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शुक्रवार, 29 जून 2012

उद्देश्य

   एक परंपरा के अनुसार, जब प्रेरित पौलुस को सन ६७ में सिर कलम कर के मृत्युदण्ड दिया गया तो उसके बाद उसके शरीर को रोम ही में दफना भी दिया गया। सन २००९ में वैज्ञानिकों ने उसके शरीर के कई संभावित अवशेषों पर परीक्षण किए, जिनसे यह तो पता चला कि वे अवशेष प्रथम या दुसरी शताब्दी के हैं, लेकिन यह प्रमाणित नहीं हुआ कि उन में से कोई भी अवशेष पौलुस ही का है। लेकिन इस से कोई फर्क नहीं पड़ता, पौलुस की अस्थियां चाहे जहां भी हों, उसका दिल तो हमारे साथ है - परमेश्वर के वचन बाइबल में लिखी उसकी पत्रियों के रूप में।

   मारे जाने से पहले, जब वह रोम में कैद में था, तब पौलुस ने फिलिप्पियों के मसीही विश्वासियों को अपने जीवन के उद्देश्य के बारे में लिखा था। उसने लिखा, "मैं तो यही हार्दिक लालसा और आशा रखता हूं, कि मैं किसी बात में लज्जित न होऊं, पर जैसे मेरे प्रबल साहस के कारण मसीह की बड़ाई मेरी देह के द्वारा सदा होती रही है, वैसा ही अब भी हो चाहे मैं जीवित रहूं वा मर जाऊं। क्‍योंकि मेरे लिये जीवित रहना मसीह है, और मर जाना लाभ है" (फिलिप्पियों १:२०-२१)।

   आज भी पुलुस के ये शब्द हमें अपने हृदयों को जांचने की चुनौती देते हैं; क्या मसीह यीशु के लिए हमारा प्रेम भी उस के प्रेम के समान है? क्या हमारे जीवन का उद्देश्य भी प्रतिदिन और हर परिस्थिति में अपने प्रभु को आदर देते रहना है, जैसा उसका था? हमारे संसार से कूच कर जाने के बाद संसार या हमारे सगे-संबंधी हमें किस बात के लिए स्मरण करेंगे?

   हमारा उद्देश्य और प्रयास होना चाहिए कि पौलुस के समान हम भी आशा और प्रोत्साहन देने वाली एक ऐसी विरासत छोड़ जाएं जो मसीह यीशु पर आधारित हो और हमारे पीछे भी बहुतों को प्रोत्साहित करती रहे, उन का मार्गदर्शन करती रहे। - डेविड मैक्कैसलएंड


जो हमारे जीवनों को पढ़ते हैं, हम उन के लिए मसीह की पत्रियां हैं।

मैं तो यही हार्दिक लालसा और आशा रखता हूं, कि मैं किसी बात में लज्जित न होऊं, पर जैसे मेरे प्रबल साहस के कारण मसीह की बड़ाई मेरी देह के द्वारा सदा होती रही है, वैसा ही अब भी हो चाहे मैं जीवित रहूं वा मर जाऊं। - फिलिप्पियों १:२०

बाइबल पाठ: फिलिप्पियों १:१२-२१
Php 1:12  हे भाइयों, मैं चाहता हूं, कि तुम यह जान लो, कि मुझ पर जो बीता है, उस से सुसमाचार ही की बढ़ती हुई है।
Php 1:13  यहां तक कि कैसरी राज्य की सारी पलटन और शेष सब लोगों में यह प्रगट हो गया है कि मैं मसीह के लिये कैद हूं।
Php 1:14 और प्रभु में जो भाई हैं, उन में से बहुधा मेरे कैद होने के कारण, हियाव बान्‍ध कर, परमेश्वर का वचन निधड़क सुनाने का और भी हियाव करते हैं।
Php 1:15  कितने तो डाह और झगड़े के कारण मसीह का प्रचार करते हैं और कितने भली मनसा से।
Php 1:16  कई एक तो यह जान कर कि मैं सुसमाचार के लिये उत्तर देने को ठहराया गया हूं प्रेम से प्रचार करते हैं।
Php 1:17 और कई एक तो सीधाई से नहीं पर विरोध से मसीह की कथा सुनाते हैं, यह समझ कर कि मेरी कैद में मेरे लिये क्‍लेश उत्‍पन्न करें।
Php 1:18 सो क्‍या हुआ? केवल यह, कि हर प्रकार से चाहे बहाने से, चाहे सच्‍चाई से, मसीह की कथा सुनाई जाती है, और मैं इस से आनन्‍दित हूं, और आनन्‍दित रहूंगा भी।
Php 1:19 क्‍योंकि मैं जानता हूं, कि तुम्हारी बिनती के द्वारा, और यीशु मसीह की आत्मा के दान के द्वारा इस का प्रतिफल मेरा उद्धार होगा।
Php 1:20  मैं तो यही हार्दिक लालसा और आशा रखता हूं, कि मैं किसी बात में लज्ज़ित न होऊं, पर जैसे मेरे प्रबल साहस के कारण मसीह की बड़ाई मेरी देह के द्वारा सदा होती रही है, वैसा ही अब भी हो चाहे मैं जीवित रहूं वा मर जाऊं।
Php 1:21  क्‍योंकि मेरे लिये जीवित रहना मसीह है, और मर जाना लाभ है।


एक साल में बाइबल: 

  • अय्युब १४-१६ 
  • प्रेरितों ९:२२-४३