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शनिवार, 30 अप्रैल 2022

परमेश्वर का वचन – बाइबल / Bible – The Word of God – 12


Click Here for the English Translation

 

जीवन, साहित्य, कला, और सभ्यताओं पर प्रभाव में अनुपम 


बाइबल के द्वारा जिस प्रकार से लोगों के जीवन परिवर्तित हुए और हो रहे हैं, वह विलक्षण है। संसार भर में अनगिनत लोग हैं, जिन्होंने बाइबल को पढ़ा, परमेश्वर को पहचाना, और उसे अपना जीवन समर्पित कर दिया। यह परिवर्तन संसार के हर स्थान, हर धर्म, हर विचारधारा के लोगों में देखा जाता है, नास्तिकों में भी। बाइबल के वचन लोगों को उनके पापों के लिए कायल करते हैं, बेचैन करते हैं। जो संवेदनशील होकर अपने विवेक की आवाज़ को सुनते हैं, अपने कायल होने के अनुसार, विचार-विमर्श करते हैं, सच्चाई को पहचानने का प्रयास करते हैं, परमेश्वर का वचन उनसे बात करता है, उन्हें सही मार्ग दिखाता है, और उन्हें उनके पापों के लिए पश्चाताप में लेकर आता है। यह सिलसिला लगभग दो हज़ार वर्ष पूर्व, प्रभु यीशु के शिष्य पतरस द्वारा यरूशलेम में धार्मिक पर्व मनाने के लिए एकत्रित हुए धर्मी यहूदियों के मध्य किए गए प्रचार से आरंभ हुआ था; जिसके विषय लिखा है: "तब सुनने वालों के हृदय छिद गए, और वे पतरस और शेष प्रेरितों से पूछने लगे, कि हे भाइयों, हम क्या करें? पतरस ने उन से कहा, मन फिराओ, और तुम में से हर एक अपने अपने पापों की क्षमा के लिये यीशु मसीह के नाम से बपतिस्मा ले; तो तुम पवित्र आत्मा का दान पाओगे" (प्रेरितों 2:37-38), और परमेश्वर के वचन के उस एक प्रचार परिणामस्वरूप "सो जिन्होंने उसका वचन ग्रहण किया उन्होंने बपतिस्मा लिया; और उसी दिन तीन हजार मनुष्यों के लगभग उन में मिल गए" (प्रेरितों 2:41)। और तब से लेकर आज दिन तक, तब यरूशलेम से लेकर आज संसार के हर स्थान में, यह सिलसिला अविरल, नियमित चलता चला आ रहा है


प्रतिदिन, प्रतिपल, संसार भर में लोगों के जीवन बदले जा रहे हैं। जिन्होंने परमेश्वर के वचन के सत्य को पहचाना, वो फिर उसके लिए अपने घर-बार, जमीन-जायदाद तथा नौकरी-व्यवसाय छोड़ने, यहाँ तक कि प्राणों की भी आहुति देने के लिए तैयार हो गए, किन्तु बाइबल द्वारा उनके जीवनों में आए परिवर्तन से फिर मुंह नहीं मोड़ा। जो बाइबल के आज्ञाकारी हो गए, उनके जीवन की दिशा और प्राथमिकताएं  बदल गईं; जिन बुरी आदतों और व्यवहारों को वो छोड़ नहीं पा रहे थे, या जो बातें पहले उन्हें बुरी लगती भी नहीं थीं, वे बाइबल की आज्ञाकारिता में आ जाने के बाद स्वतः ही उनके जीवनों से जाती रहीं। उन्हें बहुधा अपने इस विश्वास और निर्णय की एक बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी, समाज और परिवार का बहुत विरोध सहन करना पड़ा, किन्तु सत्य की पहचान हो जाने के बाद, फिर वे उस सत्य पर बने ही रहे, सहते रहे, निभाते रहे, और परमेश्वर की शांति तथा आशीषों का अनुभव करने वाले, तथा औरों को उसके बारे में बताने वाले बन गए। 


संसार भर के साहित्य और कला पर बाइबल की बातों, घटनाओं, शिक्षाओं, और पात्रों ने बहुत गहरी छाप छोड़ी है। बाइबल से संबंधित बातों को लेकर जितनी पुस्तकें, लेख, कहानियाँ, उपन्यास, गीत, कविताएं, नाटक आदि लिखे गए हैं उतने किसी भी अन्य पुस्तक के द्वारा कभी भी प्रेरित होकर नहीं रचे या लिखे गए हैं। साहित्य में अनेकों मुहावरे बाइबल की शिक्षाओं और बातों से निकले हैं। कला के क्षेत्र में भी जितनी कलाकृतियाँ बाइबल की बातों के आधार पर बनाई गई हैं, उतनी संसार की किसे भी अन्य पुस्तक की बातों के आधार पर नहीं बनी हैं - वे चाहे शिल्प कला और मूर्तियाँ हों, विभिन्न प्रकार के चित्र हों, या संगीत कला में स्तुति गीत और भजन आदि हों। इस प्रकार की प्रेरणा पाई हुई कृतियाँ अन्य हर धर्म और विश्वास और स्थान में भी पाई जाती हैं, किन्तु वे अधिकांशतः किसी एक विशेष स्थान या क्षेत्र, और भाषा, संस्कृति आदि तक ही सीमित रहती हैं। किन्तु जितनी संख्या और विविधता में बाइबल की प्रेरणा से संसार भर में हर प्रकार के साहित्य और कला पर प्रभाव निरंतर चलता चला आ रहा है, वह अभूतपूर्व है, अनुपम है, विलक्षण है; उसका कोई सानी नहीं है। 


