अमेरिका के कैलिफोर्निया प्रांत के हेवर्ड शहर ने सन १९३१ में अपना प्रथम नगरसभा ग्रह बनाया। वह सभा ग्रह बहुत भव्य था, उसमें प्रयुक्त निर्माण शैली अद्भुत थी और उस समय उसकी निर्माण की लागत $१००,००० थी। उस भव्य तथा आलीशान इमारत के साथ एक ही समस्या थी - वह कैलिफोर्निया की हेवर्ड दोष रेखा पर बनी थी और धरती की उस दोष रेखा में चल रही अविरल गतिविधि के कारण वह इमारत धीरे धीरे दो भागों में विभाजित होने लगी। सन १९८९ में आए एक भूकम्प के कारण वह इमारत इस हाल में आ गई है कि अब उससे लगातार बने खतरे के कारण लोगों का वहां जाना वर्जित कर दिया गया है।
अस्थिर नेंव और आधार पर निर्माण करना बुद्धिमता नहीं है। यह बात केवल भवन निर्माण ही नहीं वरन जीवन निर्माण के लिए भी सत्य है। प्रभु यीशु ने इस सत्य को एक दृष्टांत के द्वारा समझाया: "परन्तु जो कोई मेरी ये बातें सुनता है और उन पर नहीं चलता वह उस निर्बुद्धि मनुष्य की नाईं ठहरेगा जिसने अपना घर बालू पर बनाया। और मेंह बरसा, और बाढ़ें आईं, और आन्धियां चलीं, और उस घर पर टक्करें लगीं और वह गिरकर सत्यानाश हो गया" (मत्ती ७:२६-२७)।
इस संसार के लगातार बदलते नैतिक स्तर और सही-गलत की पहचान लोगों को उल्झनों में डालने और उन्हें भरमाने वाले हो सकते हैं। जो आज के समाज एवं संसकृति के अनुसार सही हैं वे कल गलत कहे जा सकते हैं, जो कल अनुचित था वह आज उचित माना जा सकता है; किंतु परमेश्वर के स्थिर और अटल वचन बाइबल की बातें युगानुयुग कभी नहीं बदलतीं। हम अपने देश और संसार की घटानाओं में, उनके प्रति व्यकत प्रतिक्रीयाओं में, सिनेमा, टी.वी. तथा मनोरंजन के साधनों पर प्रस्तुत कार्यक्रमों में, लोक चर्चाओं आदि में स्पष्ट देखते हैं कि कुछ ही वर्षों में नैतिक, सामाजिक, उचित-अनुचित इत्यादि के स्तर और निर्धारण मानक कैसे बदल गए हैं। लेकिन बाइबल में जो गलत था वह अब भी गलत है और सही था वह अब भी सही है; समय, काल, सभ्यता और संसकृति के साथ बाइबल की कोई बात कभी ना बदली है और ना गलत साबित हुई है। इसीलिए बाइबल की शिक्षाओं और बातों को अपना स्थिर आधार बनाकर उस के अनुसार जीवन निर्माण करना ही बुद्धिमानी है। इसीलिए प्रभु यीशु ने कहा: "इसलिये जो कोई मेरी ये बातें सुनकर उन्हें मानता है वह उस बुद्धिमान मनुष्य की नाईं ठहरेगा जिसने अपना घर चट्टान पर बनाया। और मेंह बरसा और बाढ़ें आईं, और आन्धियां चलीं, और उस घर पर टक्करें लगीं, परन्तु वह नहीं गिरा, क्योंकि उस की नेव चट्टान पर डाली गई थी" (मत्ती ७:२४-२५)।
अन्ततः हम सब को अपने जीवनों का हिसाब देने परमेश्वर के समक्ष खड़े होना ही है और तब परमेश्वर का वचन ही हमारे न्याय का आधार होगा (यूहन्ना १२:४८), तो क्यों ना उस वचन और उसकी शिक्षाओं को अभी से अपने जीवनों में स्थान दें और उनका पालन करें? - डेनिस फिशर
अपने जीवनों को एक मात्र स्थिर आधार - मसीह यीशु पर खड़ा कीजिए।
यीशु मसीह कल और आज और युगानुयुग एकसा है। - इब्रानियों १३:८
बाइबल पाठ: यूहन्ना १२:४४-५०
John12:44 यीशु ने पुकार कर कहा, जो मुझ पर विश्वास करता है, वह मुझ पर नहीं, वरन मेरे भेजने वाले पर विश्वास करता है।
John12:45 और जो मुझे देखता है, वह मेरे भेजने वाले को देखता है।
John12:46 मैं जगत में ज्योति हो कर आया हूं ताकि जो कोई मुझ पर विश्वास करे, वह अन्धकार में न रहे।
John12:47 यदि कोई मेरी बातें सुनकर न माने, तो मैं उसे दोषी नहीं ठहराता, क्योंकि मैं जगत को दोषी ठहराने के लिये नहीं, परन्तु जगत का उद्धार करने के लिये आया हूं।
John12:48 जो मुझे तुच्छ जानता है और मेरी बातें ग्रहण नहीं करता है उसको दोषी ठहराने वाला तो एक है: अर्थात जो वचन मैं ने कहा है, वही पिछले दिन में उसे दोषी ठहराएगा।
John12:49 क्योंकि मैं ने अपनी ओर से बातें नहीं कीं, परन्तु पिता जिसने मुझे भेजा है उसी ने मुझे आज्ञा दी है, कि क्या क्या कहूं और क्या क्या बोलूं
John12:50 और मैं जानता हूं, कि उस की आज्ञा अनन्त जीवन है इसलिये मैं जो बोलता हूं, वह जैसा पिता ने मुझ से कहा है वैसा ही बोलता हूं।
एक साल में बाइबल:
- निर्गमन ३६-३८
- मत्ती २३:१-२२