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शुक्रवार, 24 दिसंबर 2021

मसीही सेवकाई और पवित्र आत्मा के वरदान - 22


आत्मिक वरदानों के प्रयोगकर्ता - उपकार करने वाले - क्यूँ और कैसे   

हमने पिछले लेख में मसीही विश्वासियों की मण्डली में उपकार या सहायता करने के आत्मिक वरदान की आवश्यकता के बारे में देखा था। बाइबल हमें बताती है कि मसीही विश्वासी और परमेश्वर के जन, और परमेश्वर के नबी भी सुख-दुख की परिस्थितियों से निकलते हैं, और सभी को सहायता की आवश्यकता होती है। ऐसे में परमेश्वर के जन ही एक-दूसरे के सबसे अच्छे सहायक हो सकते हैं। कभी-कभी जो मित्र सहायता तथा सांत्वना देने के लिए आते हैं, वे ही दुख और अधिक बढ़ाने लग जाते हैं, जैसे कि अय्यूब के साथ हुआ था। अय्यूब पर एक ही दिन में आई भयानक और हृदय विदारक त्रासदियों, उसके सभी बच्चों के मारे जाने, उसका सब कुछ लुट जाने, और उसका शरीर घावों से भर जाने का समाचार सुनकर, अय्यूब के मित्र उसके पास उसे सांत्वना और ढाढ़स देने के लिए आए थे, किन्तु उसकी दशा देखकर वे आप ही रो पड़े, विलाप करने लगे, और उनमें से कोई भी सात दिन तक अय्यूब से कुछ बोल नहीं सका (अय्यूब 2:11-13)। उसके बाद जब उन्होंने अय्यूब से बात करनी आरंभ की, तो उसे ही किसी पाप का दोषी ठहराने लगे जिसके कारण उस पर यह सभी त्रासदियाँ आईं। अय्यूब उनके सामने अपने निर्दोष होने की बात कहता रहा, परन्तु वे उस पर दोषारोपण करते ही रहे। अन्ततः, उनकी बातों से तंग आकर, अय्यूब, उसे सांत्वना देने आए हुए अपने उन मित्रों से कहता है, “ऐसी बहुत सी बातें मैं सुन चुका हूँ, तुम सब के सब निकम्मे शान्तिदाता हो। क्या व्यर्थ बातों का अन्त कभी होगा?” (अय्यूब 16:2)। और इस पुस्तक के अंत में हम देखते हैं कि परमेश्वर भी उनके इस दोषारोपण से प्रसन्न नहीं था, जबकि वे मित्र परमेश्वर को सही और अय्यूब को गलत प्रमाणित करना चाह रहे थे (अय्यूब 42:7); अय्यूब ने जब अपने मित्रों के लिए होमबलि चढ़ाकर उनके पक्ष में परमेश्वर से प्रार्थना की, तब ही उन्हें परमेश्वर से क्षमा प्राप्त हुई (अय्यूब 42:8-9) 

परमेश्वर का वचन हमें सिखाता है कि हम परमेश्वर से ही बुद्धिमत्ता और सही शब्द माँगकर, तब ही उपकार और सहायता की सेवकाई को करें, जैसे कि यशायाह कहता है, “प्रभु यहोवा ने मुझे सीखने वालों की जीभ दी है कि मैं थके हुए को अपने वचन के द्वारा संभालना जानूं। भोर को वह नित मुझे जगाता और मेरा कान खोलता है कि मैं शिष्य के समान सुनूं” (यशायाह 50:4)। प्रभु यीशु मसीह के लिए भी वचन में आया है कि लोग उसकी बातों को सराहते थे, क्योंकि वे अनुग्रह से भरी होती थीं, “और सब ने उसे सराहा, और जो अनुग्रह की बातें उसके मुंह से निकलती थीं, उन से अचम्भा किया; और कहने लगे; क्या यह यूसुफ का पुत्र नहीं?” (लूका 4:22)। नीतिवचन भी हमें इसी प्रकार से सच्चाई को भी ग्रहण योग्य और मनभावना बनाकर कहने के लिए सिखाता है (नीतिवचन 10:13, 32; 16:21; 22:11; 25:11) 

