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शनिवार, 11 सितंबर 2021

परमेश्वर का वचन, बाइबल – पाप और उद्धार - 17

 

पाप का समाधान - उद्धार - 13

       हमने उद्धार से संबंधित तीसरे और सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न किइसके लिए यह इतना आवश्यक क्यों हुआ कि स्वयं परमेश्वर प्रभु यीशु को स्वर्ग छोड़कर सँसार में बलिदान होने के लिए आना पड़ा?” पर विचार करते हुए पिछले लेख में देखा है कि परमेश्वर द्वारा उपलब्ध करवाए गए समाधान के लिए जिस पवित्र और सिद्ध मनुष्य की आवश्यकता थी, वह मनुष्यों के जन्म और जीवन की प्रणाली के अनुसार पाया जाना असंभव था। उसका पृथ्वी पर आना और अस्तित्व अलौकिक विधि से ही संभव हो सकता था, और परमेश्वर ने ही यह प्रावधान करके दिया; उस प्रावधान के लिए आवश्यक सिद्ध मनुष्य के जन्म और जीवन से संबंधित सभी अनिवार्य गुण प्रभु यीशु मसीह में हैं। परमेश्वर का पुत्र, प्रभु यीशु मसीह, मनुष्यों के पापों के लिए बलिदान होने के लिए, अपने परमेश्वरत्व की सामर्थ्य, वैभव और महिमा को छोड़कर, एक साधारण और सामान्य मनुष्य बनकर इस संसार में आ गयाजैसा मसीह यीशु का स्वभाव था वैसा ही तुम्हारा भी स्वभाव हो। जिसने परमेश्वर के स्वरूप में हो कर भी परमेश्वर के तुल्य होने को अपने वश में रखने की वस्तु न समझा। वरन अपने आप को ऐसा शून्य कर दिया, और दास का स्वरूप धारण किया, और मनुष्य की समानता में हो गया। और मनुष्य के रूप में प्रगट हो कर अपने आप को दीन किया, और यहां तक आज्ञाकारी रहा, कि मृत्यु, हां, क्रूस की मृत्यु भी सह ली” (फिलिप्पियों 2:5-8)

       यद्यपि प्रभु यीशु मसीह त्रिएक परमेश्वर का दूसरा व्यक्तित्व, परमेश्वर पुत्र है, किन्तु, जैसा उपरोक्त बाइबल खंड से प्रकट है, पृथ्वी पर मनुष्य बनकर जन्म लेने में उन्होंने अपने आप को ईश्वरीय नहीं वरन मानवीय स्वरूप एवं व्यवहार के अंतर्गत कर लिया, और एक साधारण मनुष्य समान ही जीवन व्यतीत किया:

