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शनिवार, 22 अक्टूबर 2011

दैनिक ताज़गी

   अपनी दैनिक क्रियाओं में हम सब लगभग उन्हीं बातों को दोहराते रहते हैं; हम सब प्रतिदिन खाते-पीते हैं, सोते-उठते हैं, कार्य करते हैं, अपनी सफाई करते हैं, इत्यादि। इसि प्रक्रिया को दोहराते दोहराते कभी कभी मन में विचार उठता है कि अन्ततः इस सब का प्रयोजन क्या है?

   परमेश्वर चाहता है कि हम इसे कुछ फर्क संदर्भ में देखें - बार बार दोहराई जाने वाली बातें भी मसीही विश्वासी के लिए कुछ महत्वपूर्ण रहस्य छिपाए हुए होती हैं। परमेश्वर की योजना का एक भाग है कि बार बार दोहराई जाने वाली बातों में भी उसके मार्गदर्शन को ढूंढें और उसका पालन करें।

   संसार एक मंच के समान है जिस पर अनन्तता का नाटक प्रदर्शित हो रहा है। प्रत्येक दृश्य के लिए मंच के परदे के उठने और गिरने के समान सूर्य भी प्रतिदिन के दृश्य के लिए उदय और अस्त होता है। इस दैनिक दश्य में हम कलाकार अपनी भूमिकाओं और अपने संवाद की पंक्तियों को दोहराने के बारे में निर्णय लेते हैं - या तो हम अधीरता से केवल दश्य की समाप्ति के लिए अपनी भूमिकाएं और पंक्तियां, बिना किसी लगन और अनमने होकर के दोहरा मात्र देते हैं, अथवा उस दृश्य के लिए हम नाटक के निर्देशक की मनसा जान कर के अपनी भूमिका को उसकी इच्छा के अनुसार निभाते हैं। अवश्य ही परिस्थितियां और भूमिकाएं नित्यक्रमानुसार ही हैं, और हमें लग सकता है कि हम यह पहले भी निभा चुके हैं, किन्तु नित्यप्रायः कार्यों में सहर्ष भाग लेना हम में चरित्र का गठन करता है, हमारे विश्वास को मज़बूत करता है, हमारी आशा को बढ़ाता है और हम में सहनशीलता का विकास करता है।

   प्रतिदिन के सामन्य कार्यों के द्वारा परमेश्वर हमें सिखाता है कि हमारे पृथ्वी के जीवनों के लिए व्यर्थ दोहराने से बढ़कर कुछ निर्धारित है। दिन-प्रतिदिन परमेश्वर पर भरोसा बनाए रखना दैनिक ताज़गी का मूल मंत्र है। - मार्ट डी हॉन


अगर जीवन सान के पत्थर के समान है, तो उसे अपने चरित्र की धार बनाने के लिए उपयोग कीजिए।
 
जो कुछ हुआ था, वही फिर होगा, और जो कुछ बन चुका है वही फिर बनाया जाएगा; और सूर्य के नीचे कोई बात नई नहीं है। - सभोपदेशक १:९
 
बाइबल पाठ: सभोपदेशक १:१-९
    Ecc 1:1  यरूशलेम के राजा, दाऊद के पुत्र और उपदेशक के वचन।
    Ecc 1:2  उपदेशक का यह वचन है, कि व्यर्थ ही व्यर्थ, व्यर्थ ही व्यर्थ! सब कुछ व्यर्थ है।
    Ecc 1:3  उस सब परिश्रम से जिसे मनुष्य धरती पर करता है, उसको क्या लाभ प्राप्त होता है?
    Ecc 1:4  एक पीढ़ी जाती है, और दूसरी पीढ़ी आती है, परन्तु पृथ्वी सर्वदा बनी रहती है।
    Ecc 1:5  सूर्य उदय होकर अस्त भी होता है, और अपने उदय की दिशा को वेग से चला जाता है।
    Ecc 1:6  वायु दक्खिन की ओर बहती है, और उत्तर की ओर घूमती जाती है; वह घूमती और बहती रहती है, और अपने चक्करों में लौट आती है।
    Ecc 1:7  सब नदियां समुद्र में जा मिलती हैं, तौभी समुद्र भर नहीं जाता; जिस स्थान से नदियां निकलती हैं, उधर ही को वे फिर जाती हैं।
    Ecc 1:8  सब बातें परिश्रम से भरी हैं; मनुष्य इसका वर्णन नहीं कर सकता, न तो आंखें देखने से तृप्त होती हैं, और न कान सुनने से भरते हैं।
    Ecc 1:9  जो कुछ हुआ था, वही फिर होगा, और जो कुछ बन चुका है वही फिर बनाया जाएगा; और सूर्य के नीचे कोई बात नई नहीं है।
 
एक साल में बाइबल: 
  • यशायाह ६५-६६ 
  • १ तिमुथियुस २