मसीही जीवन में पवित्र
आत्मा की उपस्थिति - यूहन्ना 15:26; 16:7
मसीही सेवकाई और मसीही विश्वासी के जीवन
में परमेश्वर पवित्र आत्मा की भूमिका की बातों से संबंधित हमारे इस अध्ययन में अभी
तक हमने देखा और सीखा है कि किस प्रकार परमेश्वर पवित्र आत्मा प्रत्येक मसीही
विश्वासी के जीवन कार्य करता है जिससे उसे उस सेवकाई के लिए जो परमेश्वर ने उसके
लिए निर्धारित की है (इफिसियों 2:10) तैयार करे तथा प्रभावी बनाए। इस संदर्भ में हमने देखा
था कि पवित्र आत्मा मसीही विश्वासी को प्रभु यीशु मसीह की बातों को स्मरण करवाता है, सिखाता है, और उसे वह सुरक्षा तथा
सहायता प्रदान करता है जिसकी सहायता से प्रभु का विश्वासी और उपयोगी जन “संसार का सरदार” (यूहन्ना 14:30), अर्थात शैतान का सामना कर सके।
यूहन्ना रचित सुसमाचार के अध्याय 13 से 17 तक प्रभु यीशु मसीह के पकड़वाए जाने से ठीक पहले, फसह के पर्व का भोज खाते समय,
अपने शिष्यों से किया गया अंतिम वार्तालाप है। प्रभु इस वार्तालाप
और इसमें दी गई शिक्षाओं के द्वारा उन्हें आते समयों और परिस्थितियों के लिए तैयार
कर रहा था। इसी वार्तालाप के दौरान प्रभु अपने शिष्यों से उन्हें आते समय में
पवित्र आत्मा की सामर्थ्य प्राप्त होने की बात समझाता है, जिसके
बारे में 14 और 16 अध्याय में लिखा है।
इन अध्यायों का अध्ययन करते समय, शिष्यों द्वारा पवित्र
आत्मा प्राप्त करने से संबंधित एक बहुत महत्वपूर्ण तथ्य हमारे सामने आता है -
अध्याय 14-16 में, चार बार लिखा गया है
कि परमेश्वर पवित्र आत्मा केवल प्रभु परमेश्वर की ओर से तथा उसके द्वारा ही,
और प्रभु के शिष्यों को ही प्रदान किया जाता है (14:16-17,
26; 15:26; 16:7)। प्रभु क्यों शिष्यों से बारंबार यह बात कह रहा था?
यह एक सामान्य व्यवहार और समझ की बात है कि यदि कोई शिक्षक अथवा
अगुवा किसी एक ही बात को बारंबार दोहराए, बल देकर विभिन्न
प्रकार से कहे, तो तात्पर्य यही है कि वह बात महत्वपूर्ण है,
ध्यान रखने योग्य है, उसकी उपयोगिता है, और उसकी अनदेखी नहीं करनी चाहिए। आज के अध्ययन के
दोनों पदों को देखिए:
- यूहन्ना
15:26 “परन्तु
जब वह सहायक आएगा, जिसे मैं तुम्हारे पास पिता की ओर
से भेजूंगा, अर्थात सत्य का आत्मा जो पिता की ओर से
निकलता है, तो वह मेरी गवाही देगा।”
- यूहन्ना
16:7 “तौभी
मैं तुम से सच कहता हूं, कि मेरा जाना तुम्हारे लिये
अच्छा है, क्योंकि यदि मैं न जाऊं, तो वह सहायक तुम्हारे पास न आएगा, परन्तु यदि मैं
जाऊंगा, तो उसे तुम्हारे पास भेज दूंगा।”
प्रभु ने उस समय के मौखिक वार्तालाप में
तो पवित्र
आत्मा को भेजने की बात दोहराई ही, साथ
ही जब इस सुसमाचार को भावी विश्व-व्यापी मसीही विश्वासियों के लिए लिखा गया,
तो उसमें भी लिखवा दिया; अर्थात, यह बात सारे संसार के सभी स्थानों और समयों के उन सभी विश्वासियों के लिए
भी उतनी ही महत्वपूर्ण थी, जितनी कि तब प्रभु के साथ उपस्थित
उन शिष्यों के लिए थी। प्रभु ने संसार के सभी मसीही विश्वासियों से, वे चाहे किसी भी समय या स्थान के क्यों न हों, इस
बात को बल देकर कहा है, जिससे कि वे कभी भी भरमाए न जाएं, गलत शिक्षा में न पड़
जाएं, वचन
के सत्य से बहकाए न जाएं
(2 कुरिन्थियों 11:3,
