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शुक्रवार, 15 अप्रैल 2022

“बपतिस्मे” की समझ / Understanding "Baptism" - 11

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बपतिस्मे से संबंधित मूल बातों को देखने के बाद हमने अप्रैल 9 के लेख से बपतिस्मे से संबंधित विवादित और असमंजस में डालने वाली बातों को देखना आरंभ किया। इनके अंतर्गत हमने पहले उद्धार और पाप क्षमा के लिए बपतिस्मे की कथित अनिवार्यता के बारे में वचन की बातों को देखा, और फिर “पवित्र आत्मा का बपतिस्मा” पाने के बारे में ज़ोर देकर दी जाने वाले शिक्षा और संबंधित बातों को देखा। परमेश्वर के वचन बाइबल के आधार पर ये दोनों ही बातें अनुचित हैं, बाइबल की शिक्षाओं के अनुसार नहीं हैं। आज हम एक और संबंधित बात को परमेश्वर के वचन के आधार पर देखेंगे, और यह बात भी इसी की पुष्टि करती है कि “पवित्र आत्मा का बपतिस्मा” बाइबल की शिक्षाओं के अनुरूप नहीं है, अस्वीकार्य है। जिस बात को हम आज देखने जा रहे हैं, वह है बाइबल में कितने प्रकार के बपतिस्मे हैं? मसीही विश्वासी को गिनती तथा प्रकार में कितने बपतिस्मे लेने की आवश्यकता है?

कितने बपतिस्मे?

 

इस प्रश्न पर विचार आरंभ करने से पहले हमें बाइबल की व्याख्या से संबंधित उन मूल बातों को ध्यान करना आवश्यक है, जिनका उल्लेख हमने इस शृंखला के आरंभिक लेखों में किया था। सही व्याख्या के लिए अनिवार्य इन बातों में से इस लेख के संदर्भ में इस बात का ध्यान रखना बहुत आवश्यक है कि बाइबल की बातों में परस्पर कोई विरोधाभास नहीं है। यदि कोई भी व्याख्या, या शिक्षा, या सिद्धांत बाइबल की बातों में कोई भी विरोधाभास उत्पन्न करता है तो वह गलत है, अनुचित है, अस्वीकार्य है। साथ ही एक दूसरी बात का भी ध्यान रखना है कि बाइबल की किसी भी बात की प्रत्येक व्याख्या, उससे संबंधित अन्य पदों या शिक्षाओं, तथा उसके अपने संदर्भ में ही की जाए। कभी भी किसी भी व्याख्या को उस पद या बात के संदर्भ से बाहर लेने, या संबंधित बातों की अनदेखी करने के साथ करने से हमेशा ही गलत बातें और धारणाएं ही उत्पन्न होंगी और प्रचार की जाएंगी। 


पिछले लेखों में “पवित्र आत्मा का बपतिस्मा” के बारे में दी जाने वाली शिक्षाओं को समझने के लिए हमने अप्रैल 12 के इस विषय के पहले लेख में शब्दों “से” और “का” के अर्थ और उनके प्रयोग से होने वाले वाक्यांश के अर्थ में पूर्ण बदलाव को देखा था। हमने वचन के उदाहरणों से यह समझा था कि “से” उस माध्यम को दिखाता है जिसमें बपतिस्मा दिया जाता है, और “का” उसे या उसके अधिकार को दिखाता है जिसके कहे के अनुसार, या जिसकी आज्ञाकारिता में बपतिस्मा दिया जाता है। हमने यह भी देखा था कि बाइबल में “पवित्र आत्मा का बपतिस्मा” कहीं नहीं लिखा गया है; जहाँ भी लिखा गया है “पवित्र आत्मा से बपतिस्मा” ही लिखा गया है। 


 यह ध्यान में रखते हुए देखिए कि इफिसियों 4:5 में लिखा है कि बपतिस्मा एक ही है “एक ही प्रभु है, एक ही विश्वास, एक ही बपतिस्मा”। यदि “पवित्र आत्मा का बपतिस्मा” कोई पृथक अनुभव या क्रिया है, तो फिर तो दो बपतिस्मे हो जाते हैं, और तब यह वचन झूठा हो जाता है। इस धारणा के अनुसार फिर बाइबल में विरोधाभास या गलती आ जाती है - क्योंकि तब एक बपतिस्मा पानी से हुआ और फिर दूसरा बपतिस्मा पवित्र आत्मा का हुआ। किन्तु बाइबल तो एक ही बपतिस्मे की बात करती है। इसलिए या तो पवित्र आत्मा का बपतिस्मा है ही नहीं, और बपतिस्मा केवल पानी में दिया जाने वाला ही एकमात्र बपतिस्मा है; नहीं तो यहाँ पर, इफिसियों 4:5 में, गलत लिखा है, जिसका अर्थ हुआ कि बाइबल में गलतियाँ हैं!


