक्षाओं को परखा, जाँचा, और उनकी सत्यता को स्थापित किया जा सकता है। 

यहाँ, इस पद और वाक्य में ध्यान कीजिए कि पवित्र आत्मा मिलने की बात भूत-काल (past tense) में की गई है - उन विश्वासियों को पवित्र आत्मा दिया जा चुका था; भविष्य में नहीं मिलना था। साथ ही झूठे शिक्षकों द्वारा जिस आत्मा को देने की बात की जा रही थी, उसेकोई और आत्माकहा गया है। जो आत्मा पवित्र आत्मा के अतिरिक्त कोई और आत्मा होगा, और व्यक्ति के अंदर आकर उसे प्रभावित एवं नियंत्रित करेगा, निःसंदेह वह परमेश्वर का, या फिर परमेश्वर से तो नहीं होगा। इसलिए यह कोई और आत्मा शैतान का दुष्ट आत्मा ही होगा, क्योंकि इन दोनों आत्माओं के अतिरिक्त तो तीसरी किसी श्रेणी का आत्मा हो ही नहीं सकता है। 

आज से हम परमेश्वर पवित्र आत्मा के संबंध में बताई और फैलाई जाने वाली कुछ सामान्य गलत शिक्षाओं के विषय देखेंगे। 

परमेश्वर पवित्र आत्मा प्रभु की ओर से सहायक के रूप में प्रत्येक मसीही विश्वासी को दिया गया है। किन्तु प्रभु की इस आशीष को ये गलत शिक्षा फैलाने वाले लोग मनुष्यों द्वारा नियंत्रित और निर्देशित करने का प्रयास करते हैं। परमेश्वर के वचन बाइबल की स्पष्ट शिक्षाओं के विरुद्ध, उनकी एक मुख्य गलत शिक्षा है कि मसीही विश्वासियों को पवित्र आत्मा उद्धार पाते ही नहीं मिलता है, वरन उसके लिए प्रतीक्षा, प्रार्थनाएं और प्रयास करने पड़ते हैं। और फिर ये झूठे प्रेरित और शिक्षक अपने उन प्रयासों, प्रार्थनाओं, विधियों को बताते हैं, जो उनके अनुसार पवित्र आत्मा प्राप्त करने के लिए आवश्यक हैं, और बाइबल के हवालों को संदर्भ से बाहर दुरुपयोग करके, अपनी बात को सही ठहराने के प्रयास करते हैं। साथ ही पवित्र आत्मा पाने के लिए प्रतीक्षा करने के लिए वे प्रेरितों 1:4-8 का भी हवाला देते हैं, इस हवाले का संदर्भ के बाहर दुरुपयोग करते हैं। 

प्रेरितों 1:4-8 में प्रभु यीशु ने अपने स्वर्गारोहण से पहले शिष्यों को आज्ञा दी कि वे यरूशलेम को न छोड़ें, वरन वहीं बने रहकर परमेश्वर पिता द्वारा जो प्रतिज्ञा दी गई है, और जिसकी चर्चा प्रभु यीशु ने पहले उन से की है, उसकी प्रतीक्षा करते रहें – यह प्रतिज्ञा स्पष्ट शब्दों में इससे अगले पद, पद 5 में, तथा पद 8 में बताई गई है। पद 5 और 8 से यह स्पष्ट है कि प्रभु शिष्यों से जिस प्रतिज्ञा के पूरे होने की प्रतीक्षा करने को कह रहा था, वह शिष्यों के द्वारा पवित्र आत्मा प्राप्त करना था।

यहाँ दो बातों पर ध्यान देना आवश्यक है:

पहली बात, शिष्यों को सेवकाई पर निकलने से पहले, प्रतिज्ञा के पूरा होने तक प्रतीक्षा करनी थी, सेवकाई पर जाने के लिए परमेश्वर के सही समय का इंतजार करना था। किन्तु प्रभु ने उन्हें यह नहीं कहा कि उस प्रतीक्षा के समय के दौरान उन्हें कुछ विशेष करते रहने होगा जिसे करने के द्वारा ही फिर उन्हें पवित्र आत्मा दिया जाएगा; या उनके परमेश्वर से विशेष रीति से मांगने से, आग्रह करने या गिड़गिड़ाने से, अथवा कोई अन्य विशेष प्रयास करने के परिणामस्वरूप फिर परमेश्वर उन्हें पवित्र आत्मा देगा, जैसे कि आज बहुत से लोग और डिनॉमिनेशन सिखाते हैं, करने के लिए बल देते हैं, विशेष सभाएं रखते हैं। पवित्र आत्मा प्राप्त होने की प्रतिज्ञा का पूरा किया जाना परमेश्वर के द्वारा, उसके समय और उसके तरीके से होना था, न कि इन शिष्यों के किसी विशेष रीति से मांगने या कोई विशेष कार्य अथवा प्रयास करने से होना था।