  • उन्होंने एक सामान्य शिशु के समान जन्म लिया, और अन्य बच्चों के समान ही उनका पालन पोषण हुआ, वे बड़े हुए (लूका 2:6-7) 
  • वे अपने सांसारिक माता-पिता की अधीनता में और उन के आज्ञाकारी रहे (लूका 2:51) 
  • उनके इलाके के लोग उन्हें एक सामान्य मनुष्य, अपने सांसारिक पिता के समान एक बढ़ई का काम करने वाले के रूप में जानते थे (मरकुस 6:3)
  • लोगों के अविश्वास से उन्हें अचंभा हुआ (मरकुस 6:6)
  • सभी मनुष्यों के समान, पैदल यात्रा से उन्हें भी थकान होती थी, भूख और प्यास लगती थी (यूहन्ना 4:6-8), वे भी भोजन करते थे (यूहन्ना 13:4; लूका 24:42-43) 
  • सभी मनुष्यों के समान उनमें भी भावनाएं थीं:
    • वे बच्चों से प्रेम करते थे (मत्ती 19:14)
    • दुखियों और समाज के तिरस्कृत लोगों पर उन्हें तरस आता था (लूका 7:12-13; मत्ती 20:34)
    • वे प्रिय जनों के देहांत और उनके परिवार के दुख से दुखी होकर स्वयं भी रोए (यूहन्ना 11:35-36)
    • वे धार्मिकता और परमेश्वर के वचन के प्रति दोगलेपन के व्यवहार को सहन नहीं कर सकते थे (मत्ती 15:1-9; 23 अध्याय)
    • धार्मिकता के प्रति अनुचित ढिठाई के व्यवहार से उन्हें क्रोध आया (मरकुस 3:5)
    • अधर्मियों और अविश्वासियों पर आने वाले प्रकोप और विनाश से भी वे दुखी हुए और रोए (लूका 19:41-44; मत्ती 23:37)
  • सभी मनुष्यों के समान उन्हें भी नींद की आवश्यकता होती थी (लूका 8:23)
  • उन्हें भी लोगों के विरोध, बैर, और मार डाले जाने की बातों का सामना करना पड़ा (यूहन्ना 5:18, 41; 8:40-41,50, 59)
  • यह जानते हुए भी कि उनका शिष्य यहूदा इस्करियोती उन्हें मार डाले जाने के लिए पकड़वाने वाला है, प्रभु ने यहूदा के विरुद्ध एक भी बात नहीं की, कोई कटाक्ष नहीं किया, उसे औरों के सामने उजागर और अपमानित नहीं किया, वरन उसके प्रभु को छोड़ कर चले जाने तक प्रभु उससे प्रेम का ही व्यवहार करता रहा (यूहन्ना 13:21-30) 
  • पकड़वाए जाने के समय भी प्रभु ने उन्हें पकड़ने आए हुए लोगों के विरुद्ध कुछ नहीं किया, जबकि उन्हें नाश कर देना उसकी सामर्थ्य में था; वरन वहाँ पर भी प्रभु ने अपना बुरा चाहने वाले को चंगाई दी (मत्ती 26:51-53; लूका 22:51) 
  • पकड़वाए जाने के बाद से लेकर क्रूस पर उनकी मृत्यु तक, प्रभु को लगातार उपहास, अपमान, लांछन, यातनाओं और मिथ्या आरोपों का सामना करना पड़ा; किन्तु वे चुपचाप सब सहते रहे, किसी के विरुद्ध कुछ नहीं कहा, किसी को कोई अपशब्द नहीं कहा, कोई श्राप नहीं दिया। वरन उन्हें क्रूस पर चढ़ाने वालों के लिए भी उन्होंने क्षमा की प्रार्थना की, और उनकी निन्दा करने वाले डाकू ने जब पश्चाताप किया, तो उसे भी उन्होंने तुरंत क्षमा कर दिया, स्वर्ग में होने का आश्वासन दे दिया।  

       इन सभी बातों में से होकर निकलने पर भी, जो एक सामान्य मनुष्य से यदि शब्दों और कार्यों में नहीं, तो कम से कम मन या विचारों में पाप करवा सकती हैं, प्रभु यीशु ने कभी कोई पाप नहीं किया। इसीलिए इब्रानियों की पत्री का लेखक उनके लिए लिखता है, “सो जब हमारा ऐसा बड़ा महायाजक है, जो स्वर्गों से हो कर गया है, अर्थात परमेश्वर का पुत्र यीशु; तो आओ, हम अपने अंगीकार को दृढ़ता से थामें रहे। क्योंकि हमारा ऐसा महायाजक नहीं, जो हमारी निर्बलताओं में हमारे साथ दुखी न हो सके; वरन वह सब बातों में हमारे समान परखा तो गया, तौभी निष्पाप निकला” (इब्रानियों 4:14-15)। उनके शिष्य यूहन्ना ने, जो लगभग साढ़े तीन वर्ष उनके साथ रहा था, जिसने उन्हें और उनके कार्यों को निकटता से देखा था, उनकी बातों और शिक्षाओं को सुना था, और जो प्रभु से बहुत घनिष्ठ था (यूहन्ना 13:23;21:7) अपनी पत्री में उनके लिए लिखा, “और तुम जानते हो, कि वह इसलिये प्रगट हुआ, कि पापों को हर ले जाए; और उसके स्वभाव में पाप नहीं” (1 यूहन्ना 3:5) 