आत्मिक वरदानों के बारे में, 1 कुरिन्थियों 12:7 में लिखा है कि प्रत्येक वरदान सभी के लाभ के लिए हैं। यह बात इस वरदान के विषय भी सही है। जिन्हें यह सहायता या उपकार की सेवकाई प्रभु ने सौंपी है, कई बार उन्हें स्वयं भी दुखों, क्लेशों, और विपरीत परिस्थितियों से होकर जाना पड़ता है। इन बातों के द्वारा परमेश्वर उन्हें उनकी इस सेवकाई को भली-भांति करने के लिए, या किसी आने वाली परिस्थिति में औरों की सहायता करने के लिए प्रशिक्षित करता है, “हमारे प्रभु यीशु मसीह के परमेश्वर, और पिता का धन्यवाद हो, जो दया का पिता, और सब प्रकार की शान्ति का परमेश्वर है। वह हमारे सब क्लेशों में शान्ति देता है; ताकि हम उस शान्ति के कारण जो परमेश्वर हमें देता है, उन्हें भी शान्ति दे सकें, जो किसी प्रकार के क्लेश में हों। क्योंकि जैसे मसीह के दुख हम को अधिक होते हैं, वैसे ही हमारी शान्ति भी मसीह के द्वारा अधिक होती है” (2 कुरिन्थियों 1:3-5) 

परमेश्वर के वचन, बाइबल में हमें विभिन्न उदाहरणों और शिक्षाओं के द्वारा बताया गया है कि यह सेवकाई किन विभिन्न रीतियों से की जा सकती है:

