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मंगलवार, 27 अगस्त 2013

विनम्रता

   अपने कॉलेज छात्र होने के दिनों में मैंने जोड़े बनने की अनेकों कहानियाँ सुनी थीं। किसी कन्या के प्रति प्रेम भाव से भरे मेरे मित्रों ने अपने उस प्रेम को व्यक्त करने के लिए चकाचौंध कर देने वाले रेस्टोरेन्ट, पहाड़ की चोटी से सूर्यास्त के मनोहर दृश्य, घोड़ा गाड़ी की सवारी आदि अनेक माध्यमों का उपयोग करा। मुझे एक युवक की विलक्षण कहानी अभी तक स्मरण है, जिसने अपने प्रेम को व्यक्त करने के लिए अपनी प्रेमिका के पैर धोए! उसकी यह ’विनम्रता’ यह दर्शाने के लिए थी कि वह आजीवन वचनबद्धता में विनम्रता के महत्व को समझता था।

   प्रेरित पौलुस ने भी विनम्रता के महत्व को समझा और यह भी कि कैसे विनम्रता ही हमें आपस में जोड़ कर रख सकती है। यह बात विवाह संबंध में विशेष रूप से लागू होती है। पौलुस ने चिताया कि संबंधों को प्रगाढ़ बनाए रखने के लिए सबसे पहले निज स्वार्थ की भावनाओं को त्याग देना है: "विरोध या झूठी बड़ाई के लिये कुछ न करो पर दीनता से एक दूसरे को अपने से अच्छा समझो" (फिलिप्पियों 2:3)। स्वार्थ तथा निज हित के स्थान पर हमें अपने जोड़ीदार को अपने से अधिक महत्व देना चाहिए और उनकी इच्छाओं का ध्यान रखना चाहिए।

   विनम्रता को कार्यकारी रूप में दिखाने का अर्थ है अपने जोड़ीदार की सेवा करना, और कोई भी सेवा छोटी या बड़ी नहीं होती। आखिरकर प्रभु यीशु ने भी "मनुष्य के रूप में प्रगट हो कर अपने आप को दीन किया, और यहां तक आज्ञाकारी रहा, कि मृत्यु, हां, क्रूस की मृत्यु भी सह ली" (फिलिप्पियों 2:8)। प्रभु यीशु का निस्वार्थ स्वभाव हमारे प्रति उसके प्रेम का सूचक है।

   आज अपने किसी प्रीय के लिए आप विनम्रता सहित क्या सेवा कर सकते हैं? हो सकता है कि यह एक साधारण सी बात ही हो, जैसे खाने में परोसे जाने वाली वस्तुओं की सूची से उसको नापसन्द भोजन वस्तुओं को हटा देना; या कोई कठिन बात जैसे किसी लंबी बिमारी के समय उसके पूर्ण स्वास्थ लाभ होने तक उस के साथ बने रहना, उसकी सेवा करते रहना। कार्य कुछ भी हो, लेकिन अपनी आवश्यकताओं से बढ़कर अपने जोड़ीदार की आवश्यकताओं का ध्यान रखना दिखाता है कि हम उसके प्रति वैसी ही विनम्रता सहित वचनबद्ध हैं जैसे हमारा तथा समस्त संसार का उद्धारकर्ता मसीह यीशु अपनी विनम्रता सहित हमारे प्रति वचनबद्ध है। - जेनिफर बेन्सन शुल्ट


यदि आप यह विचार रखते हैं कि किसी प्रीय के प्रति प्रेम अत्याधिक भी हो सकता है, तो संभवतः आपने उससे कभी पर्याप्त प्रेम करा ही नहीं है।

और मनुष्य के रूप में प्रगट हो कर अपने आप को दीन किया, और यहां तक आज्ञाकारी रहा, कि मृत्यु, हां, क्रूस की मृत्यु भी सह ली। - फिलिप्पियों 2:8

बाइबल पाठ: फिलिप्पियों 2:1-11
Philippians 2:1 सो यदि मसीह में कुछ शान्‍ति और प्रेम से ढाढ़स और आत्मा की सहभागिता, और कुछ करूणा और दया है।
Philippians 2:2 तो मेरा यह आनन्द पूरा करो कि एक मन रहो और एक ही प्रेम, एक ही चित्त, और एक ही मनसा रखो।
Philippians 2:3 विरोध या झूठी बड़ाई के लिये कुछ न करो पर दीनता से एक दूसरे को अपने से अच्छा समझो।
Philippians 2:4 हर एक अपनी ही हित की नहीं, वरन दूसरों की हित की भी चिन्‍ता करे।
Philippians 2:5 जैसा मसीह यीशु का स्‍वभाव था वैसा ही तुम्हारा भी स्‍वभाव हो।
Philippians 2:6 जिसने परमेश्वर के स्‍वरूप में हो कर भी परमेश्वर के तुल्य होने को अपने वश में रखने की वस्तु न समझा।
Philippians 2:7 वरन अपने आप को ऐसा शून्य कर दिया, और दास का स्‍वरूप धारण किया, और मनुष्य की समानता में हो गया।
Philippians 2:8 और मनुष्य के रूप में प्रगट हो कर अपने आप को दीन किया, और यहां तक आज्ञाकारी रहा, कि मृत्यु, हां, क्रूस की मृत्यु भी सह ली।
Philippians 2:9 इस कारण परमेश्वर ने उसको अति महान भी किया, और उसको वह नाम दिया जो सब नामों में श्रेष्ठ है।
Philippians 2:10 कि जो स्वर्ग में और पृथ्वी पर और जो पृथ्वी के नीचे है; वे सब यीशु के नाम पर घुटना टेकें।
Philippians 2:11 और परमेश्वर पिता की महिमा के लिये हर एक जीभ अंगीकार कर ले कि यीशु मसीह ही प्रभु है।

एक साल में बाइबल: 
  • भजन 120-122 
  • 1 कुरिन्थियों 9