13-15)। आज सारे संसार भर में ऐसे मत, समुदायों,
और डिनॉमिनेशंस का बोल-बाला है जो परमेश्वर पवित्र आत्मा के नाम से
और उन से संबंधित बहुत सी गलत शिक्षाएं लोगों को सिखाने में लगे हुए हैं। वे बाइबल
के पदों, वाक्यांशों, शब्दों, और बातों को उनके संदर्भ से बाहर लेकर, उन्हें अपनी
धारणाओं के अनुसार तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत करते हैं, उनपर अपनी
उन्हीं गलत धारणाओं से संबंधित अर्थ बैठाते हैं। ऐसे लोगों की गलत शिक्षाओं में एक
प्रमुख शिक्षा मसीह यीशु पर विश्वास करने के बाद, अलग से
पवित्र आत्मा को प्राप्त करने के प्रयत्न करने के संबंध में होती है। वे लोगों के मनों में
यह गलत शिक्षा बैठा देने के प्रयास करते हैं कि मनुष्य अपनी युक्तियों, विधियों, और प्रयासों से, या किसी व्यक्ति विशेष अथवा उनके मत
के लोगों या उनके अगुवे द्वारा दिखाए और बताए गए निर्देशों का पालन करने से पवित्र
आत्मा प्राप्त
कर सकता है। और साथ ही वे
मरकुस 16:18 का
दुरुपयोग करते हुए बल देकर एक और गलत शिक्षा भी जोड़ देते हैं कि पवित्र आत्मा
मिलने का प्रमाण ‘अन्य भाषाएं बोलना’ तथा
आश्चर्यकर्म करना है।
ये लोग अपनी धारणाओं
को बहुत बल देकर प्रस्तुत करते हैं। वे बहुत शोर-शराबे तथा विचित्र शारीरिक
हाव-भाव और क्रियाओं के साथ अपनी बातों को यह कहकर प्रस्तुत करते हैं कि उनका यह
शोर-शराबा, विचित्र शारीरिक क्रियाएं और हाव-भाव पवित्र
आत्मा पा लेने और उनमें पवित्र आत्मा की सामर्थ्य विद्यमान होने के प्रमाण हैं।
किन्तु उपरोक्त यूहन्ना 15:26 में देखिए, प्रभु यीशु मसीह ने पवित्र आत्मा के प्रभु के शिष्यों में आने के विषय
क्या कहा, क्या प्रमाण दिया - “वह
मेरी गवाही देगा”; अर्थात शिष्य में परमेश्वर पवित्र
आत्मा की उपस्थिति, उस शिष्य के जीवन में प्रभु यीशु मसीह की
गवाही विद्यमान होने से प्रमाणित होगी, न कि बाइबल से बाहर
की बातों के द्वारा! वह शिष्य मसीह के समान जीना आरंभ कर देगा, प्रभु का गवाह होकर कार्य करने लगेगा, प्रभु यीशु की
आज्ञाकारिता में किसी मनुष्य-मत-समुदाय-डिनॉमिनेशन को नहीं वरन परमेश्वर को
प्रसन्न करने वाला जीवन व्यतीत करेगा (1 कुरिन्थियों 11:1;
1 थिस्सलुनीकियों 4:1-2, 11)। शिष्यों को
पवित्र आत्मा की सामर्थ्य प्राप्त होने से संबंधित प्रभु यीशु की शिक्षाओं के इन
चारों हवालों में (यूहन्ना 14:16-17, 26; 15:26; 16:7) प्रभु
ने अपने शिष्यों से ऐसी कोई बात नहीं कही जैसी ये पवित्र आत्मा से संबंधित गलत
शिक्षाएं देने वाले बताते और सिखाते हैं। वरन प्रभु यीशु ने आते समय की इन गलत
शिक्षाओं से सचेत रहने के लिए ही पहले से ही अपने शिष्यों को समझा दिया, उनके लिए लिखवा दिया कि परमेश्वर पवित्र आत्मा किसी मनुष्य के तरीकों से
नहीं, केवल और केवल प्रभु परमेश्वर की ओर से ही मिलता है,
और प्रत्येक सच्चे मसीही विश्वासी में, उसके
उद्धार पाते ही तुरंत ही आकर निवास करने लगता है, जैसा कि हम
पहले देख चुके हैं (लिंक: उद्धार के साथ पवित्र आत्मा की प्राप्ति)। जिसका
वास्तव में उद्धार नहीं हुआ है, उसमें परमेश्वर पवित्र आत्मा
भी निवास नहीं करेगा, वह व्यक्ति चाहे जितने प्रयास, प्रार्थना, उपवास, आदि क्यों न