बाइबल के गलत अर्थ निकालने और अनुचित शिक्षा देने का सबसे प्रमुख और सामान्य कारण है किसी बात या वाक्य को संदर्भ से बाहर लेकर, और उस से संबंधित किसी संक्षिप्त वाक्यांश के आधार पर, अपनी ही समझ के अनुसार एक सिद्धांत (doctrine) खड़ा कर लेना, उसे सिखाने लग जाना। प्रभु की कही इस बात के आधार पर भी ऐसे ही यह गलत शिक्षा दी जाती है कि पवित्र आत्मा प्राप्त करने के लिए प्रतीक्षा करना और प्रयास करना आवश्यक है।

इस विषय पर यह ध्यान देने योग्य एक बहुत महत्वपूर्ण तथ्य है कि सम्पूर्ण नए नियम में फिर कहीं यह प्रतीक्षा करना न तो सिखाया गया है, और ना इस बात के लिए कभी किसी को कोई उलाहना दिया गया है कि उन्होंने प्रतीक्षा अथवा प्रयास क्यों नहीं किया। न ही किसी में विश्वास अथवा सामर्थ्य की कमी के लिए उससे कहा गया कि कुछ विशेष प्रयास अथवा प्रतीक्षा कर के वे पवित्र आत्मा को प्राप्त करें, और उससे प्रभु की सेवकाई के लिए सामर्थी बनें। वरन अन्य सभी स्थानों पर यही बताया और सिखाया गया है कि पवित्र आत्मा प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास करते ही, तुरंत ही दे दिया जाता है।

·        प्रेरितों 10:44; 11:15, 17 – विश्वास करने के साथ ही

·        प्रेरितों 19:2 – विश्वास करते समय

·        इफिसियों 1:13-14 – विश्वास करते ही छाप लगी

·        गलातियों 3:2 – विश्वास के समाचार से

·        तीतुस 3:5 – नए जन्म का स्नान और पवित्र आत्मा द्वारा नया बनाया जाना, एक साथ ही और एक ही बात के लिए लिखे गए हैं। 

दूसरी बात, प्रभु उन्हें स्मरण दिला रहा है कि वह उन्हें पहले भी इसके बारे में न केवल बता  चुका है, वरन इसके विषय उनसे चर्चा भी कर चुका है, अर्थात विस्तार से उन्हें बता और समझा चुका है। उन शिष्यों के साथ, सेवकाई के दिनों में, प्रभु ने कई बार उन से पवित्र आत्मा प्राप्त करने की बात कही थी; किन्तु हर बार यह भविष्य काल में ही होने की बात थी; अर्थात प्रभु ने उन्हें यही सिखाया था पवित्र आत्मा उन्हें बाद में उचित समय पर दिया जाएगा। किन्तु अपनी बात को सही दिखाने के लिए ये गलत शिक्षाओं वाले लोग वचन के हवालों और वहाँ लिखी बात को अनुचित रीति से बताते हैं। इस बारे में उनके द्वारा सामान्यतः प्रयोग किए जाने वाले हवाले और उनसे संबंधित बातें हैं :