बाइबल में दी गई परमेश्वर की दस आज्ञाएँ अपने आप में अनुपम और अनूठी हैं। पुराने नियम में निर्गमन 20:1-17 में दी गई इन दस आज्ञाओं में परमेश्वर के स्वरूप और चरित्र, मनुष्य और परमेश्वर के संबंध, तथा मनुष्य के साथ मनुष्य के पारिवारिक एवं सामाजिक संबंधों के विषय परमेश्वर की आज्ञाएँ दी गई हैं। और अद्भुत, विलक्षण बात यह है कि संसार के किसी भी देश के किसी भी संविधान में, वह चाहे कितना भी वृहत क्यों न हो, ऐसा कुछ नहीं है, जो इन दस आज्ञाओं की परिधि में न पाया जाता हो, या इनके अन्तर्गत न देखा जा सकता हो।


प्रभु यीशु मसीह के प्रभाव के बारे में कहा गया है, "वे संसार के इतिहास के महानतम व्यक्ति हैं। उन्होंने कोई सेवक नहीं रखे, लेकिन लोगों ने उन्हें 'स्वामी' कहकर संबोधित किया। उनके पास कोई शैक्षिक योग्यता नहीं थी, किन्तु उनके समय के विद्वानों, धर्म-गुरुओं, और आम लोगों ने उन्हें 'हे गुरु' कहा। उनके पास कोई औषधि नहीं थी, किन्तु वे इतिहास के सबसे महान चंगाई देने वाले हुए। उनकी कोई सेना नहीं थी, किन्तु राजा उनसे थर्राते थे। उन्होंने कोई सैनिक अभियान अथवा युद्ध नहीं लड़े, फिर भी वे सारे विश्व पर जयवंत हैं। उन्होंने कोई पाप, कोई अपराध नहीं किया, फिर भी उन्हें क्रूस पर चढ़ाकर मार डाल गया। उन्हें कब्र में गाड़ कर उसे भारी पत्थर से मुहरबंद कर दिया गया और सैनिकों का पहरा बैठा दिया गया, किन्तु वे तीसरे दिन जीवित होकर कब्र से बाहर आ गए और आज भी जीवित हैं, तथा हर उस हृदय में रहते हैं जो उन्हें स्वेच्छा से समर्पित होकर आमंत्रित करता है।" 


बाइबल की शिक्षाओं ने सभ्यताओं और समाजों के व्यवहारों को बदल डाला है - हजारों वर्ष पुरानी और प्राचीनतम सभ्यताओं की भी अनुचित तथा अनुपयुक्त बातों को सुधार दिया है, जिन्हें वे सभ्यताएं और उनके लोग स्वयं नहीं पहचान और सुधार पाए। बाइबल की शिक्षाओं के आधार पर संसार भर के अनेकों स्थानों में व्याप्त कुरीतियाँ, जैसे कि मनुष्यों में परस्पर भेद-भाव का व्यवहार और मनुष्यों को ऊंचा-नीचा देखना, बाल-विवाह, रंग-भेद, दास प्रथा, स्त्रियों का दमन और उनके साथ दुर्व्यवहार, नर-भक्षी प्रथाएं, शिक्षा को केवल कुछ विशेष लोगों तक ही सीमित रखना, आदि को बुराई के रूप में पहचाना तथा मिटाया गया है; यह करने के लिए संविधान बनाए अथवा बदले गए हैं या संशोधित किए गए हैं। संसार भर में जहाँ-जहाँ भी बाइबल के प्रचारक गए हैं, वहाँ उनके साथ समाज के सभी लोगों के लिए समान शिक्षा, सभी लोगों को हर प्रकार की शिक्षा उपलब्ध करवाने के लिए शिक्षा-संस्थान और विद्यालय, सभी को समाज में आदर का स्थान तथा समाज सुधार, सभी के लिए चिकित्सा सुविधाएं, महिलाओं का उत्थान आदि भी साथ ही होता चला गया है। 


    क्या यह सब किसी मनुष्य की कल्पना या विचारों के द्वारा लिखी गई बातों से संभव है? वास्तविकता तो यह कि बाइबल की बातों और शिक्षाओं ने ही मनुष्यों के विचारों और कल्पनाओं से लिखी गई बातों में पलने और बनी रहने वाली सामाजिक कुरीतियों को सुधार कर लोगों के जीवनों को एक नई दिशा, एक नया मार्गदर्शन प्रदान किया है। 

    यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु, मैं अपने पापों के लिए पश्चातापी हूँ, उनके लिए आप से क्षमा माँगता हूँ। मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मुझे और मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।


एक साल में बाइबल:

  • 1 राजाओं 8-9

  • लूका 21:1-19

  


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English Translation


Unique in its effects on Life, Literature, Arts, Culture and Civilizations


The way people's lives have been, and are being changed through the Bible is remarkable. There are countless people around the world who have read the Bible, came to know God, and submitted their lives to Him. This change is seen everywhere in the world, in people of every religion, every ideology, even among atheists. The words of the Bible convict people of their sins, make them uneasy about them. Those who are sensitive to it, and listen to the voice of their conscience, deliberate upon the conviction brought by it, make sincere efforts to seek and know the truth, the Word of God speaks to them, shows them the right path, and leads them to repentance for their sins. This trend began about two thousand years ago with the preaching of the Lord Jesus' disciple Peter, among the “devout” Jews who had gathered in Jerusalem to celebrate the feast, as is written: "Now when they heard this, they were cut to the heart, and said to Peter and the rest of the apostles, "Men and brethren, what shall we do?" Then Peter said to them, "Repent, and let every one of you be baptized in the name of Jesus Christ for the remission of sins; and you shall receive the gift of the Holy Spirit" (Acts 2:37-38), and as a result of the preaching of God's word "Then those who gladly received his word were baptized; and that day about three thousand souls were added to them" (Acts 2:41). And from then onwards, to this day, from Jerusalem to every place of the world today, this has been going on continuously, and regularly.


