परमेश्वर के वचन में फेर-बदल – 14
पिछले लेख में हमने देखा था कि दो मुख्य कारण हैं जिनके द्वारा शैतान आज इतनी सरलता से लोगों को बहका और भरमा लेता है, और वह भी कलीसिया या मण्डली के धर्मी अगुवों, प्रमुख लोगों, प्रचारकों, और शिक्षकों में होकर। पहला कारण, जिसे हमने पिछले लेख में देखा था, परमेश्वर और उसके वचन के प्रति सामान्यतः मसीहियों या ईसाइयों में पाई जाने वाली नीरसता, अपने जीवनों में परमेश्वर को उसका प्राथमिक स्थान देने के प्रति अरुचि है। दूसरे कारण को हम आज देखेंगे।
इस दुखद हाल का दूसरा मुख्य कारण है कि प्रत्येक ऐसे धर्मी जन या कलीसिया के अगुवे, या प्रचारक और शिक्षक के संग, जो थोड़ी भी ख्याति प्राप्त कर लेता है, जिसकी आदर के साथ पहचान होने लगती है, हमेशा ही उसके साथ उसके अन्ध-भक्तों का एक समूह जुड़ जाता है। ये अन्ध-भक्त हमेशा ही यही मानते, कहते, और प्रसार करते हैं कि जिसका वे अनुसरण कर रहे हैं, वह कभी कोई गलती कर ही नहीं सकता है, कभी कुछ भी गलत प्रचार या शिक्षा नहीं दे सकता है। और इसलिए, वे यही मानते हैं, तथा औरों को भी यही अभिप्राय देते हैं कि किसी को भी उस व्यक्ति की बातों को जाँचने-परखने, और पुष्टि करने की कोई आवश्यकता नहीं है। यहाँ तक कि ये अन्ध-भक्त अपनी व्यक्तिगत प्रार्थनाओं और आराधना में भी उसी व्यक्ति के द्वारा प्रयोग किए जाने वाले शब्दों, उसकी शब्दावली और वाक्यांशों, तथा बाइबल के तथ्यों को, उसकी शैली और हाव-भाव को वैसे ही बोलने, दोहराने, और करने लगते हैं जैसा वह व्यक्ति जिससे से वे इतने प्रभावित हैं, करता है। उस व्यक्ति के ये अन्ध-भक्त न तो कभी यह बाइबल में से जाँचने-परखने का प्रयास करते हैं कि क्या बाइबल में भी वे शब्द, शब्दावली, वाक्याँश, और तथ्य उसी प्रकार से, उसी अर्थ और अभिप्राय से उपयोग किए गए हैं की नहीं। और न ही वे इसकी पुष्टि करते हैं कि क्या यह उन्हें उपयोग करने का वह सही तरीका है भी या नहीं। यदि कोई उस व्यक्ति से संबंधित किसी बात के लिए कोई प्रश्न उठाता है, जिसके वे इतने कट्टर अनुयायी हैं, तो न ही वे इसे सकारात्मक रीति से लेते हैं । इन अन्ध-भक्तों के लिए, इस प्रकार की कोई भी बात करना, उस व्यक्ति का अपमान, यहाँ तक कि उसके विरुद्ध अपराध करना माना जाता है। और यह सारा व्यवहार शैतान और उसकी कुटिल योजनाओं को बहुत रास आता है, वह गलत जानकारी फैलाने और लोगों को बहकाने और भरमाने के लिए इसका भरपूरी से उपयोग करता है।
हमने पिछले लेख में देखा था कि किस प्रकार से शैतान बड़ी चतुराई और चालाकी से बाइबल के सही लेखों का बाइबल के विपरीत गलत उपयोग करता है; और वह यह कार्य परमेश्वर के धर्मी अगुवों, प्रमुख लोगों, प्रचारकों, और शिक्षकों में होकर करता है, उन्हें जाने-अनजाने में अपनी युक्तियों में फँसा लेने के द्वारा। इस गलती की हालत में होने पर भी, ये धर्मी जन तथा उनके अन्ध-भक्त यही सोचते और मानते रहते हैं कि वे परमेश्वर के सही वचन का ही प्रचार और प्रसार कर रहे हैं। परन्तु वास्तविकता में, जिसका वे प्रचार और प्रसार कर रहे होते हैं वह परमेश्वर के वचन का बिगड़ा और भ्रष्ट किया हुआ स्वरूप होता है, जिसे शैतानी प्रभावों के द्वारा व्यर्थ और निष्फल मनुष्य के वचन में परिवर्तित कर दिया गया है। इसीलिए, चाहे उनके वे सन्देश सुनाने में बहुत अच्छे लगें, उन संदेशों की बहुत सराहना और प्रशंसा की जाए, फिर भी वे सन्देश वास्तव में लोगों को कायल करने और उन्हें परमेश्वर और उसकी कलीसिया के निकट लाने में, या मण्डली के लोगों को मण्डली में बनाए रखने में दुर्बल या अप्रभावी रहते हैं।
अगले लेख में हम बाइबल के उस स्पष्ट संकेत को देखेंगे जो यह पहचानने में हमारी सहायता करता है कि क्या शैतान की युक्ति में फँस गया है, और स्वयं भी गलत मार्ग पर चल रहा है तथा औरों को भी गलत मार्ग पर डाल रहा है। यह सभी बातें एक तरह से 1 कुरिन्थियों 3:17 की चेतावनी का पूरा होना है; जो परमेश्वर की कलीसिया के विरुद्ध कार्य करेगा, उस पर भी वही दुष्प्रभाव आ जाएगा।
यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु, मैं अपने पापों के लिए पश्चातापी हूँ, उनके लिए आप से क्षमा माँगता हूँ। मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मुझे और मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
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Altering God’s Word – 14
In the previous article we had seen that there are two main reasons why Satan is able to so easily misguide people today, and that too through the godly leaders, Elders, preachers and teachers. The first reason, which we saw in the last article, was the general apathy amongst Christians to give God and His Word a primary place in their lives. Today we will consider the second reason.
