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मंगलवार, 18 जनवरी 2022

प्रभु यीशु की कलीसिया या मण्डली - परमेश्वर की दाख की बारी


प्रभु यीशु की कलीसिया संबंधी रूपकों में होकर कलीसिया के लिए प्रभु के प्रयोजन समझें - 7  

पिछले कुछ लेखों में हम प्रभु यीशु की कलीसिया के लिए परमेश्वर के वचन बाइबल के नए नियम खंड में प्रयोग किए गए विभिन्न रूपक (metaphors), जैसे कि - प्रभु का परिवार या घराना; परमेश्वर का निवास-स्थान या मन्दिर; परमेश्वर का भवन; परमेश्वर की खेती; प्रभु की देह; प्रभु की दुल्हन; परमेश्वर की दाख की बारी, इत्यादि के बारे में देखते आ रहे हैं। हमने देखा है कि किस प्रकार से इन रूपकों में होकर परमेश्वर पवित्र आत्मा ने प्रभु द्वारा अपनी कलीसिया, अर्थात, अपने सच्चे और समर्पित शिष्यों का धर्मी और पवित्र किए जाना, परमेश्वर के साथ कलीसिया के संबंध, संगति, एवं सहभागिता की बहाली, तथा कलीसिया के लोगों के व्यवहार और जीवनों में परमेश्वर के प्रयोजन, उन से उसकी अपेक्षाएं, आदि को समझाया है। यहाँ पर ये रूपक किसी विशिष्ट क्रम, आधार, अथवा रीति से सूची-बद्ध नहीं किए गए हैं। कलीसिया के लिए बाइबल में प्रयोग किए गए सभी रूपक समान रीति से, एक सच्चे, समर्पित, आज्ञाकारी मसीही विश्वासी के प्रभु यीशु और पिता परमेश्वर के साथ संबंध को, तथा उसके मसीही जीवन, और दायित्वों के विभिन्न पहलुओं को दिखाते हैं। 

साथ ही, इन सभी रूपकों में एक और सामान्य बात है कि प्रत्येक रूपक यह भी बिलकुल स्पष्ट और निश्चित कर देता है कि कोई भी व्यक्ति किसी भी प्रकार के किसी भी मानवीय प्रयोजन, कार्य, मान्यता या धारणा के निर्वाह आदि के द्वारा, अपनी अथवा किसी अन्य मनुष्य की ओर से परमेश्वर की कलीसिया का सदस्य बन ही नहीं सकता है; वह चाहे कितने भी और कैसे भी प्रयास अथवा दावे क्यों न कर ले। अगर व्यक्ति प्रभु यीशु की कलीसिया का सदस्य होगा, तो वह केवल प्रभु की इच्छा से, उसके माप-दंडों के आधार पर, उसकी स्वीकृति से होगा, अन्यथा कोई चाहे कुछ भी कहता रहे, वह चाहे किसीमानवीय कलीसियाअथवा किसीसंस्थागत कलीसियाका सदस्य हो जाए, किन्तु प्रभु की वास्तविक कलीसिया का सदस्य हो ही नहीं सकता है। और यदि वह अपने आप को प्रभु की कलीसिया का सदस्य समझता या कहता भी है, तो भी प्रभु उसकी वास्तविकता देर-सवेर प्रकट कर देगा, और अन्ततः वह अनन्त विनाश के लिए प्रभु की कलीसिया से पृथक कर दिया जाएगा। इसलिए अपने आप को मसीही विश्वासी कहने वाले प्रत्येक जन के लिए अभी समय और अवसर है कि अभी अपनेमसीही विश्वासीहोने के आधार एवं वास्तविक स्थिति को भली-भांति जाँच-परख कर, उचित कदम उठा ले और प्रभु के साथ अपने संबंध ठीक कर ले। हर व्यक्ति को यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि वह किसी मानवीय कलीसिया अथवा किसी संस्थागत कलीसिया का नहीं, परंतु प्रभु यीशु की वास्तविक कलीसिया का सदस्य है।

पिछले लेखों में हम उपरोक्त सूची के पहले छः रूपकों को देख चुके हैं। जैसा ऊपर कहा गया है, हमने यहाँ पर इन लेखों में रूपकों को किसी निर्धारित अथवा विशेष क्रम में नहीं लिया अथवा रखा है; सभी रूपक समान ही महत्वपूर्ण हैं, सभी में मसीही जीवन से संबंधित कुछ आवश्यक शिक्षाएं हैं। आज हम इस सूची के सातवें रूपक, कलीसिया के परमेश्वर की दाख की बारी होने के संबंध में देखेंगे।

(7) परमेश्वर की दाख की बारी

बाइबल के नए नियम खंड की पहली चार पुस्तकों, अर्थात प्रभु यीशु मसीह की जीवनियों में, प्रभु यीशु नेदाख की बारीसे संबंधित कुछ दृष्टांत कहे हैं। किन्तु किसी भी दृष्टांत में, या फिर, बाद में बाइबल की अन्य पुस्तकों में, प्रभु यीशु की कलीसिया को, पहले छः रूपकों के समान, स्पष्टतः प्रभु की या परमेश्वर की दाख की बारी नहीं कहा गया है। पुराने नियम में परमेश्वर के लोगों, इस्राएल कोपरमेश्वर की दाख की बारीकहा गया है। क्योंकि वर्तमान में मसीही विश्वासी परमेश्वर के लोग, उसकेआत्मिकइस्राएल (इफिसियों 2:11-13) हैं, इसलिए दाख की बारी से संबंधित प्रभु के दृष्टान्तों को प्रभु यीशु की कलीसिया के संदर्भ में भी ले लिया जाता है, और कलीसिया से संबंधित बातों और कार्यों के विषय उन दृष्टांतों से भी शिक्षाएं ली जाती हैं, जो मसीही जीवन के लिए शिक्षाप्रद भी हैं। हम भी यहाँ परदाख की बारीसे संबंधित प्रभु द्वारा दिए गए दृष्टांतों से कुछ शिक्षाएं लेंगे, जो मसीही जीवन, सेवकाई, और प्रभु के लिए उपयोगी होना सिखाती हैं।