Every day, every moment, people's lives are being changed all over the world. Those who recognized the truth of God's Word, were then ready to give up their homes, property and jobs and businesses, even to sacrifice their lives for it, but not turn back on the changes brought in their lives by the Bible. Those who became obedient to the Bible, the course of their life and their priorities were radically changed. Bad habits and behaviors that they were unable to give up earlier, or things they didn't even consider to be bad earlier, automatically went away from their lives, once they came to obey the Bible. They often had to pay a great price for this faith and decision, they had to endure a lot of opposition from society and family, but once they had recognized the truth, then they remained committed to that truth. They endured, persisted in it, told others about it, and also became the ones to experience God's peace and blessings.


The words, events, teachings, and characters of the Bible have left a deep impression on literature and art all over the world. The number of books, articles, stories, novels, songs, poems, plays etc. that have been written about things related to the Bible, is unparalleled; no other book in the history of the world has ever inspired the volume and variety of written works, as the Bible has. Many idioms in literature are derived from Biblical teachings and sayings. Even in the field of art, the sheer number of works of art that have been made on the basis of the things of the Bible, no other book in the world has ever been able to inspire - whether it is in crafts and sculptures, or various types of paintings and pictures, or of music, songs of praise and worship, hymns of various genre, etc. Though such inspired creations are also found in every other religion and belief and place; but they are mostly limited to a particular place or region, or language, and culture etc. But the volume and variety in which the inspiration of the Bible continues to influence every type of literature and art all around the world even today is unprecedented, unique, astounding; it has no comparison, no match with any other book or scripture.


The Ten Commandments of God given in the Bible are unique and a class apart in themselves. These Ten Commandments in the Old Testament, given in Exodus 20:1-17, contain God's commandments regarding the nature and character of God, the relationship between man and God, and man's family and social relationship with others. And the wonderful thing is that in no constitution of any country in the world, however large or voluminous it may be, is there anything that is not found and covered in the scope of these Ten Commandments.


For the Lord Jesus Christ's influence, it is said that “He is the greatest man in the history of the world. He did not have any servants, but people addressed him as 'Master'. He had no educational qualifications, but during his time The scholars, religious leaders, and common people called him 'Rabbi or Teacher'. He did not have any medicine, but he became the greatest healer in world history. He had no army, but the Kings used to tremble at His name. He never conducted any military campaign, nor did He ever fight any war, yet He is victorious over the whole world. He committed no sin, no crime, yet He was crucified and killed as a criminal. He was buried in a tomb, which was sealed with heavy stone and the soldiers were put on guard; but on the third day He arose from the dead and came out of the grave alive. And He is still alive today, living in every heart that invites him voluntarily, by surrendering to His Lordship."


The teachings of the Bible have changed the behavior of civilizations and societies - correcting the unjust and inappropriate things being practiced for thousands of years amongst even the oldest civilizations; things which those civilizations and their people themselves could not recognize and correct. Based on the teachings of the Bible, the evils prevailing in many places around the world, such as the mutual discrimination between humans and considering of human beings of lower or higher birth, child marriages, apartheid, slavery, the oppression of women and their abuse, cannibalistic practices, restricting imparting of education only to certain people, etc., have been recognized as evil and eradicated. To accomplish these changes in people and societies, Constitutions have either been made, or altogether changed, or suitably amended. All around the world, wherever the preachers of the message of the Bible have gone, their message has simultaneously been accompanied by bringing about equal educational opportunities for all the people of the society, through educational institutions and schools that provide all varieties of education to all the people; by bring about social reforms and giving a place of respect to all in the society; by creating medical facilities for all; by bringing about upliftment of women etc.


Are all these possible because of the things written by the imagination or thoughts of a human being? Many such books based on human thoughts and imagination are available, but has any such book brought about such wide-ranging changes, and on the scale that the Bible has done? The reality is that the words and teachings of the Bible have given a new direction, a new guidance to people's lives by rectifying the social evils that they have been born in, and have persisted; inappropriate things that came into the society and took hold because of the thoughts and imaginations written by mere men.


If you have not yet accepted the discipleship of the Lord, make your decision in favor of the Lord Jesus now to ensure your eternal life and heavenly blessings. Where there is obedience to the Lord, where there is respect and obedience to His Word, there is also the blessing and protection of the Lord. Repenting of your sins, and asking the Lord Jesus for forgiveness of your sins, voluntarily and sincerely, surrendering yourself to Him - is the only way to salvation and heavenly life. You only have to say a short but sincere prayer to the Lord Jesus Christ willingly and with a penitent heart, and at the same time completely commit and submit your life to Him. You can also make this prayer and submission in words something like, “Lord Jesus, I am sorry for my sins and repent of them. I thank you for taking my sins upon yourself, paying for them through your life.  Because of them you died on the cross in my place, were buried, and you rose again from the grave on the third day for my salvation, and today you are the living Lord God and have freely provided to me the forgiveness, and redemption from my sins, through faith in you. Please forgive my sins, take me under your care, and make me your disciple. I submit my life into your hands." Your one prayer from a sincere and committed heart will make your present and future life, in this world and in the hereafter, heavenly and blessed for eternity.



