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रविवार, 13 जून 2010

उसके मार्ग में होना

रोमी साम्राज्य अपने राज्य में फैले सड़कों और चौड़े राजमार्गों के जाल के लिये जाना जाता था, जिन पर बहुतायत से यातायात होता था। जब यीशु ने कहा "मार्ग मैं ही हूँ" (यूहन्ना १४:६) तो उसके श्रोताओं के मन में इन्हीं मार्गों का चित्र उभरा होगा।

यद्यपि यह पद यीशु के स्वर्ग का मार्ग होने के संदर्भ में है, किंतु उसके इस कथन में और भी गहरा अर्थ निहित है। इस संसार के घने जंगल की झाड़ियों को काटकर, हमारे जीवन के लिये मार्ग बनाने वाला और उस मार्ग पर हमारा मार्गदर्शक यीशु ही है। बहुतेरे लोग संसार की रीति के अनुसार अपने मित्रों से प्रेम और बैरियों से बैर के मार्ग पर चलते हैं, किंतु यीशु ने हमारे लिये एक नया मार्ग तैयार किया: "परन्‍तु मैं तुम से यह कहता हूं, कि अपने बैरियों से प्रेम रखो और अपने सताने वालों के लिये प्रार्यना करो" (मत्ती ५:४४)। दूसरों के दोष देखना और उनकी आलोचना करना तो बहुत आसान है, परन्तु मार्गदर्शक यीशु कहता है कि ऐसा करने से पहले आलोचना करने वाला स्वयं अपनी आंख से लट्ठा निकाल ले (मत्ती ७:३, ४)। वह एक और मार्ग देता है - लालच और स्वार्थ के स्थान पर उदारता से जीने का मार्ग (लूका१२:१३-३४)।

जब यीशु ने कहा "मार्ग मैं हूँ" तो उसकी बुलाहट थी विनाश की ओर ले जाने वाले पुराने मार्ग को छोड़कर उसके पीछे उसके बताये हुए जीवन के नये मार्ग पर चलने की। वास्तव में मरकुस ८:३४ में प्रयुक्त शब्द (जिसका अनुवाद है "अनुसरण करना") का अर्थ है उसके साथ उसके बनाए मार्ग पर होना।

मुझे और आपको यह चुनाव करना है कि या तो हम पुराने और जाने-पहचाने किंतु विनाश पर ले जाने वाले मार्ग पर चल सकते हैं, अथवा उसका अनुसरण करें जो स्वयं मार्ग है और उसके साथ जीवन के मार्ग पर चलें। - जो स्टोवैल


यदि हम उसका अनुसरण करेंगे जो स्वयं मार्ग है तो फिर हमें मार्ग की चिंता करने की आवश्यक्ता नहीं होगी।


बाइबल पाठ: यूहन्ना १४:१-६


यीशु ने उस से कहा, मार्ग और सच्‍चाई और जीवन मैं ही हूं। बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुंच सकता। - यूहन्ना १४:६


एक साल में बाइबल:
  • एज़रा ६-८
  • यूहन्ना २१