The second reason for this tragic state of affairs is that with any godly person, any preacher or teacher, any Church leader or Elder, who gains any reputation and prominence there is always an associated group of his blind-followers. These blind-followers always believe, propagate, and assert that the person they are following can never, and will never say, preach, or teach anything wrong. And therefore, these blind-followers always trust and imply the same to others as well, that there is no need for anyone to ever cross-check and verify that person’s preaching and teaching. So much so that these blind-followers, in their own personal prayers and worship, copy and use the words, vocabulary, and phrases, the style, and the mannerisms etc. of the person they are so obsessed with. These blind-followers of the person neither ever care to verify from the Bible if that is the correct way, the Biblical way of using those words, vocabulary, phrases, and facts of the Bible; nor take it kindly if anyone does raise questions about anything related with the person, they are an ardent follower of. For these blind-followers, anything to this effect is an insult of that person, or even an offense against him. And, this whole scenario suits Satan and his devious schemes very well for spreading disinformation and misguiding people.
We have seen in the previous articles how Satan very cleverly uses Biblical texts and facts in an unBiblical way; and he gets this done through God’s committed Believers, Church leaders or elders, Bible preachers or teachers, etc., by inadvertently making them fall for his ploys. In this state of error, these godly people, as well as their blind-followers keep thinking that they are preaching and teaching the Word of God. But in reality, what they are preaching and teaching is a distorted and corrupted version of God’s Word, that has been converted into the vain and fruitless word of a man by satanic influences. Therefore, though their messages, preaching, and teaching may be well appreciated and applauded, but it remains weak or ineffective in convicting people, bringing them to God and His Church, or even continuing to hold the existing members there. The Church attendance instead of growing, starts dwindling away.
In the next article we will see the clearly spelled out Biblical indicators that can help us discern if a person has fallen for Satan’s ploys in being misguided and also misguiding others. These things, in a manner of speaking, are the fulfilment of the warning of 1 Corinthians 3:17; those who act against God’s Church, will see the same fate coming upon them.
If you have not yet accepted the discipleship of the Lord, make your decision in favor of the Lord Jesus now to ensure your eternal life and heavenly blessings. Where there is obedience to the Lord, where there is respect and obedience to His Word, there is also the blessing and protection of the Lord. Repenting of your sins, and asking the Lord Jesus for forgiveness of your sins, voluntarily and sincerely, surrendering yourself to Him - is the only way to salvation and heavenly life. You only have to say a short but sincere prayer to the Lord Jesus Christ willingly and with a penitent heart, and at the same time completely commit and submit your life to Him. You can also make this prayer and submission in words something like, “Lord Jesus, I am sorry for my sins and repent of them. I thank you for taking my sins upon yourself, paying for them through your life. Because of them you died on the cross in my place, were buried, and you rose again from the grave on the third day for my salvation, and today you are the living Lord God and have freely provided to me the forgiveness, and redemption from my sins, through faith in you. Please forgive my sins, take me under your care, and make me your disciple. I submit my life into your hands." Your one prayer from a sincere and committed heart will make your present and future life, in this world and in the hereafter, heavenly and blessed for eternity.