Through the Bible in a Year: 

  • 1 Kings 8-9

  • Luke 21:1-19


शुक्रवार, 29 अप्रैल 2022

परमेश्वर का वचन – बाइबल / Bible – The Word of God – 11

 Click Here for the English Translation


बचे रहने में अनुपम और विशिष्ट


संसार के इतिहास में जितना प्रयास बाइबल को नष्ट करने के लिए किया गया है, उतना किसी भी अन्य पुस्तक या ग्रंथ के लिए नहीं किया गया, किन्तु इन सभी प्रयासों के बावजूद, बाइबल सुरक्षित बनी रही, और संसार के इतिहास में सर्वाधिक बिकने तथा वितरित होने वाली पुस्तक है।

 

बाइबल की आरंभिक पुस्तकें papyrus (पेपिरस या भोजपत्रों) पर हाथ से लिखी गई थीं। पेपिरस मिस्र और सीरिया की नदियों और छिछले पानी के तालाबों में उगाने वाला एक प्रकार का नरकट या सरकंडा होता है, जिसे पतला काट और छील कर, उसकी परतों को आपस में दबा कर, सुखा कर कागज के समान लिखने के योग्य बनाया जाता था। अंग्रेजी शब्द paper इसी पेपिरस से बने लिखने की सामग्री से आया है। बाद में चर्मपत्रों पर, जो पशुओं की खाल से बनाए जाते थे, लिखना आरंभ हुआ। यह बहुत अचरज की बात है कि नाजुक और नाशमान, शीघ्र गल या खराब हो जाने वाले पेपिरस पर लिखे हुए उपलब्ध सबसे प्राचीन लेख लगभग 2400 ईस्वी पूर्व के हैं। 


बाइबल की लेखों की सत्यता और सही होने पर भी प्रश्न उठाए गए हैं। बाइबल के पुराने नियम की पुस्तकों को हाथ से लिखने के लिए यहूदियों में विशेष प्रशिक्षण पाए हुए लोग प्रयोग किए जाते थे। उन लेखों के हर अक्षर, मात्रा, शब्द, और परिच्छेद की गिनती की हुई थी, और प्रत्येक हस्तलिपि का प्रत्येक पृष्ठ बारीकी से उस संख्या के अनुसार सही होने के लिए लिखें वाले से भिन्न अन्य प्रशिक्षित लोगों के द्वारा जाँचा जाता था, और बिना त्रुटि के पाए जाने पर ही उसे संकलित करने के लिए स्वीकार किया जाता था, अन्यथा उसे नष्ट कर दिया जाता था, जिससे त्रुटिपूर्ण लेख की संकलित पुस्तक में सम्मिलित होने के कोई संभावना शेष न रहे। इस प्रकार से यहूदियों ने यह सुनिश्चित किया हुआ था कि उन्हें मिले परमेश्वर के वचन का हर अक्षर, मात्रा, शब्द, और अनुच्छेद ठीक वैसा ही रहे जैसे वह मूल स्वरूप में था। बाइबल की पुस्तकों से संबंधित जितने भी पुराने लेख  या उनके जो भी अंश मिले हैं, उनका अवलोकन करने से यह बात स्पष्ट है कि जैसा उन पुराने लेखों में था, लेख वैसे ही आज भी विद्यमान है। 


इन नाशमान सामग्रियों पर हाथ से इतने परिश्रम से लिखे जाने के बावजूद, बाइबल की अनेकों पुस्तकों के प्राचीन लेख या उनके अंश की प्रतिलिपियाँ आज भी विद्यमान हैं, समय और वातावरण के प्रभाव के कारण सभी नष्ट नहीं हुईं, और प्रमाणित करती हैं कि उन लेखों में लिखी बात सदियों और हजारों वर्षों से अपरिवर्तित चली आ रही है। 


संसार भर में, बाइबल के संकलित होकर एक पुस्तक बनने के आरंभ से ही, बाइबल के शत्रुओं ने उसे नष्ट करके समाप्त करने के अनगिनत प्रयास किए हैं। बाइबल के प्रसारण पर प्रतिबंध लगे गए, उसकी प्रतियों को खोज-खोज कर एकत्रित किया गया और जला दिया गया। रोमी शासन से लेकर वर्तमान समय में कम्युनिस्ट देशों में उसे कानून द्वारा वर्जित कर दिया गया, उसकी प्रतियों को अपने साथ रखना दण्डनीय अपराध घोषित किया गया। किन्तु बाइबल की प्रतियाँ फिर भी बची रहीं, और बढ़ती रहीं; लोगों ने जान पर खेलकर या जान तक देकर, बेघर होकर, बंदीगृहों में कठोर दंड सहने के लिए डाल दिए जाने के बावजूद बाइबल को बचा कर रखा, और उसे प्रकाशित तथा प्रसारित करते रहे। 


