पवित्र आत्मा की
प्राप्ति (2)
पिछले लेख में
हमने से देखा था कि मसीही सेवकाई के लिए शैतान के साथ हमारा मल्लयुद्ध आत्मिक
युद्ध है, जिसके लिए आत्मिक सामर्थ्य, आत्मिक
हथियार, और आत्मिक मार्गदर्शन की आवश्यकता है, जो हमें परमेश्वर पवित्र आत्मा में होकर मिलते हैं। साथ ही हमने प्रेरितों
1:5, 8 से देखा था कि पवित्र आत्मा प्राप्त करने के लिए कोई
विशेष प्रयास, आग्रह, प्रार्थनाएं,
आदि करने की कोई शिक्षा न तो प्रभु यीशु ने शिष्यों को दी, और न ही नए नियम में यह कहीं दी अथवा सिखाई गई है। हमने यह भी देखा था कि
पवित्र आत्मा पाना ही पवित्र आत्मा से बपतिस्मा प्राप्त करना है। पवित्र आत्मा
प्राप्त करने, अर्थात पवित्र आत्मा से बपतिस्मा पाने के लिए कोई विशेष प्रयास करने की आवश्यकता, या कोई पृथक और विशेष
बात होना वचन से संगत सिद्धांत नहीं है। व्यर्थ ही लोगों ने इन्हें अलग सिद्धांत
बनाकर, अपने ही बनाए हुए उस सिद्धांत से संबंधित बातों की
शिक्षाएं फैला कर लोगों को भ्रम में डाल रखा है, वचन की सीधी
स्पष्ट शिक्षा से भटका रखा है। आज इसी संदर्भ में हम वह दूसरी बात देखेंगे,
जिसके विषय कल के लेख में उल्लेख किया गया था।
प्रभु यीशु ने अपने स्वर्गारोहण से पहले
शिष्यों से कहा था, “और
उन से मिलकर उन्हें आज्ञा दी, कि यरूशलेम को न छोड़ो,
परन्तु पिता की उस प्रतिज्ञा के पूरे होने की बाट जोहते रहो,
जिस की चर्चा तुम मुझ से सुन चुके हो” (प्रेरितों 1:4)। प्रभु उन्हें स्मरण दिला रहा था कि वह उन्हें पहले भी पवित्र आत्मा
प्राप्त करने के बारे में न केवल बात चुका है, वरन इसके विषय उनसे चर्चा भी कर चुका
है, अर्थात विस्तार से उन्हें बता और समझा चुका है। उन
शिष्यों के साथ, सेवकाई के दिनों में, प्रभु
ने कई बार उन से पवित्र आत्मा प्राप्त करने की बात कही थी; किन्तु
हर बार यह भविष्य काल में ही होने की बात थी; अर्थात उन्हें
यही सिखाया था पवित्र आत्मा उन्हें बाद में किसी समय पर दिया जाएगा:
- लूका 11:13
– इस पद का दुरुपयोग यह बताने के लिए किया जाता है कि प्रभु ने
कहा है कि पवित्र आत्मा परमेश्वर से मांगने पर मिलता है। जबकि यदि इस पद को
उसके संदर्भ (पद 11-13) में देखें, तो यह स्पष्ट है कि यह आलंकारिक भाषा का प्रयोग है, एक तुलनात्मक कथन है। प्रभु, किसी सांसारिक
पिता के अपनी संतान की आवश्यकता के लिए उसे सर्वोत्तम देने की मनसा रखने की
बात कर रहा है। जैसे सांसारिक पिता अपने बच्चों को यथासंभव उत्तम देता है,
वैसे ही परमेश्वर भी “अपने” लोगों को – जो उससे पवित्र आत्मा को मांगने का साहस और समझ रखते हैं;
उसका प्रयोग करना जानते हैं, उन्हें अपना
यथासंभव उत्तम, यहाँ तक कि अपना पवित्र आत्मा भी दे
देगा। साथ ही, हर किसी मांगने वाले को पवित्र आत्मा
देने के लिए परमेश्वर बाध्य नहीं है; मांगने वाले का मन
भी इसके लिए ठीक होना चाहिए - वे परमेश्वर के “अपने लोग”
होने चाहिएं। प्राथमिकता परमेश्वर के अपने लोग होने की है;
जो प्रभु परमेश्वर के अपने हो जाते हैं, जैसा
हम देख चुके हैं, उन्हें विश्वास करने के साथ ही
परमेश्वर पवित्र आत्मा भी प्राप्त हो जाता है। प्रेरितों
8:18-23 में शमौन टोनहा करने वाले को गलत मनसा रखते हुए,
और वास्तविकता में प्रभु का जन न होने पर भी पवित्र आत्मा
मांगने पर प्रेरितों से अच्छी डाँट मिली, न कि पवित्र
आत्मा; यद्यपि वह प्रभु में विश्वास करने का दावा करता
था, उसने बपतिस्मा भी लिया था, और
विश्वासियों की संगति में रहता था (प्रेरितों 8:13)।
- यूहन्ना 7:37-39
– “बह निकलेंगी”; “पाने पर थे”
– भविष्य काल – और साथ ही शर्त भी कह दी गई है कि ऐसा उनके लिए
होगा “जो उस पर विश्वास करने वाले” होंगे – जैसा पहले देख चुके हैं, जो विश्वास
करेगा, उसे पवित्र आत्मा स्वतः ही मिल जाएगा। किन्तु
जिसने सच्चा विश्वास नहीं किया (यह केवल प्रभु ही जानता है, कोई मनुष्य नहीं), उसे वह कदापि नहीं मिलेगा,
