प्रसिद्ध बास्केटबॉल प्रशिक्षक जौन वुडेन ने प्रशिक्षण प्राप्त करने वाली टीम के लिए एक रोचक नियम बना रखा था; जब कभी कोई खिलाड़ी अंक बनाता तो उसे उस खिलाड़ी को धन्यवाद करना होता था जिसकी सहायता से अंक बनाने का अवसर उसे मिला। जब वे हाई-स्कूल में प्रशिक्षण दिया करते थे तो एक खिलाड़ी ने उनसे पूछा, "क्या ऐसा करने से खेल का बहुत समय व्यर्थ नहीं चला जाएगा?" उनका उत्तर था, "मैं तुम्हें हर बार खेल रोक कर उस खिलाड़ी के पास जाकर धन्यवाद करते रहने को नहीं कह रहा हूँ, केवल उसकी ओर देखकर अपना सिर हिलाकर उसकी सहायता के लिए आभारी होना ही काफी होगा।"
बास्केटबॉल कोर्ट पर विजयी होने के लिए यह आवश्यक था कि सभी खिलाड़ी अपने आप को एक ही दल के अंग के रूप में देखें और इसी मनोवृति के साथ खेलें, ना कि स्वतंत्र खेलने वाले लोगों के झुंड जैसे। इसके लिए उनका एक दुसरे के साथ बन्धे रहना, एक दूसरे के प्रति धन्यवादी रहना बहुत आवश्यक था, तब ही वे एक साथ मिलकर एक दूसरे के पूरक होकर एक टीम के रूप में जीत सकते थे। जयवंत होने के लिए भिन्नता में एकता रखने की यह शिक्षा परमेश्वर के वचन बाइबल की शिक्षा पर आधारित है।
प्रेरित पौलुस ने कुरिन्थुस की मसीही मण्डली को समझाया कि वे सब मसीह यीशु में एक देह होकर कार्य करें। वे सब एक ही देह के भिन्न अंगों के समान हैं और सब एक साथ मिलकर ही देह की उन्नति और स्वास्थ्य का कारण हो सकते हैं। कोई भी एक अंग किसी अन्य से अधिक महत्वपूर्ण नहीं और ना ही कोई अंग किसी अन्य से गौण। प्रत्येक का देह में अपना विशिष्ट स्थान है, और प्रत्येक अपने कार्य के लिए देह के लिए आवश्यक है। यदि एक भी अंग ठीक से कार्य नहीं करेगा तो सारी देह पर इसका दुषप्रभाव आएगा।
क्या किसी चर्च मण्डली के पास्टर की, या किसी बाइबल अधय्यन की, या किसी अन्य मसीही कार्य योजना की सफलता केवल किसी एक व्यक्ति ही के कारण है? क्या उस प्रमुख दिखने वाले व्यक्ति के पीछे अन्य कई सहायक जन नहीं होते? क्या उनका योगदान इसलिए नज़रंदाज़ होना चाहिए क्योंकि वे प्रकट में सामने नहीं आए? चाहे टीम चर्च की हो, चाहे परिवार हो चाहे कोई संस्था, जब तक उसके सब लोग एक साथ मिलकर अपनी अपनी ज़िम्मेदारियों को भरसक नहीं निभाएंगे, सफलता तो दूर, सुचारू रीति से कार्य करना भी असंभव हो जाएगा।
जौन वुडेन का नियम और प्रेरित पौलुस द्वारा कु्रिन्थुस की मण्डली को लिखे निर्देश दोनों एक ही सिद्धांत पर आधारित हैं - आगे बढ़ने के लिए हमें एक दुसरे की सहायता की आवश्यकता रहती है, कोई भी अकेले ही आगे नहीं बढ़ सकता, सफल नहीं हो सकता। परमेश्वर द्वारा प्रदान किए गए अपने वरदानों, गुणों और योग्यताओं को परमेश्वर की मण्डली की बढ़ोतरी के लिए, उसे मज़बूत बनाने के लिए और मण्डली से परमेश्वर के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए मिलजुल कर प्रयोग करें। - सिंडी हैस कैस्पर
मसीह यीशु की देह अर्थात उसकी मण्डली में व्यर्थ अथवा महत्वहीन अंग कोई नहीं है।
इसलिये कि देह में एक ही अंग नहीं, परन्तु बहुत से हैं। - 1 कुरिन्थियों 12:14
बाइबल पाठ: 1 कुरिन्थियों 12:12-26
1 Corinthians 12:12 क्योंकि जिस प्रकार देह तो एक है और उसके अंग बहुत से हैं, और उस एक देह के सब अंग, बहुत होने पर भी सब मिलकर एक ही देह हैं, उसी प्रकार मसीह भी है।
1 Corinthians 12:13 क्योंकि हम सब ने क्या यहूदी हो, क्या युनानी, क्या दास, क्या स्वतंत्र एक ही आत्मा के द्वारा एक देह होने के लिये बपतिस्मा लिया, और हम सब को एक ही आत्मा पिलाया गया।
1 Corinthians 12:14 इसलिये कि देह में एक ही अंग नहीं, परन्तु बहुत से हैं।
1 Corinthians 12:15 यदि पांव कहे कि मैं हाथ नहीं, इसलिये देह का नहीं, तो क्या वह इस कारण देह का नहीं?
1 Corinthians 12:16 और यदि कान कहे; कि मैं आंख नहीं, इसलिये देह का नहीं, तो क्या वह इस कारण देह का नहीं?
1 Corinthians 12:17 यदि सारी देह आंख ही होती तो सुनना कहां से होता? यदि सारी देह कान ही होती तो सूंघना कहां होता?
1 Corinthians 12:18 परन्तु सचमुच परमेश्वर ने अंगो को अपनी इच्छा के अनुसार एक एक कर के देह में रखा है।
1 Corinthians 12:19 यदि वे सब एक ही अंग होते, तो देह कहां होती?
1 Corinthians 12:20 परन्तु अब अंग तो बहुत से हैं, परन्तु देह एक ही है।
1 Corinthians 12:21 आंख हाथ से नहीं कह सकती, कि मुझे तेरा प्रयोजन नहीं, और न सिर पांवों से कह सकता है, कि मुझे तुम्हारा प्रयोजन नहीं।
1 Corinthians 12:22 परन्तु देह के वे अंग जो औरों से निर्बल देख पड़ते हैं, बहुत ही आवश्यक हैं।
1 Corinthians 12:23 और देह के जिन अंगो को हम आदर के योग्य नहीं समझते हैं उन्ही को हम अधिक आदर देते हैं; और हमारे शोभाहीन अंग और भी बहुत शोभायमान हो जाते हैं।
1 Corinthians 12:24 फिर भी हमारे शोभायमान अंगो को इस का प्रयोजन नहीं, परन्तु परमेश्वर ने देह को ऐसा बना दिया है, कि जिस अंग को घटी थी उसी को और भी बहुत आदर हो।
1 Corinthians 12:25 ताकि देह में फूट न पड़े, परन्तु अंग एक दूसरे की बराबर चिन्ता करें।
1 Corinthians 12:26 इसलिये यदि एक अंग दु:ख पाता है, तो सब अंग उसके साथ दु:ख पाते हैं; और यदि एक अंग की बड़ाई होती है, तो उसके साथ सब अंग आनन्द मनाते हैं।
एक साल में बाइबल:
- यशायाह 47-49
- 1 थिस्सुलुनीकियों 4