वोल्टेयर नामक विख्यात फ्रांसीसी नास्तिक और परमेश्वर का घोर विरोध एवं निन्दा करने वाले व्यक्ति ने, जिसका देहांत 1778 में हुआ था, भविष्यवाणी की थी कि उसके समय से 100 वर्ष के अंदर ही, मसीही विश्वास और बाइबल दोनों समाप्त हो जाएंगे, इतिहास में दब कर रह जाएंगे। वोल्टेयर जाता रहा, उसकी भविष्यवाणी भी बिना पूरी हुए जाती रही; किन्तु एक बहुत रोचक बात भी हुई। वोल्टेयर की मृत्यु के पचास वर्ष बाद, जेनेवा बाइबल सोसायटी ने वोल्टेयर के घर को खरीद लिया, और फिर उसके घर में लगी छापने की मशीन से बाइबल की छपाई होने लगी, छपी हुई बाइबल का प्रसार और वितरण उसी के घर से होना आरंभ हो गया। प्रभु यीशु मसीह ने कहा था, "आकाश और पृथ्वी टल जाएंगे, परन्तु मेरी बातें कभी न टलेंगी" (मरकुस 13:31), और आज तक उनकी कही यह बात सही प्रमाणित होती रही है; कोई परमेश्वर के वचन को नाश अथवा झूठा प्रमाणित करने नहीं करने पाया है। 


आलोचकों ने कई धारणाएं बनाई, कि बाइबल को झूठा या गलत प्रमाणित कर दें। एक प्रयास यह तर्क देने के द्वारा किया गए कि मूसा द्वारा लिखी बाइबल की पहली पाँच पुस्तकें उसके द्वारा लिखी हुई हो ही नहीं सकती थीं क्योंकि मूसा के समय (1500-1400 ईस्वी पूर्व) तक लिखना इतना विकसित ही नहीं होने पाया था; इसलिए वे पुस्तकें बाद में कभी लिखी गई होंगे, और उन्हें मूसा के नाम रख दिया गया है। किन्तु इस तर्क और धारणा के दिए जाने के कुछ समय बाद "हममूराबी की लाठ" खोज निकाली गई; पत्थर की इस लाठ पर उसके द्वारा उसके राज्य में लागू किए गए नियम लिखे हैं, और यह लाठ मूसा से सैकड़ों वर्ष पुरानी है - अर्थात, यह प्रमाणित हो गया कि मूसा के समय से भी बहुत पहले से लोग लिखना जानते थे, और लिखित नियम विद्यमान थे। बाद में हुई अन्य पुरातत्व खोजों ने भी यह प्रमाणित कर दिया है कि मूसा के समय से पहले भी लिखित सामग्री विद्यमान थी, भाषा विकसित हो चुकी थी। इसी प्रकार का एक अन्य तर्क यह दिया गया था कि अब्राहम के साथ उत्पत्ति की पुस्तक में जिन हित्ती लोगों का उल्लेख आया है, उनका बाइबल के बाहर कोई प्रमाण नहीं है। किन्तु पुरातत्व खोजों ने इस दावे को भी झूठा दिखा दिया और हित्तियों की प्राचीन सभ्यता को उजागर कर दिया। 


आज तक भी, सारे संसार भर में, और सारे इतिहास में, बाइबल को गलत या झूठा प्रमाणित करने, उसे नष्ट करने के सभी प्रयास असफल ही रहे हैं। बाइबल को नष्ट करने का प्रयास करने वाले नाश हो गए, किन्तु परमेश्वर का वचन बाइबल आज भी स्थिर और दृढ़ स्थापित है, अटल है, अचूक है। 


    यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु, मैं अपने पापों के लिए पश्चातापी हूँ, उनके लिए आप से क्षमा माँगता हूँ। मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मुझे और मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।



एक साल में बाइबल: 

  • 1 राजाओं 6-7

  • लूका 20:27-47


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English Translation

 Unique in its Survival

No other book or scriptures in the history of the entire world have ever faced as many attempts to destroy it as the Bible has; but in spite of all these efforts, the Bible has not only remained safe, but has also been the all-time best-selling and circulated book in the history of the world.


The earliest books of the Bible were hand-written on papyrus. A papyrus is a type of reed growing in the rivers and shallow waters of Egypt and Syria, which was thinly sliced ​​and peeled, then its layers were pressed together, dried and made like paper to write upon. The English word paper comes from the writing material made from this papyrus. Later writing began on parchments, which were made from animal skins. It is astonishing that the earliest available writings on the fragile and perishable papyrus date back to around 2400 BC, and are still surviving intact.


Questions have also been raised about the veracity and correctness of Biblical writings. People with special training were used among the Jews to hand-write the Old Testament books of the Bible. Every alphabet, punctuation, word, and paragraph of those original writings had been counted and documented, and every page of each hand written manuscript was then meticulously cross-checked by trained people, other than the person writing it, to ascertain it to be correct according to those documented numbers, and be without error. It was accepted for compilation only when it was found to be completely according to the details of the original document; otherwise, it was destroyed, leaving no possibility of the erroneous article somehow getting included in the compiled book. In this way the Jews made sure that every alphabet, punctuation, word, and paragraph of the Word of God that they received remained exactly the same as it was in its original form. By comparing and evaluating all the old documents or whatever parts of them have been found related to the books of the Bible, it is clear that the writings that exist today are the same as they were in those old writings.


Despite the text being diligently handwritten on perishable materials, many copies of ancient texts or portions of many books of the Bible still exist today, not having been destroyed by the effects of time and weather, and testify that what was written in those writings, it has remained unchanged even today, over centuries and thousands of years.


Around the world, from the very beginning of the Bible being compiled into a single book, enemies of the Bible have made countless attempts to destroy and eliminate it. Circulating copies or contents of the Bible was banned, its copies were searched out, collected and burnt. Since the time of the Roman rule, keeping copies of it was forbidden by law and was declared a punishable offense, as it is till date in communist countries. But copies of the Bible still survived, and continued to grow; People kept the Bible alive, and continued to publish and circulate it, even at the cost of being put to death or being imprisoned, being made homeless, and being subjected to many harsh punishments.


