मुझे बुज़ुर्ग चाचा औस्कर की प्रथम हवाई यात्रा की कहानी बहुत पसन्द है। उन्हें सदा ही हवाई यात्रा से डर लगता था और वे कभी हवाई जहाज़ पर जाने को तैयार नहीं होते थे। बड़ी मुश्किल से आखिरकर वे हवाई यात्रा के लिये मान गए। यात्रा के बाद उनके मित्रों ने पूछा, "क्यों, क्या हवाई यात्रा में मज़ा आया?" तो चाचा ने उत्तर दिया, "चलो, वैसे तो मैं जैसा सोचता था उतनी बुरी तो नहीं थी, लेकिन मैं यह भी बता दूं कि मैंने अपना पूरा भार उस जहाज़ पर नहीं डाला था।"
ऐसे ही हम में से कई मसीही भी हैं। मसीही विश्वासी होने के नाते हम जानते हैं कि हमारे पाप क्षमा हो गए हैं और हमें स्वर्ग जाने के अटल आश्वासन का आनन्द है, लेकिन इससे आगे हम प्रभु पर अपने प्रतिदिन के जीवन के लिये विश्वास नहीं करते। हम अपने प्रतिदिन की आवश्यक्तओं के लिये प्रभु पर निर्भर रहने का विश्वास नहीं जुटा पाते और उन्हें स्वयं अपनी सामर्थ और सूझ-बूझ से ही पूरी करना चाहते हैं - हम अपना पूरा वज़न प्रभु पर नहीं डाल देते। नतीजा होता है हमारे अन्दर भय, शक, अनिश्चितता घर बना लेतीं है, चिंताएं हमें घेरे रहती हैं और हम अपनी मसीही यात्रा का पूरा आनन्द नहीं उठाने पाते। कैसी विचित्र बात है, हमें प्रभु पर अनन्तकाल के लिये तो सम्पूर्ण भरोसा है, लेकिन अभी और यहां के लिये नहीं।
यदि हम प्रभु पर भविष्य की अपनी अनन्त नियति के लिये भरोसा रख सकते हैं, तो वर्तमान पर क्यों नहीं? वर्तमान के लिये भी हमें उसके वचन पर उतना ही भरोसा होना चाहिये, जितना भविष्य के लिये। जैसे अब्राहम अपने विश्वास में खरा रहा और डगमगाया नहीं, वैसे ही हमें भी अपने विश्वास में स्थिर रहना चाहिये।
यदि हम चिंता और भय के बोझ तले दबे हैं तो हम चाचा औस्कर के समान हैं - अपना पूरा बोझ डालने से डरने वाले। इसके बजाए हमें अब्राहम की तरह होना चाहिये जिसने "न अविश्वासी होकर परमेश्वर की प्रतिज्ञा पर संदेह किया, पर विश्वास में दृढ़ होकर परमेश्वर की महिमा की।" (रोमियों ४:२०)
जी हां, परमेश्वर सम्पूर्ण रीति से हर बात के लिये विश्वास योग्य है। हम निडर होकर उसपर अपना पूरा वज़न डाल सकते हैं। - रिचर्ड डी हॉन
और न अविश्वासी होकर परमेश्वर की प्रतिज्ञा पर संदेह किया, पर विश्वास में दृढ़ होकर परमेश्वर की महिमा की। - रोमियों ४:२०
बाइबल पाठ: रोमियों ४:१६-२५
इसी कारण वह विश्वास के द्वारा मिलती है, कि अनुग्रह की रीति पर हो, कि प्रतिज्ञा सब वंश के लिये दृढ़ हो, न कि केवल उसके लिये जो व्यवस्था वाला है, वरन उन के लिये भी जो इब्राहीम के समान विश्वास वाले हैं: वही तो हम सब का पिता है।
जैसा लिखा है, कि मैं ने तुझे बहुत सी जातियों का पिता ठहराया है उस परमश्ेवर के साम्हने जिस पर उस ने विश्वास किया और जो मरे हुओं को जिलाता है, और जो बातें हैं ही नहीं, उन का नाम ऐसा लेता है, कि मानो वे हैं।
उस ने निराशा में भी आशा रख कर विश्वास किया, इसलिये कि उस वचन के अनुसार कि तेरा वंश ऐसा होगा वह बहुत सी जातियों का पिता हो।
और वह जो एक सौ वर्ष का था, अपने मरे हुए से शरीर और सारा के गर्भ की मरी हुई की सी दशा जान कर भी विश्वास में निर्बल न हुआ।
और न अविश्वासी होकर परमेश्वर की प्रतिज्ञा पर संदेह किया, पर विश्वास में दृढ़ हो कर परमेश्वर की महिमा की।
और निश्चय जाना, कि जिस बात की उस ने प्रतिज्ञा की है, वह उसे पूरी करने को भी सामर्थी है।
इस कारण, यह उसके लिये धामिर्कता गिना गया।
और यह वचन, कि विश्वास उसके लिये धामिर्कता गिना गया, न केवल उसी के लिये लिखा गया,
वरन हमारे लिये भी जिन के लिये विश्वास धामिर्कता गिना जाएगा, अर्थात हमारे लिये जो उस पर विश्वास करते हैं, जिस ने हमारे प्रभु यीशु को मरे हुओं में से जिलाया।
