मसीही सेवकाई में पवित्र आत्मा की कार्य-विधि - 2 (नवंबर 15 से 18 तक के लेखों का सारांश)
पिछले सारांश में हमने यूहन्ना 16:8-11 के आधार पर
पुनःअवलोकन किया था कि मसीही विश्वासी, पवित्र आत्मा की
सहायता और मार्गदर्शन द्वारा, संसार के लोगों पर पाप,
धार्मिकता, और न्याय के बारे में उन लोगों के
विचार, व्यवहार, और धारणाओं की तुलना
में मसीही शिक्षाओं और जीवन को रखता है, अपने जीवन से उन्हें
प्रदर्शित करता है। संसार और मसीही विश्वास के मध्य का यह तुलनात्मक प्रकटीकरण,
स्वतः ही संसार के लोगों को कायल करने के लिए पर्याप्त है। बाइबल के
अनुसार यही अपने आप में मसीही विश्वासी में पवित्र आत्मा की उपस्थिति का प्रमाण
है। इसके बाद प्रभु यीशु ने 12 पद में शिष्यों से कहा कि
परमेश्वर पवित्र आत्मा आकर उन्हें उन बातों को बताएगा, जिन्हें
वे अभी नहीं समझ सकते (जैसे कि प्रभु भोज से संबंधित यूहन्ना 6:60-66 की प्रभु की बात) किन्तु पवित्र आत्मा की उनमें उपस्थिति उन्हें उन बातों
के ग्रहण करने और समझने के लिए सक्षम कर देगी।
फिर 13 पद में एक बार फिर प्रभु यीशु ने
पवित्र आत्मा को 'सत्य का आत्मा' कहा;
अर्थात उनकी हर बात सत्य है, और वे केवल सत्य
ही का मार्ग बताएंगे; वे किसी भी असत्य के साथ कभी सम्मिलित
नहीं होंगे। प्रभु ने कहा कि पवित्र आत्मा ‘तुम्हें’ अर्थात प्रभु यीशु के शिष्यों की मसीही सेवकाई में तीन बातें और करेगा:
(i) वह सब सत्य का मार्ग
बताएगा;
(ii) वह अपनी ओर से नहीं
कहेगा, परंतु जो कुछ सुनेगा, वही कहेगा;
(iii) वह आने वाली बातें
बताएगा।
आज परमेश्वर पवित्र
आत्मा के नाम से बहुतायत से किए जाने वाले भ्रामक प्रचार, गलत
शिक्षाओं, और मन-गढ़न्त बातों के संदर्भ में, उन बातों और शिक्षाओं को जाँचने और परखने, उनकी
सत्यता को जानने और पहचानने के लिए, ऐसी शिक्षाओं और उनके
प्रचारकों को स्वीकार अथवा अस्वीकार करने के लिए, ये तीनों
बातें बहुत सहायक तथा महत्वपूर्ण हैं।
इनमें से पहली बात है कि पवित्र आत्मा
मसीह के शिष्यों अर्थात मसीही विश्वासियों को ‘सब सत्य का मार्ग बताएगा’। आज पवित्र आत्मा के नाम पर गलत शिक्षाएं और व्यवहार सिखाने वाले सभी
प्रचारक सामान्यतः परमेश्वर के वचन की शिक्षा (1 यूहन्ना 2:15-17)
के विपरीत, सांसारिक सुख-समृद्धि-संपत्ति और
शारीरिक चंगाई या लाभ प्राप्त करने ही की बातें करते हैं। उनके प्रचार में पापों
के लिए पश्चाताप करने (प्रेरितों 2:38), प्रभु यीशु मसीह पर
विश्वास द्वारा उद्धार पाने का प्रोत्साहन एवं अनिवार्यता (प्रेरितों 15:11;
16:31), प्रभु यीशु के शिष्य बनने और उससे होने वाले मन-परिवर्तन के
बारे में (रोमियों 12:1-2; 2 कुरिन्थियों 5:17), अपने आप को संसार में यात्री और परदेशी जानकर सांसारिक नहीं वरन स्वर्गीय
वस्तुओं पर मन लगाने (1 पतरस 2:11; कुलुस्सियों
3:1-2), और मसीही विश्वास और सेवकाई में दुख आने और उठाने की
अनिवार्यता (फिलिप्पियों 1:29; 2 तिमुथियुस 3:12), आदि, सुसमाचार की बातें या तो होती ही नहीं हैं,
अथवा बहुत कम होती हैं। उनका प्रचार, और जीवन
मुख्यतः पार्थिव, नश्वर, शारीरिक
सुख-सुविधा की बातों से ही संबंधित होता है; और फिर भी वे यह
सब पवित्र आत्मा की ओर से अथवा उनकी अगुवाई में होकर कहने का दावा करते हैं। जब कि
पवित्र आत्मा के संबंध में ऐसी कोई शिक्षा, कोई बात परमेश्वर
के वचन में कहीं नहीं दी गई है। तो फिर वह ‘सत्य का आत्मा’
जो केवल सत्य अर्थात परमेश्वर के वचन और प्रभु यीशु की बातों का
मार्ग बताता है, वह यह सब कैसे कर सकता है?