Voltaire, a noted French atheist and blasphemer who died in 1778, predicted that within 100 years from his time, both the Christian faith and the Bible would be lost, buried in history. Voltaire passed away, and his prophecy remained unfulfilled. But a very interesting thing also happened. Fifty years after Voltaire's death, the Geneva Bible Society bought Voltaire's house, and then began printing the Bible with a printing machine installed in his house; circulation and distribution of the printed Bible started happening from his home. The Lord Jesus Christ said, "Heaven and earth will pass away, but My words will by no means pass away" (Mark 13:31), and to this day He has always been proved to be true; No one has been able to prove the Word of God to be destructible or false.


Critics cooked up several theories, to prove the Bible to be false or wrong. One attempt was made by arguing that the first five books of the Bible said to have been written by Moses could not have been written by him because writing had not developed to that extent till Moses' time (1500–1400 AD). So those books must have been written sometime later, and then named after Moses. But sometime after this argument and theory was given, the "Pillar of Hammurabi" was discovered. This stone pillar bears the inscribed rules that he enforced in his kingdom, and is hundreds of years older than Moses, proving that people knew how to write, and written rules were present long before Moses' time. Other later archaeological discoveries have also proved that written material existed, and language had developed even before the time of Moses. Another similar argument was made that about the existence of Hittites, mentioned with Abraham in the book of Genesis, that there is no evidence of Hittites outside the Bible. But archeological discoveries also proved this claim to be false and exposed the ancient civilization of the Hittites.


To this day, throughout the world, and throughout history, all attempts to destroy the Bible have been unsuccessful. Those who tried to destroy the Bible perished, but the Word of God, the Bible, still remains established and firm, unshakable, infallible.


If you have not yet accepted the discipleship of the Lord, make your decision in favor of the Lord Jesus now to ensure your eternal life and heavenly blessings. Where there is obedience to the Lord, where there is respect and obedience to His Word, there is also the blessing and protection of the Lord. Repenting of your sins, and asking the Lord Jesus for forgiveness of your sins, voluntarily and sincerely, surrendering yourself to Him - is the only way to salvation and heavenly life. You only have to say a short but sincere prayer to the Lord Jesus Christ willingly and with a penitent heart, and at the same time completely commit and submit your life to Him. You can also make this prayer and submission in words something like, “Lord Jesus, I am sorry for my sins and repent of them. I thank you for taking my sins upon yourself, paying for them through your life.  Because of them you died on the cross in my place, were buried, and you rose again from the grave on the third day for my salvation, and today you are the living Lord God and have freely provided to me the forgiveness, and redemption from my sins, through faith in you. Please forgive my sins, take me under your care, and make me your disciple. I submit my life into your hands." Your one prayer from a sincere and committed heart will make your present and future life, in this world and in the hereafter, heavenly and blessed for eternity.


Through the Bible in a Year: 

  • 1 Kings 6-7

  • Luke 20:27-47


गुरुवार, 28 अप्रैल 2022

परमेश्वर का वचन – बाइबल / Bible – The Word of God – 10

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प्रसार और अनुवाद में अनुपम 


प्रसार: किसी पुस्तक के बारे में यह सुनना कोई असामान्य बात नहीं है कि उसकी कुछ हज़ार या दसियों हज़ार प्रतियां बिक गई हैं, और वह सर्वाधिक बिकने वाली पुस्तकों के सूची में सम्मिलित हो गई है। ऐसी पुस्तकों की संख्या बहुत कम है जिनकी लाखों या दसियों लाख प्रतियों की बिक्री हुई है; ऐसी पुस्तकें तो और भी कम हैं जिनकी बिक्री या वितरित हुई प्रतियों की संख्या करोड़ या करोड़ों में हो। ऐसे में यह भौंचक्का कर देने वाली बात है कि संसार के इतिहास में बाइबल ही एकमात्र ऐसी पुस्तक है जिसकी संसार भर में विभिन्न भाषाओं में बिक्री अथवा वितरित हुई प्रतियों की संख्या अरबों में है। छपाई के इतिहास के आरंभ होने से लेकर आज तक, बाइबल ही एकमात्र ऐसी पुस्तक है जो लगातार, बिना कभी भी किसी अन्य पुस्तक को स्थान दिए, संसार की सर्वाधिक बिकने तथा वितरित होने वाली पुस्तक रही है। 


संसार भर में बाइबल को प्रकाशित करने वाली अनेकों संस्थाएं हैं; हर देश में बाइबल को प्रकाशित करने वाली अपनी संस्थाएं हैं। यूनाइटिड बाइबल सोसायटी, एक ऐसी संस्था है जो संसार भर में बाइबल प्रकाशन और वितरण का कार्य करती है; सारे संसार में उसकी शाखाएं और दफ्तर हैं। उनके सभी शाखाओं और दफ्तरों द्वारा 1998 में  वितरित की गई बाइबलों की रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने तब संसार भर में 208 लाख सम्पूर्ण बाइबल, तथा इसके अतिरिक्त 201 लाख नए या पुराने नियम की प्रतियाँ वितरित की थीं। यदि बाइबल के सभी स्वरूपों – सम्पूर्ण बाइबल, पुराना या नए नियम की प्रतियाँ, बाइबल के कुछ भाग जैसे कि बाइबल की कोई पुस्तक, बाइबल के कुछ अंश, या किसी विषय पर बाइबल के संकलित अंशों के लेख आदि की कुल गणना देखी जाए तो यह संख्या 5850 लाख पहुँच जाती है – और यह केवल यूनाइटिड बाइबल सोसायटीस द्वारा प्रकाशित तथा वितरित की गई बाइबल या उसके भाग अथवा अंश की संख्या है। यदि संसार भर में अन्य संस्थाओं द्वारा किए गए ऐसे ही वितरण के आँकड़े एकत्रित किए जाएं, और आज के समय तक के किए गए कार्य को देखा जाए, तो अनुमान लगाइए कि संख्या कहाँ पहुँचेगी। संसार के इतिहास में कोई अन्य पुस्तक नहीं है जो बाइबल के प्रकाशन अथवा वितरण के आँकड़ों के कहीं निकट भी आती है। यदि बाइबल और उसके भागों की संसार भर में इतनी माँग न होती, तो यह कार्य कैसे संभव होता; वह भी सारे संसार में, और छपाई के आरंभ से लेकर आज दिन तक, निरंतर? संसार भर में बाइबल, या बाइबल के भाग, या बाइबल के अंश ही सर्वाधिक पढ़े जाने वाले लेख हैं। विचार करने वाली बात है, बाइबल और उसके संदेश में कुछ तो विलक्षण तथा अनुपम होगा, कि उनकी इतनी माँग संसार भर में बनी हुई है।