किन्तु बाइबल में गलती होने का प्रश्न तो तभी उठता है जब “पवित्र आत्मा का बपतिस्मा” सही स्वीकार किया जाए; अर्थात पवित्र आत्मा के कहे के अनुसार या पवित्र आत्मा की ओर से एक अन्य बपतिस्मा देना स्वीकार किया जाए। किन्तु परमेश्वर पवित्र आत्मा ने तो ऐसी कोई आज्ञा कभी कहीं पर भी, किसी को भी नहीं दी है। जैसा हम यूहन्ना 16:13-14 से पहले भी देख चुके हैं, परमेश्वर पवित्र आत्मा की सेवकाई में उनके द्वारा कोई नई बात बताना निर्धारित ही नहीं है। वह तो केवल मसीही विश्वासियों को प्रभु यीशु की बातों को स्मरण करवाने और सिखाने का कार्य करेगा। 


किन्तु यदि, जैसे कि बाइबल में हर जगह पर लिखा भी गया है, इसे “पवित्र आत्मा से बपतिस्मा” समझा और स्वीकार किया जाता है, तो फिर इफिसियों 4:5 के साथ कोई विरोधाभास उत्पन्न नहीं होता है। वचन की हर संबंधित बात के साथ सच्चाई और खराई बनी रहती है, वचन के अर्थ में कोई अन्तर नहीं आता है। एक से अधिक बपतिस्मा होने को सही ठहरने के प्रयास में इसी से संबंधित एक और पद का दुरुपयोग किया जाता है, जहाँ बहुवचन “बपतिस्मे” लिखा गया है। इसके बारे में हम अगले लेख में देखेंगे। 


यदि आप मसीही हैं, तो आपके लिए यह अनिवार्य है कि आप मनुष्यों की बनाई हुई रीतियों और प्रथाओं का नहीं, परमेश्वर के वचन का पालन करने वाले हों। क्योंकि अन्ततः आपका न्याय, मनुष्यों के द्वारा बनाई और धर्म-उपदेश करके सिखाई गई, मनुष्यों की बातों के आधार पर नहीं होगा। क्योंकि मनुष्यों द्वारा बनाए गए धर्मोपदेश न केवल व्यर्थ हैं (मत्ती 15:9) किन्तु हटा भी दिए जाएंगे (मत्ती 15:13)। सभी का न्याय प्रभु यीशु के द्वारा (प्रेरितों 17:30-31), उसके वचन की अटल और अपरिवर्तनीय बातों के आधार पर होगा (यूहन्ना 12:48)। इसलिए आपके लिए मनुष्यों को नहीं परमेश्वर को प्रसन्न करने वाला बनना अनिवार्य है, नहीं तो अनन्त जीवन में अनंतकाल की हानि उठानी पड़ेगी। अपने जीवन में गंभीरता से झांक कर देख लें, और जिन भी बातों को सही करना है, उन्हें अभी समय और अवसर रहते हुए सही कर लें; कहीं कल या “बाद में” पर टाल देने से बहुत विलंब और हानि न हो जाए।  


यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु, मैं अपने पापों के लिए पश्चातापी हूँ, उनके लिए आप से क्षमा माँगता हूँ। मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मुझे और मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।

 

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • 1 शमूएल 27-29     

  • लूका 13:1-22      


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Having looked at the basics of baptism, we began looking at the controversial and perplexing things about baptism, from the April 9 article onwards. In these, we've looked first about the alleged necessity of baptism for salvation and forgiveness of sins, and then about  "baptism of the Holy Spirit" and related things, from the Scriptures. We saw that both of these are invalid and are not according to the teachings of the Bible. Today we will look at another related point based on the Word of God, and this also confirms that the "baptism of the Holy Spirit" does not conform to the teachings of the Bible, and is unacceptable. What we are going to look at today is how many different baptisms are there in the Bible? How many baptisms in number and type does a Christian need to undergo?