कर ले। व्यक्ति में पवित्र आत्मा की उपस्थिति, उस व्यक्ति के
प्रभु यीशु द्वारा ही उद्धार के सुसमाचार का गवाह होने से, प्रभु
यीशु मसीह की गवाही रखने (यूहन्ना 15:26) और उस व्यक्ति के
द्वारा शरीर की लालसाओं को त्याग कर जीवन में पवित्र आत्मा के फल दर्शाने (गलातीयों
5:22-24) के द्वारा प्रमाणित होती है।
यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, तो ध्यान रखिए कि
परमेश्वर पवित्र आत्मा प्रत्येक मसीही विश्वासी का सहायक है, और केवल प्रभु यीशु मसीह तथा पिता परमेश्वर की ओर से आता है। वह मनुष्य के
हाथ की कठपुतली नहीं है जिसे मनुष्य अपने प्रयासों और मन के अनुसार लेता-देता रहे,
एक-दूसरे पर उतारता रहे, किसी पर उतर आने के
लिए बाध्य करता रहे, और फिर उस से कुछ-कुछ तमाशे करवाता रहे।
ऐसी भावना रखने वाले लोग शमौन जादूगर, जिसको दुष्टता से भरा
हुआ कहा गया है, के समान हैं क्योंकि वह परमेश्वर पवित्र
आत्मा को अपने वश में रखकर अपनी इच्छा के अनुसार प्रयोग करना चाहता था (प्रेरितों 8:18-23)। ऐसे लोगों और उनकी भ्रामक शिक्षाओं से बचकर रहिए; उनके
बहकावे में न पड़िए।
यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी
तक स्वीकार नहीं किया है, तो थोड़ा थम कर विचार कीजिए, क्या
मसीही विश्वास के अतिरिक्त आपको कहीं और यह अद्भुत और विलक्षण आशीषों से भरा
सौभाग्य प्राप्त होगा, कि स्वयं परमेश्वर आप में आ कर सर्वदा
के लिए निवास करे; आपको अपना वचन सिखाए; और आपको शैतान की युक्तियों और हमलों से सुरक्षित रखने के सभी प्रयोजन
करके दे? और फिर, आप में होकर अपने आप
को औरों पर प्रकट करे, तथा पाप में भटके लोगों को उद्धार और
अनन्त जीवन प्रदान करने के अपने अद्भुत कार्य करे, जिससे
अंततः आपको ही अपनी ईश्वरीय आशीषों से भर सके? इसलिए अपने
अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष
में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके
वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा
भी है। स्वेच्छा और सच्चे मन से अपने पापों के लिए पश्चाताप करके, उनके लिए प्रभु से क्षमा माँगकर, अपने आप को उसकी
अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है।
आप अपने पापों के अंगीकार और पश्चाताप करके, प्रभु यीशु से
समर्पण की प्रार्थना कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु
यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए
मेरे सभी पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर
क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे
उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु
परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी
शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप
के हाथों में समर्पित करता हूँ।” प्रभु की शिष्यता तथा मन
परिवर्तन के लिए सच्चे पश्चाताप और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके
वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को,
अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
एक साल में बाइबल पढ़ें:
- यिर्मयाह
46-47
- इब्रानियों 6