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मंगलवार, 31 मई 2011

निराश को आशा

एक बहुप्रचलित धारणा है कि क्योंकि हमारे सारे दुखों का स्त्रोत अदन की वाटिका में हमारे आदि माता-पिता आदम और हव्वा द्वारा हुआ पाप है, इसलिए हमारी सभी व्याधियों की जड़ भी हमारा कोई पाप ही होगा। इसी धारणा के अन्तर्गत प्रभु यीशु के चेलों ने उस जन्म के अंधे को भी देखा, और यीशु से पूछा, "हे रब्‍बी, किस ने पाप किया था कि यह अन्‍धा जन्मा, इस मनुष्य ने, या उसके माता पिता ने?" लेकिन प्रभु के उत्तर ने उन्हें चौंका दिया और इस गलत धारणा की जड़ पर तीखा प्रहार किया, "यीशु ने उत्तर दिया, कि न तो इस ने पाप किया था, न इस के माता पिता ने: परन्‍तु यह इसलिये हुआ, कि परमेश्वर के काम उस में प्रगट हों।" (यूहन्ना ९:२, ३)

अधिकाँश शारीरिक रोग तो सामाजिक रीति से नीची नज़रों से नहीं देखे जाते, लेकिन मानसिक रोगों के विष्य में अभी भी गलत धारणाएं समाज में बसी हुई हैं। समाज अभी भी मानसिक रोग से ग्रसित मनुष्य को एक अति संकीर्ण मानसिकता के तहत तुच्छ जानता है, उसे तिरिस्करित रखता है और उसे ढंग से समझना नहीं चाहता। विवियन क्लार्क ने एक चर्चा के विष्य में लिखा जिसका मुद्दा था "क्या निराशा का मानसिक रोग एक मसीही विश्वासी के लिए पाप है?" एक व्यक्ति ने कहा, "अवश्य ही यह पाप है क्योंकि निराशा पवित्रआत्मा के एक फल - आनन्द, के विपरीत है, और दोनो एक साथ विद्यमान नहीं हो सकते।" दूसरे ने कहा, "किसी मसीही विश्वासी के लिए निराशा होकर रहना संभव ही नहीं है।" यह सब सुनकर उस चर्चा के लिए एकत्रित समूह में से एक उदास चेहेरे वाली महिला उठकर चली गई, कई दिन से वह निराश थी, और ऐसी टिप्पणियों ने उसकी निराशा को और बढ़ा दिया।

यह संभव है कि मानसिक परेशानियाँ किसी गलत व्यवहार, बुरी आदत या किसी पाप के कारण हों, लेकिन पाप किस से नहीं होता? हम सब परमेश्वर के नियमों का उल्लंघन करने के दोषी हैं, लेकिन सभी तो मानसिक रोगों से ग्रस्त नहीं हो जाते। मानसिक रोगों के कारण बहुत जटिल और विविध हैं; सब को संकीर्ण नज़रिये से देखकर एक ही बात के आधीन कर देना कदापि सही नहीं है।

प्रत्येक मसीही विश्वासी को अपने प्रति प्रभु के लगातार बने रहने वाले अनुग्रह और धैर्य को ध्यान में रखते हुए किसी मानसिक रोगी या निराश व्यक्ति को देखकर उसपर तुरंत किसी पाप का दोष नहीं मढ़ देना चाहिए।

निराश को आशा देने के लिए उसके साथ सहानुभुति और प्रेम का व्यवहार करना चाहिए और प्रभु से प्रार्थना करनी चाहिए कि, "हे प्रभु मैं इस व्यक्ति के जीवन में आपका कार्य कर सकूँ, इसके मन में आपकी शाँति पहुँचा सकूँ, मुझे ऐसी बुद्धि और सामर्थ दें।" - डेनिस डी हॉन


अनुकंपा किसी दूसरे के दुख को हर लेने के लिए हर संभव प्रयास करती है।

हे रब्‍बी, किस ने पाप किया था कि यह अन्‍धा जन्मा, इस मनुष्य ने, या उसके माता पिता ने? - यूहन्ना ९:२


बाइबल पाठ: यूहन्ना ९:१-११

Joh 9:1 फिर जाते हुए उस ने एक मनुष्य को देखा, जो जन्म का अन्‍धा था।
Joh 9:2 और उसके चेलों ने उस से पूछा, हे रब्‍बी, किस ने पाप किया था कि यह अन्‍धा जन्मा, इस मनुष्य ने, या उसके माता पिता ने?
Joh 9:3 यीशु ने उत्तर दिया, कि न तो इस ने पाप किया था, न इस के माता पिता ने: परन्‍तु यह इसलिये हुआ, कि परमेश्वर के काम उस में प्रगट हों।
Joh 9:4 जिस ने मुझे भेजा है हमें उसके काम दिन ही दिन में करना अवश्य है: वह रात आने वाली है जिस में कोई काम नहीं कर सकता।
Joh 9:5 जब तक मैं जगत में हूं, तब तक जगत की ज्योति हूं।
Joh 9:6 यह कहकर उस ने भूमि पर थूका और उस थूक से मिट्टी सानी, और वह मिट्टी उस अन्‍धे की आंखों पर लगा कर।
Joh 9:7 उस से कहा जा शीलोह के कुण्‍ड में धो ले, (जिस का अर्थ भेजा हुआ है) सो उस ने जाकर धोया, और देखता हुआ लौट आया।
Joh 9:8 तब पड़ोसी और जिन्‍होंने पहले उसे भीख मांगते देखा था, कहने लगे क्‍या यह वही नहीं, जो बैठा भीख मांगा करता था?
Joh 9:9 कितनों ने कहा, यह वही है: औरों ने कहा, नहीं परन्‍तु उसके समान है: उस ने कहा, मैं वही हूं।
Joh 9:10 तब वे उस से पूछने लगे, तेरी आंखें क्‍योंकर खुल गईं?
Joh 9:11 उस ने उत्तर दिया, कि यीशु नाम एक व्यक्ति ने मिट्टी सानी, और मेरी आंखों पर लगा कर मुझ से कहा, कि शीलोह में जाकर धो ले; सो मैं गया, और धोकर देखने लगा।

एक साल में बाइबल:
  • २ इतिहास १३-१४
  • यूहन्ना १२:१-२६