How many Baptisms?


Before we begin to consider this question, we need to bear in mind the basics of Biblical interpretation, that we mentioned in the earlier articles of this series. These basics are essential for a correct Interpretation of these things. And, in the context of today’s article, it is very important to bear in mind that there are no contradictions in the Bible. If any interpretation, or teaching, or doctrine produces any contradiction in what the Bible says, then that teaching, doctrine, or interpretation is wrong, unreasonable, and unacceptable. Another thing to keep in mind is that every interpretation of anything in the Bible should always be done in its context, and also keeping in mind the other verses or teachings related to it. Whenever any interpretation is done by taking that verse or matter out of its context, or disregarding the other related teachings and verses, it will always lead to false interpretations and misconceptions being generated and propagated.


To understand the teachings about the phrase “the baptism of the Holy Spirit”, in the initial article on this topic of April 12th, we looked at the implications of the words “with” and “of” and how the meaning of the phrase totally changes, when these words are interchanged. We understood from the examples of the Scriptures that "with" refers to the medium in which baptism is carried out, and "of" refers to the authority, according to whom, or for whose obedience one is baptized. We also saw that "the baptism of the Holy Spirit" is nowhere written in the Bible; Wherever it is written, it is the phrase “baptism with the Holy Spirit” that is written.


Keeping these in mind, note that Ephesians 4:5 states that there is one baptism "one Lord, one faith, one baptism". If the "baptism of the Holy Spirit'' is a separate experience or work, then there are two baptisms, and then God’s Word becomes false. Then, according to this concept, there are contradictions or mistakes in the Bible - because then one baptism is with water and then the other a baptism of the Holy Spirit. But the Bible talks about only one baptism. Therefore, either there is no baptism of the Holy Spirit, and baptism is only the baptism given in water; else what is written here in Ephesians 4:5, is wrong, which means the Bible has  errors and contradictions!


But if, as it is written everywhere in the Bible, it is understood and accepted as "baptism with the Holy Spirit," then there is no contradiction with Ephesians 4:5. The accuracy and integrity of everything related to baptism in the Word remains intact, the meaning of the Word remains unchanged. In a further attempt to justify their erroneous stand on more than one baptism, another related verse is misused, where the plural "baptisms" has been used. We will see about this in the next article.


If you are a Christian, it is essential for you to follow the Word of God, not the customs and traditions created by men. Because in the end, you will neither be judged by any man, nor on the basis of any man-made doctrines and teachings, all of which not only are vain (Matthew 15:9) but will also be taken away (Matthew 15:13). But everyone will be judged by the Lord Jesus (Acts 17:30-31), and only on the basis of His unalterable and firmly established Word (John 12:48). Therefore, it is necessary for you to be pleasing to God, instead of striving to please men; else you will have to suffer the loss of eternal life and eternity. Take a serious account of your life, and whatever things you need to rectify, do it right now, while you have the time and opportunity; procrastinating and postponing it for tomorrow or "later" may be very harmful.

 

If you have not yet accepted the discipleship of the Lord, make your decision in favor of the Lord Jesus now to ensure your eternal life and heavenly blessings. Where there is obedience to the Lord, where there is respect and obedience to His Word, there is also the blessing and protection of the Lord. Repenting of your sins, and asking the Lord Jesus for forgiveness of your sins, voluntarily and sincerely, surrendering yourself to Him - is the only way to salvation and heavenly life. You only have to say a short but sincere prayer to the Lord Jesus Christ willingly and with a penitent heart, and at the same time completely commit and submit your life to Him. You can also make this prayer and submission in words something like, “Lord Jesus, I am sorry for my sins and repent of them. I thank you for taking my sins upon yourself, paying for them through your life.  Because of them you died on the cross in my place, were buried, and you rose again from the grave on the third day for my salvation, and today you are the living Lord God and have freely provided to me the forgiveness, and redemption from my sins, through faith in you. Please forgive my sins, take me under your care, and make me your disciple. I submit my life into your hands." Your one prayer from a sincere and committed heart will make your present and future life, in this world and in the hereafter, heavenly and blessed for eternity.


Read the Bible in a Year: 

  • 1 Samuel 27-29

  • Luke 13:1-22