जब हमारी पोती सारा छोटी बच्ची थी तो उसने हमें बताया कि बड़ी होकर वह अपने पापा के समान बास्केटबॉल प्रशिक्षक बनना चाहती है। उसने आगे यह भी बताया कि ऐसा कर पाने के लिए उसे अभी क्यों प्रतीक्षा करनी पड़ेगी! उसके अनुसार, प्रशिक्षक बनने से पहले उसे खिलाड़ी बनना पड़ेगा, और खिलाड़ी को अपनी जूती के फीते अपने आप बान्धना आना चाहिए, और अभी उसे अपनी जूती के फीते स्वयं बान्धना नहीं आता, इसलिए जब वह बारी बारी से सभी बातों को करने लगेगी तब ही वह प्रशिक्षक बनने पाएगी; सारा ने अपनी प्राथमिकताएं निर्धारित कर रखीं थीं!
हम सामन्यतः जीवन की बातों के लिए कहते हैं - प्राथमिकताएं निभाओ; पहली बातें पहले और फिर उसके बाद अन्य बातें करो। यह सिद्धांत जीवन की सभी बातों पर भी लागू होता है, और प्रत्येक व्यक्ति के लिए जीवन की सर्वप्रथम प्राथमिकता होनी चाहिए परमेश्वर को पहचानना, उसे निकटता से जानना तथा उसकी संगति का आनन्द लेना। क्योंकि परमेश्वर को पहचानने और जानने के द्वारा ही हम वह बन और कर सकते हैं जो हमें होना और करना चाहिए।
परमेश्वर के वचन बाइबल के एक प्रमुख नायक, राजा दाऊद ने अपने पुत्र सुलेमान को राजगद्दी सौंपते समय सचेत किया: "और हे मेरे पुत्र सुलैमान! तू अपने पिता के परमेश्वर का ज्ञान रख, और खरे मन और प्रसन्न जीव से उसकी सेवा करता रह;..." (1 इतिहास 28:9)।
ध्यान रखिए कि परमेश्वर को जाना जा सकता है। परमेश्वर कोई तर्क या आध्यात्मिक विचार नहीं है; परमेश्वर एक सजीव व्यक्तित्व है। परमेश्वर सोचता है, अभिलाषा रखता है, अनुभव करता है, प्रेम करता है आदि। परमेश्वर के वचन बाइबल के एक विद्वान तथा टीकाकार ऐ. डबल्यु. टोज़र ने परमेश्वर के बारे में लिखा, "वह एक व्यक्ति है और उसे बढ़ती हुई आत्मियता तथा निकटता से जाना जा सकता है, तब जब हम अपने मनों को इस अनुभव के अचरज के लिए तैयार कर लेते हैं।" यही रहस्य है - हमें "अपने मनों को इस अनुभव के अचरज के लिए तैयार" कर लेना है।
जो परमेश्वर को जानना चाहते हैं वे उसे जान सकते हैं; वह अपने आप को हमसे दूर या छिपाए हुए नहीं रखता है। उसने अपने आप को अपने पुत्र प्रभु यीशु मसीह में होकर संसार पर प्रगट किया है। परमेश्वर अपने आप को, अपने प्रेम को हम पर थोपता भी नहीं है; वह धैर्य के साथ हमारी प्रतीक्षा करता है, क्योंकि वह चाहता है कि हम स्वेच्छा से उसके पास आएं और उससे संगति रखें। जिसने प्रभु यीशु में होकर परमेश्वर को पहचान और जान लिया, उसने अनन्त जीवन, अनन्त आनन्द और अनन्त आशीष को प्राप्त कर लिया; इसलिए परमेश्वर को जानना ही हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। - डेविड रोपर
परमेश्वर को जानने और उससे संगति रख पाने का विचार दिमाग़ को हिला देता है; किंतु उसे जान लेना मन को अद्भुत शांति से भर देता है।
पूर्व युग में परमेश्वर ने बाप दादों से थोड़ा थोड़ा कर के और भांति भांति से भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा बातें कर के। इन दिनों के अन्त में हम से पुत्र के द्वारा बातें की, जिसे उसने सारी वस्तुओं का वारिस ठहराया और उसी के द्वारा उसने सारी सृष्टि रची है। - इब्रानियों 1:1-2
बाइबल पाठ: 1 इतिहास 28:5-10
1 Chronicles 28:5 और मेरे सब पुत्रों में से (यहोवा ने तो मुझे बहुत पुत्र दिए हैं) उसने मेरे पुत्र सुलैमान को चुन लिया है, कि वह इस्राएल के ऊपर यहोवा के राज्य की गद्दी पर विराजे।
1 Chronicles 28:6 और उसने मुझ से कहा, कि तेरा पुत्र सुलैमान ही मेरे भवन और आंगनों को बनाएगा, क्योंकि मैं ने उसको चुन लिया है कि मेरा पुत्र ठहरे, और मैं उसका पिता ठहरूंगा।
1 Chronicles 28:7 और यदि वह मेरी आज्ञाओं और नियमों के मानने में आज कल की नाईं दृढ़ रहे, तो मैं उसका राज्य सदा स्थिर रखूंगा।
1 Chronicles 28:8 इसलिये अब इस्राएल के देखते अर्थात यहोवा की मण्डली के देखते, और अपने परमेश्वर के साम्हने, अपने परमेश्वर यहोवा की सब आज्ञाओं को मानो और उन पर ध्यान करते रहो; ताकि तुम इस अच्छे देश के अधिकारी बने रहो, और इसे अपने बाद अपने वंश का सदा का भाग होने के लिये छोड़ जाओ।
1 Chronicles 28:9 और हे मेरे पुत्र सुलैमान! तू अपने पिता के परमेश्वर का ज्ञान रख, और खरे मन और प्रसन्न जीव से उसकी सेवा करता रह; क्योंकि यहोवा मन को जांचता और विचार में जो कुछ उत्पन्न होता है उसे समझता है। यदि तू उसकी खोज में रहे, तो वह तुझ को मिलेगा; परन्तु यदि तू उसको त्याग दे तो वह सदा के लिये तुझ को छोड़ देगा।
1 Chronicles 28:10 अब चौकस रह, यहोवा ने तुझे एक ऐसा भवन बनाने को चुन लिया है, जो पवित्रस्थान ठहरेगा, हियाव बान्धकर इस काम में लग जा।
एक साल में बाइबल:
- यहोशू 1-3
- मरकुस 16