यूहन्ना 16:13 में पवित्र आत्मा के कार्य से
संबंधित प्रभु यीशु द्वारा कही गई दूसरी बात है कि वह अपनी ओर से नहीं कहेगा,
परंतु जो कुछ सुनेगा, वही कहेगा। प्रभु की इस
बात को तथा यह ध्यान रखते हुए कि परमेश्वर का वचन अपनी पूर्णता में लिखा जा चुका
है, अनन्तकाल के लिए स्वर्ग में स्थापित हो चुका है (भजन 119:89),
यह कैसे संभव है कि परमेश्वर पवित्र आत्मा उस वचन के अतिरिक्त और
कुछ नया किसी मनुष्य को बताए या सिखाए? यह तो उपरोक्त बातों
के विरुद्ध होगा, उन्हें झूठ दिखाएगा - जो ‘सत्य के आत्मा’ पवित्र आत्मा के गुणों के विरुद्ध
है। पवित्र आत्मा के द्वारा नई बातें, नए दर्शन, नई शिक्षाएं आदि पाने के सभी दावे प्रभु के इस वचन के अनुसार झूठे हैं;
और मसीही विश्वासियों तथा सेवकों को झूठ के प्रचारकों से बच कर रहना
है (2 यूहन्ना 1:10-11)। बाइबल से
संबंधित किसी भी सिद्धांत को स्वीकार करने से पहले (1 थिस्सलुनीकियों
5:21), उसे तीन बातों के आधार पर जाँच लेना चाहिए; ये बातें हैं - i. उसे सुसमाचारों में प्रभु
यीशु द्वारा प्रचार किया गया; ii. उसको प्रेरितों के
काम में व्यावहारिक मसीही या मण्डली के जीवन में प्रदर्शित किया गया; iii.
पत्रियों में उसकी व्याख्या की गई या उसके विषय सिखाया गया। जिस
बात में ये तीनों गुण नहीं हैं, उसे तुरंत स्वीकार नहीं करना
चाहिए; बेरिया के विश्वासियों के समान (प्रेरितों 17:11)
वचन से यह देखना चाहिए कि जो कहा और बताया जा रहा है, वास्तव में पवित्र शास्त्र में वैसा ही लिखा है या नहीं - यह खरे आत्मिक
व्यक्ति का चिह्न है 1 कुरिन्थियों 2:15।
यूहन्ना
16:13 की पवित्र आत्मा के
कार्य से संबंधित तीसरी बात है कि वह “तुम्हें” अर्थात प्रभु के शिष्यों को आने वाली बातें बताएगा। प्रभु की यह बात
पवित्र आत्मा के नाम पर कुछ भी कहने और उन्हें पवित्र आत्मा की ओर से दी गई
“भविष्यवाणी” होने का दावा करने की छूट नहीं
है। यदि नए नियम की बातों के आधार पर इस बात को देखें, तो इस
बात का जो अर्थ सामने आता है वह है कि पवित्र आत्मा मसीही सेवकाई और सुसमाचार
प्रचार के दौरान शिष्यों को आने वाली बातों को बताता है, अर्थात
उन्हें सचेत रखता था। ऐसा बिलकुल नहीं था कि पवित्र आत्मा लोगों को अपना ढिंढोरा
पीटने और अपने आप को लोगों के सामने भविष्यद्वक्ता दिखा कर वाह-वाही लूटने के लिए
कहता था। वरन वह सुसमाचार प्रचार में लगे प्रभु के शिष्यों को हर परिस्थिति के लिए
तैयार और आगाह रखता था, जो शिष्यों की सेवकाई के लिए बहुत
महत्वपूर्ण बात थी (प्रेरितों 9:16; 13:4; 20:22-23; 21:4, 11; 23:16)। दूसरी बात, यदि लोगों द्वारा “पवित्र आत्मा की ओर से” मिली और की जा रही भविष्यवाणियों
के विषयों को देखें, और उनके पूरा होने का आँकलन करें,
तो स्पष्ट हो जाता है कि उन “भविष्यवाणियों”
के विषय और सामग्री, सामान्यतः परमेश्वर के
वचन से बाहर या अतिरिक्त होते हैं - जो, जैसा हम ऊपर देख
चुके हैं, पवित्र आत्मा की ओर से किया जाना संभव नहीं है। साथ
ही यदि उन “भविष्यवाणियों” के पूरे
होने के आधार पर आँकलन करने के लिए उन्हें परमेश्वर के वचन की शिक्षा से देखें,
तो व्यवस्थाविवरण 18:20-22 में लिखा है कि
“भविष्यवाणियों” का पूरा न होना इस बात का
प्रमाण है कि वे परमेश्वर की ओर से नहीं हैं, और ऐसे नबियों