वह चाहे कितनी भी प्रार्थनाएं, प्रतीक्षा,
या प्रयास करता रहे। जिसने विश्वास किया, उसे फिर कुछ और करने की आवश्यकता नहीं है, और न
ही करने के लिए कहा गया है।
- यूहन्ना 14:16-17
– “देगा”, “होगा” – भविष्य काल – पिता देगा, और फिर वह सर्वदा साथ
रहेगा – आएगा जाएगा नहीं, जैसे पुराने नियम में था
(ओत्निएल - न्यायियों 3:9,10; गिदोन - न्यायियों 6:34;
यिप्ताह, शमसून, राजा
शाऊल 1 शमूएल 10:6, 10; दाऊद 1
शमूएल 16:13, आदि)
- यूहन्ना 16:7
– “आएगा” – भविष्य काल – भविष्य
में आना था; उसी समय नहीं
- यूहन्ना 20:22
– “लो” – अभी तक जो भविष्य की बात
कही जा रही थी, अब प्रभु के पुनरुत्थान के बाद उस का
समय आ गया था। अब इस बात को पूरा होना था, शिष्यों को
एक प्रक्रिया के अंतर्गत पवित्र आत्मा को प्राप्त करना था। प्रभु ने इस पद की
यह बात अपने पुनरुत्थान के बाद शिष्यों से कही – उन्हें पहले की प्रतिज्ञा
स्मरण करवाई, और स्वर्गारोहण के समय प्राप्ति की
प्रक्रिया भी बताई (लूका 24:49)। पवित्र आत्मा प्रभु की
फूँक में नहीं था, और न ही आगे भी कभी फूंकने के द्वारा किसी को दिया गया।
हम मसीही विश्वासियों ने, जो प्रभु के जन हैं, अर्थात, जिन्होंने किसी धर्म-कर्म-रस्म के निर्वाह के अंतर्गत नहीं, अपितु व्यक्तिगत रीति से अपने पापों से पश्चाताप करके, प्रभु यीशु मसीह से उनके लिए सच्चे मन से क्षमा माँगकर, अपना जीवन प्रभु यीशु मसीह को समर्पित किया है, उसकी आज्ञाकारिता में जीवन व्यतीत करने का निर्णय लिया है, उन्हें मसीही विश्वास में आते ही पवित्र आत्मा दे दिया गया है, अर्थात उन्होंने पवित्र आत्मा से बपतिस्मा पा लिया है। साथ ही, परमेश्वर पवित्र आत्मा ने प्रत्येक मसीही विश्वासी को, परमेश्वर द्वारा उसके लिए निर्धारित सेवकाई (इफिसियों 2:10) के अनुसार, किसी के व्यक्तिगत उपयोग के लिए नहीं वरन कलीसिया तथा सभी के लाभ के लिए विभिन्न वरदान भी प्रदान किए हैं (1 कुरिन्थियों 12:4-11)। हमें जो वरदान दिए गए हैं, हमें उनका प्रयोग हमारे लिए परमेश्वर द्वारा निर्धारित मसीही सेवकाई में करना है (रोमियों 12:6-8); तथा “इसलिये हे भाइयों, मैं तुम से परमेश्वर की दया स्मरण दिला कर बिनती करता हूं, कि अपने शरीरों को जीवित, और पवित्र, और परमेश्वर को भावता हुआ बलिदान कर के चढ़ाओ: यही तुम्हारी आत्मिक सेवा है। और इस संसार के सदृश न बनो; परन्तु तुम्हारी बुद्धि के नये हो जाने से तुम्हारा चाल-चलन भी बदलता जाए, जिस से तुम परमेश्वर की भली, और भावती, और सिद्ध इच्छा अनुभव से मालूम करते रहो” (रोमियों 12:1-2)।
यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक
स्वीकार नहीं किया है, तो
अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी उसके पक्ष में
अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके
वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और
सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए
- उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से
प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ
ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार
से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ
कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े
गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें।
मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और
समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए
स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
यूहन्ना 14 और 16 अध्याय में प्रभु की प्रतिज्ञा के अनुसार, प्रभु के शिष्यों को उनकी मसीही सेवकाई के लिए पवित्र आत्मा द्वारा मिलने वाली सहायता और मार्गदर्शन से संबंधित बातों को हम कल से देखेंगे।
एक साल में बाइबल पढ़ें:
- यिर्मयाह
32-33
- इब्रानियों 1