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सोमवार, 14 जून 2010

ध्यान लगाना

कुछ मसीही "ध्यान" करने के बारे में सुनकर विचिलित हो जाते हैं, क्योंकि वे बाइबल में वर्णित "ध्यान" और अन्य लोगों द्वारा बताये जाने वाले "आध्यात्म ध्यान" में फर्क नहीं देख पाते। एक व्याख्या के अनुसार "आध्यात्मिक ध्यान" करने के लिये युक्ति संगत मन को शून्य किया जाता है जिससे आत्मा को नियंत्रण मिल सके; ऐसे ध्यान का लक्ष्य स्वयं के अंदर केंद्रित होकर "परमेश्वर के साथ एकाकार हो जाना" होता है।

इसके विपरीत, बाइबल जिस ध्यान के बारे में बताती है उसका लक्ष्य है परमेश्वर और उसकी बातों पर ध्यान लगाने के द्वारा हमारी बुद्धि और मन का नवीनिकरण (रोमियों १२:२), जिससे हम और अधिक मसीह के समान सोच सकें और कार्य कर सकें। इसका लक्ष्य है जो कुछ परमेश्वर ने किया और कहा है (भजन ७७:१२, ११९:१५, १६, ९७), और उसके स्वरूप पर (भजन ४८:९-१४) मनन करना।

भजन १९:१४ में दाऊद ने लिखा "मेरे मुंह के वचन और मेरे हृदय का ध्यान तेरे सम्मुख ग्रहण योग्य हों, हे यहोवा परमेश्वर।" अन्य भजन परमेशवर के प्रेम (४८:९), उसके कार्यों (७७:१२), उसके नियम (११९:९७) और उसकी शिक्षाओं (११९:९९) पर ध्यान करने के बारे में कहते हैं।

अपने मन को परमेश्वेर के वचन से भर लीजीये और प्रभु की आज्ञाओं, प्रतिज्ञाओं और भलाईयों पर ध्यान कीजिये। और यह स्मरण रखिये कि: "...जो जो बातें सत्य हैं, और जो जो बातें आदरणीय हैं, और जो जो बातें उचित हैं, और जो जो बातें पवित्र हैं, और जो जो बातें सुहावनी हैं, और जो जो बातें मनभावनी हैं, निदान, जो जो सदगुण और प्रशंसा की बातें हैं, उन्‍हीं पर ध्यान लगाया करो" (फिलिप्पियों ४:८)। - सिंडी हैस कैस्पर


मसीह की समानता में बढ़ने के लिये उसपर ध्यान करो।


बाइबल पाठ: भजन ११९:८९-१०५


मैं तेरे ऐश्वर्य की महिमा के प्रताप पर और तेरे भांति भांति के आश्चर्यकर्मों पर ध्यान करूंगा। - भजन १४५:५


एक साल में बाइबल:
  • एज़रा ९, १०
  • प्रेरितों के काम १