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रविवार, 14 मई 2017

सुनना


   एक शाम, हमारे छोटे से चर्च में, एक युवा मिशनरी ने प्रवचन दिया। जिस देश में वह और उसकी पत्नि सेवकाई करते थे, उसमें धर्म के नाम पर बहुत उथल-पुथल चल रही थी, और वहाँ की स्थिति बच्चों के लिए बहुत खतरनाक मानी जाती थी। वहाँ की घटनाएं बताते हुए उसने एक आप-बीती हृदय-विदारक घटना का उल्लेख किया, जब उसे अपनी बेटी को एक विद्यालय के हॉस्टल में छोड़कर आना पड़ा और उसकी बेटी उससे बहुत आग्रह करती रही कि वह उसे छोड़कर न जाए।

   उस समय मैं हाल ही में पिता बना था, मुझे एक बेटी की आशीष प्राप्त हुई थी। उस मिशनरी से यह घटना सुन कर मैं अपने आप से बुड़बुड़ाने लगा, "कोई प्रेमी माता-पिता अपनी बेटी को ऐसे अकेला छोड़कर कैसे आ सकते हैं?" उस मिशनरी द्वारा अपना प्रवचन समाप्त करने के समय तक, इस बात को लेकर मैं इतना खिसिया चुका था कि मैंने उस मिशनरी से भेंट करने का निमंत्रण भी ठुकरा दिया, और आवेश में चर्च के बाहर यह कहता हुआ निकला: "मैं प्रसन्न हूँ कि मैं उसके समान नहीं हूँ...।"

   उसी पल, परमेश्वर के पवित्र आत्मा ने मुझे वहीं रोक दिया। मैं अपने मुँह से निकल रहा वाक्य भी पूरा नहीं कर पाया। मैं लगभग वही शब्द दोहरा रहा था जो उस फरीसी ने अपनी प्रार्थना में परमेश्वर से कहे थे: "...हे परमेश्वर, मैं तेरा धन्यवाद करता हूं, कि मैं और मनुष्यों की नाईं ..." (लूका 18:11)। मैं अपने आप से बहुत निराश हुआ; और मुझे बोध हुआ कि परमेश्वर भी मुझसे बहुत निराश हुआ होगा!

   उस शाम के बाद से मैंने परमेश्वर से माँगा है कि वह मुझे दूसरों की बात नम्रता और संयम से सुनने वाला बनाए, जब वे अपने हृदय के भाव, अपनी दुःख और पीड़ा, अपने अंगीकार सुनाते हैं। मैं उनकी परिस्थिति और आवश्यकता को समझ सकूँ, न कि जल्दबाज़ी में उन्हें जाँचने वाला या उनपर टिप्पणी करने वाला बनूँ। प्रभु मुझे सुनने का मन दे। - रैंडी किल्गोर


दूसरों का न्याय करने से हम परमेश्वर की निकटता में नहीं बढ़ते हैं।

जब तू परमेश्वर के भवन में जाए, तब सावधानी से चलना; सुनने के लिये समीप जाना मूर्खों के बलिदान चढ़ाने से अच्छा है; क्योंकि वे नहीं जानते कि बुरा करते हैं। बातें करने में उतावली न करना, और न अपने मन से कोई बात उतावली से परमेश्वर के साम्हने निकालना, क्योंकि परमेश्वर स्वर्ग में हैं और तू पृथ्वी पर है; इसलिये तेरे वचन थोड़े ही हों। - सभोपदेशक 5:1-2

बाइबल पाठ: लूका 18:9-14
Luke 18:9 और उसने कितनो से जो अपने ऊपर भरोसा रखते थे, कि हम धर्मी हैं, और औरों को तुच्‍छ जानते थे, यह दृष्‍टान्‍त कहा। 
Luke 18:10 कि दो मनुष्य मन्दिर में प्रार्थना करने के लिये गए; एक फरीसी था और दूसरा चुंगी लेने वाला। 
Luke 18:11 फरीसी खड़ा हो कर अपने मन में यों प्रार्थना करने लगा, कि हे परमेश्वर, मैं तेरा धन्यवाद करता हूं, कि मैं और मनुष्यों की नाईं अन्‍धेर करने वाला, अन्यायी और व्यभिचारी नहीं, और न इस चुंगी लेने वाले के समान हूं। 
Luke 18:12 मैं सप्‍ताह में दो बार उपवास करता हूं; मैं अपनी सब कमाई का दसवां अंश भी देता हूं। 
Luke 18:13 परन्तु चुंगी लेने वाले ने दूर खड़े हो कर, स्वर्ग की ओर आंखें उठाना भी न चाहा, वरन अपनी छाती पीट-पीटकर कहा; हे परमेश्वर मुझ पापी पर दया कर। 
Luke 18:14 मैं तुम से कहता हूं, कि वह दूसरा नहीं; परन्तु यही मनुष्य धर्मी ठहराया जा कर अपने घर गया; क्योंकि जो कोई अपने आप को बड़ा बनाएगा, वह छोटा किया जाएगा; और जो अपने आप को छोटा बनाएगा, वह बड़ा किया जाएगा।

एक साल में बाइबल: 
  • 2 राजा 19-21
  • यूहन्ना 4:1-30