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बुधवार, 15 सितंबर 2021

परमेश्वर का वचन, बाइबल – पाप और उद्धार - 21

 

पाप का समाधान - उद्धार - 17

       हम उन गुणों को, और उनके कारणों को देखते आ रहे हैं, जो उस सिद्ध मनुष्य में होने चाहिएं जो मनुष्यों के पाप का समाधान और निवारण करने के लिए अपना बलिदान दे। हमने देखा कि ऐसा मनुष्य स्वाभाविक प्रणाली से मानव जन्म लेने वाला नहीं हो सकता है; किन्तु प्रभु यीशु के मानव स्वरूप में अवतरित होकर पृथ्वी पर आने के लिए परमेश्वर ने एक विशेष प्रयोजन किया, और उन्होंने मनुष्य के रूप जन्म तो लिया, किन्तु अन्य सभी मनुष्यों के समान उनके मानव शरीर में पाप का दोष और स्वभाव में पाप करने की प्रवृत्ति नहीं थी। वे पूर्णतः परमेश्वर थे, यद्यपि मनुष्य रूप में अवतरित होते समय उन्होंने अपने आप को अपने परमेश्वरत्व से शून्य कर लिया था; और पूर्णतः मनुष्य भी। उन्होंने सामान्य, साधारण मनुष्यों के समान ही सब कुछ सहते हुए, सभी अनुभवों में से होकर निकलते हुए जीवन बिताया, किन्तु निष्पाप, निष्कलंक, निर्दोष, पवित्र, और सिद्ध बने रहे। पिछले लेख में हमने देखा था कि उन्होंने स्वेच्छा से सभी मनुष्यों के बदले उनके पापों के दण्ड को सहने, यातनाएं सहने और अपने आप को बलिदान करने को स्वीकार किया, और इसके लिए अपने आप को पकड़ लिए जाने दिया। आज हम उनकी मृत्यु के बारे में देखेंगे। 

       बहुत से लोगों, और कुछ धर्मों तथा मतों का यह मानना है, कि प्रभु यीशु क्रूस पर नहीं मारे गए, वरन उनके स्थान पर उनके समान दिखने वाला कोई और व्यक्ति क्रूस पर चढ़ा दिया गया, और लोगों ने समझ लिया कि प्रभु यीशु को क्रूस पर मार डाला गया है। यह शैतान द्वारा फैलाए गए उस भ्रम का एक भाग है, जिसके द्वारा उसने प्रभु द्वारा उपलब्ध करवाए गए पापों की क्षमा और उद्धार के मार्ग को व्यर्थ और निष्क्रिय दिखाने का प्रयास किया है।

       प्रभु के पकड़वाए जाने के समय से लेकर, उनके क्रूस पर चढ़ाए जाने तक वे निरंतर पहरे में तथा विभिन्न लोगों की उपस्थिति में रहे; एक से दूसरे स्थान पर ले जाए गए, विभिन्न अधिकारियों के सामने प्रस्तुत किए गए, और अन्ततः रोमी गवर्नर पिलातुस के सामने लाए गए, जहाँ से फिर उन्हें क्रूस पर चढ़ाए जाने के लिए ले जाया गया। दिन के उजाले में वे धार्मिक अगुवों के सामने भी प्रस्तुत किए गए, जिन्होंने उन्हें पहचाना, और उनके मसीह और परमेश्वर का पुत्र होने के बारे में उनसे पूछा (लूका 22:66-71)। इस दौरान उन्हें भयानक यातनाओं, कोड़े खाने, उपहास आदि के अनुभव से भी निकलना पड़ा, जिसे वे चुपचाप बिना कोई प्रतिक्रिया दिए, या कोई अपशब्द कहे सहते रहे। इस पूरी प्रक्रिया में वे कभी अपने विरोधियों और बैरियों की दृष्टि से ओझल नहीं हुए, तो फिर उनके स्थान पर कोई दूसरा कब और कैसे आता; और क्यों? जिन यातनाओं से होकर प्रभु को निकलना पड़ा, उनमें कोई भी अन्य मनुष्य कुछ भी भला-बुरा कह सकता था, कोई पापमय प्रतिक्रिया दे सकता था, जो नहीं हुआ। यदि वह प्रभु यीशु नहीं था तो फिर इन बातों को सहन करने वाला अपनी वास्तविक पहचान बता कर अपने आप को इस हृदय विदारक वेदना से बचा सकता, जो नहीं हुआ।