वह हमारे अपराधों के लिये पकड़वाया गया, और हमारे धर्मी ठहरने के लिये जिलाया भी गया।
एक साल में बाइबल:
ऐसे ही हम में से कई मसीही भी हैं। मसीही विश्वासी होने के नाते हम जानते हैं कि हमारे पाप क्षमा हो गए हैं और हमें स्वर्ग जाने के अटल आश्वासन का आनन्द है, लेकिन इससे आगे हम प्रभु पर अपने प्रतिदिन के जीवन के लिये विश्वास नहीं करते। हम अपने प्रतिदिन की आवश्यक्तओं के लिये प्रभु पर निर्भर रहने का विश्वास नहीं जुटा पाते और उन्हें स्वयं अपनी सामर्थ और सूझ-बूझ से ही पूरी करना चाहते हैं - हम अपना पूरा वज़न प्रभु पर नहीं डाल देते। नतीजा होता है हमारे अन्दर भय, शक, अनिश्चितता घर बना लेतीं है, चिंताएं हमें घेरे रहती हैं और हम अपनी मसीही यात्रा का पूरा आनन्द नहीं उठाने पाते। कैसी विचित्र बात है, हमें प्रभु पर अनन्तकाल के लिये तो सम्पूर्ण भरोसा है, लेकिन अभी और यहां के लिये नहीं।
यदि हम प्रभु पर भविष्य की अपनी अनन्त नियति के लिये भरोसा रख सकते हैं, तो वर्तमान पर क्यों नहीं? वर्तमान के लिये भी हमें उसके वचन पर उतना ही भरोसा होना चाहिये, जितना भविष्य के लिये। जैसे अब्राहम अपने विश्वास में खरा रहा और डगमगाया नहीं, वैसे ही हमें भी अपने विश्वास में स्थिर रहना चाहिये।
यदि हम चिंता और भय के बोझ तले दबे हैं तो हम चाचा औस्कर के समान हैं - अपना पूरा बोझ डालने से डरने वाले। इसके बजाए हमें अब्राहम की तरह होना चाहिये जिसने "न अविश्वासी होकर परमेश्वर की प्रतिज्ञा पर संदेह किया, पर विश्वास में दृढ़ होकर परमेश्वर की महिमा की।" (रोमियों ४:२०)
जी हां, परमेश्वर सम्पूर्ण रीति से हर बात के लिये विश्वास योग्य है। हम निडर होकर उसपर अपना पूरा वज़न डाल सकते हैं। - रिचर्ड डी हॉन
सच्चा विश्वास यह जानता है कि परमेश्वर जो कहता है सदैव वह करता भी है।
और न अविश्वासी होकर परमेश्वर की प्रतिज्ञा पर संदेह किया, पर विश्वास में दृढ़ होकर परमेश्वर की महिमा की। - रोमियों ४:२०
बाइबल पाठ: रोमियों ४:१६-२५
इसी कारण वह विश्वास के द्वारा मिलती है, कि अनुग्रह की रीति पर हो, कि प्रतिज्ञा सब वंश के लिये दृढ़ हो, न कि केवल उसके लिये जो व्यवस्था वाला है, वरन उन के लिये भी जो इब्राहीम के समान विश्वास वाले हैं: वही तो हम सब का पिता है।
जैसा लिखा है, कि मैं ने तुझे बहुत सी जातियों का पिता ठहराया है उस परमश्ेवर के साम्हने जिस पर उस ने विश्वास किया और जो मरे हुओं को जिलाता है, और जो बातें हैं ही नहीं, उन का नाम ऐसा लेता है, कि मानो वे हैं।
उस ने निराशा में भी आशा रख कर विश्वास किया, इसलिये कि उस वचन के अनुसार कि तेरा वंश ऐसा होगा वह बहुत सी जातियों का पिता हो।
और वह जो एक सौ वर्ष का था, अपने मरे हुए से शरीर और सारा के गर्भ की मरी हुई की सी दशा जान कर भी विश्वास में निर्बल न हुआ।
और न अविश्वासी होकर परमेश्वर की प्रतिज्ञा पर संदेह किया, पर विश्वास में दृढ़ हो कर परमेश्वर की महिमा की।
और निश्चय जाना, कि जिस बात की उस ने प्रतिज्ञा की है, वह उसे पूरी करने को भी सामर्थी है।
इस कारण, यह उसके लिये धामिर्कता गिना गया।
और यह वचन, कि विश्वास उसके लिये धामिर्कता गिना गया, न केवल उसी के लिये लिखा गया,
वरन हमारे लिये भी जिन के लिये विश्वास धामिर्कता गिना जाएगा, अर्थात हमारे लिये जो उस पर विश्वास करते हैं, जिस ने हमारे प्रभु यीशु को मरे हुओं में से जिलाया।
वह हमारे अपराधों के लिये पकड़वाया गया, और हमारे धर्मी ठहरने के लिये जिलाया भी गया।
एक साल में बाइबल:
- निर्गमन २३-२४
- मत्ती २०:१-१६