  • लूका 11:13 – इस पद का दुरुपयोग यह बताने के लिए किया जाता है कि प्रभु ने कहा है कि पवित्र आत्मा परमेश्वर से मांगने पर मिलता है। जबकि यदि इस पद को उसके संदर्भ (पद 11-13) में देखें, तो यह स्पष्ट है कि यह आलंकारिक भाषा का प्रयोग है, एक तुलनात्मक कथन है। प्रभु, किसी सांसारिक पिता के अपनी संतान की आवश्यकता के लिए उसे सर्वोत्तम देने की मनसा रखने की बात कर रहा है। जैसे सांसारिक पिता अपने बच्चों को यथासंभव उत्तम देता है, वैसे ही परमेश्वर भीअपनेलोगों को – जो उससे पवित्र आत्मा को मांगने का साहस और समझ रखते हैं; उसका प्रयोग करना जानते हैं, उन्हें अपना यथासंभव उत्तम, यहाँ तक कि अपना पवित्र आत्मा भी दे देगा। साथ ही, हर किसी मांगने वाले को पवित्र आत्मा देने के लिए परमेश्वर बाध्य नहीं है; मांगने वाले का मन भी इसके लिए ठीक होना चाहिए। प्रेरितों 8:18-23 में शमौन टोन्हा करने वाले को गलत मनसा रखते हुए पवित्र आत्मा मांगने से अच्छी डाँट-फटकार मिली, न कि पवित्र आत्मा; यद्यपि वह प्रभु में विश्वास करने का दावा करता था, उसने बपतिस्मा भी लिया था, और विश्वासियों की संगति में भी रहता था (प्रेरितों 8:13)
  • यूहन्ना 7:37-39 – “बह निकलेंगी”; “पाने पर थे” – भविष्य काल – और साथ ही शर्त भी कह दी गई है कि ऐसा उनके लिए होगाजो उस पर विश्वास करने वालेहोंगे – जैसा ऊपर देख चुके हैं, जो विश्वास करेगा, उसे विश्वास करते ही तुरंत ही उसे मिल जाएगा; जिसने सच्चा विश्वास नहीं किया (यह केवल प्रभु ही जानता है, कोई मनुष्य नहीं), उसे नहीं मिलेगा, वह चाहे कितनी भी प्रार्थनाएं, प्रतीक्षा, या प्रयास करता रहे। जिसने विश्वास किया, उसे फिर कुछ और करने की आवश्यकता नहीं है, और न ही करने के लिए कहा गया है।
  • यूहन्ना 14:16-17 – “देगा”, “होगा” – भविष्य काल – पिता देगा, और फिर वह सर्वदा साथ रहेगा – आएगा और जाएगा नहीं, जैसे पुराने नियम में था (ओत्निएल न्यायियों 3:9,10; गिदोन न्यायियों 6:34; यिप्ताह, शमसून, राजा शाऊल 1 शमूएल 10:6, 10; दाऊद 1 शमूएल 16:13)
  • यूहन्ना 16:7 – “आएगा” – भविष्य काल – भविष्य में आना था; उसी समय नहीं
  • यूहन्ना 20:22 – “लो” – अभी तक जो भविष्य की बात कही जा रही थी, अब उसका समय आ गया था, अब इस बात को पूरा होना था, एक प्रक्रिया के अंतर्गत प्राप्त करना था।  प्रभु ने यह अपने पुनरुत्थान के बाद शिष्यों से कहा – उन्हें पहले की प्रतिज्ञा स्मरण करवाई, और स्वर्गारोहण के समय उसकी प्रक्रिया भी बताई (लूका 24:49)। पवित्र आत्मा प्रभु की फूँक में नहीं था, और न ही कभी फूंकने के द्वारा किसी को दिया गया।

 

       पवित्र आत्मा से संबंधित कुछ अन्य गलत शिक्षाओं, जैसे के अन्य भाषाएँ बोलना, पवित्र आत्मा के उद्देश्य और कार्य, आदि को हम आगे के लेखों में देखेंगे। 

       यदि आप एक सच्चे मसीही विश्वासी हैं, पापों से पश्चाताप करने और प्रभु यीशु से उनकी क्षमा माँगने, अपना जीवन प्रभु को समर्पित करने के द्वारा आपने नया जन्म अर्थात उद्धार पाया है, तो आपके उद्धार पाने के पल से ही परमेश्वर पवित्र आत्मा आप में निवास कर रहा है, आपकी सहायता और शिक्षा के लिए आप में विद्यमान है। इसलिए किसी गलत शिक्षा में न फंसे, और यदि पड़ गए हैं तो उपरोक्त पदों का ध्यान करते हुए, उन शिक्षाओं से बाहर आ जाएं। पवित्र आत्मा परमेश्वर है, किसी मनुष्य के हाथों की कठपुतली नहीं जिसे कोई मनुष्य अपने किन्हीं प्रयासों द्वारा नियंत्रित और निर्देशित कर सके।

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।   

 

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • गिनती 1-2         
  • मरकुस 3:1-19