को मार डालना चाहिए। किन्तु आज लोग ऐसे झूठे प्रचारकों को बहुत आदर और सम्मान देते
हैं; उनकी झूठी शिक्षाओं के लिए उनकी आलोचना भी सहन नहीं
करना चाहते हैं, वरन उन गलत, शारीरिक,
और सांसारिक बातों को ही सत्य मान कर चलते हैं।
फिर यूहन्ना 16:14-15 में प्रभु ने एक
बार फिर इस बात को दोहराया कि पवित्र आत्मा केवल प्रभु यीशु ही की बातों में से
कहेगा और सिखाएगा। अर्थात, चाहे कोई भी कुछ भी क्यों न कहता
रहे, कोई भी अद्भुत बात ‘प्रमाण’
के रूप में क्यों न दिखाता रहे, प्रभु यीशु
द्वारा वचन में दे दी गई शिक्षाओं और बातों से अधिक या बाहर जो कुछ भी है, वह न तो प्रभु यीशु की ओर से है, और न पवित्र आत्मा
की ओर से। इसलिए प्रभु की शिक्षाओं से अतिरिक्त और बाहर की किसी भी शिक्षा या
व्यवहार को स्वीकार नहीं करना है। यहाँ परमेश्वर पवित्र आत्मा का एक और कार्य को
बताया गया है - वह प्रभु यीशु की महिमा करेगा। आज पवित्र आत्मा के नाम से फैलाई
जाने वाली गलत शिक्षाओं को सिखाने और फैलाने वाले बहुत दृढ़ता से यह दावा करते हैं
कि उन्हें यह सब पवित्र आत्मा की ओर से मिला है, और वे इसके
लिए पवित्र आत्मा की महिमा करने पर बल देते हैं, तथा उन
प्रचारकों के स्वयं के जीवन, व्यवहार, और
शिक्षाओं में, पवित्र आत्मा के नाम के उपयोग की तुलना में,
प्रभु यीशु का नाम और उनकी शिक्षाओं तथा कार्यों का उल्लेख और महत्व
बहुत कम होता है। वे लोगों को भी यही बताते और सिखाते हैं कि वे भी पवित्र आत्मा
से उनके समान बातों तथा व्यवहार को प्राप्त करने की माँग करें। ये लोग पवित्र
आत्मा की महिमा करने पर बहुत बल देते हैं, और अपनी इस बात को
पवित्र आत्मा से सीखा हुआ बताते है। जबकि प्रभु यीशु मसीह ने साफ, सीधे शब्दों में, बिलकुल स्पष्ट, दो-टूक कहा है कि पवित्र आत्मा अपनी नहीं वरन प्रभु की महिमा करेगा! प्रभु
की यह बात हमारे सामने मसीही विश्वास की शिक्षाओं का आँकलन करने का एक और मापदंड
रखती है - मसीही विश्वास और सेवकाई से संबंधित जो भी शिक्षा अथवा व्यवहार प्रभु
यीशु मसीह पर केंद्रित न हो, प्रभु यीशु को महिमा न दे;
बल्कि प्रभु यीशु और उनके क्रूस पर दिए गए बलिदान, पुनरुत्थान, और सुसमाचार की बजाए किसी अन्य की ओर
ध्यान आकर्षित करे, उसे महिमित करने का प्रयास करे, वह परमेश्वर प्रभु की ओर से नहीं है; चाहे उस महिमा
का विषय परमेश्वर पवित्र आत्मा ही क्यों न हो। पवित्र आत्मा का कार्य प्रभु यीशु
की महिमा करना है; वह अपनी महिमा नहीं करवाता है, और न ही ऐसी कोई शिक्षा या व्यवहार सिखाता है जो प्रभु यीशु की महिमा न
करे, या करने पर ध्यान न दे, अथवा वचन
के विरुद्ध हो।
यदि आप मसीही विश्वासी हैं तो यह आपके
लिए अनिवार्य है कि आप परमेश्वर पवित्र आत्मा के विषय वचन में दी गई शिक्षाओं को
गंभीरता से सीखें, समझें
और उनका पालन करें; और सत्य को जान तथा समझ कर ही उचित और
उपयुक्त व्यवहार करें, सही शिक्षाओं का प्रचार करें। आपको
अपनी हर बात का हिसाब प्रभु को देना होगा (मत्ती 12:36-37)।
जब वचन आपके हाथ में है, वचन को सिखाने के लिए पवित्र आत्मा
आपके साथ है, तो फिर बिना जाँचे और परखे गलत शिक्षाओं में
फँस जाने, तथा मनुष्यों और उनके समुदायों और शिक्षाओं को आदर
देते रहने के लिए उन गलत शिक्षाओं में बने रहने के लिए क्या आप प्रभु परमेश्वर को कोई
उत्तर दे सकेंगे?
एक साल में बाइबल पढ़ें:
- यहेजकेल
20-21
- याकूब 5