       प्रभु यीशु मसीह, हर बात में, हर रीति से पूर्णतः मनुष्य थे; साथ ही वे पूर्णतः परमेश्वर भी थे, जिन्होंने अपने परमेश्वरत्व को, अपनी सामर्थ्य को, पृथ्वी की उनकी सेवकाई के दिनों में केवल औरों की भलाई के लिए ही प्रयोग किया, कभी अपने लिए नहीं (प्रेरितों 10:38; मत्ती 4:1-11)। केवल वो ही वह एकमात्र ऐसे उपयुक्त व्यक्ति थे जो औरों के पापों को अपने ऊपर लेकर उनके लिए दण्ड सह सकते थे, क्योंकि उनमें कभी किसी प्रकार का कोई पाप नहीं था इसलिए उन्हें अपने पाप के विषय कुछ नहीं करना था, जो भी करना था औरों के पापों के लिए ही करना था। इस प्रेमी, अनुग्रहकारी, धीरजवंत प्रभु ने मेरे और आपके पापों के निवारण और पाप की समस्या का समाधान तैयार कर के सेंत-मेंत उपलब्ध करवा दिया है। क्या आप उसके इस समाधान को स्वीकार नहीं करेंगे? आपके प्रति उसके प्रेम और कृपया में ऐसी क्या कमी, क्या बात है जो आपको उसके प्रेम भरे आमंत्रण को स्वीकार करने से रोकती है? उसके निमंत्रण को स्वीकार करने के लिए आपको सच्चे और समर्पित मन से एक प्रार्थना ही तो करनी है, जो आपके मन और जीवन को बदल कर नया कर दे, परमेश्वर के साथ आपका मेल-मिलाप करवा दे।  

यदि आप ने अभी भी नया जन्म, उद्धार नहीं पाया है, अपने पापों के लिए प्रभु यीशु से क्षमा नहीं मांगी है, तो अभी आपके पास अवसर है। स्वेच्छा से, सच्चे और पूर्णतः समर्पित मन से, अपने पापों के प्रति सच्चे पश्चाताप के साथ एक छोटे प्रार्थना, “हे प्रभु यीशु मैं मान लेता हूँ कि मैंने जाने-अनजाने में, मन-ध्यान-विचार और व्यवहार में आपकी अनाज्ञाकारिता की है, पाप किए हैं। मैं मान लेता हूँ कि आपने क्रूस पर दिए गए अपने बलिदान के द्वारा मेरे पापों के दण्ड को अपने ऊपर लेकर पूर्णतः सह लिया, उन पापों की पूरी-पूरी कीमत सदा काल के लिए चुका दी है। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मेरे मन को अपनी ओर परिवर्तित करें, और मुझे अपना शिष्य बना लें, अपने साथ कर लें।आपका सच्चे मन से लिया गया मन परिवर्तन का यह निर्णय आपको जगत के न्याय से बचाकर स्वर्ग की आशीषों का वारिस बना देगा। क्या आप आज, अभी यह निर्णय लेंगे

बाइबल पाठ: फिलिप्पियों 2:1-11 

फिलिप्पियों 2:1 सो यदि मसीह में कुछ शान्ति और प्रेम से ढाढ़स और आत्मा की सहभागिता, और कुछ करुणा और दया है।

फिलिप्पियों 2:2 तो मेरा यह आनन्द पूरा करो कि एक मन रहो और एक ही प्रेम, एक ही चित्त, और एक ही मनसा रखो।

फिलिप्पियों 2:3 विरोध या झूठी बड़ाई के लिये कुछ न करो पर दीनता से एक दूसरे को अपने से अच्छा समझो।

फिलिप्पियों 2:4 हर एक अपनी ही हित की नहीं, वरन दूसरों की हित की भी चिन्ता करे।

फिलिप्पियों 2:5 जैसा मसीह यीशु का स्वभाव था वैसा ही तुम्हारा भी स्वभाव हो।

फिलिप्पियों 2:6 जिसने परमेश्वर के स्वरूप में हो कर भी परमेश्वर के तुल्य होने को अपने वश में रखने की वस्तु न समझा।

फिलिप्पियों 2:7 वरन अपने आप को ऐसा शून्य कर दिया, और दास का स्वरूप धारण किया, और मनुष्य की समानता में हो गया।

फिलिप्पियों 2:8 और मनुष्य के रूप में प्रगट हो कर अपने आप को दीन किया, और यहां तक आज्ञाकारी रहा, कि मृत्यु, हां, क्रूस की मृत्यु भी सह ली।

फिलिप्पियों 2:9 इस कारण परमेश्वर ने उसको अति महान भी किया, और उसको वह नाम दिया जो सब नामों में श्रेष्ठ है।

फिलिप्पियों 2:10 कि जो स्वर्ग में और पृथ्वी पर और जो पृथ्वी के नीचे है; वे सब यीशु के नाम पर घुटना टेकें।

फिलिप्पियों 2:11 और परमेश्वर पिता की महिमा के लिये हर एक जीभ अंगीकार कर ले कि यीशु मसीह ही प्रभु है।

 

एक साल में बाइबल:

·      नीतिवचन 10-12

·      2 कुरिन्थियों 4