 

अनुवाद: जैसे प्रभावशाली और विस्मित करने वाले बाइबल के प्रकाशन और वितरण के आँकड़े हैं, उसी के समान प्रभावशाली और विस्मित करने वाले बाइबल के अनुवादों से संबंधित आँकड़े भी हैं। 

 

   संसार भर में छपने वाली अधिकांश पुस्तकें अपनी मूल भाषा के अतिरिक्त किसी अन्य भाषा में अनुवाद ही नहीं होती हैं। जो अनुवाद भी होती हैं, वो अधिकांशतः दो या तीन भाषाओं में अनुवाद होती हैं। बहुत ही कम पुस्तकें हैं जो अपनी संपूर्णता या भागों में भी 10 से लेकर 20 विभिन्न भाषाओं में अनुवाद हुई हैं। आज संसार की ज्ञात 6500 भाषाओं और बोलियों में से अधिकांश भाषाओं या बोलियों में बाइबल, या बाइबल का कोई भाग, अथवा अंश अनुवाद किया जा चुका है, और उसे प्रसारित किया गया है – छापे हुए स्वरूप में, अथवा औडियो रिकॉर्डिंग के रूप में; उन भाषाओं में भी जो केवल मौखिक हैं, जिनके लिखने के लिए कोई वर्णमाला तथा अक्षर नहीं हैं। जिन भाषाओं में केवल बाइबल के अंश हैं, उनमें बाइबल के भागों का अनुवाद ज़ारी है; और जिनमें अंश तथा भाग उपलब्ध हैं, उनमें सम्पूर्ण बाइबल का अनुवाद होना ज़ारी है। जैसे जैसे माँग बढ़ती जाती है, कार्य भी बढ़ता जाता है, और उपलब्ध हो जाने वाले अंश अथवा भाग या बाइबल वितरण के लिए उपयोग होते जाते हैं, वितरित होने लगते हैं। यदि यह कार्य औडियो रिकॉर्डिंग के रूप में है, तो उसे उसी स्वरूप में विभिन्न माध्यमों के द्वारा वितरित किया जाता है। कठिन प्रयासों और बाधाओं के बावजूद, संसार के सभी भू-भाग के लोगों के पास परमेश्वर का वचन, उनकी अपनी भाषा अथवा बोली में, उपलब्ध करवाया जा रहा है। अनेकों संस्थाएं संसार भर में इस कार्य में लगी हुई हैं; कुछ स्थानीय है, कुछ अंतर्राष्ट्रीय हैं; किन्तु सभी का यही प्रयास है कि संसार का कोई भू-भाग, कोई भाषा या बोली का समुदाय, उनकी अपनी भाषा में परमेश्वर के वचन से वंचित न रह जाए।


अब यह बाइबल के आलोचकों और विरोधियों के लिए विचार करने और उत्तर ढूँढने की बात है कि बाइबल और उसके संदेश में आखिर ऐसा क्या है जो सारे संसार के सभी इलाकों में लोगों को प्रेरित कर रहा है कि अनेकों बाधाओं, विरोध, और समस्याओं का सामना करते हुए भी, बाइबल में विश्वास करने वाले, उसे संसार के हर व्यक्ति, हर समुदाय तक पहुंचाने में लगे हुए हैं। संसार के इतिहास में क्या कोई अन्य ऐसा ग्रंथ अथवा पुस्तक है जिसका इतना व्यापक प्रसार एवं अनुवाद किया गया हो? बाइबल में कुछ तो होगा जो लोगों में उसके संदेश के लिए एक भूख, एक लालसा उत्पन्न कर रहा है; और जिनके पास बाइबल और उसका संदेश है, उन्हें किसी भी कीमत पर उस संदेश को सारे संसार के सभी लोगों तक पहुंचाने के लिए प्रेरित कर रहा है, और करवाता जा रहा है!