मत्ती 20:1-16 में एक गृहस्थ द्वारा लगाई गई दाख की बारी का दृष्टांत है, जिसमें कार्य करने के लिए वह सुबह से शाम, अर्थात आरंभ से लेकर अन्त तक, मजदूरों को ढूँढता और भेजता रहा। अर्थात, उस दाख की बारी को देखभाल की, उसमें कुछ-न-कुछ काम की आवश्यकता थी। उस दाख की बारी का स्वामी इस बात को जानता और समझता था, और वह ही अपनी बारी में काम के लिए मजदूरों को नियुक्त करता और भेजता रहा। प्रभु की कलीसिया में भी बहुत से कार्य होते हैं, जिनके बारे में हम आत्मिक वरदानों से संबंधित लेखों में पहले देख चुके हैं। प्रभु की कलीसिया गतिहीन (static) नहीं, गतिशील (dynamic) है। अभी निर्माणाधीन है, उसे देखभाल की, और शैतान के द्वारा उस पर निरंतर किए जाने वाले विभिन्न प्रकार के हमलों के कारण मरम्मत की आवश्यकता रहती है। इसलिए प्रभु को अपनी कलीसिया में उसके लिए कार्य करते रहने वालों की भी आवश्यकता रहती है।

मत्ती 21:28-32 में, पिता की दाख की बारी में कार्य करने के लिए आज्ञाकारी और लापरवाह पुत्रों का दृष्टांत है, जो हमें परमेश्वर पिता की इच्छा के अनुसार कार्य करते रहना सिखाता है। 

मत्ती 21:33-46 में दाख की बारी की देखभाल और उसके लिए उत्तरदायी होने से संबंधित दृष्टांत है, जिसे मरकुस 12:1-12 में और लूका 20:9-18 में भी लिखा गया है। प्रभु का यह दृष्टांत मुख्यतः उन धर्म के अगुवों के विरुद्ध था जिन्होंने परमेश्वर द्वारा उन्हें दिए गए दायित्व का ठीक से निर्वाह नहीं किया, परमेश्वर द्वारा भेजे गए नबियों का निरादर किया उन्हें मार डाला, और प्रभु को भी मार डालना चाहते थे। किन्तु हमारे लिए इस दृष्टांत में महत्वपूर्ण शिक्षा है - प्रभु परमेश्वर जब दायित्व देता है, तो फिर उसका हिसाब भी लेता है। मसीही जीवन लापरवाही का, प्रभु और उसके कार्य को हल्के में लेने, और ठीक से न करने का जीवन नहीं है। सभी को अपने जीवन और कार्यों का हिसाब देना होगा, और यह आँकलन होने के अनुसार ही प्रत्येक अपने प्रतिफल पाएगा।

लूका 13:6-9 में प्रभु द्वारा दाख की बारी का एक और दृष्टांत है, जो दाख की बारी के स्वामी (परमेश्वर) के धैर्य और विलंब से कोप करने को, तथा बारी के रखवाले (प्रभु यीशु) के अपने लोगों के प्रति प्रेम और उनको फलवंत बनाने में प्रयासरत रहने को दिखाता है।

ये सभी दृष्टांत अपने लोगों, अपनीदाख की बारीके प्रति परमेश्वर और प्रभु यीशु की लगन, प्रेम, और उनके लिए परिश्रम करने को, तथा प्रभु के लोगों से प्रभु की अपेक्षा को दिखाते हैं। सभी दृष्टांत प्रभु या परमेश्वर कीदाख की बारीसे संबंधित हैं; कोई भी दृष्टांत प्रभु की दाख की बारी में घुस आए या लगा दिए गए लोगों के लिए नहीं है। प्रभु परमेश्वर की देखभाल और चिंता, उसके अपने लोगों के लिए है; उसकी दाख की बारी में उसके लोगों का भेस धर कर रहने वालों का कोई उल्लेख नहीं है। 

यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, तो यह ध्यान रखिए कि अन्ततः, एक दिन, आपको अपने जीवन और कार्यों का संपूर्ण हिसाब प्रभु को देना होगा। प्रभु के धैर्य और विलंब से कोप करने का अर्थ कभी कोप न करना, कभी हिसाब न लेना, नहीं है। उद्धार पाया हुए मसीही विश्वासी का उद्धार तो कभी नहीं जाएगा, किन्तु उसे अनन्तकाल के लिए मिलने वाले प्रतिफलों पर उसके जीवन और कार्यों का प्रभाव अवश्य आएगा (1 कुरिन्थियों 3:13-15) 

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी। 

 

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • उत्पत्ति 43-45     
  • मत्ती 12:24-50