व्यवहार को कैसे बदला जा सकता है? अपनी पुस्तक The Social Animal में डेविड ब्रुक्स लिखते हैं कि कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि व्यवहार बदलने के लिए लोगों को बुरे व्यवहार के दूर-गामी दुषपरिणामों के बारे में बताना चाहिए; जैसे कि, "धुम्रपान से कैंसर हो सकता है; व्यभिचार से परिवार नाश हो जाते हैं; झूठ बोलने से विश्वास जाता रहता है। उन विशेषज्ञों तर्क यह है कि जब आप लोगों को उनके दुर्व्यवहार के दुषपरिणाम तथा मूर्खता समझाएंगे, तो लोग वह दुर्वयवहार करने से रुकने को प्रेरित होंगे, क्योंकि नैतिक निर्णय तथा आत्मसंयम बर्तने के लिए युक्ति और इच्छा दोनों की आवश्यकता होती है। लेकिन यह तर्क कामयाब नहीं रहा, देखा यही जाता है कि दुर्व्यवहार के दुषपरिणाम जानने के बावजूद लोग वह दुर्व्यवहार करने से कम ही रुकते हैं"। दूसरे शब्दों में व्यवहार परिवर्तन के लिए केवल जानकारी होना ही काफी नहीं है।
मसीह यीशु के अनुयायी होने के नाते, हम अपने आत्मिक जीवन में बढ़ना चाहते हैं, आत्मिक व्यवहार में पनपना चाहते हैं। लगभग दो हज़ार वर्ष पहले प्रभु यीशु ने अपने चेलों को बताया था कि वे इस परिवर्तन तथा बढ़ोतरी को कैसे प्राप्त कर सकते हैं। प्रभु ने कहा: "तुम मुझ में बने रहो, और मैं तुम में: जैसे डाली यदि दाखलता में बनी न रहे, तो अपने आप से नहीं फल सकती, वैसे ही तुम भी यदि मुझ में बने न रहो तो नहीं फल सकते" (यूहन्ना 15:4)। प्रभु यीशु दाखलाता है, और उसके अनुयायी, शाखाएं हैं। यदि हम सच्चे मन से विचार करें तो यह अवश्य स्वीकार करेंगे कि प्रभु यीशु से अलग रहकर हम आत्मिक रीति से असहाय एवं प्रभावहीन होते हैं।
प्रभु यीशु की संगति में रहने से, उसमें बने रहने से ही हमें आत्मिक रीति से परिवर्तित होते हैं, प्रभु का जीवन हम में पनपता और बढ़ता है। - मार्विन विलियम्स
प्रभु यीशु द्वारा परिवर्तित मन से ही परिवर्तित व्यवहार आरंभ होता है।
पर जो कोई उसके वचन पर चले, उस में सचमुच परमेश्वर का प्रेम सिद्ध हुआ है: हमें इसी से मालूम होता है, कि हम उस में हैं। जो कोई यह कहता है, कि मैं उस में बना रहता हूं, उसे चाहिए कि आप भी वैसा ही चले जैसा वह चलता था। - 1 यूहन्ना 2:5-6
बाइबल पाठ: यूहन्ना 15:1-13
John 15:1 सच्ची दाखलता मैं हूं; और मेरा पिता किसान है।
John 15:2 जो डाली मुझ में है, और नहीं फलती, उसे वह काट डालता है, और जो फलती है, उसे वह छांटता है ताकि और फले।
John 15:3 तुम तो उस वचन के कारण जो मैं ने तुम से कहा है, शुद्ध हो।
John 15:4 तुम मुझ में बने रहो, और मैं तुम में: जैसे डाली यदि दाखलता में बनी न रहे, तो अपने आप से नहीं फल सकती, वैसे ही तुम भी यदि मुझ में बने न रहो तो नहीं फल सकते।
John 15:5 मैं दाखलता हूं: तुम डालियां हो; जो मुझ में बना रहता है, और मैं उस में, वह बहुत फल फलता है, क्योंकि मुझ से अलग हो कर तुम कुछ भी नहीं कर सकते।
John 15:6 यदि कोई मुझ में बना न रहे, तो वह डाली की नाईं फेंक दिया जाता, और सूख जाता है; और लोग उन्हें बटोरकर आग में झोंक देते हैं, और वे जल जाती हैं।
John 15:7 यदि तुम मुझ में बने रहो, और मेरी बातें तुम में बनी रहें तो जो चाहो मांगो और वह तुम्हारे लिये हो जाएगा।
John 15:8 मेरे पिता की महिमा इसी से होती है, कि तुम बहुत सा फल लाओ, तब ही तुम मेरे चेले ठहरोगे।
John 15:9 जैसा पिता ने मुझ से प्रेम रखा, वैसा ही मैं ने तुम से प्रेम रखा, मेरे प्रेम में बने रहो।
John 15:10 यदि तुम मेरी आज्ञाओं को मानोगे, तो मेरे प्रेम में बने रहोगे: जैसा कि मैं ने अपने पिता की आज्ञाओं को माना है, और उसके प्रेम में बना रहता हूं।
John 15:11 मैं ने ये बातें तुम से इसलिये कही हैं, कि मेरा आनन्द तुम में बना रहे, और तुम्हारा आनन्द पूरा हो जाए।
John 15:12 मेरी आज्ञा यह है, कि जैसा मैं ने तुम से प्रेम रखा, वैसा ही तुम भी एक दूसरे से प्रेम रखो।
John 15:13 इस से बड़ा प्रेम किसी का नहीं, कि कोई अपने मित्रों के लिये अपना प्राण दे।
एक साल में बाइबल:
- 2 इतिहास 23-24
- यूहन्ना 15