यदि यह कहें कि पकड़ने के समय ही कोई गलती हुई, रात के अंधेरे में लोगों ने किसी गलत व्यक्ति को पकड़ लिया, तो इसका भी कोई आधार अथवा प्रमाण नहीं है। उन्हें यहूदा इस्करियोती द्वारा पहचाने जाने के बाद पकड़वाया गया था, और उस समय उनके और यहूदा के मध्य वार्तालाप भी हुआ था (मत्ती 26:47-50); इसलिए किसी गलत व्यक्ति के पकड़े जाने की कोई संभावना नहीं थी। उनके पकड़े जाने के समय दो आश्चर्यकर्म भी हुए; एक तो जब पकड़ने आए लोगों ने प्रभु से उनकी पहचान के लिए पूछा, और प्रभु ने कहा किमैं ही हूँतब उन्हें पकड़ने आए हुए सभी लोग तुरंत स्वतः ही पीछे की ओर गिर पड़ेतब यीशु उन सब बातों को जो उस पर आनेवाली थीं, जानकर निकला, और उन से कहने लगा, किसे ढूंढ़ते हो? उन्होंने उसको उत्तर दिया, यीशु नासरी को: यीशु ने उन से कहा, मैं ही हूं: और उसका पकड़वाने वाला यहूदा भी उन के साथ खड़ा था। उसके यह कहते ही, कि मैं हूं, वे पीछे हटकर भूमि पर गिर पड़े” (यूहन्ना 18:4-6) - जो किसी साधारण मनुष्य के पकड़े जाने पर नहीं हो सकता था। दूसरा, प्रभु के शिष्य, पतरस ने तलवार चलाकर उन लोगों में से एक का कान काट दिया, जिसे प्रभु ने तुरंत चंगा भी कर दियाऔर उन में से एक ने महायाजक के दास पर चला कर उसका दाहिना कान उड़ा दिया। इस पर यीशु ने कहा; अब बस करो: और उसका कान छूकर उसे अच्छा किया” (लूका 22:50-51) - यह भी कोई सामान्य जन नहीं कर सकता था।

इसके अतिरिक्त, दिन के समय में उन्हें क्रूस पर चढ़ाए जाने के बाद वहाँ खड़े लोगों और धर्म-गुरुओं ने पहचाना कि वे प्रभु यीशु मसीह ही हैं, और उनका उपहास कियालोग खड़े खड़े देख रहे थे, और सरदार भी ठट्ठा कर कर के कहते थे, कि इस ने औरों को बचाया, यदि यह परमेश्वर का मसीह है, और उसका चुना हुआ है, तो अपने आप को बचा ले। सिपाही भी पास आकर और सिरका देकर उसका ठट्ठा कर के कहते थे। यदि तू यहूदियों का राजा है, तो अपने आप को बचा” (लूका 23:35-37)। फिर, क्रूस पर से प्रभु यीशु ने अपनी माता मरियम की देखभाल की ज़िम्मेदारी अपने शिष्य को दीपरन्तु यीशु के क्रूस के पास उस की माता और उस की माता की बहिन मरियम, क्‍लोपास की पत्नी और मरियम मगदलीनी खड़ी थी। यीशु ने अपनी माता और उस चेले को जिस से वह प्रेम रखता था, पास खड़े देखकर अपनी माता से कहा; हे नारी, देख, यह तेरा पुत्र है। तब उस चेले से कहा, यह तेरी माता है, और उसी समय से वह चेला, उसे अपने घर ले गया” (यूहन्ना 19:25-27); जो कोई दूसरा जन नहीं कर सकता था। 

