एक कवि ने लिखा था: "मनुष्य स्वभाव ही से मूर्ख है। जब गर्म होता है तो उसे ठंडा चाहिए; जब ठंड होती है तो उसे गर्मी चाहिए। जो नहीं है, सदा ही बस वही चाहिए।" यह बात मानवीय स्वभाव का कितना सटीक चित्रण है।
   इसलिए जब हम परमेश्वर के वचन बाइबल में प्रेरित पौलुस द्वारा फिलिप्पियों ४:११ में लिखी गई बात "यह नहीं कि मैं अपनी घटी के कारण यह कहता हूं; क्योंकि मैं ने यह सीखा है कि जिस दशा में हूं, उसी में सन्तोष करूं" पढ़ते हैं तो अचरज के साथ यह कह उठना कि, "क्या यह संभव है?" स्वाभाविक ही है।
   पौलुस के लिए यह संभव था; फिलिप्पियों ४:१२-१३ जीवन के प्रति पौलुस के रवैये को बताता है: "मैं दीन होना भी जानता हूं और बढ़ना भी जानता हूं: हर एक बात और सब दशाओं में तृप्त होना, भूखा रहना, और बढ़ना-घटना सीखा है। जो मुझे सामर्थ देता है उस में मैं सब कुछ कर सकता हूं।" परमेश्वर के साथ पौलुस का संबंध उसके पास सांसारिक बातों के होने या ना होने पर निर्भर नहीं था; उसकी संतुष्टि परिस्थितियों पर नहीं वरन उसके उद्धारकर्ता और प्रभु यीशु के साथ संबंध पर आधारित थी।
   पौलुस स्मरण दिलाता है कि संतुष्टि रातों-रात नहीं आ जाती; यह एक ऐसी बात है जो व्यक्तिगत अनुभव से समझी-सीखी जाती है। समय और अनुभवों के साथ जैसे जैसे परमेश्वर के साथ हमारा संबंध प्रगाढ़ और स्थिर होता जाता है, हम अपने आप पर कम और परमेश्वर पर अधिक भरोसा करना सीखते जाते हैं और फिर हमारी निर्भरता अपनी नहीं वरन उसकी सामर्थ पर हो जाती है। पौलुस यह बात जान चुका था, और इसीलिए वह अपनी हर परिस्थिति और आवश्यक्ता के लिए अपने प्रभु और उद्धारकर्ता पर निर्भर रहता था, उससे सामर्थ प्राप्त करता था।
   आज आपकी कोई भी परिस्थिति या आवश्यक्ता क्यों ना हो उद्धाकर्ता प्रभु यीशु पर विश्वास करने और प्रार्थना के द्वारा हर बात के लिए सामर्थ और संतुष्टि आपके लिए उपलब्ध है। - एल्बर्ट ली
हमें संतुष्टि भी वहीं से मिलती है जहां से उद्धार मिलता है - प्रभु यीशु से।
हर बात में धन्यवाद करो: क्योंकि तुम्हारे लिये मसीह यीशु में परमेश्वर की यही इच्छा है। - १ थिस्सुलुनिकीयों
बाइबल पाठ: फिलिप्पियों ४:४-१३
Php 4:4  प्रभु में सदा आनन्दित रहो; मैं फिर कहता हूं, आनन्दित रहो। 
Php 4:5   तुम्हारी कोमलता सब मनुष्यों पर प्रगट हो: प्रभु निकट है। 
Php 4:6  किसी भी बात की चिन्ता मत करो: परन्तु हर एक बात में तुम्हारे निवेदन, प्रार्थना और बिनती के द्वारा धन्यवाद के साथ परमेश्वर के सम्मुख अपस्थित किए जाएं। 
Php 4:7  तब परमेश्वर की शान्ति, जो समझ से बिलकुल परे है, तुम्हारे हृदय और तुम्हारे विचारों को मसीह यीशु में सुरिक्षित रखेगी।
Php 4:8   निदान, हे भाइयों, जो जो बातें सत्य हैं, और जो जो बातें आदरणीय हैं, और जो जो बातें उचित हैं, और जो जो बातें पवित्र हैं, और जो जो बातें सुहावनी हैं, और जो जो बातें मनभावनी हैं, निदान, जो जो सदगुण और प्रशंसा की बातें हैं, उन्हीं पर ध्यान लगाया करो। 
Php 4:9   जो बातें तुम ने मुझ से सीखीं, और ग्रहण की, और सुनी, और मुझ में देखीं, उन्हीं का पालन किया करो, तब परमेश्वर जो शान्ति का सोता है तुम्हारे साथ रहेगा।
Php 4:10  मैं प्रभु में बहुत आनन्दित हूं कि अब इतने दिनों के बाद तुम्हारा विचार मेरे विषय में फिर जागृत हुआ है; निश्चय तुम्हें आरम्भ में भी इस का विचार था, पर तुम्हें अवसर न मिला। 
Php 4:11  यह नहीं कि मैं अपनी घटी के कारण यह कहता हूं; क्योंकि मैं ने यह सीखा है कि जिस दशा में हूं, उसी में सन्तोष करूं। 
Php 4:12  मैं दीन होना भी जानता हूं और बढ़ना भी जानता हूं: हर एक बात और सब दशाओं में तृप्त होना, भूखा रहना, और बढ़ना-घटना सीखा है। 
Php 4:13   जो मुझे सामर्थ देता है उस में मैं सब कुछ कर सकता हूं।
एक साल में बाइबल: 
- भजन ११६-११८
 - १ कुरिन्थियों ७:१-१९