प्रभु यीशु मसीह ने जगत के अंत और सभी लोगों के न्याय के लिए जो चिह्न दिए थे (मत्ती 24 अध्याय), वे सभी पूरे होते जा रहे हैं; आज के विषय से संबंधित एक महत्वपूर्ण चिह्न है: “और राज्य का यह सुसमाचार सारे जगत में प्रचार किया जाएगा, कि सब जातियों पर गवाही हो, तब अन्त आ जाएगा” (मत्ती 24:14)। अब आप स्वयं देख लीजिए कि जगत अपने अंत और न्याय के कितना निकट खड़ा है।


यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु, मैं अपने पापों के लिए पश्चातापी हूँ, उनके लिए आप से क्षमा माँगता हूँ। मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मुझे और मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।


 

एक साल में बाइबल: 

  • 1 Kings 3-5

  • Luke 20:1-26


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English Translation



Unique in its Circulation and Translations


Circulation: It is not uncommon to hear of a book that has sold a few thousand or even tens of thousands of copies, and has entered the list of best-selling books. But there are very few books that have sold lakhs of copies; much fewer are the books, whose number of copies sold or distributed is a million or in millions. Therefore, it is astonishing that the Bible is the only book in the history of the world whose number of copies sold or distributed in different languages ​​across the world is in the billions. From the beginning of the history of printing to the present day, the Bible is the only book that has consistently, without ever giving this place to any other book, has consistently been ranked as the world's all-time best-selling, most read and distributed book.

    
There are many organizations publishing the Bible around the world. Every country has its own organizations that publishes the Bible. The United Bible Society is an organization that conducts Bible publication and distribution around the world; It has branches and offices all over the world. According to reports of Bibles distributed by all of their branches and offices in 1998, they had by then distributed 20.8 million complete Bibles around the world, plus an additional 20.1 million copies of the New or Old Testament. If the total count of all the forms of the Bible contents - the whole Bible, copies of the Old or of New Testament, parts of the Bible such as individual books of the Bible, or portions of the Bible, or compilation of articles written on a topic of the Bible, etc. is put together, then the number reaches 585 million – and this is only the number of Bibles or parts, or portions of the Bible published and distributed by one organization - the United Bible Societies. If we collect data on similar distributions done by other organizations around the world, and look at the work done to date, it is anybody’s guess where the numbers will reach. There is no other book in the history of the world that even comes anywhere close to the statistics of the publication or distribution of the Bible. How would this work be possible if the Bible and its parts have not continuously remained in demand, all the time, and all over the world, from the beginning of printing of books to the present day? The Bible, or parts of the Bible, or passages of the Bible, are the most widely read writings in the world. It is worth considering, that there must be something extraordinary and unique in the Bible and its message, that they remain in such demand around the world, all the time.
    
    Translations: Just as the statistics on the publication and distribution of the Bible are impressive and astounding, similarly the statistics on translations of the Bible are as impressive and astonishing too.

    Most of the books published around the world are usually not translated into any language other than their original language. If the translations do happen, they are mostly in two or three languages. There are very few books which have been translated in their entirety or even in their parts into 10 to 20 different languages. The Bible, in whole, or in part, has been translated, and circulated – in print, or as an audio recording, in most of the world's 6500 known languages ​​and dialects today; Even into those languages ​​which are only spoken, and have no alphabets and words to write. The remaining parts of the Bible continue to be translated into languages ​​that presently have only Bible portions; And translations of the entire Bible continue to be made available in one form or the other, where earlier only portions have been available. As demand increases, so does the work, and portions or the Bibles that become available for distribution, begin to be distributed. If the translation is in the form of an audio recording, it is distributed in the same format through a variety of media. Despite hard opposition and difficult obstacles, the Word of God is being made available to people in all parts of the world, in their own language or dialect. Many organizations are engaged in this work around the world; Some are local, some are international; But it is the endeavor of all that no part of the world, no language or community of dialects should be deprived of the availability of the Word of God in their own language.

Now it is a matter for critics and opponents of the Bible to ponder and find answers as to what is in the Bible and its message that is inspiring people in all regions of the world to face many obstacles, oppositions, and problems, but get hold of it in one form or the other. Why are Believers in the Bible engaged in trying to make it available to every person, every community in the world, even at the cost of their security and lives? Is there any other book, religious or secular, that in the history of the world has been so widely circulated and translated? There must be something in the Bible that is creating a hunger, a longing in the people for its message; And is inspiring those who have the Bible and its message, to spread that message to all the people of the whole world at any cost!


The signs given by the Lord Jesus Christ for the end of the world and the judgment of all people (Matthew 24), are all being fulfilled before our eyes. Amongst these signs, there is an important sign related to today's heading: “And this gospel of the kingdom will be preached in all the world as a witness to all the nations, and then the end will come” (Matthew 24:14). Now see for yourself how close the world stands to its end and justice. Are you ready to give the account of your life to the Lord?


If you have not yet accepted the discipleship of the Lord, make your decision in favor of the Lord Jesus now to ensure your eternal life and heavenly blessings. Where there is obedience to the Lord, where there is respect and obedience to His Word, there is also the blessing and protection of the Lord. Repenting of your sins, and asking the Lord Jesus for forgiveness of your sins, voluntarily and sincerely, surrendering yourself to Him - is the only way to salvation and heavenly life. You only have to say a short but sincere prayer to the Lord Jesus Christ willingly and with a penitent heart, and at the same time completely commit and submit your life to Him. You can also make this prayer and submission in words something like, “Lord Jesus, I am sorry for my sins and repent of them. I thank you for taking my sins upon yourself, paying for them through your life.  Because of them you died on the cross in my place, were buried, and you rose again from the grave on the third day for my salvation, and today you are the living Lord God and have freely provided to me the forgiveness, and redemption from my sins, through faith in you. Please forgive my sins, take me under your care, and make me your disciple. I submit my life into your hands." Your one prayer from a sincere and committed heart will make your present and future life, in this world and in the hereafter, heavenly and blessed for eternity.


Through the Bible in a Year: 

  • 1 Kings 3-5

  • Luke 20:1-26