  • दुखी लोगों के हर प्रकार के बोझों को उठाने में सहायक बनाकर: प्रभु यीशु मसीह ने कहाहे सब परिश्रम करने वालों और बोझ से दबे लोगों, मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूंगा। मेरा जूआ अपने ऊपर उठा लो; और मुझ से सीखो; क्योंकि मैं नम्र और मन में दीन हूं: और तुम अपने मन में विश्राम पाओगे। क्योंकि मेरा जूआ सहज और मेरा बोझ हल्का है” (मत्ती 11:28-30)। प्रभु यीशु स्वयं लोगों के भारी बोझों को अपने ऊपर लेकर, उनके साथ अपने हल्के बोझ को बाँटना चाहता है। प्रभु की इस बात का एक उत्तम उदाहरण है नेक सामरी का दृष्टांत (लूका 10:30-37), जहाँ प्रभु ने बताया कि परिस्थिति और आवश्यकता के अनुसार उस सामरी व्यक्ति ने मुसीबत में पड़े व्यक्ति की सहायता करने में किसी प्रकार का कोई संकोच नहीं किया, वरन आगे बढ़कर उसकी सहायता भी की, और आगे के लिए भी प्रयोजन किया। 
  • लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति में योगदान के द्वारा: पौलुस ने भी अपनी पत्रियों में दिखाया कि कैसे विभिन्न मंडलियों के लोग उसकी यात्राओं में उसकी सहायता करते थे, उसकी आवश्यकताओं को पूरा करते थे (रोमियों 15:24; 2 कुरिन्थियों 1:16)। साथ ही उसने सेवकाई में लगे लोगों की सहायता करने वालों की आवश्यकताओं में उनकी सहायता करने की भी शिक्षा दी (फिलिप्पियों 4:3)। पौलुस ने औरों की सहायता खुले दिल से करने का अति उत्तम उदाहरण मकिदुनिया की कलीसियाओं को दिखाया; और उनके उदाहरण के आधार पर इस सेवकाई में भी बढ़ते जाने के लिए कहा (2 कुरिन्थियों 8:1-7)
  • प्रार्थनाओं के द्वारा परमेश्वर की सहायता और अनुग्रह मांगने के द्वारा: पौलुस ने न केवल भौतिक वस्तुओं के द्वारा सहायता करने के लिए सिखाया, वरन, एक दूसरे के लिए; एक दूसरे के दुखों और परिस्थितियों के लिए प्रार्थना करने के द्वारा भी सहायता प्रदान करने को कहा (कुलुस्सियों 4:12; 1 थिस्सलुनीकियों 3:10; फिलेमोन 1:22)। उसने स्वयं अपने लिए मण्डलियों से प्रार्थनाएं करने के लिए कहा (रोमियों 15:30-33; 2 कुरिन्थियों 1:11; इफिसियों 6 :19; कुलुस्सियों 4:3; 1 थिस्सलुनीकियों 3:1; 5:25)
  • वचन की शिक्षा देने के द्वारा: मसीही विश्वासियों, मण्डलियों, और परमेश्वर के कार्यों के विरुद्ध शैतान का एक प्रमुख हथियार है परमेश्वर की अनाज्ञाकारिता करवाना। यह करने के लिए सबसे सहज तरीका है कि या तो परमेश्वर के वचन को लोगों तक पहुँचने न दे, या फिर उन्हें गलत शिक्षाओं में फंसा कर बहका और भरमा दे - ऐसे में लोगों यही लगता रहेगा कि वे परमेश्वर के वचन का पालन कर रहे हैं, जबकि वास्तविकता में वे परमेश्वर के वचन और निर्देशों के विरुद्ध, शैतान की बातों के पालन में लगे हुए होंगे। पुराने नियम में इस्राएल का इतिहास गवाह है कि परमेश्वर ने उन्हें सदा अपने वचन का पालन करने, उसे थामे रहने के लिए कहा (व्यवस्थाविवरण 6:1-3; 17:18-19; यहोशू 1:7-8)। जब भी लोगों ने परमेश्वर के वचन का पालन नहीं किया, वे हानि में आ गए (न्यायियों 2:10-20; यशायाह 5:13; होशे 4:6)। प्रभु यीशु मसीह ने भी सुसमाचार प्रचार के साथ संसार के लोगों को उसकी शिक्षाएं सिखाने को कहा (मत्ती 28:19-20), और वचन सीखने में हमारी सहायता के लिए परमेश्वर पवित्र आत्मा मसीही विश्वासियों में रहने के लिए दिया है (1 कुरिन्थियों 2:10-16)। साथ ही मसीही सेवकों को वचन की शिक्षाएं देने के दायित्व भी दिए हैं, जिससे मसीही विश्वासी और मण्डलियां सिद्ध, स्थिर और दृढ़ हो सकें, शैतान की गलत शिक्षाओं के बहकावे में आने से बच सकें (इफिसियों 4:11-15; कुलुस्सियों 2:4-8; 2 तिमुथियुस 3:16-18; 4:2-5) 
  • वचन के सही उपयोग के द्वारा: मसीही विश्वासियों को उनके मसीही जीवन में सही और स्थिर बनाए रखने के लिए वचन की शिक्षाएं देने की यह सेवकाई बहुत आवश्यक है, और उपकार या सहायता करने वालों को भी यह ध्यान रखना है कि लोग वचन की सही शिक्षाओं में स्थिर और दृढ़ हैं या किसी गलत शिक्षा में पड़ गए हैं, या वचन का अध्ययन ही छोड़ दिया है! उपकार या सहायता की सेवकाई करने वाले को भी वचन में स्थिर और दृढ़ होना चाहिए जिससे आवश्यकता के अनुसार, पवित्र आत्मा की अगुवाई में वह वचन के सही भाग, सही शिक्षाओं के प्रयोग के द्वारा औरों की सहायता कर सकें, उन्हें उभार सकें, सांत्वना दे सकें।

यदि आप मसीही विश्वासी हैं तो आपके लिए यह आवश्यक है कि आप परमेश्वर के वचन का नियमित अध्ययन करें (यूहन्ना 14:21, 23), पवित्र आत्मा के साथ बैठकर उससे वचन को सीखें (1 कुरिन्थियों 2:12), उसे गहराई से अपने हृदय में बैठाएं (कुलुस्सियों 3:16), जिससे पवित्र आत्मा समय और आवश्यकता के अनुसार आपको वचन स्मरण करवाए (यूहन्ना 14:26), और फिर अपने तथा औरों के जीवन में उस वचन के सही उपयोग के द्वारा आप औरों के सहायक या उपकार करने वाले एक श्रेष्ठ मसीही सेवक बन सकें (2 तिमुथियुस 2:15) 

 यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी। 

 

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • हबक्कूक 1-3     
  • प्रकाशितवाक्य 15