       इसलिए किसी अन्य जन को उनके स्थान पर पकड़े जाने और क्रूस पर चढ़ाए जाने का कोई आधार अथवा प्रमाण नहीं है। शैतान द्वारा एक अन्य धारणा प्रचलित की गई है कि प्रभु यीशु क्रूस पर मरे नहीं, बस बेहोश हुए, और बाद में कब्र के ठन्डे वातावरण में होश में आकर, वे कब्र से बाहर आ गए। इसके बार में हम कल देखेंगे, कि यह बात भी परमेश्वर के वचन बाइबल में दिए गए प्रभु यीशु मसीह की मृत्यु के विवरण से बिल्कुल मेल नहीं खाती है। किन्तु अभी के लिए, हमारे विचार करने के लिए एक महत्वपूर्ण विषय है - यदि वह निष्पाप, निष्कलंक, निर्दोष, पवित्र, और सिद्ध प्रभु मेरे और आपके पापों के लिए घोर यातनाएं सहने और क्रूस की अत्यंत पीड़ादायक मृत्यु सहने के लिए तैयार हो गया, तो क्या हम उससे आशीष और अनत जीवन पाने, नरक की अनन्त पीड़ा से बचने के लिए तैयार नहीं होंगे? वह तो केवल हमारा भला ही चाहता है, जिसके लिए उसने हमारा सारा दुख सह लिया; तो फिर हम क्यों उसके इस आमंत्रण को अस्वीकार करें? शैतान की किसी बात में न आएं, किसी गलतफहमी में न पड़ें, अभी समय और अवसर के रहते स्वेच्छा और सच्चे मन से अपने पापों से पश्चाताप कर लें, अपना जीवन उसे समर्पित कर के, उसके शिष्य बन जाएं। स्वेच्छा से, सच्चे और पूर्णतः समर्पित मन से, अपने पापों के प्रति सच्चे पश्चाताप के साथ एक छोटी प्रार्थना, “हे प्रभु यीशु मैं मान लेता हूँ कि मैंने जाने-अनजाने में, मन-ध्यान-विचार और व्यवहार में आपकी अनाज्ञाकारिता की है, पाप किए हैं। मैं मान लेता हूँ कि आपने क्रूस पर दिए गए अपने बलिदान के द्वारा मेरे पापों के दण्ड को अपने ऊपर लेकर पूर्णतः सह लिया, उन पापों की पूरी-पूरी कीमत सदा काल के लिए चुका दी है। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मेरे मन को अपनी ओर परिवर्तित करें, और मुझे अपना शिष्य बना लें, अपने साथ कर लें।आपका सच्चे मन से लिया गया मन परिवर्तन का यह निर्णय आपके इस जीवन तथा परलोक के जीवन को स्वर्गीय जीवन बना देगा। 

बाइबल पाठ: लूका 23:32-43 

लूका 23:32 वे और दो मनुष्यों को भी जो कुकर्मी थे उसके साथ घात करने को ले चले।

लूका 23:33 जब वे उस जगह जिसे खोपड़ी कहते हैं पहुंचे, तो उन्होंने वहां उसे और उन कुकर्मियों को भी एक को दाहिनी ओर और दूसरे को बाईं और क्रूसों पर चढ़ाया।

लूका 23:34 तब यीशु ने कहा; हे पिता, इन्हें क्षमा कर, क्योंकि ये नहीं जानते कि क्या कर रहें हैं और उन्होंने चिट्ठियां डालकर उसके कपड़े बांट लिए।

लूका 23:35 लोग खड़े खड़े देख रहे थे, और सरदार भी ठट्ठा कर कर के कहते थे, कि इस ने औरों को बचाया, यदि यह परमेश्वर का मसीह है, और उसका चुना हुआ है, तो अपने आप को बचा ले।

लूका 23:36 सिपाही भी पास आकर और सिरका देकर उसका ठट्ठा कर के कहते थे।

लूका 23:37 यदि तू यहूदियों का राजा है, तो अपने आप को बचा।

लूका 23:38 और उसके ऊपर एक पत्र भी लगा था, कि यह यहूदियों का राजा है।

लूका 23:39 जो कुकर्मी लटकाए गए थे, उन में से एक ने उस की निन्दा कर के कहा; क्या तू मसीह नहीं तो फिर अपने आप को और हमें बचा।

लूका 23:40 इस पर दूसरे ने उसे डांटकर कहा, क्या तू परमेश्वर से भी नहीं डरता? तू भी तो वही दण्ड पा रहा है।

लूका 23:41 और हम तो न्यायानुसार दण्ड पा रहे हैं, क्योंकि हम अपने कामों का ठीक फल पा रहे हैं; पर इस ने कोई अनुचित काम नहीं किया।

लूका 23:42 तब उसने कहा; हे यीशु, जब तू अपने राज्य में आए, तो मेरी सुधि लेना।

लूका 23:43 उसने उस से कहा, मैं तुझ से सच कहता हूं; कि आज ही तू मेरे साथ स्वर्गलोक में होगा।

 

एक साल में बाइबल:

·      नीतिवचन 22-24

·      2 कुरिन्थियों